1.कोविड-19 की महामारी से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्मिता पर प्रश्न ?
2.संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था
3.कोविड-19 की महामारी का राजनीतिक परिदृश्य
4.क्या कोविड-19 महामारी को सुरक्षा का विषय बनाया जाए ?
5.वैश्विक प्रशासन से अपेक्षाएं
कोविड-19, संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद, वैश्विक सुरक्षा, एंटोनियो गुटेरेस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, वैश्विक महामारी
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद, वैश्विक सुरक्षा के प्रबंधन का सबसे बड़ा मंच कही जाती है मगर, दुनिया के सामने कोविड-19 की महामारी के रूप में जो चुनौती खड़ी हुई है, इसे इक्कीसवीं सदी में मानवता के लिए सबसे बड़ा संकट कहा जा रहा है।
सुरक्षा परिषद के सदस्य,मानवता के सामने खड़े इस महासंकट के दौरान भी आपस में ही झगड़ रहे हैं जबकि चाहिए तो ये था कि ये सभी देश मिल कर कोविड-19 की महामारी से लड़ने के लिए साझा प्रयास करते
और ऐसे अवसर पर जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से संकट को समाप्त करने में सक्रिय भूमिका की अपेक्षा थी, तो परिषद ख़ुद ही विवश और अशक्त हो गई है जैसा कि हाल ही में आई एक रिपोर्ट में भी कहा गया था, सुरक्षा परिषद के सदस्य,मानवता के सामने खड़े इस महासंकट के दौरान भी आपस में ही झगड़ रहे हैं जबकि चाहिए तो ये था कि ये सभी देश मिल कर कोविड-19 की महामारी से लड़ने के लिए साझा प्रयास करते जिस समय संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरस ने ही आपस में संघर्ष करने वाले देशों से अपील की कि वो फिलहाल युद्ध विराम कर दें, क्योंकि अभी मानवता ही संकट में है लेकिन, उनकी अपील के बावजूद, जिस तरह संकट के इस वैश्विक परिदृश्य से सुरक्षा परिषद अनुपस्थित है, वो बिल्कुल बेहद चिंताजनक तस्वीर है हालांकि, वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़े मसलों के लिए संयुक्त राष्ट्र का एक और अंग यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन बना हुआ है लेकिन, इससे पहले भी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़ी आपात परिस्थितियों पर परिचर्चाएं की हैं ख़ास तौर से एड्स, सार्स और इबोला जैसी संक्रामक बीमारियों को लेकर।
अब जबकि कोरोना वायरस से पैदा हुई महामारी को लेकर सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने नज़र अंदाज़ कर रखा हैं, तो सवाल ये है कि क्या कोविड-19 की महामारी को वैश्विक सुरक्षा का मसला निर्धारित करने से परिषद के सदस्य साथ आकर, इस महामारी से निपटने में सहयोग का बुद्धिमत्तापूर्ण क़दम उठाने को राज़ी होंगे ? ताकि, इस महामारी से निपटने की कार्य योजना पर वैश्विक सहमति बन सके। कोविड-19 की महामारी तीन अप्रैल तक 206 देशों को अपनी चपेट में ले चुकी थी आज इस महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या पच्चीस लाख को पार कर चुकी है जबकि मरने वालों का आंकड़ा भी दो लाख के क़रीब पहुंच चुका है हाल ये है कि सुरक्षा परिषद के जो पांच स्थायी सदस्य देश हैं, उनमें ही इस वैश्विक महामारी के लगभग चालीस प्रतिशत संक्रमित लोग हैं। वायरस के प्रकोप के इस मुद्दे को अगर सुरक्षा का मसला सुनिश्चित किया जाता है, तो इससे तमाम देश मिलकर अधिक कार्यकुशलता से वैश्विक संसाधन इकट्ठा करने में जुटेंगे। साथ ही साथ सुरक्षा के ऐसे क़दम उठाए जा सकेंगे, जिन्हें अभी पारंपरिक सुरक्षा के ख़तरों के लिए ही उठाया जाता रहा है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था
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आज बिना संकोच के ये बात कही जा सकती है कि पश्चिम की प्रभुत्ववादी ताक़तें ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को चलाती हैं क्योंकि इसे उन्हीं देशों से फंड मिलता है इसीलिए, ये संगठन पश्चिमी देशों के दृष्टिकोण से ही स्वस्थ विश्व की कल्पना करता है और उस दिशा में आगे बढ़ता है।
स्वास्थ्य को आम तौर पर व्यक्तिगत और विभिन्न देशों का घरेलू विषय माना जाता रहा है ख़ास तौर से तब तक, जब तक स्वास्थ्य से जुड़ी कोई चुनौती कई देशों में एक साथ न उठ खड़ी हो।इस सदी की शुरुआत में हमने देखा था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में HIV/एड्स का मुद्दा उठा था ये पहला मौक़ा था जब सुरक्षा परिषद में किसी बीमारी को सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा गया था और उस पर वैश्विक प्रशासन के सबसे बड़े सिक्योरिटी प्लेटफ़ॉर्म पर परिचर्चा हुई थी सुरक्षा परिषद के इस मुद्दे पर चर्चा करने का नतीजा ये निकला था कि अफ्रीका में युद्धरत देशों में शांति स्थापना के प्रयासों में एड्स की बीमारी को भी शामिल करने पर सहमति बन गई थी।
वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने एलान किया था कि एड्स की बीमारी सुरक्षा का मुद्दा है इसके लिए सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 1308 को मंज़ूरी दी थी इसके अंतर्गत इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि एड्स/HIV की महामारी की अगर रोकथाम न की गई, तो इससे पूरे अफ्रीका की स्थिरता और सुरक्षा को ख़तरा है।
इसी तरह, वर्ष 2014 में जब पश्चिमी अफ्रीका में इबोला वायरस की महामारी फैली, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इसपर एक प्रतिक्रियात्मक क़दम उठाया था और अपने शांति अभियानों के अंतर्गत इस महामारी से निपटने का लक्ष्य भी शामिल किया था इसी के बाद सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 3177 में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि, ‘इबोला वायरस की महामारी की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र के सभी अनुषांगिक संगठनों को आपसी समन्वय के साथ काम करना चाहिए। जो अपने अपने निर्धारित क्षेत्र में कार्य करते हुए इस महामारी से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों में सहयोग दें। इस संदर्भ में आवश्यकता के अनुसार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयास किए जाएं।
लेकिन, कोविड-19 की महामारी के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी भी सदस्य देश ने इस तरह का कोई प्रस्ताव सामने नहीं रखा है जबकि ज़रूरत ये थी कि महामारी से निपटने के लिए तमाम देशों में आपसी सहमति बनाने की कोशिश की जाए।
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