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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

प्राचीन शिक्षा प्रणाली वैदिक और बौद्ध काल ।।

वैदिक शिक्षा:

वैदिक शिक्षा-प्रणाली की ख़ास विशेषता थी गुरुकुल [ शाब्दिक अर्थ शिक्षक का घर ‘] की प्रणाली. छात्रों को शिक्षा के पूरे काल के लिए शिक्षक और उनके परिवार के साथ रहना आवश्यक था. कुछ गुरुकुल एकांत वन-क्षेत्रों में होते थे, लेकिन सिद्धांत एक ही था – विद्यार्थियों को गुरु (शिक्षक) / गुरु और उनके परिवार के साथ रहना होता था. यह प्रणाली लगभग 2500 वर्षों तक यथावत चलती रही. पाठशालाओं तथा शिक्षण संस्थाओं का विकास बहुत बाद में हुआ.

1. शिक्षा का उद्देश्य:

शिक्षा के उद्देश्य का पहला उल्लेख ऋग्वेद के 10 वें मंडल में पाया जाता है. इस मंडल के एक सूक्त में कहा गया है कि विद्या का उद्देश्य वेदों तथा कर्मकांड के ज्ञान के अतिरिक्त समाज में सम्मान प्राप्त करना, सभा-समिति में बोलने में सक्षम होना, उचित-अनुचित का बोध आदि है. इससे प्रतीत होता है की पूर्व वैदिक युग में शिक्षा के उद्देश्य व्यावहारिक थे. बाद में, उपनिषद काल में, ज्ञान का उद्देश्य अधिक सूक्ष्म हो गया. विद्या को दो भागों में बांटा गया – परा विद्या और अपरा विद्या. अपरा विद्या में प्रायः समस्त पुस्तकीय तथा व्यावहारिक ज्ञान आ गया. केवल ब्रह्म विद्या को परा विद्या माना गया. परा विद्या श्रेष्ठ मानी गई क्योंकि उससे मोक्ष प्राप्त होता है. मोक्ष शिक्षा का अंतिम उद्देश्य हो गया. लेकिन यह लक्ष्य आदर्श ही रहा होगा, न की व्यावहारिक, क्योंकि मोक्ष सभी के लिए साध्य नहीं हो सकता. इतिहासकार ए.एस.अल्तेकर ने वैदिक शिक्षा के व्यावहारिक उद्देश्य बताये हैं जो निम्नलिखित हैं.

1) चरित्र निर्माण: 

सत्यवादिता , संयम , व्यक्तिगत शील , सफाई , शांत स्वभाव और उदारता आदि अच्हे चरित्र के गुण किसी भी पेशे – पुरोहित , शिक्षक , चिकित्सक , राजसेवक, व्यापारी या सैनिक - के लिए बुनियादी आवश्यकता के रूप में प्राचीन ग्रंथों में निर्धारित किये गए हैं. शिक्षा का उद्देश्य इन गुणों का विकास करना था. मनुस्मृति में कहा गया है कि निर्मल चरित्र का ब्राह्मण सभी वेदों का ज्ञान रखने वाले दुश्चरित्र ब्राह्मण से अच्छा होता है. शिक्षा आरम्भ करने के पूर्व उपनयन संस्कार होता था जिसमें भावी विद्यार्थी को नैतिक आचरण के नियमों का पालन करने का उपदेश दिया जाता था. इसी तरह शिक्षा के समापन पर भी गुरु उपदेश देता था. उदाहरण के लिए तैत्तिरीय उपनिषद से दीक्षांत भाषण एक अंश उद्धृत है :

सच बोलो . धर्म का आचरण करो . वेदों का प्रतिदिन अभ्यास करो... माता को देवतुल्य समझो. पिता को देवतुल्य समझो. गुरु को देवतुल्य समझो. अतिथि को देवतुल्य समझो...”

2) व्यक्तित्व का विकास:

प्रत्येक शिक्षार्थी को आत्मनिर्भरता , आत्म - संयम और जीवन में वर्ण और आश्रम के अनुरूप आचरण करने का कौशल सिखाया जाता था. विद्यार्थी भिक्षा मांगकर और शारीरिक श्रम करके अपना और गुरु के परिवार का भरण-पोषण करते थे. इससे आत्म-निर्भरता उत्पन्न होती थी. संयम विद्यार्थी-जीवन ही नहीं समस्त जीवन का अनिवार्य अंग था और शिक्षा जीवन में इस पर बहुत बल दिया जाता था.. अपने वर्ण [ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र] से सम्बंधित कार्य कुशल ढंग से कर पाने की सामर्थ्य शिक्षा द्वारा दी जाती थी. साथ ही यह भी सिखाया जाता था कि विभिन्न आश्रमों [गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास] में किस तरह आचरण करना होगा. अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त में कहा गया है की गुरु शिक्षार्थी को दुबारा जन्म देता है, अर्थात उसका मानसिक , नैतिक और आध्यात्मिक कायाकल्प कर देता है.

3) कार्य-क्षमता और नागरिक जिम्मेदारी का विकास: 

शिक्षा को गृहस्थ जीवन की भूमिका माना जाता था. गृहस्थ के अतिरिक्त सभी अन्य आश्रमों वाले व्यक्ति अपनी भौतिक आवश्यकताओं के लिए गृहस्थ पर निर्भर होते थे. इस तरह गृहस्थ न केवल अपने परिवार बल्कि अन्य वर्णों का भी पालन करता था. गुरु शिक्षार्थी को समाज में अपनी यह भूमिका निभाने में सक्षम बनाता था. इसके अतिरिक्त समाज को चलाने के लिए आवश्यक राजसेवक, न्यायाधीश, व्यापारी, पुरोहित तथा अन्य कुशल व्यक्ति गुरुकुलों द्वारा ही तैयार किये जाते थे.

4) विरासत और संस्कृति का संरक्षण: 

आरम्भ में आर्यों को लिपि का ज्ञान नहीं था. समाज के सामने चुनौती थी की किस तरह मौखिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी वेदों को अपने मूल रूप में सुरक्षित रखा जाय. भारत के प्राचीन गुरुकुलों की यह विलक्षण उपलब्धि थी कि वैदिक साहित्य लगभग दो हजार साल तक मौखिक रूप में जीवित ही नहीं, अक्षुण्ण भी रखा. 

वैदिक शिक्षा व्यापक सांस्कृतिक दृष्टि पर बल देती थी. शिक्षित व्यक्ति को साहित्य, कला, संगीत आदि की समझ होनी चाहिए. उसे जीवन के उच्च आदर्शों का ज्ञान भी होना चाहिए. मात्र जीविकोपार्जन शिक्षा का उद्देश्य नहीं है. कालिदास ने कहा है कि जो विद्या का उपयोग केवल कमाई के लिए करते हैं वे विद्या के व्यापारी हैं जिनकी विद्या बिकाऊ माल भर है.

पूर्वजों की परंपरा और संस्कृति की रक्षा शिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य था. चूँकि एक ही व्यक्ति विद्या की सभी शाखाओं में निष्णात नहीं हो सकता था, अतः वैदिक ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में विशेषज्ञता का विकास हुआ. साथ ही समस्त देश में कुछ ऐसे आधारभूत मूल्यों की स्थापना हुई जो आज भी सांस्कृतिक एकता के आधार हैं.

2. पाठ्यक्रम

समय-क्रम में वैदिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में निम्नलिखित विषयों का समावेश हुआ: 

(1) चार संहितायें : ऋक, यजु:, साम और अथर्व 

(2) ब्राह्मण

(3) आरण्यक 

(4) उपनिषद

(5) छ: वेदांग : शिक्षा , कल्प , निरुक्त , व्याकरण, छंद, ज्योतिष

पहले चारों को मिलाकर वेद बनते हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद. प्रत्येक वेद में एक संहिता और एक या अधिक ब्राह्मण ,आरण्यक तथा उपनिषद हैं . उदाहरण के लिए , ऋग्वेद में ऋक संहिता, दो ब्राह्मण , दो आरण्यक और दो उपनिषद है . संहितायें सबसे प्राचीन हैं. उनमें अधिकतर विभिन्न देवों की प्रार्थनाएं हैं. ब्राह्मण यज्ञ-याग की दृष्टि से वेदों की व्याख्या करने वाले ग्रन्थ हैं. आरण्यक वैदिक यज्ञादि कर्मों के तत्त्व का विचार करते हैं. उपनिषद दर्शन के ग्रन्थ हैं. इन्हें वेदान्त भी कहा जाता है क्योंकि ये ग्रन्थ वेदों के अंत में आते हैं.

वेद:

ऋग्वेद वेदों में प्राचीनतम हैं. इसमें दस मंडल (विभाग) हैं, कुल मिलाकर इसमें 1000 से अधिक सूक्त (प्रार्थनाएं) हैं. प्रत्येक सूक्त में कई ऋचाएं (श्लोक) हैं. पूरे ऋग्वेद में लगभग 10000 ऋचाएं हैं.

सामवेद में ऋग्वेद के ही चुने हुए सूक्त हैं पर उनको गायन के उपयुक्त बनाकर प्रस्तुत किया गया है. सामवेद संगीत पर बल देता है. यजुर्वेद में भी अधिकतर सूक्त ऋग्वेद से लिए गए हैं. इस वेद में यज्ञ-पद्धति पर बल दिया गया है. अथर्ववेद की विशेषता यह है कि उसमें जादू-टोने से सम्बंधित बहुत सी सामग्री पाई जाती है जो संभवतः आर्येतर स्रोतों से आयी है. इसी कारण से अथर्ववेद को बहुत समय तक वेद माना ही नहीं जाता था.

छः वेदांग: 

(क) शिक्षा – यह ध्वनि और उच्चारण की विवेचना करने वाला शास्त्र था. 

( ख) कल्प – यह यज्ञ अनुष्ठान की पद्धति का शास्त्र था. 

(ग) निरुक्त – इस शास्त्र में वैदिक शब्दों की व्युत्पत्ति की व्याख्या की गयी है. 

(घ) व्याकरण – इसका अर्थ नाम से ही स्पष्ट है. 

(ई) छंद – इसका अर्थ भी नाम से ही स्पष्ट है.

(च) ज्योतिष - वैदिक काल में ज्योतिष का अर्थ मुख्यतः नक्षत्रों और ग्रहों का अध्ययन था. राशि की अवधारणा नहीं थी. फलित ज्योतिष भी नहीं था.

धर्मेतर विषय

वैदिक काल के अंत तक दर्शन , गणित, बीजगणित , ज्यामिति , राजनीति शास्त्र , लोक प्रशासन , युद्ध-कला , तीरंदाजी , तलवारबाजी , ललित कला और चिकित्सा जैसे धर्मनिरपेक्ष विषय पाठ्यक्रम में शामिल हो गए थे. वैदिक काल के बाद कई अन्य विषय शामिल हुए, जैसे:

• षट दर्शन – पूर्व मीमांसा, वेदान्त, सांख्य, योग, न्याय तथा वैशेषिक

• तर्कशास्त्र 

• काव्यशास्त्र ,

• साहित्य ,

• इंजीनियरिंग , 

• वास्तुशास्त्र 

• चिकित्सा,

• ज्योतिष 

इन सभी शास्त्रों की शिक्षा के विषय में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है परन्तु चिकित्साशास्त्र की शिक्षा के बारे में पर्याप्त सामग्री चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में उपलब्ध है. इन ग्रंथों के अनुसार यह शिक्षा प्रवीण वैद्यों द्वारा दी जाती थी. पूरा पाठ्यक्रम छः वर्षों में समाप्त होता था. चिकित्सा शास्त्र की आठ शाखाये होती थीं. इस शिक्षा के लिए अलग से उपनयन संस्कार की व्यवस्था थी. 

यह अनुमान किया जा सकता है की चिकित्सा की तरह अन्य महत्वपूर्ण लौकिक विषयों की शिक्षा भी इसी प्रकार विशेषज्ञों द्वारा दी जाती होगी.

कृषि, पशुपालन , चिनाई , बढ़ईगीरी , बुनाई , लोहार की कला, कुम्हार का काम, अन्य प्रकार के बर्तन बनाने की कला,हथियार बनाने की कला इत्यादि उपयोगी विद्याएँ शुरुआत में परिवारों में और मास्टर कारीगरों द्वारा सिखायी जाती थीं. कुछ वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन जब संगठित और बड़े पैमाने पर होने लगा तो व्यावसायिक समुदायों ने विशेष कला या शिल्प में युवाओं के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी ले ली .

4) शिक्षक

जब लिखित पुस्तकें नहीं थीं तो गुरु ज्ञान का एक मात्र स्रोत था. इसलिए प्राचीन ग्रंथों में गुरु की बड़ी महिमा बताई गई है. आगे अथर्वेद के ब्रह्मचर्य सूक्त का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार गुरु शिष्य को नया जन्म देता है. विद्यार्थी के लिए गुरु की आज्ञा मानना हर स्थिति में अनिवार्य था. परन्तु गुरु को यह महत्व अर्जित करना पड़ता था. गुरु को पाठ्यक्रम में निष्णात होना होता था. इसके लिए उसे स्वयं सतत अध्ययन और मनन करना पड़ता था. गोपथ ब्राह्मण में एक कथा है की एक गुरु शास्त्रार्थ हार गए. उन्होंने तत्काल शिक्षण कार्य बंद कर दिया और तभी पुनः आरम्भ किया जब वह अपने प्रतिद्वंद्वी जितने ही निष्णात हो गए. इससे पता चलता है की शिक्षक को अपनी योग्यता बढाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहना पड़ता था. उनसे उच्च और आदर्श आचरण की आशा की जाती थी.

छात्र

वैदिक युग की शुरुआत को छोड़ दें तो बाद में प्रायः शिक्षा तीन उच्च वर्णों के पुरुषों तक सीमित थी. शूद्रों और स्त्रियों का प्रवेश गुरुकुलों में नहीं था. यह कदाचित वैदिक शिक्षा की सबसे बड़ी कमजोरी थी. परन्तु जो छात्र गुरुकुलों में स्थान पाने के अधिकारी थे उनको प्रवेश अवश्य मिलता था चाहे वे कितने ही गरीब हों. कोई तय फीस नहीं होने के कारण हर किसी को प्रवेश मिल सकता था. सभी छात्रों को एक तरह से सादा जीवन जीना पड़ता था, चाहे उनके माता-पिता कितने ही धनी या प्रभुतासंपन्न हों. छात्र को कुछ शारीरिक श्रम करना पड़ता था. गुरुकुल के नियमों का पालन करना होता था. गुरु की आज्ञा माननी होती थी, यद्यपि गौतम ने कहा है की छात्र अनुचित आज्ञा मानने को बाध्य नहीं था. चूँकि छात्र गुरु के परिवार में रहते थे अतः गुरु-शिष्य का सम्बन्ध पिता-पुत्र जैसा होता था.

5) शिक्षण विधि

प्रातिशाख्य (वेदांग ‘शिक्षा’ से सम्बंधित ग्रन्थ ) ग्रंथों में वैदिक शिक्षा पद्धति का विवरण मिलता है. प्रत्येक छात्र को व्यक्तिगत रूप से पढ़ाया जाता था. अर्थात गुरु एक बार में एक छात्र को पढाता था. छात्र को एक दिन में में दो या तीन वैदिक ऋचाएं याद करनी होती थीं. छात्र को गुरु के निर्देश के अनुसार शब्दों का सही उच्चारण करना होता था और ऋचाओं को ठीक उसी ढंग से बोलना या गाना होता था जो परम्परा से चला आता था. अध्यापन मौखिक था . लिपि का विकास होने के बाद भी वैदिक मन्त्रों का मौखिक अध्यापन जारी रहा क्योंकि उच्चारण और गायन की मूल परम्परा को मौखिक रूप में ही पूरी तरह सुरक्षित रखा जा सकता था. याद करके सीखने का तरीका केवल वैदिक संहिताओं के लिए प्रयोग होता था. अन्य विषयों को पढ़ाने के लिए व्याख्यान, प्रश्नोत्तर, शास्त्रार्थ इत्यादि का सहारा लिया जाता था. छात्रों की संख्या कम होती थी ताकि गुरु प्रत्येक छात्र पर पर्याप्त ध्यान दे सके. अल्तेकर ने अनुमान किया है कि एक गुरु के पास बीस से अधिक छात्र नहीं होते होंगे.

अनुशासन

व्यक्तिगत नैतिकता और अच्छे आचरण पर जोर उपनयन से ही आरम्भ हो जाता था. विद्यार्थियों से आत्म - अनुशासन की उम्मीद की जाती थी. आत्मानुशासन शिक्षा का अभिन्न अंग था. शिक्षक के परिवार में रहने के कारण छात्रों को पुत्रवत आचरण करना होता था. गुरु अपने चरित्र और आचरण द्वारा उचित आदर्श छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता था. इन सभी कारणों से दण्ड अनुशासन के लिए आवश्यक नहीं था. फिर भी मानव प्रकृति के अनुसार छात्र कभी कभी अनुशासन भंग करते थे. इस दशा में मनु ने गुरु को सलाह दी है की वह छात्र को समझा बुझाकर सही रास्ते पर लाये. आपस्तम्ब ने कहा है कि गुरु दोषी छात्र को कुछ समय के लिए अपने सामने आने से मना कर सकता है [कक्षा से निष्कासन की तरह]. गौतम ने शारीरिक दण्ड की अनुमति दी है पर यह भी कहा है की अत्यधिक शारीरिक दण्ड देने पर गुरु को राजा द्वारा दण्डित किया जा सकता है.

.बौद्ध शिक्षा

बौद्धों का सबसे बड़ा योगदान था आधुनिक विश्वविद्यालयों जैसे बड़े शिक्षा संस्थानों की स्थापना जिन्होंने चीन , तिब्बत , कोरिया और दुनिया के कई अन्य हिस्सों के छात्रों को आकर्षित किया. बौद्ध शिक्षा विहारों से आरम्भ हुई थी जिनमें नए भिक्षुओं को धम्म [धर्म अर्थात बौद्ध धर्म] की शिक्षा दी जाती थी. धीरे धीरे बड़े महाविहारों की स्थापना हुई जिनमें उच्च शिक्षा दी जाती थी. प्राथमिक शिक्षा विहारों में दी जाती थी. कालक्रम में भिक्षुओं के अलावा सामान्य बौद्ध मतावलंबी भी इन शिक्षा संस्थानों में प्रवेश पाने लगे. 

नालन्दा महाविहार

आधुनिक पटना से लगभग 60 किलोमीटर दक्षिण में स्थित नालंदा प्राचीन भारत में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था . 5 वीं शताब्दी ई. तक नालंदा एक बौद्ध विश्वविद्यालय के रूप में प्रसिद्ध हो गया था . इस विश्वविद्यालय में 7 बड़े हॉल और 300 कमरे थे. इसके अतिरिक्त एक विशाल पुस्तकालय था. 7 वीं शताब्दी में ह्वेन त्सांग की यात्रा के समय विश्वविद्यालय में 1500 शिक्षक और 8500 छात्र थे. 1193 में मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा को नष्ट कर दिया और इमारतों में आग लगा दी.

अन्य विश्वविद्यालय

वल्लभी आधुनिक काठियावाड़( गुजरात ) में और विक्रमशिला बिहार में ( संभवतः भागलपुर जिले में ) दो अन्य महत्वपूर्ण बौद्ध विश्वविद्यालय थे . 6000 शिक्षकों और छात्रों के साथ , वल्लभी नालंदा के बाद सबसे बड़ा संस्थान था. विक्रमशिला तीसरा महत्वपूर्ण संस्थान था. इनमें वल्लभी हीनयान सम्प्रदाय का विश्वविद्यालय था जबकि बाकी दोनों महायान सम्प्रदाय के. [हीनयान और महायान बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदाय थे]

बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य

बौद्ध धर्म के मूल तत्त्व चार आर्य सत्य हैं जिन्हें गौतम बुद्ध ने स्वयं प्रतिपादित किया था. ये आर्य सत्य हैं:

१) दुःख: जीवन दुःखमय है. जन्म, जरा, मरण, सभी दुःख देने वाले हैं. प्रिय से बिछुड़ना दुःख देता है और अप्रिय से मिलना. जो प्राप्त है उसको खोने का भय दुःख देता है. इस तरह दुःख जीवन का एकमात्र सत्य है.

२) दुःख समुदय: दुःख का कारण अज्ञान और तृष्णा है.

३) दुःख निरोध : दुःख के कारण को हटा देने से दुःख भी हट जाएगा.

४) अष्टांगिक मार्ग: यह आठ ज्ञान और सदाचार के सिद्धांत हैं जिनके द्वारा दुःख के कारणों अर्थात अज्ञान और तृष्णा को समाप्त किया जा सकता है, जैसा भगवान् बुद्ध ने स्वयं किया. इस मार्ग के आठ अंग ये हैं:

• सम्यक दृष्टि – अर्थात चार आर्य सत्यों को हृदयंगम करना.

• सम्यक संकल्प – अर्थात लोभ, मोह, अहंकार आदि से मुक्ति का संकल्प.

• सम्यक वाक् – अर्थात सत्य बोलना और कठोर वाणी का परित्याग.

• सम्यक कर्मान्त – अर्थात सत्य, अहिंसा,ब्रह्मचर्य इत्यादि पांच शीलों का पालन. भिक्षु के लिए शीलों की संख्या दस है.

• सम्यक आजीव – अर्थात जीविका का नैतिक साधन.

• सम्यक व्यायाम – अर्थात अच्छे विचारों को धारण करना और बुरे विचारों को दूर करना.

• सम्यक स्मृति – शरीर, इन्द्रिय और मन के वास्तविक स्वरुप का ध्यान करना और किसी प्रकार की आसक्ति से दूर रहना.

• सम्यक समाधि – अर्थात निर्वाण प्राप्त करने की प्रक्रिया. इसके पहले के सात कदम सम्यक समाधि की तैयारी भर हैं. 

बौद्ध शिक्षा का अंतिम उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति है. निर्वाण की स्थिति में आसक्ति, अज्ञान और तृष्णा का विलय हो जाता है और मनुष्य दुःख से मुक्त हो जाता है. बौद्ध धर्म एक व्यावहारिक धर्म है क्योंकि उसका उद्देश्य मानव जीवन के दुःख को दूर करना है. व्यावहारिकता पर बल देने के कारण इस धर्म में आचरण का बड़ा महत्त्व है. बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य धर्म के अनुयायियों में नैतिक आचरण का विकास करना है. प्राचीन काल में बौद्ध शिक्षा का एक और उद्देश्य धर्मं प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को प्रशिक्षित करना था.

पाठ्यक्रम 

a) त्रिपिटक 

विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक ये तीन बौद्ध धर्म के मूल ग्रन्थ हैं. माना जाता है कि ये बुद्ध के वचनों के संग्रह हैं.

विनय पिटक 

यह बौद्ध संघ को चलाने के नियमों का सग्रह है. भिक्षुओं द्वारा किन नियमों का पालन किया जाना चाहिए इसका भी वर्णन है. नियमों के उल्लंघन पर किन उपायों का अवलंबन करना चाहिए इसका निर्देश है.

सुत्त पिटक 

यह सूत्रों अर्थात भगवान् बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है. यह पिटक पाँच निकायों में बांटा गया है :

• दीर्घ निकाय 

• मध्यम निकाय

• संयुक्त निकाय

• अंगुत्तर निकाय

• क्षुद्र निकाय

अभिधम्म पिटक 

यह पिटक हीनयान का प्रमुख ग्रन्थ है. इसमें बौद्ध धर्मं के मूलभूत सिद्धांतों की चर्चा है जो भगवान् बुद्ध ने स्वयं स्थापित किये. इनमें प्रमुख प्रतीत्य समुत्पाद का सिद्धांत है जिसके आधार पर बुद्ध द्वारा प्रतिपादित चार आर्य सत्यों की व्याख्या की जाती है.


b) अन्य बौद्ध ग्रंथ

अन्य बौद्ध ग्रंथों में बुद्धघोष का विशुद्धमार्ग और नागसेन का मिलिंद प्रश्न प्रमुख थे. इसके अतिरिक्त परवर्ती काल के बौद्ध दर्शनों के ग्रन्थ भी इस श्रेणी में आते हैं.

c) ब्राह्मण ग्रंथ

बौद्ध विश्वविद्यालयों में वैदिक वांमय की शिक्षा भी दी जाती थी. साथ ही सांख्य आदि छः दर्शनों की शिक्षा भी दी जाती थी.

d) धर्मेतर और उपयोगी विषय

जैसा कि वैदिक शिक्षा के संबंध में बताया गया है, लगभग सभी महत्वपूर्ण धर्मनिरपेक्ष विषयों को भी बौद्ध शिक्षण संस्थानों में सिखाया जाता था. भिक्षुओं को भी कुछ उपयोगी कलाओं की शिक्षा दी जाती थी, जैसे सिलाई और काष्ठ कला.

शिक्षक और विद्यार्थी

शिक्षक सदा ही बौद्ध भिक्षु होते थे . वे विद्वान और सदाचारी होते थे. उनसे आशा की जाती थी की छात्र के मानसिक और नैतिक विकास के लिए सतत प्रयत्नशील रहेंगे. शिक्षक अविवाहित सन्यासी होते थे जो शिक्षण के लिए पूरी तरह समर्पित होते थे. पठन पाठन के समय के बाहर भी शिक्षक छात्रों की शारीरिक, मानसिक और नैतिक आवश्यकताओं का ध्यान रखते थे. बदले में छात्र शिक्षक की आज्ञा का पालन करते थे और उस पर पूर्ण श्रद्धा रखते थे.

बौद्ध शिक्षा ने एक बहुत बड़ा सुधार यह किया कि वर्ण और लिंग का बंधन हटा दिया. स्त्रियों और शूद्रों को शिक्षा का अधिकार दिया.

शिक्षार्थी दो प्रकार के होते थे – भिक्षु और उपासक. भिक्षु आजीवन सन्यासी जीवन बिताने वाले बौद्ध श्रमण होते थे. उपासक बौद्ध धर्म के वे अनुयायी थे जो गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे. भिक्षु छात्रों को शिक्षारम्भ के पूर्व एक संस्कार से गुजरना होता था जिसे ‘पबज्जा’ या प्रब्रज्या कहते थे.

छात्रों को धर्म के सभी नियमों का पालन करना होता था. विशेषतः नैतिक आचरण के नियमों पर बल दिया जाता था. तीन प्रकार के दैहिक, चार प्रकार के वाचिक और तीन प्रकार के मानसिक पापों से बचना होता था. पाप ये थे:

दैहिक पाप: हत्या, चोरी और व्यभिचार

वाचिक पाप: झूठ बोलना, परनिंदा, कठोर वचन और व्यर्थ बोलना.

मानसिक पाप: लालच, नफरत और तत्व-ज्ञान में त्रुटि.

शिक्षण विधि

भगवान् बुद्ध ने पहली बार संस्कृत की अपेक्षा पालि और प्राकृत को स्वीकार किया. बौद्ध धर्म के मूल ग्रन्थ पालि भाषा में हैं. अतः बौद्ध शिक्षा में पालि का प्रयोग अनिवार्य था. प्रारम्भ में बौद्ध शिक्षा में मागधी प्राकृत का भी व्यवहार हुआ जो अपने आप में नयी बात थी. लोकभाषा को संस्कृत से अधिक महत्त्व देने के कारण शिक्षा सर्वसुलभ हुई और साथ ही लोक भाषाओं को बढ़ने का अवसर मिला. परन्तु बाद में महायान सम्प्रदाय ने संस्कृत को अपना लिया.

विहारों और महाविहारों में शिक्षा गुरुकुलों की तरह मौखिक होती थी. व्याख्यान के अलावा प्रश्नोत्तर और शास्त्रार्थ पर बल दिया जाता था. साधारणतः शिक्षकों और छात्रों का अनुपात ऐसा था की एक शिक्षक को पांच या छः छात्रों से अधिक का उत्तरदायित्व नहीं लेना होता था.

अनुशासन

बौद्ध ग्रंथों से अनुशासन के विषय में जानकारी मिलती है. विशेषतः भिक्षुओं से संबंधित अनुशासन का उल्लेख त्रिपिटक में भी मिलता है. शिक्षार्थी स्वेच्छा से नियमों का पालन करते थे. बौद्ध धर्म मूलतः नैतिक आचरण पर आधारित था. अतः अनुशासन दैनिक जीवन का अंग था. परन्तु नियमों का उल्लंघन भी कभी कभी होता था. इसके लिए दोषी शिक्षार्थी को शिक्षक द्वारा अथवा अन्य वरिष्ठ शिक्षार्थियों द्वारा उचित मार्गदर्शन देने का प्रयास किया जाता था. इसका प्रभाव न हो तो उपवास आदि का दण्ड दिया जाता था. एक जातक कथा में शारीरिक दण्ड का भी उल्लेख है.

प्राचीन शिक्षा प्रणाली 

.प्रश्न 1:

विभिन्न क्षेत्रों के यात्रियों के अनुसार भारत क्या था?

(i) प्राकृतिक सुंदरता की भूमि

(ii) आपदाओं की भूमि

(iii) आश्चर्य की भूमि

(iv) संस्कृति की भूमि

जवाब:

(iii) आश्चर्य की भूमि।

प्रश्न 2:

प्राचीन काल की शिक्षा प्रणाली का स्रोत क्या माना जाता था?

(i) ज्ञान 

(ii) परंपराएं

(iii) अभ्यास

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 3:

प्राचीन शिक्षा प्रणाली व्यक्ति के समग्र विभाग पर कैसे केंद्रित थी?

(i) आंतरिक स्व की देखभाल करके

(ii) बाहरी स्व की देखभाल करके

(iii) दोनों (i) और (ii)

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(iii) दोनों (i) और (ii)।

प्रश्न 4:

'सिस्टम जीवन के —–, ——-, —— और —— पहलुओं पर केंद्रित है।

(i) नैतिक

(ii) भौतिक

(iii) आध्यात्मिक और बौद्धिक

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 5:

छात्रों की सराहना करने के लिए लड़े गए संतुलन के बीच कहाँ थे?

(i) प्रकृति और सुंदरता

(ii) प्रकृति और मनुष्य 

(iii) भूमि और जल

(iv) व्यवहार और शिक्षा

जवाब:

(ii) प्रकृति और मनुष्य।

प्रश्न 6:

शिक्षा प्रणाली ने किस पर जोर दिया?

(i) स्वस्थ आत्मा

(ii) स्वस्थ दिमाग

(iii) स्वस्थ शरीर

(iv) दोनों (ii) और (iii)

जवाब:

(iv) दोनों (ii) और (iii)।

प्रश्न 7:

प्राचीन शिक्षा प्रणाली किस पर आधारित थी?

(i) वेद और ब्राह्मणसी

(ii) उपनिषद और धर्म सूत्र

(iii) दोनों (i) और (ii)

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(iii) दोनों (i) और (ii)

प्रश्न 8:

सीखने के स्रोत किसके लेखन थे?

(i) आर्यभट्ट

(ii) पाणिनि

(iii) कात्यायन और पतंजलि

(iv) उनमें से सभी

जवाब:

(iv) वे सभी।

प्रश्न 9:

शिक्षा के स्रोत किसके चिकित्सा ग्रंथ थे?

(i) चरक

(ii) सुश्रुत :

(iii) पाणिनि

(iv) दोनों (i) और (ii)

जवाब:

(iv) दोनों (i) और (ii)।

प्रश्न 10:

'शास्त्र' से आप क्या समझते हैं?

(i) रचनात्मक साहित्य

(ii) सीखे हुए विषय

(iii) कल्पनाशील

(iv) ये सभी

जवाब:

(ii) सीखे हुए अनुशासन।

प्रश्न 11:

'काव्य' से आप क्या समझते हैं?

(i) सीखे हुए विषय

(ii) कल्पनाशील

(iii) रचनात्मक साहित्य

(iv) दोनों (ii) और (iii)

जवाब:

(iv) दोनों (ii) और (iii)।

प्रश्न 12:

विभिन्न विषयों से सीखने के स्रोत क्या थे?

(i) इतिहास, अन्विकिकी, मीमांसा

(ii) शिल्पशास्त्र, अर्थशास्त्र

(iii) वार्ता, धनुर्विद्या

(iv) उनमें से सभी

जवाब:

(iv) वे सभी।

प्रश्न 13:

'इतिहास' का अर्थ है -

(i) इतिहास

(ii) राजनीति

(iii) तर्क

(iv) तीरंदाजी

जवाब:

(i) इतिहास।

प्रश्न 14:

सीखने के किन स्रोतों का अर्थ है 'तर्क'?

(i) वार्ता

(ii) मीमांसा

(iii) अन्विकिकी

(iv) अर्थशास्त्र:

जवाब:

(iii) अन्विकिकी।

प्रश्न 15:

'धनुर्विद्या' का क्या अर्थ है?

(i) वास्तुकला

(ii) तीरंदाजी

(iii) व्याख्या

(iv) राजनीति

जवाब:

(ii) तीरंदाजी।

प्रश्न 16:

'वर्त' का क्या अर्थ है?

(i) कृषि

(ii) व्यापार और वाणिज्य

(iii) पशुपालन

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 17:

विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा के रूप में क्या पढ़ाया जाता था?

(i) क्रिडा

(ii) व्यायामप्रकर:

(iii) योगसाधना

(iv) उनमें से सभी

जवाब:

(iv) वे सभी।

प्रश्न 18:

धनुर्विद्या क्यों सिखाई गई?

(i) मार्शल कौशल हासिल करने के लिए

(ii) मन और शरीर को प्रशिक्षित करने के लिए

(iii) व्यायाम के लिए

(iv) मानसिक स्वास्थ्य सीखने के लिए

जवाब:

(i) मार्शल कौशल हासिल करने के लिए।

प्रश्न 19:

सीखने के सभी पहलुओं में कुशल बनने के लिए किसने ईमानदारी से एक साथ काम किया?

(i) पुरुष और महिला

(ii) गुरु और उनके शिष्य

(iii) मानव और पशु

(iv) पशु और पक्षी

जवाब:

(ii) गुरु और उनके शिष्य।

प्रश्न 20:

विद्यार्थियों के सीखने का आकलन करने के लिए क्या आयोजित किया गया था ?

(i) वाद-विवाद

(ii) मार्गदर्शन

(iii) बातचीत

(iv) योग

जवाब:

(i) वाद-विवाद।

प्रश्न 21:

प्राचीन भारत में शिक्षा प्रणाली के कौन से तरीके मौजूद थे?

(i) औपचारिक

(ii) अनौपचारिक

(iii) दोनों (i) और (ii)

(iv) अनौपचारिक

जवाब:

(iii) दोनों (i) और (ii)।

प्रश्न 22:

छात्र उच्च ज्ञान के लिए कहाँ गए?

(i) विदेश

(ii) विहारसी

(iii) विश्वविद्यालय

(iv) दोनों (ii) और (iii)

जवाब:

(iv) दोनों (ii) और (iii)।

प्रश्न 23:

गुरुकुल को किस नाम से भी जाना जाता है?

(i) शास्त्रार्थ:

(ii) आश्रम

(iii) विद्यालय

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(ii) आश्रम।

प्रश्न 24:

सीखने के आवासीय स्थान कौन-कौन से थे?

(i) गुरुकुलसो

(ii) विश्वविद्यालय

(iii) विहारसी

(iv) पाठशाला

जवाब:

(i) गुरुकुल।

प्रश्न 25:

गुरुकुल कहाँ स्थित था?

(i) मंदिर

(ii) नदी के पास

(iii) वन

(iv) होम

जवाब:

(iii) वन।

प्रश्न 26:

प्रारंभिक वैदिक काल में शिक्षा तक किसकी पहुँच थी?

(i) पुरुष

(ii) महिला

(iii) शिशु

(iv) वृद्ध पुरुष

जवाब:

(ii) महिलाएं।

प्रश्न 27:

कुछ प्रमुख महिला वैदिक विद्वानों के नाम बताइए -

(i) मैत्रेयी

(ii) विश्वम्भरा और अपला

(iii) गार्गी, लोपामुद्रा

(iv) उनमें से सभी

जवाब:

(iv) वे सभी।

प्रश्न 28:

कई आश्रमों का नाम किसके नाम पर रखा गया?

(i) ऋषि

(ii) छात्र

(iii) गुरु

(iv) दोनों (ii) और (iii)

जवाब:

(i) ऋषि।

प्रश्न 29:

प्राचीन काल में गुरु और उनके शिष्य एक साथ क्यों रहते थे?

(i) वाद-विवाद सीखने के लिए

(ii) ज्ञान प्राप्त करने के लिए

(iii) एक दूसरे की मदद करने के लिए

(iv) मार्शल कौशल सीखने के लिए

जवाब:

(iii) एक दूसरे की मदद करना।

प्रश्न 30:

गुरुकुलों में रहने का मुख्य उद्देश्य क्या था?

(i) पूर्ण शिक्षा

(ii) अनुशासित जीवन जीने के लिए

(iii) किसी की आंतरिक क्षमता का एहसास करने के लिए

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 31:

विद्यार्थी कितने समय तक अपने घरों से दूर रहे?

(i) किशोरावस्था तक

(ii) जब तक वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर लेते

(iii) दस साल के लिए

(iv) संपूर्ण जीवन

जवाब:

(ii) जब तक वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर लेते।

प्रश्न 32:

'--- वह स्थान भी था जहाँ समय के साथ गुरु और शिष्य का सम्बन्ध प्रगाढ़ होता था।

(i) गुरुकुली

(ii) विश्वविद्यालय

(iii) पाठशाला

(iv) टोल

जवाब:

(i) गुरुकुल।

प्रश्न 33:

भिक्षुओं और ननों के लिए कई मठ क्यों बनाए गए?

(i) ध्यान करना

(ii) बहस करने के लिए

(iii) चर्चा करने के लिए

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 34:

ज्ञान प्राप्त करने के लिए भिक्षुओं और ननों के लिए क्या स्थापित किया गया था?

(i) गुरुकुलसो

(ii) पाठशाला

(iii) विहारसी

(iv) टोल

जवाब:

(iii) विहार।

प्रश्न 35:

उन अन्य देशों का उल्लेख कीजिए जहाँ उच्च शिक्षा के शैक्षिक केन्द्र विकसित हुए।

(i) चीन, कोरिया, तिब्बत

(ii) बर्मा, सीलोन

(iii) जावा, नेपाल

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 36:

जुआन ज़ांग और मैं - किंग कौन थे?

(i) जापानी विद्वान

(ii) चीनी विद्वान

(iii) कोरियाई विद्वान

(iv) भारतीय विद्वान

जवाब:

(ii) चीनी विद्वान।

प्रश्न 37:

शिक्षा को बढ़ावा देने में सक्रिय रुचि किसने ली?

(i) गुरु

(ii) किंग्स

(iii) समाज

(iv) दोनों (ii) और (iii)

जवाब:

(iv) दोनों (ii) और (iii)।

प्रश्न 38:

प्राचीन काल में सबसे उल्लेखनीय विश्वविद्यालय कहाँ विकसित हुए थे?

(i) तक्षशिला, नालंदा

(ii) वल्लभी, विक्रमशिला

(iii) ओदंतपुरी, जगद्दला

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 39:

तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी, विक्रमशिला, ओदंतपुरी और जगदला में क्या स्थित था?

(i) विश्वविद्यालय

(ii) गुरुकुली

(iii) टोबो

(iv) विहारसी

जवाब:

(i) विश्वविद्यालय।

प्रश्न 40:

मंदिरों के संबंध में विश्वविद्यालय के किन स्थानों का विकास हुआ?

(i) बनारसी

(ii) नवदीप

(iii) कांची

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 41:

यूनेस्को का फुल फॉर्म –

(i) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, विज्ञान और सांस्कृतिक संगठन

(ii) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और पाठ्यक्रम संगठन

(iii) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन

(iv) संघ का शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन

जवाब:

(iii) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन।

प्रश्न 42:

—– बौद्ध धर्म की धार्मिक शिक्षाओं का एक प्रसिद्ध केंद्र था।

(i) विहारसी

(ii) तक्षशिला

(iii) नालंदा

(iii) जगदलला

जवाब:

(ii) तक्षशिला।

प्रश्न 43:

तशशिला ने दुनिया भर के छात्रों को तब तक आकर्षित करना जारी रखा जब तक कि ईसा पूर्व सदी में इसका विनाश नहीं हो गया।

(i) 5 वें

(ii) 7 वें

(iii) 8 वें

(iv) 10 वें

जवाब:

(ii) 5 वें ।

प्रश्न 44:

'…….. और पाठ्यक्रम में प्राचीन शास्त्रों, कानून चिकित्सा, खगोल विज्ञान, सैन्य विज्ञान और --सिल्पास या कला का अध्ययन शामिल था'

(i) चौदह

(ii) बीस

(iii) अठारह

(iv) बारह

जवाब:

(iii) अठारह।

प्रश्न 45:

महान भारतीय व्याकरणविद् का नाम बताइए

(i) पाणिनि

(ii) जीवक

(iii) चाणक्य:

(iv) सुश्रुत:

जवाब:

(i) पाणिनी।

प्रश्न 46:

पाणिनि द्वारा लिखित व्याकरण पर महानतम कार्य का नाम बताइए

(i) तोलकाप्पियाम्

(ii) अगत्तीयम

(iii) अष्टाध्यायी

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(iii) अष्टाध्यायी।

प्रश्न 47:

प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध चिकित्सक का नाम बताइए।

(i) चाणक्य:

(ii) जीवक

(iii) पाणिनि

(iv) आर्यभट्ट

जवाब:

(ii) जीवका।

प्रश्न 48:

राज्य कला के कुशल प्रतिपादक कौन थे?

(i) चाणक्य:

(ii) पाणिनि

(iii) जुआन जांगो

(iv) आई-ओइंग

जवाब:

(i) चाणक्य।

प्रश्न 49:

'अष्टाध्यायी' किसने लिखा था?

(i) जीवक

(ii) पाणिनि

(iii) चाणक्य:

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(ii) पाणिनी।

प्रश्न: 50

चाणक्य को किस नाम से भी जाना जाता था?

(i) कालिदास

(ii) बाणभट्ट

(iii) सुद्रेक

(iv) कौटिल्य:

जवाब:

(iv) कौटिल्य।

प्रश्न 51:

जीवक कौन था?

(i) चिकित्सक

(ii) व्याकरण

(iii) डॉक्टर

(iv) लेखक

जवाब:

(i) चिकित्सक।

प्रश्न 52:

छात्र यक्षशिला में पढ़ने के लिए कहाँ से आते हैं?

(i) काशी

(ii) कोसल

(iii) मगध

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 53:

किस स्थान को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था?

(i) नालंदा

(ii) वल्लभी

(iii) तक्षशिला

(iv) बनारसी

जवाब:

(iii) तक्षशिला।

प्रश्न 54:

यूनेस्को ने किस वर्ष टास्कशिला को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया?

(i) 1980

(ii) 1981

(iii) 1890

(iv) 1978

जवाब:

(i) 1980।

प्रश्न 55:

—- चाणक्य द्वारा लिखा गया था।

(i) अष्टाध्यायी

(ii) अर्थशास्त्र:

(iii) पुराण

(iv) राजतरंगिणी

जवाब:

(ii) अर्थशास्त्र।

प्रश्न 56:

'अर्थशास्त्र' किसने लिखा था?

(i) कल्हण

(ii) वाल्मीकि

(iii) चाणक्य:

(iv) बाणभट्ट

जवाब:

(iii) चाणक्य।

प्रश्न 57:

19 वीं शताब्दी के मध्य में तक्षशिला को किसने नष्ट किया ?

(i) कार्ल ब्लेगेन

(ii) अलेक्जेंडर कनिंघम

(iii) रॉबर्ट बेलार्ड

(iv) डब्ल्यूएफ अलब्राइट

जवाब:

(ii) अलेक्जेंडर कनिंघम।

प्रश्न 58:

शिक्षण के प्राथमिक तरीके क्या थे?

(i) बहस

(ii) चर्चा

(iii) मौखिक

(iv) दोनों (i) और (ii)

जवाब:

(iv) दोनों (i) और (ii)।

प्रश्न 59:

जब जुआन जांग ने दौरा किया तो नालंदा को क्या कहा जाता था?

(i) नल

(ii) नीला

(iii) नालिंदी

(iv) नीलो

जवाब:

(i) नाला।

प्रश्न 60:

नालंदा का दौरा किसने किया था जब इसे नाल कहा जाता था?

(i) अलेक्जेंडर कनिंघम

(ii) आई-किंग

(iii) जुआन-ज़ांगो

(iv) कल्हण

जवाब:

(iii) जुआन-ज़ांग।

प्रश्न 61:

7 वीं शताब्दी ईस्वी में नालंदा का दौरा करने वाले चीनी विद्वानों के नाम बताएं?

(i) आई-किंग

(ii) जुआन जांगो

(iii) दोनों (i) और (iii)

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(iii) दोनों (i) और (iii)।

प्रश्न 62:

आई-किंग और जुआन जांग नालंदा कब आए थे?

(i) 8 वीं शताब्दी सीई

(ii) 7 वीं शताब्दी सीई

(iii) 7 वीं शताब्दी ई.पू

(iv) छठी शताब्दी सीई

जवाब:

(iii) 7 वीं शताब्दी ई.पू

प्रश्न 63:

'जुआन जांग स्वयं नालंदा का छात्र बनने के लिए——- अध्ययन करने के लिए बना था।'

(i) योगशास्त्र

(ii) धनुर्विद्या

(iii) क्रिडा

(iv) व्यायामप्रकर:

जवाब:

(i) योगशास्त्र।

प्रश्न 64:

नालंदा के चांसलर कौन थे?

(i) कालिदास

(ii) बाणभट्ट

(iii) आर्यभट्ट:

(iv) शिलाभद्र

जवाब:

(iv) शिलाभद्र।

प्रश्न 65:

योग में सर्वोच्च जीवित अधिकारी के रूप में शिलाभद्र का उल्लेख किसने किया?

(i) आई-किंग

(ii) चाणक

(iii) जुआन ज़ांगो

(iv) उनमें से सभी

जवाब:

(iii) जुआन ज़ांग।

प्रश्न 66:

नालंदा के छात्रों को किसमें प्रशिक्षित किया गया था?

(i) ललित कला, चिकित्सा

(ii) गणित, खगोल विज्ञान

(iii) राजनीति, युद्ध की कला

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 67:

'प्राचीन नालंदा ---- सदी सीई से ---- शताब्दी सीई तक सीखने का केंद्र था'।

(i) 6 - 12

(ii) 5 - 12

(iii) 4 - 10

(iv) 7 - 13

जवाब:

(iii) 5 - 12।

प्रश्न 68:

विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से कौन सा था?

(i) तक्षशिला

(ii) विहारसी

(iii) नालंदा

(iv) विक्रमशिला

जवाब:

(iii) नालंदा।

प्रश्न 69:

प्राचीन काल में क्या खोजा माना जाता था?

(i) ज्ञान

(ii) सीखना

(iii) कौशल

(iv) पाठ्यचर्या

जवाब:

(i) ज्ञान।

प्रश्न 70:

प्राचीन काल में दान का सर्वोच्च रूप क्या माना जाता था?

(i) मंदिर के लिए योगदान

(ii) वृद्धाश्रम में योगदान

(iii) शिक्षा के प्रति योगदान

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(iii) शिक्षा के प्रति योगदान।

प्रश्न 71:

'वित्तीय सहायता कहाँ से आई -

(i) अमीर व्यापारी

(ii) धनी माता-पिता

(iii) समाज

(iv) ये सभी

जवाब:

(iv) ये सभी।

प्रश्न 72:

भारत के दक्षिण में, सीखने और सिखाने के केंद्रों के रूप में क्या कार्य किया जाता था?

(i) नालंदा

(ii) अग्रहारसी

(iii) तक्षशिला

(iv) इनमें से कोई नहीं

जवाब:

(ii) अग्रहार।

प्रश्न 73:

'दक्षिण भारतीय राज्यों में अन्य सांस्कृतिक संस्थान भी थे जिन्हें ——& ——— के नाम से जाना जाता था।

(i) घटिका

(ii) ब्रह्मपुरी

(iii) चतुर्दशी

(iv) दोनों (i) और (ii)

जवाब:

(iv) दोनों (i) और (ii)

प्रश्न 74:

चिकित्सा काल में शिक्षा व्यवस्था का अंग क्या बना?

(i) मकतबुसो

(ii) मदरसा

(iii) दोनों (i) और (iv)

(iv) ब्रह्मपुरी

जवाब:

(iii) दोनों (i) और (ii)।

प्रश्न 75:

भारत में स्वदेशी शिक्षा का विकास किस काल में हुआ?

(i) पूर्व-औपनिवेशिक 

(ii) मध्यकालीन

(iii) प्राचीन

(iv) आधुनिक

जवाब:

(i) पूर्व-औपनिवेशिक।

प्रश्न 76:

'शिक्षा मुफ्त थी और नहीं ——'

(i) विकेंद्रीकृत

(ii) केंद्रीकृत

(iii) नैतिक

(iv) ये सभी

जवाब:

(ii) केंद्रीकृत।

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