मुगल वंश का संस्थापक और एक आतंकी शासक
☞"ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था . जिनका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। वो तैमूर लंग का वंशज था, और विश्वास रखता था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश का पूर्वज था।
☞"मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है। 1504 ई.काबुल तथा 1507 ई में कंधार को जीता था तथा बादशाह (शाहों का शाह) की उपाधि धारण की 1519 से 1526 ई. तक भारत पर उसने 5 बार आक्रमण किया तथा सफल 1526 में उसने पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी उसने 1527 में खानवा 1528 मैं चंदेरी तथा 1529 में आगरा जीतकर अपने राज्य को सफल बना दिया 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।
✅️"आरंभिक जीवन...✍️
☞"बाबर का जन्म फ़रगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर में हुआ था जो अब उज्बेकिस्तान में है। वो अपने पिता उमर शेख़ मिर्ज़ा, जो फरगना घाटी के शासक थे तथा जिसको उसने एक ठिगने कद के तगड़े जिस्म, मांसल चेहरे तथा गोल दाढ़ी वाले व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है, तथा माता कुतलुग निगार खानम का ज्येष्ठ पुत्र था। हालाँकि बाबर का मूल मंगोलिया के बर्लास कबीले से सम्बन्धित था पर उस कबीले के लोगों पर फारसी तथा तुर्क जनजीवन का बहुत असर रहा था, वे इस्लाम में परिवर्तित हुए तथा उन्होने तुर्केस्तान को अपना वासस्थान बनाया। बाबर की मातृभाषा चग़ताई भाषा थी पर फ़ारसी, जो उस समय उस स्थान की आम बोलचाल की भाषा थी, में भी वो प्रवीण था। उसने चगताई में बाबरनामा के नाम से अपनी जीवनी लिखी।
☞"मंगोल जाति (जिसे फ़ारसी में मुगल कहते थे) का होने के बावजूद उसकी जनता और अनुचर तुर्क तथा फ़ारसी लोग थे। उसकी सेना में तुर्क, फारसी, पश्तो के अलावा बर्लास तथा मध्य एशियाई कबीले के लोग भी थे।
☞"कहा जाता है कि बाबर बहुत ही तगड़ा और शक्तिशाली था। ऐसा भी कहा जाता है कि सिर्फ़ व्यायाम के लिए वो दो लोगों को अपने दोनो कंधों पर लादकर उन्नयन ढाल पर दौड़ लेता था। लोककथाओं के अनुसार बाबर अपने राह में आने वाली सभी नदियों को तैर कर पार करता था। उसने गंगा को दो बार तैर कर पार किया।
✅️"नाम....✍️
बाबर के चचेरे भाई मिर्ज़ा मुहम्मद हैदर ने लिखा है कि उस समय, जब चागताई लोग असभ्य तथा असंस्कृत थे तब उन्हे ज़हिर उद-दिन मुहम्मद का उच्चारण कठिन लगा। इस कारण उन्होंने इसका नाम बाबर रख दिया।
✅️"सैन्य जीवन...✍️
☞"सन् 1494 में 12वर्ष की आयु में ही उसे फ़रगना घाटी के शासक का पद सौंपा गया। उसके चाचाओं ने इस स्थिति का फ़ायदा उठाया और बाबर को गद्दी से हटा दिया। कई सालों तक उसने निर्वासन में जीवन बिताया जब उसके साथ कुछ किसान और उसके सम्बंधी ही थे। 1496 में उसने उज़्बेक शहर समरकंद पर आक्रमण किया और 7 महीनों के बाद उसे जीत भी लिया। इसी बीच, जब वह समरकंद पर आक्रमण कर रहा था तब, उसके एक सैनिक सरगना ने फ़रगना पर अपना अधिपत्य जमा लिया। जब बाबर इसपर वापस अधिकार करने फ़रगना आ रहा था तो उसकी सेना ने समरकंद में उसका साथ छोड़ दिया जिसके फलस्वरूप समरकंद और फ़रगना दोनों उसके हाथों से चले गए। सन् 1501 में उसने समरकंद पर पुनः अधिकार कर लिया पर जल्द ही उसे उज़्बेक ख़ान मुहम्मद शायबानी ने हरा दिया और इस तरह समरकंद, जो उसके जीवन की एक बड़ी ख्वाहिश थी, उसके हाथों से फिर वापस निकल गया।
☞"फरगना से अपने चन्द वफ़ादार सैनिकों के साथ भागने के बाद अगले तीन सालों तक उसने अपनी सेना बनाने पर ध्यान केन्द्रित किया। इस क्रम में उसने बड़ी मात्रा में बदख़्शान प्रांत के ताज़िकों को अपनी सेना में भर्ती किया। सन् 1504 में हिन्दूकुश की बर्फ़ीली चोटियों को पार करके उसने काबुल पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। नए साम्राज्य के मिलने से उसने अपनी किस्मत के सितारे खुलने के सपने देखे। कुछ दिनों के बाद उसने हेरात के एक तैमूरवंशी हुसैन बैकरह, जो कि उसका दूर का रिश्तेदार भी था, के साथ मुहम्मद शायबानी के विरुद्ध सहयोग की संधि की। पर 1506 में हुसैन की मृत्यु के कारण ऐसा नहीं हो पाया और उसने हेरात पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। पर दो महीनों के भीतर ही, साधनों के अभाव में उसे हेरात छोड़ना पड़ा। अपनी जीवनी में उसने हेरात को "बुद्धिजीवियों से भरे शहर" के रूप में वर्णित किया है। वहाँ पर उसे युईगूर कवि मीर अली शाह नवाई की रचनाओं के बारे में पता चला जो चागताई भाषा को साहित्य की भाषा बनाने के पक्ष में थे। शायद बाबर को अपनी जीवनी चागताई भाषा में लिखने की प्रेरणा उन्हीं से मिली होगी।
☞"काबुल लौटने के दो साल के भीतर ही एक और सरगना ने उसके ख़िलाफ़ विद्रोह किया और उसे काबुल से भागना पड़ा। जल्द ही उसने काबुल पर पुनः अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। इधर सन् 1510 में फ़ारस के शाह इस्माईल प्रथम, जो सफ़ीवी वंश का शासक था, ने मुहम्मद शायबानी को हराकर उसकी हत्या कर डाली। इस स्थिति को देखकर बाबर ने हेरात पर पुनः नियंत्रण स्थापित किया। इसके बाद उसने शाह इस्माईल प्रथम के साथ मध्य एशिया पर मिलकर अधिपत्य जमाने के लिए एक समझौता किया। शाह इस्माईल की मदद के बदले में उमने साफ़वियों की श्रेष्ठता स्वीकार की तथा खुद एवं अपने अनुयायियों को साफ़वियों की प्रभुता के अधीन समझा।
☞"इसके उत्तर में शाह इस्माईल ने बाबर को उसकी बहन ख़ानज़दा से मिलाया जिसे शायबानी, जिसे शाह इस्माईल ने हाल ही में हरा कर मार डाला था, ने कैद में रख़ा हुआ था और उससे विवाह करने की बलात कोशिश कर रहा था। शाह ने बाबर को ऐश-ओ-आराम तथा सैन्य हितों के लिये पूरी सहायता दी जिसका ज़बाब बाबर ने अपने को शिया परम्परा में ढाल कर दिया। उसने शिया मुसलमानों के अनुरूप वस्त्र पहनना आरंभ किया। शाह इस्माईल के शासन काल में फ़ारस शिया मुसलमानों का गढ़ बन गया और वो अपने आप को सातवें शिया इमाम मूसा अल क़ाज़िम का वंशज मानता था। वहाँ सिक्के शाह के नाम में ढलते थे तथा मस्ज़िद में खुतबे शाह के नाम से पढ़े जाते थे हालाँकि क़ाबुल में सिक्के और खुतबे बाबर के नाम से ही थे। बाबर समरकंद का शासन शाह इस्माईल के सहयोगी की हैसियत से चलाता था।
☞"शाह की मदद से बाबर ने बुखारा पर चढ़ाई की। वहाँ पर बाबर, एक तैमूरवंशी होने के कारण, लोगों की नज़र में उज़्बेकों से मुक्तिदाता के रूप में देखा गया और गाँव के गाँव उसको बधाई देने के लिए खाली हो गए। इसके बाद फारस के शाह की मदद को अनावश्यक समझकर उसने शाह की सहायता लेनी बंद कर दी। अक्टूबर 1511 में उसने समरकंद पर चढ़ाई की और एक बार फिर उसे अपने अधीन कर लिया। वहाँ भी उसका स्वागत हुआ और एक बार फिर गाँव के गाँव उसको बधाई देने के लिए खाली हो गए। वहाँ सुन्नी मुलसमानों के बीच वह शिया वस्त्रों में एकदम अलग लग रहा था। हालाँकि उसका शिया हुलिया सिर्फ़ शाह इस्माईल के प्रति साम्यता को दर्शाने के लिए थी, उसने अपना शिया स्वरूप बनाए रखा। यद्यपि उसने फारस के शाह को खुश करने हेतु सुन्नियों का नरसंहार नहीं किया पर उसने शिया के प्रति आस्था भी नहीं छोड़ी जिसके कारण जनता में उसके प्रति भारी अनास्था की भावना फैल गई। इसके फलस्वरूप, 8 महीनों के बाद, उज्बेकों ने समरकंद पर फिर से अधिकार कर लिया।
✅️"उत्तर भारत पर चढ़ाई....✍️
☞"दिल्ली सल्तनत पर ख़िलज़ी राजवंश के पतन के बाद अराजकता की स्थिति बनी हुई थी। तैमूरलंग के आक्रमण के बाद सैय्यदों ने स्थिति का फ़ायदा उठाकर दिल्ली की सत्ता पर अधिपत्य कायम कर लिया। तैमुर लंग के द्वारा पंजाब का शासक बनाए जाने के बाद खिज्र खान ने इस वंश की स्थापना की थी। बाद में लोदी राजवंश के अफ़ग़ानों ने सैय्यदों को हरा कर सत्ता हथिया ली थी।
✅️"पानीपत का प्रथम ¹...✍️
☞"बाबर को लगता था कि दिल्ली की सल्तनत पर फिर से तैमूरवंशियों का शासन होना चाहिए। एक तैमूरवंशी होने के कारण वो दिल्ली सल्तनत पर कब्ज़ा करना चाहता था। उसने सुल्तान इब्राहिम लोदी को अपनी इच्छा से अवगत कराया (स्पष्टीकरण चाहिए)। इब्राहिम लोदी के जबाब नहीं आने पर उसने छोटे-छोटे आक्रमण करने आरंभ कर दिए। सबसे पहले उसने कंधार पर कब्ज़ा किया। इधर शाह इस्माईल को तुर्कों के हाथों भारी हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध के बाद शाह इस्माईल तथा बाबर, दोनों ने बारूदी हथियारों की सैन्य महत्ता समझते हुए इसका उपयोग अपनी सेना में आरंभ किया। इसके बाद उसने इब्राहिम लोदी पर आक्रमण किया। पानीपत में लड़ी गई इस लड़ाई को पानीपत का प्रथम युद्ध के नाम से जानते हैं। यह युद्ध बाबरनामा के अनुसार 21 अप्रैल 1526 को लड़ा गया था। इसमें बाबर की सेना इब्राहिम लोदी की सेना के सामने बहुत छोटी थी। पर सेना में संगठन के अभाव में इब्राहिम लोदी यह युद्ध बाबर से हार गया। इसके बाद दिल्ली की सत्ता पर बाबर का अधिकार हो गया और उसने सन १५२६ में मुगलवंश की नींव डाली।
✅️"राजपूत....✍️
☞"राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत काफी संगठित तथा शक्तिशाली हो चुके थे। राजपूतों ने एक बड़ा-सा क्षेत्र स्वतंत्र कर लिया था और वे दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होना चाहते थे। बाबर की सेना राजपूतों की आधी भी नहीं थी। 17 मार्च 1527 में खानवा की लड़ाई राजपूतों तथा बाबर की सेना के बीच लड़ी गई। राजपूतों का जीतना निश्चित लग रहा था। पर युद्ध के दौरान ने राणा सांगा का साथ छोड़ दिया और बाबर से जा मिले। इसके बाद राणा सांगा घायल अवस्था मे उनके साथियो ने युद्ध से बाहर कर दिया और एक आसान-सी लग रही जीत उसके हाथों से निकल गई। इसके एक साल के बाद राणा सांगा की 30 जनवरी 1528 को मौत हो गई। इसके बाद बाबर दिल्ली की गद्दी का अविवादित अधिकारी बन गया। आने वाले दिनों में मुगल वंश ने भारत की सत्ता पर 331 सालों तक राज किया।
☞"खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 में मेवाड़ के शासक राणा सांगा और बाबर के मध्य हुआ था। इस में इब्राहिम लोदी के भाई मेहमूद लोदी ने राणा का साथ दिया दिया था इसमें राणा सांगा की हार हुई थी और बाबर की विजय हुई थी। यही से बाबर ने भारत में रहने का निश्चय किया इस युद्ध में हीं प्रथम बार बाबर ने धर्म युद्ध जेहाद का नारा दिया इसी युद्ध के बाद बाबर ने गाजी अर्थात दानी की उपाधि ली थी !
☞"चंदेरी पर आक्रमण मेवाड़ विजय के पश्चात बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों को पूर्व में विद्रोहियों का दमन करने के लिए भेजा क्योंकि पूरब में बंगाल के शासक नुसरत शाह ने अफ़गानों का स्वागत किया था और समर्थन भी प्रदान किया था इससे उत्साहित होकर अपनों ने अनेक स्थानों से मुगलों को निकाल दिया था बाबर को भरोसा था कि उसका अधिकारी अफगान विद्रोहियों का दमन करेंगे अतः उसने चंदेरी पर आक्रमण करने का निश्चित कर लिया चंदेरी का राजपूत शासक मेदनी राय हवा में राणा सांगा की ओर से लड़ा था और अब चंदेरी मैं राजपूत सत्ता का पुनर्गठन हो रहा था चंदेरी पर आक्रमण करने के निश्चय से ज्ञात होता है कि बाबर की दृष्टि में राजपूत संगठन अफगानों की अपेक्षा अधिक गंभीर था अतः वह राजपूत शक्ति को नष्ट करना अधिक आवश्यक समझता था चंदेरी का व्यापारिक तथा सैनिक महत्व था वह मालवा तथा राजपूताने में प्रवेश करने के लिए उपयुक्त स्थान था बाबर ने सेना चंदेरी पर आक्रमण करने के लिए भेजी थी उसे राजपूतों ने पराजित कर दिया इससे बाबा ने स्वयं चंदेरी जाने का निश्चय किया क्योंकि यह संभव है कि चंदेरी राजपूत शक्ति का केंद्र ना बन जाए है कि उनके अनुसार हुआ चंदेरी के विरुद्ध लड़ने के लिए 21 जनवरी 1528 को भी घोषित किया क्योंकि इस घोषणा से उसे चंदेरी की मुस्लिम जनता का जो बड़ी संख्या में से समर्थन प्राप्त होने की आशा थी और जिहाद के द्वारा राजपूतों तथा इन मुस्लिमों का सहयोग रोका जा सकता था उसने मेदनी राय के पास संदेश भेजा कि वह शांति पूर्ण रूप से चंदेरी का समर्पण कर दे तो उसे शमशाबाद की जागीर दी जा सकती है मेदनी राय नया प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया और राजपूतों ने भयंकर युद्ध किया लेकिन बाबर के अनुसार उसने तो खाने की मदद से एक ही घंटे मेंचंदेरी पर अधिकार कर लिया उसने चंदेरी का राज्य मालवा सुल्तान के वंशज अहमद शाह को दे दिया और उसे आदेश दिया कि वह 20 लाख दाम प्रति वर्ष शाही कोष में जमा करें
✅️"घाघरा का युद्ध...✍️
☞"बीच में महमूद लोधी बिहार बहुत गया और उसके नेतृत्व में एक लाख सैनिक एकत्रित हो गए इसके बाद अफ़ग़ानों ने पूर्वी क्षेत्रों पर आक्रमण कर दिया महमूद लोधी चुनार तक आया। ऐसी स्थिति में बाबर ने उनसे युद्ध करने के बाद जनवरी 1529 ईस्वी में आगरा से प्रस्थान किया। अनेक अफगान सरदारों ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली लेकिन मुख्य अफगान सेना जिसे बंगाल के शासक नुसरत शाह का समर्थन प्राप्त था, जो गंडक नदी के पूर्वी तट पर थी। बाबर ने गंगा नदी पार करके घाघरा नदी के पास आफगानों से घमासान युद्ध करके उन्हें पराजित किया। बाबर ने नुसरत शाह से संधि की जिसके अनुसार अनुसार शाह ने अफगान विद्रोहियों को शरण ना देने का वचन दिया। बाबर ने अफगान जलाल खान को अपने अधीन किया जो उस समय बिहार का शासक था, और उसे आदेश दिया कि वह शेर खां को अपना मंत्री रखें।
✅️"अन्तिम दिन....✍️
☞"कहा जाता है कि अपने पुत्र हुमायुं के बीमार पड़ने पर उसने अल्लाह से हुमायुँ को स्वस्थ्य करने तथा उसकी बीमारी खुद को दिये जाने की प्रार्थना की थी। इसके बाद बाबर का स्वास्थ्य बिगड़ गया और अंततः वो 1530 में 48 वर्ष की उम्र में मर गया। उसकी इच्छा थी कि उसे काबुल में दफ़नाया जाए पर पहले उसे आगरा में दफ़नाया गया। लगभग नौ वर्षों के बाद हुमायू ने उसकी इच्छा पूरी की और उसे काबुल में दफ़ना दिया।
☞"बाबर को फरगना का शासन उसकी दादी दौलत बेगम की वजह से मिला
बाबर ने 1507 में बादशाह की उपाधि धारण की।
☞"बाबर ने तोप खाने का भी उपयोग किया ! बाबर ने तुलगुम युद्ध प्रणाली पानीपत के प्रथम युद्ध मे अपनाई यह प्रणाली उसने उज्बेको से सीखी थी।
✅️"मुग़ल सम्राटों का कालक्रम...✍️
☞"बाबर का पुत्र हुमायूं । हुमायूँ का पुत्र अकबर । अकबर का पुत्र जहाँगीर । जहाँगीर का पुत्र शाहजहां । शाहजहाँ का पुत्र औरंगजेब ।
✅️"बाबर जीवनी.....
☞"ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था जिसका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। वो तैमूर लंग का परपोता था और विश्वास रखता था कि चंगेज़ ख़ान उसके वंश का पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को माना जाता है!
✅️"आरंभिक जीवन.....✍️
☞"बाबर का जन्म फ़रगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर में हुआ था जो अब उज्बेकिस्तान में है। वो अपने पिता उमर शेख़ मिर्ज़ा, जो फरगना घाटी के शासक थे तथा जिसको उसने एक ठिगने कद के तगड़े जिस्म, मांसल चेहरे तथा गोल दाढ़ी वाले व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है, तथा माता कुतलुग निगार खानम का ज्येष्ठ पुत्र था।
☞"हालाँकि बाबर का मूल मंगोलिया के बर्लास कबीले से सम्बन्धित था पर उस कबीले के लोगों पर फारसी तथा तुर्क जनजीवन का बहुत असर रहा था, वे इस्लाम में परिवर्तित हुए तथा उन्होने तुर्केस्तान को अपना वासस्थान बनाया। बाबर की मातृभाषा चग़ताई भाषा थी पर फ़ारसी, जो उस समय उस स्थान की आम बोलचाल की भाषा थी, में भी वो प्रवीण था। उसने चगताई में बाबरनामा के नाम से अपनी जीवनी लिखी।
☞"14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के 'चग़ताई वंश' के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा' की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना।
☞"उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘पादशाह’ धारण की।
☞"बाबर पर अपने परिवार की ज़िम्मेदारी बहुत कम उम्र में ही आ गई थी| अपने पैतृक स्थान फरगना को वे जीत तो गए थे, लेकिन ज्यादा दिन तक वहां राज नहीं कर पाए, वे इसे कुछ ही दिनों में हार गए| जिसके बाद उसे बहुत कठिन समय देखना पड़ा, और उन्होंने बहुत मुश्किल से जीवन यापन किया| लेकिन इस मुश्किल समय में भी वे उनके कुछ वफादारों ने उनका साथ नहीं छोड़ा|
☞"कुछ सालों बाद जब उसके दुश्मन एक दुसरे से दुश्मनी निभा रहे थे, तब इस बात का फायदा बाबर ने उठाया और वे 1502 में अफगानिस्तान के काबुल को जीत लिए| इसके साथ ही उन्होंने अपना पैतृक स्थान फरगना व समरकंद को भी जीत लिया| बाबर की 11 बेगम थी, जिससे उसको 20 बच्चे हुए थे| बाबर का पहला बेटा हुमायूँ था, जिसे उसने अपना उत्तराधिकारी बनाया था|
☞"बाबर का भारत के विरुद्व किया गया प्रथम अभियान 1519 ई. में 'युसूफजाई' जाति के विरुद्ध था। इस अभियान में बाबर ने ‘बाजौर’ और ‘भेरा’ को अपने अधिकार में किया। यह बाबर का प्रथम भारतीय अभियान था, जिसमें उसने तोपखाने का प्रयोग किया था। 1519 ई. के अपने दूसरे अभियान में बाबर ने ‘बाजौर’ और ‘भेरा’ को पुनः जीता साथ ही ‘स्यालकोट’ एवं ‘सैय्यदपुर’ को भी अपने अधिकार में कर लिया।
☞"1524 ई. के चौथे अभियान के अन्तर्गत इब्राहीम लोदी एवं दौलत ख़ाँ लोदी के मध्य मतभेद हो जाने के कारण दौलत ख़ाँ, जो उस समय लाहौर का गवर्नर था, ने पुत्र दिलावर ख़ाँ एवं आलम ख़ाँ (बहलोल ख़ाँ का पुत्र) को बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित करने के लिए भेजा। सम्भवतः इसी समय राणा सांगा ने भी बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमत्रंण भेजा था।
✅️"पानीपत की लड़ाई....✍️
☞"आलम खान और दौलत खान ने बाबर को पानिपत की लड़ाई के लिए बुलाया था| बाबर ने लड़ाई में जाने से पहले 4 बार पूरी जांच पड़ताल की थी| इसी दौरान कुछ गुस्से में बैठे अफगानी लोगों ने बाबर को अफगान में आक्रमण करने के लिए बुलाया| मेवार के राजा राना संग्राम सिंह ने भी बाबर को इब्राहीम लोधी के खिलाफ खड़े होने के लिए बोला, क्यूंकि राना जी की इब्राहीम से पुराणी रंजिश थी इन्ही सब के चलते बाबर ने पानीपथ में इब्राहीम लोधी को युध्य के लिए ललकारा
☞"इस लडाई में दो प्रमुख तोप निशानेबाज उस्ताद अली एवं मुस्तफा ने भाग लिया था. बाबर को अपनी उदारता के कारण कलन्दर की उपाधि दी गई थी. बाबर दिल्ली की राजगद्दी पर 27 अप्रैल 1526 को बैठा था. बाबर ओर राणा सांगा के बीच खानवा की लडाई 16 मार्च 1527 ई० को हुई थी. इस लडाई काेे जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी. बाबर को मोदिनी राय के बीच लडाई 20 जनवरी 1528 ई० को हुई थी. बाबर की मातृभाषा तुर्की थी.
☞"बाबर द्वारा लिखित आत्मकथा का नाम तुजुक-ए-बाबरी है. यह आत्मकथा तुर्की भाषा में लिखी गई थी. इस आत्मकथा को अब्दुल रहीम खानखाना ने फारसी भाषा में अनुुवाद किया था. बाबर की मृत्यु 48 बर्ष की आयुु में 26 दिसम्बर 1530 ई० को आगरा में हुई थी. बाबर के शव काेे प्रारम्भ में आगरा के आरामबाग में दफनाया गया बाद मेंं काबुल में उसके उसके द्वारा चुने हुऐ स्थान पर दफनाया गया था.
✅️"मृत्यु......✍️
☞"उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने आप को पंजाब, दिल्ली और गंगा के मैदानों के साथ साथ बिहार का भी शासक बना दिया था। उन्होंने भारत के जीवंत वर्णन के ऊपर एक आत्मकथा लिखी थी। यह तुज़ुक-ऐ-बाबरी के रूप में जाना जाती है और इसको तुर्की भाषा में लिखा गया है। इनकी 26 दिसम्बर 1530 में मृत्यु हो गई थी और इनके बाद इनका बेटा बेटे हुमायूं दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हो गया था।
☞"अप्रैल 1526 में बाबर पानीपत की लड़ाई जीत गया, अपने को हारता देख इस युद्ध में इब्राहीम लोधी ने खुद को मार डाला | सबको ये लगा था कि बाबर इस लड़ाई के बाद भारत छोड़ देगा लेकिन इसका उल्टा हुआ| बाबर ने भारत में ही अपना साम्राज्य फ़ैलाने की ठान ली| भारत के इतिहास में बाबर की जीत पानीपत की पहली जीत कहलाती है इसे दिल्ली की भी जीत माना गया| इस जीत ने भारतीय राजनीती को पूरी तरह से बदल दिया, साथ ही मुगलों के लिए भी ये बहुत बड़ी जीत साबित हुई|
☞"बादशाह की उपाधि इससे पहले किसी तैमूर शासक ने धारण नहीं की थी. बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ई० में युसूफ जाई जाति के विरुद्ध था. बाबर ने भारत पर पॉच बार आक्रमण किया था. बाबर काेे भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खॉ लोदी एवं मेवाड के शासक राणा सॉगा ने दिया था. पानीपत की पहली लडाई 21 अप्रैल 1526 ई० बाबर और इब्रा्हीम लोदी केे बीच लडी गयी थी. इस लडाई में दो प्रमुख तोप निशानेबाज उस्ताद अली एवं मुस्तफा ने भाग लिया था.
☞"बाबर को अपनी उदारता के कारण कलन्दर की उपाधि दी गई थी. बाबर दिल्ली की राजगद्दी पर 27 अप्रैल 1526 को बैठा था. बाबर ओर राणा सांगा के बीच खानवा की लडाई 16 मार्च 1527 ई० को हुई थी. इस लडाई काेे जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी. बाबर को मोदिनी राय के बीच लडाई 20 जनवरी 1528 ई० को हुई थी. बाबर की मातृभाषा तुर्की थी. बाबर द्वारा लिखित आत्मकथा का नाम तुजुक-ए-बाबरी है.
☞"यह आत्मकथा तुर्की भाषा में लिखी गई थी.इस आत्मकथा को अब्दुल रहीम खानखाना ने फारसी भाषा में अनुुवाद किया था.बाबर की मृत्यु 48 बर्ष की आयुु में 26 दिसम्बर 1530 ई० को आगरा में हुई थी. बाबर के शव काेे प्रारम्भ में आगरा के आरामबाग में दफनाया गया बाद मेंं काबुल में उसके उसके द्वारा चुने हुऐ स्थान पर दफनाया गया था. बाबर को मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता माना जाता है. बाबर के चार पुत्र थे - 1-हुमायूॅ 2-कानरान 3-असकरी 4-हिन्दाल.
☞"प्रारंभिक 1500 के आसपास तैमूरी राजवंश के राजकुमार बाबर के द्वारा उमैरिड्स साम्राज्य के नींव की स्थापना हुई, जब उन्होंने दोआब पर कब्जा किया और खोरासन के पूर्वी क्षेत्र द्वारा सिंध के उपजाऊ क्षेत्र और इन्डस नदी के निचले घाटी को नियंत्रित किया। 1526 में, बाबर ने दिल्ली के सुल्तानों में आखिरी सुलतान, इब्राहिम शाह लोदी, को पानीपत के पहले युद्ध में हराया। अपने नए राज्य की स्थापना को सुरक्षित करने के लिए, बाबर को खानवा के युद्ध में राजपूत संधि का सामना करना पड़ा जो चित्तौड़ के राणा साँगा के नेतृत्व में था।
☞"विरोधियों से काफी ज़्यादा छोटी सेना द्वारा हासिल की गई, तुर्क की प्रारंभिक सैन्य सफलताओं को उनकी एकता, गतिशीलता, घुड़सवार धनुर्धारियों और तोपखाने के इस्तेमाल में विशेषता के लिए ठहराया गया है। 1530 में बाबर के बेटे हुमायूँ उत्तराधिकारी बने लेकिन पश्तून शेर शाह सूरी के हाथों प्रमुख उलट-फेर सहे और नए साम्राज्य के अधिकाँश भाग को क्षेत्रीय राज्य से आगे बढ़ने से पहले ही प्रभावी रूप से हार गए। 1540 से हुमायूं एक निर्वासित शासक बने, 1554 में साफाविद दरबार में पहुँचे जबकि अभी भी कुछ किले और छोटे क्षेत्र उनकी सेना द्वारा नियंत्रित थे।
☞"लेकिन शेर शाह सूरी के निधन के बाद जब पश्तून अव्यवस्था में गिर गया, तब हुमायूं एक मिश्रित सेना के साथ लौटे, अधिक सैनिकों को बटोरा और 1555 में दिल्ली को पुनः जीतने में कामयाब रहे। हुमायूं ने अपनी पत्नी के साथ मकरन के खुरदुरे इलाकों को पार किया, लेकिन यात्रा की निष्ठुरता से बचाने के लिए अपने शिशु बेटे जलालुद्दीन को पीछे छोड़ गए। जलालुद्दीन को बाद के वर्षों में अकबर के नाम से बेहतर जाना गया।
☞"बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ई० में युसूफ जाई जाति के विरुद्ध था. बाबर ने भारत पर पॉच बार आक्रमण किया था. बाबर काेे भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खॉ लोदी एवं मेवाड के शासक राणा सॉगा ने दिया था. पानीपत की पहली लडाई 21 अप्रैल 1526 ई० बाबर और इब्रा्हीम लोदी केे बीच लडी गयी थी.
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