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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

विभक्ति।।

विभक्ति हमेशा लगाओ। रामः के अन्त का  ' : '  रामेण का एण, रामस्य का स्य ये सब विभक्ति हैं। विभक्ति लगाए बिना शब्दों का वाक्य में प्रयोग हो नहीं सकता संस्कृत में जो शब्द का original form होता है, उसे शब्द कहते हैं। राम शब्द है, "रामः" पद है।

वाक्य में प्रयोग करने के लिए शब्द यानि original form में कुछ परिवर्तन होते हैं, क्योंकि शब्द अकेला यह नहीं बता सकता उसका वचन क्या है, राम सुनने से कितने राम हैं? ये पता न चलेगा।
लेकिन "रामः" सुनने से 1 राम है ये पता चलेगा। दूसरी बात बिना विभक्ति के राम क्या है? ये भी पता चलेगा नहीं। राम कर्ता है, कर्म है सम्प्रदान है, या क्या है? लेकिन “रामस्य" कहने से "राम का" ऐसा बोध होगा, यानि राम किसीका सम्बन्धी है।

“रामः” सुनने से "राम कर्ता है", यानि स्वतन्त्र होके कोई काम करता है, ऐसा ज्ञान होगा। आगे उदाहरणों से स्पष्ट होगा। शब्द अकेला “क्या" और "कितना" का उत्तर देगा नहीं, विभक्ति से जुड़के दोनों सवालों का जवाब मिलेगा। इसलिए ऐसे “पद” का ही प्रयोग वाक्य में होता है।
जैसे “रामः उत्तम पुरुषः अस्ति” इसमें उत्तम में विभक्ति डाली नहीं। “उत्तमः पुरुषः" ये सही है। अत्र “गोविन्द गौः अस्ति" इसमें गोविन्द लटक गया न ? गोविन्द की गाय बोलना हो तो "गोविन्दस्य" गौः अस्ति। ऐसे कहना चाहिये। गर्गादि ऋषयः सन्ति (गर्गादि ऋषि हैं) । यहाँ फिर आदि में क्या वचन क्या कारक कुछ बोध हुआ नहीं, "गर्गादयः ऋषयः” बोलना चाहिये। ऐसे सभी जगह original form से कुछ न कुछ विभक्ति लगाके उसका वचन और कारक बताना पड़ता है। वरना अकेला शब्द लटक जाएगा। लेकिन सब जगह विभक्ति दिखे ऐसा जरूरी नहीं। कहीं गायब हो जाए तो अन्दाज लगा लेते हैं कि
पहले आई थी, अब कोई नियम से गायब हो गई। 
जरूरी नहीं के एक विभक्ति से fix एक ही अर्थ का बोध हो। जैसे सब स्कूल में सिखाते हैं “कर्ता ने कर्म को करण से" ऐसा भी न सोचो। यह कल और परसों कारक में समझेंगे। विभक्ति वो प्रत्यय हैं जो वचन बताते हैं और कभी कारक
बताते कभी कारक के अलावा दूसरे अर्थ भी बताते। “रामेण सह" means राम के साथ, यहाँ एण का अर्थ साहचर्य/togetherness है। रामाय नमः, कृष्णाय नमः वगेरह में "आय" का भी कारक-specific अर्थ नहीं। दुनिया के
जितने अर्थ हैं उनको सात ग्रुप में विभाजित कर दिया है, इसलिए एक "आय" से या “एन” से अनेक अर्थ बोले जाते हैं। कुछ कारक कुछ उससे भिन्न है।
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