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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत

कोहलबर्ग एक मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने बाल विकास में नैतिक विकास के तीन प्रमुख स्तर तथा 7 सोपान बताएं हैं जो निम्न प्रकार से हैं-


तीन प्रमुख स्तर इस प्रकार हैं

1-पूर्व परंपरागत स्तर
2-परंपरागत स्तर
3-उत्तर परंपरागत स्तर
सात सोपान निम्नलिखित हैं।

1-पूर्व परंपरागत स्तर इसके अंतर्गत निम्नलिखित सोपान आते हैं-

०. आत्म केंद्रित निर्णय
१. दंड तथा आज्ञा पालन अभिमुखता
२. यांत्रिक सापेक्षिक अभिमुखता

2-परंपरागत स्तर के अंतर्गत निम्नलिखित सोपान आते हैं
३-परस्पर एकजुट अभिमुखता
४-अधिकार संरक्षण अभिमुखता

3-उत्तर परम्परागत स्तर के अंतर्गत निम्न प्रकार के सोपान आते हैं
५-सामाजिक अनुबंध विधि सम्मत अभिमुखता
६-सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत अभिमुखता

1-पूर्व परंपरागत स्तर-

पूर्व परंपरागत का अर्थ होता है कि जिसे एक के पीछे दूसरा बराबर करता आया हो । इसे परंपरागत कहते हैं।
बाल विकास में पूर्व परंपरागत स्तर का अर्थ होता है कि बालक अपनी आवश्यकताओं के संदर्भ में चिंतन करते हैं वह इस स्तर पर नैतिक दुविधाओं युक्त प्रश्नों पर उनके उत्तर प्राय,ः उनको होने वाले लाभ या हानि पर आधारित होते हैं नैतिक कार्य अच्छे या बुरे कार्यों में निहित होते हैं ना कि अच्छे या बुरे व्यक्तियों में सामाजिक व सांस्कृतिक नियमों जैसे अच्छा या बुरा सही या गलत आदि के व्याख्या मिलने वाले दंड पुरस्कार अथवा नियमों को समर्थन करने वाले व्यक्तियों की शारीरिक सामर्थ्य अथवा होने वाले स्थूल परिणामों से आंकी जाती है।

2-परंपरागत स्तर-

कोलबर्ग के अनुसार नैतिक विकास के परंपरागत स्तर पर नैतिक मूल्य अच्छे या बुरे कार्यों को करने में निहित रहते हैं बालक बाह्य सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने में रुचि लेते हैं वे अपने परिवार अपने समूह अथवा अपने राष्ट्र की अपेक्षाओं को पूरा करने को महत्व देते हैं तथा महत्वपूर्ण व्यक्तियों तथा सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप कार्य करते हैं उनमें परंपरागत नियमों तथा दायित्वों के प्रति समर्थन तथा औचित्य का भाव रहता है।

3-उत्तर परंपरागत स्तर

नैतिक विकास के इस तृतीय तथा सर्वोच्च स्तर पर बालक उन नैतिक मूल्यों तथा नैतिक सिद्धांतों को परिभाषित करने के स्पष्ट प्रयास करने लगते हैं ,जिनकी सामाजिक दृष्टि से बैधता उपयोगिता होती है तथा जो परंपरागत मूल्यों नियमों या सिद्धांतों से भिन्न हो सकते हैं ।उनमें स्वानिर्धारित नैतिक सिद्धांतों के प्रति निष्ठा तथा अनुसरण करने की भावना होती है । नैतिक।मूल्य वस्तुतः उभयनिष्ठ मानदंडों अधिकारों तथा कर्तव्यों की पूर्ति में निहित माने जाते हैं।
कोहलवर्ग के द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त वर्णित नैतिक विकास के विभिन्न स्तरों तथा सोपानों के अवलोकन से स्पष्ट है कि यह तीनों स्तर तथा ये सातो सोपान क्रम से नैतिक निर्णय लेने की बढ़ती योग्यता तथा दृष्टिकोण की बढ़ती व्यापकता व अमूर्तता को इंगित करते हैं । प्रथम स्तर पर बालक आत्म केंद्रित होते हैं क्योंकि वे स्वहित की दृष्टि से ही नैतिक व्यवहार करते हैं तथा ठंड से बचने चाहते हैं इसके विपरीत तृतीय स्थान में व्यक्ति बाह्य केंद्रित हो जाते हैं तथा वे निष्पक्ष भाव से अन्य व्यक्तियों के संबंध में विचार करने की योग्यता विकसित कर लेते हैं।


Kohlberg was a psychologist who has given three major levels of moral development and 7 steps in child development which are as follows-

 The three major levels are

 1 Pre-Conventional Level
 2-traditional level
 3-North Conventional Level

 The following are the seven steps.

 1-Pre-Conventional Level It includes the following steps-1-Self-centered decision-2-Penalties and obedience orientation 3-Mechanical relative orientation

 2- The following steps are covered under the traditional level 4-Mutually united orientation 5-Rights protection orientation

 3- Traditional levels fall under the following types of steps 6-Social contract law-oriented orientation 7-Universal moral principle orientation

 1-Pre-Conventional Level-

Pre-traditional means that One who has been equaling the other behind the other. It is called traditional.
The pre-traditional level in child development means that children think in terms of their needs. At this stage, their answers to questions involving moral dilemmas are often based on the benefits or disadvantages they face. It is implied that good or bad individuals are judged by the social power or cultural consequences of the individuals who endorse the punishments or rules supporting the interpretation of social and cultural rules such as good or bad, right or wrong, etc.

 2-Traditional Level - 

According to Kolberg, at the traditional level of moral development, moral values ​​are inherent in performing good or bad actions. Children are interested in meeting external social expectations. They meet the expectations of their family, their group or their nation. They give importance to and work according to important persons and social system, they have a sense of support and justification for traditional rules and obligations.

 3-North Conventional Level

 At this third and highest level of moral development, children make clear efforts to define moral values ​​and moral principles that have socially usefulness and which may differ from traditional values ​​rules or principles. There is a feeling of loyalty to and adherence to principles. Moral value is in fact considered to be inherent in the fulfillment of common norms, rights and duties.
 It is clear from the observation of the various levels of moral development and steps described above by Kohlvarg that these three levels and these seven steps indicate the increasing ability to make ethical decisions and the increasing comprehensiveness and abstraction of attitudes. At the first level, the children are self-centered because they behave ethically from the point of view of selfishness and want to avoid the cold. On the contrary, in the third place, the people become externally focused and they are able to think objectively in relation to other people. Let's develop.

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