सफलता एक ऐसी उपलब्धि है ,जो हर व्यक्ति पाना तो चाहता है। पर उसके लिए जरूरी चीजों को पहचानना तथा करना नहीं ।
यह ऐसा ही हुआ जैसे कि स्वर्ग तो हर कोई जाना चाहता है, पर मरना कोई नही ।
अक्सर हम इस छोटे से जीवन मे कुछ अलग और नया करने के बजाय हम पहले से ही सुरक्षित तथा आजमायें तरीकों पर चलना ज्यादा पसंद करते हैं ।
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि हमें दुसरो की गलतियों से सबक लेना चाहिए। सत्य है ! पर वही बुजर्ग आपको यह भी बताएंगे कि जब तक आप गलती न करे तब तक आप बेहतर नही हो सकते । गलतियां आपको अधिक परिपक्व बनती है ।अनुभव वो कंघी है जो ज़िन्दगी आपको तब देती है जब आप गंजे हो जाते हैं।
हम सब जानते हैं कि महान ग्राहमवेल ने टेलीफोन का अविष्कार किया है ।
सोचिये इसके लिए उन्होंने कितनी ही बार गलत तार जोड़े होंगे । कितने ही असफल प्रयोग किये होंगे ।कितनी ही बार मन ही मन हार मान ली होगी पर अंततः उन्हें जीत मिली ।
स्वयं से यह प्रश्न कीजिये क्या यह जीत उन्हें किसी दूसरे के लिखे या बताये हुए तरीके से मिली या अपने खुद के एक बिल्कुल अलग तरीके से ?
उत्तर आपके पास है ।
हम सब मे कुछ अलग ,कुछ विलक्षण है जिससे हम इस दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं । बस जरूरत है उसे पहचानने और निखारने की । रटे- रटाये, सुने-सुनाये या किसी की दिखाये रास्ते को चुनने से कहीं ज़्यादा सार्थक है अपना रास्ता खुद बनना ।
इसलिए दूसरो के तरीकों से नही ,आगे बढ़े अपने तरीकों से ।
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