भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर 1962 को शुरू हुआ. ये युद्ध एक महीने तक चला, जिसमें 10 से 20 हजार भारतीय सैनिक और 80 हजार चीनी सैनिक शामिल हुए. 21 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध-विराम घोषित किया, तब युद्ध खत्म हुआ.
🔴"भारत को मिली कारारी हार
ये बात सही है कि 1962 के युद्ध में भारत को चीन के हाथों एक करारी हार का सामना करना पड़ा था. उस युद्ध में भारत के करीब 1300 सैनिक मारे गए थे और एक हजार सैनिक घायल हो गए थे. युद्ध के बाद करीब डेढ़ हजार सैनिक लापता हो गए थे और करीब चार हजार सैनिक बंदी बना लिए गए थे. वहीं चीन के करीब 700 सैनिक मारे गए थे और डेढ़ हजार से ज्यादा घायल हुए थे. चीन की सेना ने अरुणचाल प्रदेश को भारत से लगभग छीन लिया था और चीनी सेना असम के तेजपुर तक पहुंचने वाली थी. दूसरी तरफ लद्दाख के अक्साई-चिन इलाके पर भी चीन ने कब्जा कर लिया था. बाद में चीन ने अपनी सेना को अरुणचाल प्रदेश से हटा लिया था और युद्धविराम की घोषणा कर दी थी.
🔴"भारत
युद्ध के बाद भारतीय सेना में व्यापक बदलाव आये और भविष्य में इसी तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहने की जरुरत महसूस की गई। युद्ध से भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर दबाव आया जिन्हें भारत पर चीनी हमले की आशंका में असफल रहने के लिए जिम्मेदार के रूप में देखा गया।
●☞"भारतीयों में देशभक्ति की भारी लहर उठनी शुरू हो गयी और युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए कई स्मारक बनाये गए। यकीनन, मुख्य सबक जो भारत ने युद्ध से सीखा था वह है अपने ही देश को मजबूत बनाने की जरूरत और चीन के साथ नेहरू की "भाईचारे" वाली विदेश नीति से एक बदलाव की। भारत पर चीनी आक्रमण की आशंका को भाँपने की अक्षमता के कारण, प्रधानमंत्री नेहरू को चीन के साथ शांतिवादी संबंधों को बढ़ावा के लिए सरकारी अधिकारियों से कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा। भारतीय राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने कहा कि नेहरू की सरकार अपरिष्कृत और तैयारी के बारे में लापरवाह थी। नेहरू ने स्वीकार किया कि भारतीय अपनी समझ की दुनिया में रह रहे थे। भारतीय नेताओं ने आक्रमणकारियों को वापस खदेड़ने पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की बजाय रक्षा मंत्रालय से कृष्ण मेनन को हटाने पर काफी प्रयास बिताया।
●☞"भारतीय सेना कृष्ण मेनन के "कृपापात्र को अच्छी नियुक्ति" की नीतियों की वजह से विभाजित हो गयी थी और कुल मिलाकर 1962 का युद्ध भारतीयों द्वारा एक सैन्य पराजय और एक राजनीतिक आपदा के संयोजन के रूप में देखा गया। उपलब्ध विकल्पों पर गौर न करके बल्कि अमेरिकी सलाह के तहत भारत ने वायु सेना का उपयोग चीनी सैनिको को वापस खदेड़ने में नहीं किया। सीआईए (अमेरिकी गुप्तचर संस्था) ने बाद में कहा कि उस समय तिब्बत में न तो चीनी सैनिको के पास में पर्याप्त मात्रा में ईंधन थे और न ही काफी लम्बा रनवे था जिससे वे वायु सेना प्रभावी रूप से उपयोग करने में असमर्थ थे।
●☞"अधिकाँश भारतीय चीन और उसके सैनिको को संदेह की दृष्टि से देखने लगे। कई भारतीय युद्ध को चीन के साथ एक लंबे समय से शांति स्थापित करने में भारत के प्रयास में एक विश्वासघात के रूप में देखने लगे। नेहरू द्वारा "हिन्दी-चीनी भाई, भाई" (जिसका अर्थ है "भारतीय और चीनी भाई हैं") शब्द के उपयोग पर भी सवाल शुरू हो गए। इस युद्ध ने नेहरू की इन आशाओं को खत्म कर दिया कि भारत और चीन एक मजबूत एशियाई ध्रुव बना सकते हैं जो शीत युद्ध गुट की महाशक्तियों के बढ़ते प्रभाव की प्रतिक्रिया होगी।
●☞"सेना के पूर्ण रूप से तैयार नहीं होने का सारा दोष रक्षा मंत्री मेनन पर आ गया, जिन्होंने अपने सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया ताकि नए मंत्री भारत के सैन्य आधुनिकीकरण को बढ़ावा दे सके। स्वदेशी स्रोतों और आत्मनिर्भरता के माध्यम से हथियारों की आपूर्ति की भारत की नीति को इस युद्ध ने पुख्ता किया।
●☞"भारतीय सैन्य कमजोरी को महसूस करके पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी जिसकी परिणिति अंततः 1965 में भारत के साथ दूसरा युद्ध से हुआ। हालांकि, भारत ने युद्ध में भारत की अपूर्ण तैयारी के कारणों के लिए हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट का गठन किया था। परिणाम अनिर्णायक था, क्योंकि जीत के फैसले पर विभिन्न स्रोत विभाजित थे। कुछ सूत्रों का तर्क है कि चूंकि भारत ने पाकिस्तान से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, भारत स्पष्ट रूप से जीता था। लेकिन, दूसरों का तर्क था कि भारत को महत्वपूर्ण नुकसान उठाना पड़ा था और इसलिए, युद्ध का परिणाम अनिर्णायक था। दो साल बाद, 1967 में, चोल घटना के रूप में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच एक छोटी सीमा झड़प हुई। इस घटना में आठ चीनी सैनिकों और 4 भारतीय सैनिकों की जान गयी।
🔴"हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट
हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने युद्ध के तत्काल बाद ले. जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और इंडियन मिलिट्री एकेडमी के तत्कालीन कमानडेंट ब्रिगेडियर पी एस भगत के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी। दोनों सैन्य अधिकारियो द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को भारत सरकार अभी भी इसे गुप्त रिपोर्ट मानती है। दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।
🔴"राष्ट्रीय रक्षा कोष के प्रति दान
सन 1965 में भारत के प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री के अनुरोध पर हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान ने राष्ट्रीय रक्षा कोष में 5,000 किलोग्राम सोने का दान दिया।
अक्टूबर 20, 1962में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने लदाख क्षेत्र पर आक्रमण किया था।
युद्ध से पहले भारत की सेना को यह पता ही नहीं था की युद्ध होने वाला है इसलिए भारत ने अपने 2 सेना की टुकड़ियों को ही तनाव वाले क्षेत्र में तैनात किया था परन्तु चीन ने अपने 3 चीनी सेना रेजिमेंट वहां तैनात कर के रखे थे।
यहाँ तक की चीन के सेना छुपकर भारतीय सेना के फ़ोन लाइन भी काट दिया करते थे ताकि वे अपने मुख्यालय से संपर्क ना कर सकें।
युद्ध के पहले दिन, चीनी थल सेना ने भी पीछे से हमला शुरू कर दिया था। लगातार नुकसान ने भारतीय सैनिकों को भूटान से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था।
चीनी सेना ने 22 अक्टूबर को एक बड़े झाडी में आग लगा कर भारतीय सैनिकों को भ्रम में रखा और उसकी मदद से 400 से ज्यादा सैनिकों की फौज़ ने भारतीय सेना पर आक्रमण कर दिया था।
भारतीय सेना को अपने पहले चीनी आक्रमण को रोकने के लिए मोर्टार की आवश्यकता पड़ी थी जिसमें लगभग 200 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया गया।
चीन के आधिकारिक सैन्य इतिहास के अनुसार, युद्ध में अपने पश्चिमी क्षेत्र के सीमाओं को हासिल करने के नीतिगत उद्देश्यों को चीन ने हासिल कर लिया था
🔴"भारत-चीन के बिच 1962 में युद्ध कैसे हुआ?
यह उस समय की बात है जब भारत को आज़ाद हुए कुछ ही वर्ष हुए थे। भारत पहले से ही आर्थिक स्तिथि से जूझ रहा था। वैसे तो भारत-चीन के बिच तनाव बना हुआ था पर भारत ने कभी-भी नहीं सोचा था की चीन भारत पर आक्रमण कर देगा। परन्तु चीन ने राष्ट्रीय एकता दिवस (National Solidarity Day) अक्टूबर, 1962 को भारत पर बिना कुछ कहे आक्रमण कर दिया। इस चीन-भारत युध्ह को साइनो-इंडिया वार (Sin0-Indian War) के नाम से भी जाना जाता है।
बिना कुछ बोले ही चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया इसीलिए ऐसे समय में भारत की सेना अच्छे से तैयार भी नहीं थी। वह कुछ इस प्रकार का समय था जहाँ 80,000 से भी ज्यादा चीनी सैनिकों के सामने भारतकी तैयार मात्र 10,000 सैनिक तैनात थे। यह युद्ध लगभग एक महीने तक चल और नवम्बर 21, 1962 को ख़त्म हुआ जब चीन ने युद्ध विराम की घोषणा की।
🔴"इस युद्ध के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं –✍️
भारत की आजादी के बाद ही चीन की जनवादी गणराज्य (पीआरसी) People’s Republic of China (PRC) का गठन 1949 किया गया जो ची के साथ साथ सौहार्दपूर्ण संबंध का काम किया करते थे।
जब चीन ने यह घोषणा किया कि वह तिब्बत पर कब्ज़ा करेगा तो भारत ने चीन को एक चिठ्ठी भेजा जिसमें भारत ने इस बात से इंकार किया। चीन ने अपने बहुत सारे सैनिकों को भी अक्साई चीन बॉर्डर पर तैनात करने लगा था।
भारत चीन के साथ अपने संबंधों के विषय में इतना चिंतित था की उस समय जापान में होने वाले शांति संधि में चीन को आमंत्रित नहीं किया गया था। भारत ने दुनिया से संबंधित मामलों में चीन का प्रतिनिधि बनने का भी प्रयास किया क्योंकि चीन कई मुद्दों से अलग था।
साल 1954, में चीन और भारत के बिच शांतिपूर्ण सहयोग के पांच सिद्धांत लाया गया जिसके अनुसार भारत, तिब्बत पर चीन का शासन को स्वीकार करता है। यह उस समय की बात है जब भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु थे। नेहरु जी ने दोनों देशों के बिच शांति बनाये रखने के लिए “हिंदी चीनी भाई भाई” का नारा भी उठाया।
बाद में जुलाई 1954 में जवाहरलाल नेहरु जी ने चीन को भारत के मानचित्र में कुछ गलतियों के बारे में बताया जिसके अनुसार चीन के मानचित्र में कुछ 1,20,000 वर्ग किलोमीटर भारत का दिखा। लेकिन चीन के प्रथम प्रीमियर, ज्होऊ एनलाई ने इस बात से मना कर दिया की ऐसी कोई गलती नहीं है।
चीन के एक बड़े नेता ने बहुत अपमानित महसूस किया जब दलाई लामा ने चीन को छोड़ा और भारत में रहने लगे। दोनों देशों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया जब माओ ने कहा कि तिब्बत में ल्हासा विद्रोह भारतीयों द्वारा किया गया था।
सही मायने में अगर सोचने तो भारत और चीन के बच युद्ध का कारण तिब्बत बा गया। उसके बाद भारतीय सेना और चीनी सेना के बिच कई सैन्य घटनाएँ हुई।
उसके बाद जुलाई 10, 1962 को कुल 350 चीनी सैनिक भारतीय पोस्ट चुशूल के पास गए और उन्होंने माइक पर ऐलान किया और गुरखाओं को समझाने की कोशिश की कि उन्हें भारत की ओर से नहीं लड़ना चाहिए।
लेकिन बाद में चीन ने भारत पर अक्टूबर, 1962 में आक्रमण कर ही दिया जिसके विषय में भारत को पता तक नहीं था।
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