( 125th Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti)
🟢 SUBHAS CHANDRA BOSE IN NEWS
💠 The GoI has decided to celebrate the birth anniversary of Netaji Subhas Chandra Bose that falls on January 23 as 'Parakram Diwas'.
💠 23rd January 2021 will mark the 125th birth anniversary year of Netaji
💠 Centre to dedicate a Museum on Netaji Subhash Chandra Bose in Kolkata on 125th birth anniversary
💠 PM Modi to Chair High Level Committee constituted to commemorate the 125th birth anniversary of Netaji Subhas Chandra Bose
💠 Majerhat Bridge in Kolkata named “Jai Hind” to Mark Netaji’s 125th Birth Anniversary
💠 Veteran Professor Chitra Ghosh & Niece of Netaji Subhas Chandra Bose passes away
सुभाष चंद्र बोस- विलक्षण व्यक्तित्व के धनी और परोपकार की मूर्त।
जानिए आज विशेष 📋📈
✔️ विलक्षण व्यक्तित्व के धनी सुभाष चंद्र बोस एक महान सेनापति, एक वीर सैनिक और राजनीति के अद्भुत खिलाड़ी तो थे ही, साथ ही वो दूसरों के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझने वाले संवेदनशील शख्स भी थे। उनसे जुड़े ऐसे ही कुछ दिलचस्प प्रसंग प्रस्तुत हैं, जिनसे उनकी उदारता, मित्रता, संवेदनशीलता, दूरदर्शिता स्पष्ट परिलक्षित होती है।
✔️ जब वे स्कूल में पढ़ने जाया करते थे, तब उनके स्कूल के पास ही एक असहाय वृद्ध महिला रहती थी, जो अपने लिए भोजन बनाने में भी असमर्थ थी। सुभाष से उसका दुख देखा नहीं गया और प्रतिदिन स्कूल में वे लंच के लिए अपना जो टिफिन लेकर जाते थे, उसमें से आधा उन्होंने उस वृद्ध महिला को देना शुरू कर दिया। एक दिन उन्होंने देखा कि वह महिला बहुत बीमार है। करीब 10 दिनों तक उन्होंने उस वृद्ध महिला की सेवा कर उसे ठीक कर दिया।
✔️ सुभाष जब कॉलेज जाया करते थे, उन दिनों उनके घर के ही सामने एक वृद्ध भिखारिन रहती थी। पटे-पुराने चिथड़ों में भीख मांगते देख सुभाष का हृदय रोजाना यह सोचकर दहल उठता कि कैसे यह बुढ़िया सर्दी हो या बरसात अथवा तूफन या कड़कती धूप, खुले में बैठकर भीख मांगती है और फिर भी उसे दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। यह सब देखकर उनका हृदय ग्लानि से भर उठता। घर से उनका कॉलेज करीब तीन किलोमीटर दूर था। आखिकार प्रतिदिन बस किराये और जेब खर्च के लिए उन्हें जो भी पैसे मिलते, उन्होंने वो बचाने शुरू कर दिए और पैदल ही कॉलेज जाना शुरू कर दिया। इस प्रकार प्रतिदिन अपनी बचत के पैसे उन्होंने जीवनयापन के लिए उस बूढ़ी भिखारिन को देने शुरू कर दिए।
✔️ भारत की आजादी के संघर्ष में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फैज' के योगदान को सदैव सराहा जाता है लेकिन एक बार उनकी इसी में एक साम्प्रदायिक विवाद ने जन्म ले लिया था। दरअसल मुस्लिम भाईयों का विरोध था कि मैस में सूअर का मांस नहीं बनेगा जबकि 'आजाद हिन्द पौज' के हिन्द साथी गाय का मांस इस्तेमाल करने का प्रखर विरोध कर रहे थे। विकट समस्या यह थी कि दोनों में से कोई भी पक्ष एक-दूसरे की बात मानने या समझने को तैयार नहीं था। विवाद बढ़ने पर जब यह सारा वाकया नेताजी के समक्ष आया तो उन्होंने सारे प्रकरण को गहराई से समझते हुए अगले दिन इस पर अपना फैसला सुनाने को कहा। चूंकि वे फ़ौज के सर्वेसर्वा थे तो स्पष्ट था कि उनका निर्णय ही अंतिम निर्णय होना था। अंततः दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उन्होंने अगले दिन ऐसा निर्णय सुनाया कि हिन्दुओं तथा मुसलमानों के बीच पनपा विवाद स्वतः ही खत्म हो गया। अपने फैसले में उन्होंने कहा कि भविष्य में 'आजाद हिन्द फैज' की मैस में न तो गाय का मांस पकेगा, न ही सूअर का।
✔️ कॉलेज में सुभाष चंद्र बोस का एक दोस्त था, जो बंगाल की ही किसी छोटी जाति से संबंध रखता था। हॉस्टल में रहते हुए उसे एक बार चेचक हो गया। छूत की बीमारी होने के कारण उसके होस्टल के साथी उसे उसके हाल पर अकेला छोड़ गए लेकिन जब सुभाष को यह बात पता चली तो उनसे यह सब देखा नहीं गया। वे उसके पास पहुंचे और स्वयं उसका इलाज शुरू कराया और रोज उसे देखने जाने लगे। जब सुभाष के पिता को यह सब पता चला तो उन्होंने सुभाष को समझाया कि यह छूत की बीमारी है और तुम्हें भी लग सकती है, इसलिए उस लड़के से दूर रहा करो किन्तु सुभाष ने जवाब दिया कि उन्हें पता है कि यह छूत की बीमारी है किन्तु संकट की घड़ी में मित्र ही मित्र के काम आता है और अगर जरूरत पड़ने पर वह अपने निर्धन और बेसहारा मित्र की मदद नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा? बेटे से मित्रता की यह सुंदर परिभाषा सुन उनके पिता बड़े खुश हुए और सुभाष ने अपने दोस्त का चेचक का इलाज पूरा कराकर उसे स्वस्थ कर दिया।
✔️ बात उन दिनों की है, जब बंगाल में भारी बाढ़ आई हुई थी और गांव के गांव बाढ़ के पानी में समा गए थे। समस्त जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। सुभाष तब कॉलेज में पढ़ते थे। उन्होंने अपने कुछ सहपाठियों के साथ मिलकर बाढ़ पीडितों के लिए राहत सामग्री इकट्ठा करने का निश्चय किया और जी-जान से बाढ़ पीड़ितों की मदद में जुट गए।
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