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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

दक्षिण एशिया का संकट।।

(भारत डोगरा )

इन दिनों दक्षिण एशिया विभिन्न तरह की पर्यावरण संबंधी समस्याओं से जूझ रहा है, पर माना जा रहा है कि आगामी कुछ वर्षो में जलवायु बदलाव के कारण पैदा होने वाली समस्याएं इसके समझ और अधिक कठिनाइयां उपस्थित कर सकती हैं। जलवायु बदलाव के सबसे प्रमाणिक समूह इंटर गवर्नमेंटेल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने भी दक्षिण एशिया की समस्याओं की ओर विशेष ध्यान दिलाया है। इसका सबसे अधिक असर समुद्र के तटीय क्षेत्रों और पर्वतीय क्षेत्रों में नजर आने की संभावना है। दक्षिण एशिया में हिमालयी पर्वतों का बहुत बड़ा विस्तार है। साथ ही यहां समुद्र के तटीय क्षेत्र में बहुत दूर तक घनी आबादी निवास करती है। ग्लोबल वार्मिग के कारण समुद्र का जल-स्तर बढ़ना निश्चित है। इतना ही नहीं यहां बहुत से डेल्टा क्षेत्र ऐसे हैं जहां भूमि धंसान की समस्या आरंभ हो चुकी है। जब समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा और समुद्र तट की भूमि में धंसान होगा तो तट पर रहने वाले लोगों के लिए प्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस संदर्भ में मुंबई, कोलकाता और ढाका इन तीन शहरों की स्थिति विशेष तौर पर संवेदनशील मानी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की ग्लोबल एनवायरमेंट आउटलुक रिपोर्ट में इस बारे में चिंता व्यक्त की गई है कि वर्ष 2050 तक इस कारण लाखों लोगों की स्थिति बदहाल हो सकती है। हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने से पहले बाढ़ और बाद में सूखे की समस्या और विकट हो सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों का पहले से संवेदनशील पर्यावरण तेजी से अस्थिर हो सकता है, जिसके दुष्परिणाम पर्वतीय क्षेत्र के अतिरिक्त दूर-दूर के मैदानी क्षेत्रों को भी भुगतने पड़ेंगे। 1हालांकि अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्रों में गेहूं का उत्पादन बढ़ने की संभावना भी व्यक्त की गई है, पर चावल, गेहूं जैसे महत्वपूर्ण खाद्यों पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है। इस कारण खाद्य सुरक्षा संकट में पड़ सकती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी जलवायु बदलाव के कई चिंताजनक परिणामों की संभावना विशेषज्ञ व्यक्त कर चुके हैं। विशेष चिंता की बात यह है कि मालदीव जैसे देश पर अस्तित्व मिटने का खतरा मंडरा रहा है। बांग्लादेश को भी अधिक संवेदनशील क्षेत्र माना गया है। सच बात तो यह है कि दक्षिण एशिया का पूरा क्षेत्र ही विशेष तौर पर जलवायु परिवर्तन के निशाने पर है।1इस संदर्भ में इसी हफ्ते मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर यह जानना जरूरी है कि इन समस्याओं का सामना करने के लिए दक्षिण एशिया की तैयारी कितनी मजबूत है। विभिन्न देशों की तैयारी में कुछ फर्क जरूर हो सकता है, पर कुल मिलाकर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि पूरे क्षेत्र के स्तर पर यह तैयारी अभी बेहद आधी-अधूरी और अपर्याप्त है। इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की पांचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट में भी यह कमजोरी रेखांकित की गई है। 1समस्या की गंभीरता और उसका सामना करने की कमजोर तैयारी को देखते हुए यह बहुत जरूरी हो गया है कि इस विषय को उच्च प्राथमिकता देते हुए अब इस पर कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। पहले ही बहुत देर हो चुकी है। अब और देर नहीं होनी चाहिए। 1इस कार्य की संतोषजनक प्रगति के लिए यह बहुत जरूरी है कि दक्षिण एशिया के सभी देश नजदीकी सहयोग से कार्य करें। वैसे तो युद्ध और आतंकवाद सहित हर तरह की आपसी हिंसा की संभावना को समाप्त करना तथा शांति की स्थापना करना अपने आप में एक बहुत सार्थक उद्देश्य है, पर अब जलवायु बदलाव के संकट का सामना करने के लिए तो यह और भी जरूरी हो गया है कि दक्षिण एशिया के सभी देश तेजी से आपसी सहयोग की राह पर आगे बढ़ें।1(लेखक पर्यावरणविद् हैं)(DJ)

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