भारत में तीन वैक्सीन का ट्रायल जारी है। जैसे-जैसे वैक्सीन से जुड़े अपडेट आ रहे हैं, लोगों को एक राहत सी मिल रही है और हर किसी को वैक्सीन के तीसरे ट्रायल का इंतज़ार है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि तीसरे ट्रायल के बाद आम लोगों को वैक्सीन मुहैया कराने का काम शुरू हो जाएगा, लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि वैक्सीन के तीन नहीं चार ट्रायल होते हैं। चौथे ट्रायल में क्या होता है, यह बताने से पहले हम आपको बताते हैं शुरू के तीन ट्रायल के बारे में।
पहला चरण
पहले चरण में कुछ स्वस्थ लोगों में को शामिल किया जाता है, जिनमें इसकी सुरक्षा का आकलन करने के लिए वैक्सीन के डोज दिये जाते हैं। इस परिक्षण में लोगों के दो समूह शामिल किये जाते हैं। इसमें उनकी सुरक्षा, शरीर पर असर, एंडीबॉडी का डेटा तैयार किया जाता है। इसमें सुरक्षा और वैक्सीन के प्रभाव के साथ ही साइड इफेक्ट्स भी नोट किए जाते हैं। यहां पर अहम निर्णय यह लिया जाता है कि इस वैक्सीन का लाइसेंस देना है या नहीं। इसमें करीब 10 स्वस्थ लोगों के दो या तीन समूहों को एक साथ वैक्सीन के डोज दिये जाते हैं।
दूसरा चरण
पहले चरण के सफल होने पर ही दूसरा चरण शुरू किया जाता है। दूसरे चरण में पहले चरण से दोगुने लोगों को लिया जाता है या करीब 300 से अधिक स्वस्थ लोगों को डोज़ दिया जाता है। इस चरण में देखा जाता है कि दवा कितनी प्रभावी है। इससे इम्युनिटी कितनी बढ़ रही है और उपचार की दृष्टि से कितनी मात्रा में दी जानी चाहिए।
तीसरी चरण
इसी तरह, तीसरे चरण के परीक्षण बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसमें वैक्सीन की विषाक्तता, प्रतिरक्षा, और दुष्प्रभाव की निगरानी करते हैं। वैक्सीन को मान्यता देने के लिये प्रस्तुत किये जाने से पहले उसका सामान्य रोग में भी सुरक्षित और प्रभावी होना जरूरी है। तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल में दवा की मात्रा का अंतिम परीक्षण किया जाता है। इसके बाद इसे रजिस्ट्रेशन के लिए भेजा जाता है। मंजूरी मिलने पर वैक्सीन का वृहद स्तर पर उत्पादन शुरू किया जाता है।
चौथा चरण
यह चरण भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। आम तौर पर यह परीक्षण तब किया जाता है जब बाजार में पहुंच जाती है। इसमें वैक्सीन के उपयोग, उसके प्रतिकूल प्रभावों और दीर्घकालिक प्रतिरक्षा पर लगातार जानकारी एकत्र की जाती है।
इस बारे में आईसीएमआर के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन आर गंगाखेडकर बताते हैं कि वैक्सीन आने के बाद उसके साइड इफेक्ट भी निरंतर चेक किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि बिना परीक्षण के परिणाम आये कोई भी वैक्सीन नहीं आयेगी। वैक्सीन के तीन ट्रायल होते हैं, जिसमें सफल होने के बाद ही दी जाती हैं। तीसरे ट्रायल में ही वृहद स्तर पर लोगों पर ट्रायल हो जाता है। उसके बाद इसमें चौथा ट्रायल भी होता है, उसमें जिन लोगों को वैक्सीन दी जाती है, उनकी निगरानी हर वक्त की जाती है। चूंकि वैक्सीन धीरे-धीरे लोगों तक पहुंचती है, इसलिये छोटे-बड़े सभी स्तर पर लोगों पर ध्यान दिया जाता है। वैक्सीन की एक समय सीमा होगी। अब कुछ साल बाद कोई साइड इफेक्ट होता है, तो उसके बारे में अभी नहीं कह सकते हैं।
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