चाय का मजा रहे, पकौड़ी से सजा रहे
मुंह कभी रुके नहीं, रजाई कभी उठे नहीं
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
मां की लताड़ हो बाप की दहाड़ हो
तुम निडर डटो वहीं, रजाई से उठो नहीं
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो ||
मुंह गरजते रहे, डंडे भी बरसते रहे
दीदी भी भड़क उठे, चप्पल भी खड़क उठे
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो।
प्रात: हो कि रात हो, संग कोई न साथ हो
रजाई में घुसे रहो, तुम वही डटे रहो
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो।
एक रजाई लिए हुए, एक प्रण किए हुए
अपने आराम के लिए, सिर्फ आराम के लिए
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो।
कमरा ठंड से भरा, कान गालीयों से भरे
यत्न कर निकाल लो, ये समय निकाल लो
ठंड है ये ठंड है, यह बड़ी प्रचंड है
हवा भी चला रही, धूप को डरा रही
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो।।

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