त्रिषष्टिश्चतुःषष्टिर्वा वर्णाः शम्भुमते मताः ।
प्राकृते संस्कृते चापि स्वयं प्रोक्ताः स्वयंभुवा ।। ३ ।।
63 या 64 वर्ण शिव के मत में मान्य हैं। प्राकृत और संस्कृत दोनों में ही यह स्वयम्भु ब्रह्मा के द्वारा उच्चारित हैं।
(आजका व्याकरण पाणिनि का माहेश्वरसूत्रों पे आधारित है अतः महेश्वर शिव के मतमें 63 या 64 वर्ण हैं।)
स्वरा विंशतिरेकश्च स्पर्शानां पञ्चविंशतिः ।
यादयश्च स्मृता ह्यष्टौ चत्वारश्च यमाः स्मृताः ।। ४ ।।
स्वर 21 हैं। और क् से म् तक स्पर्श वर्ण कहलाते हैं, वे 25 हैं। य् से ह् तक 8 वर्ण हैं। और यम 4 हैं।
स्वर 21 अ इ उ ऋ (प्रत्येक के ह्रस्व दीर्घ प्लुत 3 भेद) तो कुल बारह। ए ओ ऐ औ (प्रत्येक के दीर्घ और प्लुत भेद) = कुल 8। लृ 1 (लृ के दीर्घ और प्लुत नहीं)। 12+8+1=21।
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कु चु टु तु पु (प्रत्येक वर्ग में 5 वर्ण) = क् से म् तक 25 स्पर्श वर्ण।
यादि य् से ह् तक 8 वर्ण।
चार यम (अलग concept है)। 4
21+25+8+4= 58
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अनुस्वारो विसर्गश्च क पौ चापि पराश्रितौ ।।
दुःस्पृष्टश्चेति विज्ञेयो ऌकारः प्लुत एव च ।। ५ ।।१ ।।
(अनुस्वार यानी ं विसर्ग यानी ः, जिह्वामूलीय और उपध्मानीय ये 4 अयोगवाह। अनुस्वार विसर्ग पिछले पोस्ट में जाने हैं, बाकी के दो अर्धविसर्ग जैसे बोले जाते हैं। दुःस्पृष्ट यानी ळ = 1 और प्लुतलृकार 1)। 4+1+1=6।
58+6=64।।
ये कुल चौसठ वर्ण संस्कृत में हैं।
लृकार का जो आचार्य प्लुत भेद नहीं मानते उनके मत में 63 वर्ण हैं।
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