🔴"आरम्भिक जीवन :-✍️
☞"लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को धुडिके ग्राम में (मोगा जिला, पंजाब) हुआ. उनके पिता धर्म से अग्रवाल थे. 1870 के अंत और 1880 के प्रारंभ में, जहा उनके पिता एक उर्दू शिक्षक थे तभी राय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रेवारी (तब का पंजाब, अभी का हरयाणा) के सरकारी उच्च माध्यमिक स्कूल से ग्रहण की. राय हिंदुत्वता से बहोत प्रेरित थे, और इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने राजनीती में जाने की सोची. (जब वे लाहौर में कानून की पढाई कर रहे थे तभी से वे हिंदुत्वता का अभ्यास भी कर रहे थे.
☞"उनके इस बात पर बहोत भरोसा था की हिंदुत्वता ये राष्ट्र से भी बढ़कर है. वे भारत को एक पूर्ण हिंदु राष्ट्र बनाना चाहते थे). हिंदुत्वता, जिसपे वे भरोसा करते थे, उसके माध्यम से वे भारत में शांति बनाये रखना चाहते थे और मानवता को बढ़ाना चाहते थे. ताकि भारत में लोग आसानी से एक-दुसरे की मदद करते हुए एक-दुसरे पर भरोसा कर सके.
☞"क्यूकी उस समय भारतीय हिंदु समाज में भेदभाव, उच्च-नीच जैसी कई कु-प्रथाए फैली हुई थी, लाला लाजपत राय इन प्रथाओ की प्रणाली को ही बदलना चाहते थे. अंत में उनका अभ्यास सफल रहा और वे भारत में एक अहिंसक शांति अभियान बनाने इ सफल रहे और भारत को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए ये बहोत जरुरी था. वे आर्य समाज के भक्त और आर्य राजपत्र (जब वे विद्यार्थी थे तब उन्होंने इसकी स्थापना की थी) के संपादक भी थे.
🔴"राजनीतिक जीवन :-✍️
☞"लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं में से एक थे। वह लाल-बाल-पाल की तिकड़ी का हिस्सा थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल इस तिकड़ी के दूसरे दो सदस्य थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नरम दल (जिसका नेतृत्व पहले गोपाल कृष्ण गोखले ने किया) का विरोध करने के लिए गरम दल का गठन किया।
☞"लालाजी ने बंगाल के विभाजन के खिलाफ हो रहे आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी, बिपिन चंद्र पाल और अरविन्द घोष के साथ मिलकर स्वदेशी के सशक्त अभियान के लिए बंगाल और देश के दूसरे हिस्से में लोगों को एकजुट किया। लाला लाजपत राय को 3 मई 1907 को रावलपिंडी में अशांति पैदा करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और मांडले जेल में छः महीने रखने के बाद 11 नवम्बर 1907 को रिहा कर दिया गया।
☞"स्वतंत्रता संग्राम ने एक क्रन्तिकारी मोड़ ले लिया था इसलिए लालाजीका चाहते थे की भारत की वास्तविक परिस्थिति का प्रचार दोसरे देशों में भी किया जाये। इस उद्देश्य से 1914 में वह ब्रिटेन गए। इसी समय प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया जिसके कारण वह भारत नहीं लौट पाये और फिर भारत के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। उन्होंने इंडियन होम लीग ऑफ़ अमेरिका की स्थापना की और “यंग इंडिया” नामक एक पुस्तक लिखी। पुस्तक के द्वारा उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को लेकर गंभीर आरोप लगाये और इसलिए इसे ब्रिटेन और भारत में प्रकाशित होने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया। 1920 में विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ही वह भारत लौट पाये।
☞"1924 में लालाजी कांग्रेस के अन्तर्गत ही बनी स्वराज्य पार्टी में शामिल हो गये और ‘केन्द्रीय धारा सभा के सदस्य चुन लिए गये. जब उनका पण्डित मोतीलाल नेहरू से राजनैतिक मतभेद हो गया तो उन्होंने ‘नेशनलिस्ट पार्टी’ का गठन किया और पुनः असेम्बली में पहुँच गये. अन्य विचारशील नेताओं की भाँति लालाजी भी कांग्रेस में दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से अप्रसन्नता अनुभव करते थे, इसलिए स्वामी श्रद्धानन्द तथा मदनमोहन मालवीय के सहयोग से उन्होंने ‘हिन्दू महासभा’ के कार्य को आगे बढ़ाया.
☞"1925 में उन्हें ‘हिन्दू महासभा’ के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया. सन 1912 में लाला लाजपत राय ने एक ‘अछूत कॉन्फ्रेंस’ आयोजित की थी, जिसका उद्देश्य हरिजनों के उद्धार के लिये ठोस कार्य करना था. उन्हीं के प्रयासों से 1926 ई. में ‘श्रमिक संघ अधिनियम’ पारित किया गया. उन्होंने ‘तरुण भारत’ नामक पुस्तक लिखी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था. उन्होंने ‘यंग इंण्डिया’ नामक मासिक पत्र भी निकाला.
☞"इसी दौरान उन्होंने ‘भारत का इंग्लैंड पर ऋण’, ‘भारत के लिए आत्मनिर्णय’ आदि पुस्तकें लिखीं. लालाजी परदेश में रहकर भी अपने देश और देशवासियों के उत्थान के लिए काम करते रहे थे. अपने चार वर्ष के प्रवास काल में उन्होंने ‘इंडियन इन्फ़ॉर्मेशन’ और ‘इंडियन होमरूल’ दो संस्थाएं सक्रियता से चलाईं. 1920 में उन्होंने पंजाब में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किया,
🔴"जीवन वृत्त :-✍️
☞"लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में 28 जनवरी 1865 को एक जैन परिवार में हुआ था। इन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया। इन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज एवं कल्याण चन्द्र दीक्षित के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जानते है। लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी। 30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये। उस समय इन्होंने कहा था: "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।" और वही हुआ भी; लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से इनका देहान्त हो गया।
🔴"लालाजी की मौत का बदला :-✍️
☞"लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी पर जानलेवा लाठीचार्ज का बदला लेने का निर्णय किया। इन देशभक्तों ने अपने प्रिय नेता की हत्या के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई।
🔴"हिन्दी सेवा :-✍️
☞"लालाजी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण और कई महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं। उन्होने देश में और विशेषतः पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बहुत सहयोग दिया। देश में हिन्दी लागू करने के लिये उन्होने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था।
"लाला लाजपत राय का जीवन परिचय !!
✍️✍️
☞"लाला लाजपत राय की छवि प्रमुखत: एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में हैं और इसी के साथ यें देश की स्वतंत्रता के लिए किये गये संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका में थे,लेकिन वो एक लेखक, वकील,समाज-सुधारक और आर्य समाजी भी थे.
☞"ब्रिटिश शासन के खिलाफ दिए जाने वाले शक्तिशाली भाषणों और अपनी देशभक्ति के कारण उन्हें ‘पंजाब केसरी’ या “पंजाब के शेर” भी कहा जाता था.
☞"बचपन से ही वह अपने देश की सेवा करने की इच्छा रखतें थे और इसलिए उन्होंने इसे विदेशी शासन से मुक्त करवाने की प्रतिज्ञा ली थी.
☞"लालाजी के पिता मुंशी आज़ाद पर्सियन और उर्दू के ज्ञाता थे और उनकी माताजी भी एक धार्मिक महिला थी जिन्होंने अपने बच्चों में भी धर्म-कर्म की भावना को प्रेरित किया था, वास्तव में उनके पारिवारिक परिवेश ने ही उन्हें देशभक्ति का काम करने की प्रेरणा दी थी.
🔴"लाला लाजपत राय की शिक्षा..
☞"सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रेवारी में लालाजी के पिता प्राध्यापक थे. इसी विद्यालय से इनका स्वयं का भी प्राथमिक अध्यन संपन्न हुआ था. इसके बाद 1880 में कानून का अध्ययन करने के लिए लाजपत राय ने लाहौर में सरकारी कॉलेज में एडमिशन ले लिया. 1884 में इनके पिता का रोहतक स्थानांतरण हो गया इस कारण उनके साथ यह स्वयं भी रोहतक शिफ्ट हो गए.
☞"लाहौर के सरकारी कॉलेज में विधि की पढ़ाई पूरे करने के बाद 1886 में उनका परिवार हिसार आ गया, जहां उन्होंने लॉ की प्रैक्टिस शुरू की. हालांकि उस समय के अन्य वकीलों की तरह वो वकालत में पैसा कमाने में रूचि नहीं रखते थे,वो सोशल वर्क में ध्यान केन्द्रित करना चाहते थे.
☞"इसके बाद राष्ट्रीय कांग्रेस के 1888 और 1889 के वार्षिक सत्रों के दौरान, उन्होंने एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया, वह 1892 में उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने के लिए लाहौर चले गए. उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक की नींव रखी थी. उनके निष्पक्ष स्वभाव के कारण ही उन्हें हिसार मुन्सिपल्टी की सदस्यता मिली,जिसके बाद वो सेक्रेटरी बन गए.
🔴"लाला लाजपत राय का विवाह..✍️
☞"उन्होंने 1877 में राधा देवी से शादी की थी और उनके 3 बच्चे थे जिनके नाम क्रमश:प्यारेलाल अग्रवाल,अमृतराय अग्रवाल और पार्वती अग्रवाल थे.
🔴"लाला लाजपत राय के गुरु...✍️
☞"लाला जी दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे, जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की थी,इसके अलावा उन्होंने द्यानानद सरस्वती की एंग्लो-वैदिक स्कूल की स्थापना करने में भी मदद की थी. दयानंद सरस्वती के देहांत के बाद उनके सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने एंग्लो-वैदिक कॉलेज और शैक्षिक संस्था भी स्थापित की.
🔴"लाला लाजपत राय का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान...✍️
☞"1888 में उन्होंने पॉलिटिक्स में प्रवेश किया, और अपनी देशभक्ति और समर्पण की भावना से सबको प्रभावित किया.
☞"इलाहबाद में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सेशन के दौरान उनके ओजस्वी भाषण ने वहाँ उपस्थित 80 प्रबुद्ध जनों का ध्यान खीचा जिससे उनकी ख्याति और बढ़ गयी,और उन्हें कांग्रेस में आगे बढ़ने की दिशा भी मिली.
☞"देश सेवा का उद्देश्य लेकर ही वो हिसार से लाहौर शिफ्ट हो गए,जहां पर पंजाब हाई कोर्ट था,यहाँ उनके पास अपने देशसेवा के कार्य और सोशल वर्क के लिए विस्तृत क्षेत्र और संभावनाएं थी.
☞"बंगाल विभाजन के विरोध में उन्होंने बढ़-चढकर हिस्सा लिया ,उन्होंने स्वेदशी आन्दोलन में अग्रणी की भूमिका निभाई थी, वो ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों से निष्प्रभावित रहते थे,और देश के सम्मान के लिए लगातार काम करते रहते थे.
☞"1907 में उनके द्वारा लायी गयी क्रान्ति से लाहौर और रावलपिंडी में परिवर्तन की लहर दौड़ पड़ी थी, जिस कारण ही नवम्बर 1907 में ही उन्हें 6 महीने के लिए मांडले जेल में डाला गया.
☞"कुछ समय तक कांग्रेस से अलग रहने के बाद 1912 में उन्होंने वापिस कांग्रेस को जॉइन किया,जिसके 2 साल बाद वो कांग्रेस की तरफ से प्रतिनिधि बनकर इंग्लैंड गए.
☞"1914 में हुए विश्व-युध्द के कारण वो 6 महीने तक इंग्लैंड में नहीं रह सके और उन्होंने अमेरिका की तरफ प्रस्थान किया, अमेरिका में उन्होंने क्रांतिकारी किताबों और भाषणों से भारतियों पर ब्रिटिश सरकार के अत्याचार की खुलकर चर्चाएँ की.
☞"अमेरिका में उन्होंने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की इसके अलावा एक “यंग इंडिया” नाम का जर्नल भी प्रकाशित करना शुरू किया,जिसमें भारतीय कल्चर और देश की स्वतन्त्रता की आवश्यकता के बारे में लिखा जाता था,और इस पेपर ने उन्हें विश्व-भर में ख्याति दिलाई
☞"1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा साइमन कमिशन लाये जाने के विरोध में उन्होंने बहुत सी रैलियों और भाषण का आयोजन किया.साइमन कमीशन भारत में संविधान के लिए चर्चा करने के लिए एक बनाया गया कमिशन था,जिसके पैनल में भारतीय नहीं थे.
☞"वो इस कमिशन का विरोध भी शांतिपूर्वक ही करना चाहते थे, उनकी यही डिमांड थी कि कमिशन में यदि भारतीय नहीं रह सकते,तो ये कमिशन अपने देश लौट जाए,जिसकी प्रतिक्रिया में ब्रिटिश सरकार ने लाठी चार्ज कर दिया,जिसमें लालाजी बुरी तरह से घायल हो गए,और फिर उनका स्वास्थ कभी नही सुधरा.
🔴"लाला लाजपत राय लिखित मुख्य किताबें....
“हिस्ट्री ऑफ़ आर्य समाज”
इंग्लैंड’ज डेब्ट टू इंडिया:इंडिया
दी प्रॉब्लम ऑफ़ नेशनल एजुकेशन इन इंडिया
स्वराज एंड सोशल चेंज,दी युनाइटेड
स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका:अ हिन्दू’स इम्प्रैशन एंड स्टडी”
🔴"लाला लाजपत राय का देहांत...
☞"अपने संघर्ष के समय में एक दिन लाला जी लाहौर में साइमन आयोग के विरोध में एक शांतिपूर्ण जुलूस का आयोजन कर रहे थे तभी वहाँ पर उनके भाषण और जुलुस को रोकने के लिए पुलिस अधीक्षक, जेम्स.ए.स्कॉट भी पहुच गया और उसने अपने पुलिस बल को कार्यकर्ताओं पर ‘लाठी-चार्ज’ करने का आदेश दे दिया. उस दिन पुलिस ने विशेष रूप से लाजपत राय को लक्षित किया और उनके सीने पर मारा. इस प्रहार के कारण लाला लाजपत राय को गंभीर चोट के आई जिस कारण उन्हें कई दिनों तक अस्पताल में रहना पडा और अंतत: 17 नवंबर, 1928 के दिन दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई.
☞"आज भी उनके मृत्यु के दिन 17 नवंबर को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता हैं.
☞"उस समय भी लालाजी की अकारण मृत्यु के कारण क्रांतिकारियों में अंग्रेजों के खिलाफ रोष की लहर फ़ैल गई और उन्होंने उनकी मृत्यु का बदला लेने का सोचा.
☞"चंद्रशेखर आजाद के साथ भगत सिंह और उनके अन्य सहयोगीयों ने मिलकर स्कॉट की हत्या की योजना बनाई लेकिन क्रांतिकारियों ने स्कॉट की जगह जेपी सैंडर्स को गोली मार दी.
🔴"लाला लाजपत राय द्वारा दिया गया नारा..
☞"साइमन कमीशन के विरोध की रैली के दौरान जब अंग्रेज लालाजी और उनके साथियों पर लाठियां बरसाई जा रही थी तब लालाजी ने कहा था “मुझे लगने वाली एक-एक लाठी अंग्रेजों की ताबूत पर कील के जैसी होगी”.
☞"लाला लाजपत राय जातिवाद के घोर विरोधी थे,इस बारे में उन्होंने एक बार लिखा भी था “मैंने कोई भी हिन्दू शास्त्र में छुआछूत के बारे में नहीं पढ़ा हैं,किसी का सिर्फ इस कारण से भेद-भाव करना कि वो उच्च जाति का या सवर्ण हैं ये सही नहीं हैं,वास्तव में ये एक अर्थविहीन,अमानवीय,असहनीय कृत्य हैं”.
🔴"लाला लाजपत राय के नाम पर धरोहर..
☞"लाला लाजपत राय का जन्म अपने नानी के घर मोगा के दुधिके गाँव में हुआ था,जबकि उनका बचपन मोहल्ला मिसापुरा में बीता था जहाँ उनका पारम्परिक घर था,जिसे 1987 में आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेंट ने अपने अधीन कर लिया,और इसे नेशनल हेरिटेज घोषित कर दिया. वहाँ पर उनकी याद में लाइब्रेरी और म्युजियम बनाया गया हैं.
☞"जागरोन में उनके नाम पर 3 शैक्षिक इंस्टीट्यूशन आरके सीनियर सेकेंडरी स्कूल, लाला लाजपत राय डीएवी कॉलेज और लाजपत राय कन्या पाठशाला हैं. इसके अलावा देश भर में उनके नाम पर कई सडके,इमारते, और संस्थाएं भी हैं.
☞"मेरठ शहर में इनके नाम पर लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज हैं. इनके नाम पर सरकार ने एक पोस्टल स्टाम्प भी ज़ारी किया था.
🔴"कांग्रेस के प्रेसिडेंट के रूपमे लाला लाजपत राय...✍️
☞"सितंबर 1920 में भारत लौटने पर आयोजित स्पेशल सेशन में वो नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट बन गये,उनकी बढती लोकप्रियता ने उन्हें नेशनल हीरो बना दिया था,लोग उन पर विशवास करने लगे थे,और उनके अनुयायी बन गए थे. और आगामी साल में उन्होंने लाहौर में सर्वेन्ट्स ऑफ़ पीपल सोसाइटी का गठन किया था,जो कि नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन था. उनकी बढती लोकप्रियता से ब्रिटिश सरकार को भी डर लगने लगा था नतीजन उन्हें 1921 से लेकर 1923 तक कारवास में डाल दिया गया,
☞"जेल से छूटने के बाद उनका ध्यान उस समय देश में बढ़ रही साम्प्रदायिक समस्याओं पर भी गया,जो देश के लिए खतरा बनने लगी थी. इसलिए ही तत्कालीन परिस्थितियों में हिन्दू-मुस्लिम एकता के महत्व को उन्होंने समझ लिया था.
☞"इसी कारण 1925 में उन्होंने कलकता में हिन्दू महासभा का आयोजन किया,जहां उनके ओजस्वी भाषण ने बहुत से हिन्दुओं को देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लिए के लिए प्रेरित किया,इससे पहले 1924 में उन्होंने लिखा भी था कि माना कि अभी हिन्दू-मुस्लिम रिश्ते अच्छे नहीं हैं, लेकिन उन दोनों की मांग एक ही हैं और वो हैं स्वराज की,जिसे ब्रिटिश सरकार को मानना ही होगा.
🔴"लालाजी से जुड़े रोचक तथ्य...✍️
☞"1895 के समय भारत में स्वायत्त उद्योगों और एंटरप्राइज को आगे बढ़ाने के लिए लाला लाजपत राय ने पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना में मदद की, जो कि आज तक देश की बड़ी बैंकों में शामिल हैं.
☞"लाला लाजपत राय देश में सुप्रसिद्ध लाल-बाल-पाल में शामिल थे. इन तीनों में लालाजी को लाल,बाल गंगाधर तिलक को “बाल” और बिपिनचंद्र पाल को “पाल” कहा जाता था. ये तीनों गरम दल के नेता थे,जिनकी मांग स्वराज थी,मतलब ये भारत में स्वायत शासन चाहते थे,और उससे भी इनका उद्देश्य भारत में धार्मिक,सामाजिक सुधार कार्य करना था,जबकि नर्म दल के विचार इनसे काफी अलग थे.
☞"1920 की शुरुआत में लाला लाजपत राय ने लाहौर में शिक्षा में राष्ट्रवाद को बढावा देने के लिए नेशनल कॉलेज की स्थापना की,और उनका यह उद्देश्य काफी हद तक सफल भी रहा क्योंकि यही से भगत सिंह,सुखदेव,यशपाल,राम कृष्णा और भगवती चरण वोहरा जैसे महान क्रांतिकारी निकले थे,इन सबने मिलकर मार्क्सिस्ट रिवोल्यूशनरी पार्टी बनाई,जिसका नाम नौजवान भारत सभा रखा गया.
☞"लाला लाजपत राय ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था,जो कि मुख्यत: रोलेट एक्ट के विरोध में शुरू हुआ था,रोलेट एक्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया कानून था जिसके अनुसार बिना किसी सुनवाई के ही क्रांतिकारियों को सजा दी जा सकती थी,और पंजाब में इसी का विरोध करने पर लाला लाजपत राय को “पंजाब केसरी” की उपाधि दी गई थी.
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