हाल ही में नोवेल कोरोनवायरस के कारण होने वाले रोग COVID-19 से संक्रमित व्यक्तियों की जाँच में पता चला है कि इस संक्रमण से ग्रसित व्यक्तियों में साइटोकिन स्टॉर्म (Cytokine Storm) की संभावना सबसे अधिक है।
साइटोकिन स्टॉर्म (Cytokine Storm):
एक साइटोकिन स्टॉर्म प्रतिरक्षी कोशिकाओं एवं उनके सक्रिय यौगिकों (साइटोकिन्स) का अति उत्पादन है जो फ्लू संक्रमण में अक्सर फेफड़ों में सक्रिय प्रतिरक्षी कोशिकाओं के बढ़ने से संबंधित होता है।
परिणामस्वरूप रोगी के फेफड़ों की सूजन एवं उसके फेफड़ों में द्रव बनने से श्वसन संकट उत्पन्न हो सकता है और वह एक सेकेंड्री बैक्टीरियल निमोनिया से ग्रसित हो सकता है। जिससे अक्सर रोगी की मृत्यु हो जाती है।
साइटोकिन स्टॉर्म के लक्षण:
साइटोकिन स्टॉर्म किसी संक्रमण, ऑटो-इम्यून स्थिति या अन्य बीमारियों के कारण हो सकता है। इसके प्रारंभिक संकेतों एवं लक्षणों में तेज़ बुखार, शरीर में सूजन एवं लालिमा, गंभीर थकान एवं मितली (Nausea) आदि शामिल हैं।
साइटोकिन स्टॉर्म कोरोनोवायरस संक्रमित रोगियों में कोई विशेष लक्षण नहीं हैं। यह एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है जो अन्य संक्रामक एवं गैर-संक्रामक रोगों के दौरान भी हो सकती है।
प्रतिरक्षा प्रणाली में साइटोकिन्स की भूमिका:
साइटोकिन्स प्रोटीन को संकेत देते हैं जो स्थानीय उच्च सांद्रता (Local High Concentrations) में कोशिकाओं द्वारा जारी किये जाते हैं। साइटोकिन स्टॉर्म या साइटोकिन स्टॉर्म सिंड्रोम में प्रतिरक्षा कोशिकाओं के अति उत्पादन संबंधी विशेषता होती है और इस प्रक्रिया में शिथिलता का कारण स्वयं साइटोकिन्स होते हैं।
एक तीव्र प्रतिरक्षा अभिक्रिया (Severe Immune Reaction) जो रक्तप्रवाह में बहुत अधिक साइटोकिन्स के स्राव के लिये अग्रणी होती है, हानिकारक हो सकती है क्योंकि प्रतिरक्षी कोशिकाओं की अधिकता स्वस्थ ऊतक पर भी हमला कर सकती है।
साइटोकिन स्टॉर्म सिंड्रोम एक COVID-19 रोगी को कैसे प्रभावित करता है?
किसी भी फ्लू संक्रमण के मामले में एक साइटोकिन स्टॉर्म फेफड़ों में सक्रिय प्रतिरक्षी कोशिकाओं की वृद्धि के साथ संबंधित होता है जो एंटीजन से लड़ने के बजाय, फेफड़ों की सूजन एवं द्रव निर्माण तथा श्वसन संकट की स्थिति उत्पन्न करता है।
साइटोकिन स्टॉर्म के पूर्व उदाहरण:
इसे वर्ष 1918-20 में ‘स्पैनिश फ्लू’ महामारी के दौरान रोगी की मृत्यु होने के संभावित प्रमुख कारणों में एक माना जाता है। इस महामारी से विश्व भर में 50 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। और हाल के वर्षों में H1N1 ‘स्वाइन फ्लू’ व H5N1 ‘बर्ड फ्लू’ के मामलों में भी इसके लक्षण देखने को मिले थे।
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