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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर माननीय राष्ट्रपति का संदेश नई दिल्ली : 14 अगस्त, 2016

प्यारे देशवासियो:

1. हमारी स्वतंत्रता की 69वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर मैं देश विदेश में रह रहे अपने सभी बहनों और भाइयों को हार्दिक बधाई देता हूं।
2. अपना 70वां स्वतंत्रता दिवस मनाते हुए, मैं हमारे स्वतंत्रता संग्राम के उन सभी ज्ञात और अज्ञात शूरवीरों को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं जिन्होंने हमें स्वतंत्रता दिलाने के लिए संघर्ष किया, कष्ट उठाया और अपना जीवन न्योछावर कर दिया महात्मा गांधी के ओजस्वी नेतृत्व से अन्तत: 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। 1947 में जब हमने स्वतंत्रता हासिल की, किसी को यह विश्वास नहीं था कि भारत में लोकतंत्र बना रहेगा तथापि सात दशकों के बाद सवा अरब भारतीयों ने अपनी संपूर्ण विविधता के साथ इन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। हमारे संस्थापकों द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र के सशक्त ढांचे ने आंतरिक और बाहरी अनेक जोखिम सहन किए हैं और यह मजबूती से आगे बढ़ा है।
प्यारे देशवासियो:
3. मैं आज पांचवीं बार स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आपसे बात कर रहा हूं। पिछले चार वर्षों के दौरान, मैंने संतोषजनक ढंग से एक दल से दूसरे दल को, एक सरकार से दूसरी सरकार को और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के साथ एक स्थिर और प्रगतिशील लोकतंत्र की पूर्ण सक्रियता को देखा है। राजनीतिक विचार की अलग-अलग धाराओं के बावजूद, मैंने सत्ताधारी दल और विपक्ष को देश के विकास, एकता, अखंडता और सुरक्षा के राष्ट्रीय कार्य को पूरा करने के लिए एक साथ कार्य करते हुए देखा है। संसद के अभी सम्पन्न हुए सत्र में निष्पक्षता और श्रेष्ठ परिचर्चाओं के बीच वस्तु और सेवा कर लागू करने के लिए संविधान संशोधन बिल का पारित होना हमारी लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गौरव करने के लिए पर्याप्त है।
4. इन चार वर्षों में, मैंने कुछ अशांत, विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हुए हमले पथभ्रष्टता है, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। हमारे समाज और शासनतंत्र की सामूहिक समझ ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि ऐसे तत्त्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट के आगे बढ़ती रहेगी।
5. हमारी महिलाओं और बच्चों को दी गई सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है। एक महिला या बच्चे के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है। यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते। 

प्यारे देशवासियो:

6. लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर किए गए कार्य से कहीं अधिक है। स्वतंत्रता के विशाल वृक्ष को लोकतंत्र की संस्थाओं द्वारा निरंतर पोषित करना चाहिए। समूहों और व्यक्तियों द्वारा विभाजनकारी राजनीतिक इरादे वाले व्यवधान, रुकावट और मूर्खतापूर्ण प्रयास से संस्थागत उपहास और संवैधानिक विध्वंस के अलावा कुछ हासिल नहीं होता है। परिचर्चा भंग होने से सार्वजनिक संवाद में त्रुटियां ही बढ़ती हैं।

7. हमारा संविधान न केवल एक राजनीतिक और विधिक दस्तावेज है बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है। मेरे विशिष्ट पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पचास वर्ष पहले स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कहा था, ‘‘हमने एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया है। यह मानककृत विचारशीलता और कार्य के बढ़ते दबावों के समक्ष हमारी व्यैक्तिकता को बनाए रखने में सहायता करेगा.... लोकतांत्रिक सभाएं सामाजिक तनाव को मुक्त करने वाले साधन के रूप में कार्य करती हैं और खतरनाक हालात को रोकती हैं। एक प्रभावी लोकतंत्र में, इसके सदस्यों को विधि और विधिक शक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कोई व्यक्ति, कोई समूह स्वयं विधि प्रदाता नहीं बन सकता।’’

8. संविधान में राष्ट्र के प्रत्येक अंग का कर्तव्य और दायित्व स्पष्ट किया गया है। जहां तक राष्ट्र के प्राधिकरणों और संस्थानों की बात है, इसने ‘मर्यादा’ की प्राचीन भारतीय परंपरा को स्थापित किया है। कार्यकर्ताओं को अपने कर्तव्य निभाने में इस ‘मर्यादा’ का पालन करके संविधान की मूल भावना को कायम रखना चाहिए।
प्यारे देशवासियो :

9. एक अनूठी विशेषता जिसने भारत को एक सूत्र में बांध रखा है, वह एक दूसरे की संस्कृतियों, मूल्यों और आस्थाओं के प्रति सम्मान है। बहुलवाद का मूल तत्त्व हमारी विविधता को सहेजने और अनेकता को महत्त्व देने में निहित है। आपस में जुड़े हुए वर्तमान माहौल में, एक देखभालपूर्ण समाज धर्म और आधुनिक विज्ञान के समन्वय द्वारा विकसित किया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘‘विभिन्न प्रकार के पंथों के बीच सहभावना आवश्यक है, यह देखना होगा कि वे साथ खड़े हों या एकसाथ गिरें, एक ऐसी सहभावना जो परस्पर सम्मान न कि अपमान, सद्भावना की अल्प अभिव्यक्ति को बनाए रखने से पैदा हो।’’

10. यह सच है, जैसा कि 69 वर्ष पहले आज ही के दिन पंडित नेहरू ने एक प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि एक राष्ट्र के इतिहास में, ऐसे क्षण आते हैं जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति प्राप्त होती है। परंतु यह अनुभव करना आवश्यक है कि ऐसे क्षण अनायास ही भाग्य की वजह से न आएं। एक राष्ट्र ऐसे क्षण पैदा कर सकता है और पैदा करने के प्रयास करने चाहिए। हमें अपने सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए भाग्य को अपनी मुट्ठी में करना होगा। सशक्त राजनीतिक इच्छाशक्ति के द्वारा, हमें एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना होगा जो साठ करोड़ युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाए, एक डिजीटल भारत, एक स्टार्ट-अप भारत और एक कुशल भारत का निर्माण करे। हम सैकड़ों स्मार्ट शहरों, नगरों और गांवों वाले भारत का निर्माण कर रहे हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ऐसे मानवीय, हाइटेक और खुशहाल स्थान बनें जो प्रौद्योगिकी प्रेरित हों परंतु साथ-साथ सहृदय समाज के रूप में भी निर्मित हों। हमें अपनी विचारशीलता के वैज्ञानिक तरीके से मेल न खाने वाले सिद्धांतों पर प्रश्न करके एक वैज्ञानिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देना चाहिए और उसे मजबूत करना चाहिए। हमें यथास्थिति को चुनौती देना और अक्षमता और अव्यवस्थित कार्य को अस्वीकार करना सीखना होगा। एक स्पर्द्धात्मक वातावरण में, तात्कालिकता और कुछ अधीरता की भावना आवश्यक गुण होता है।

प्यारे देशवासियो:

11. भारत तभी विकास करेगा, जब समूचा भारत विकास करेगा। पिछड़े लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना होगा। आहत और भटके लोगों को मुख्यधारा में वापस लाना होगा। प्रौद्योगिक उन्नति के इस दौर में, व्यक्तियों का स्थान मशीनें ले रही हैं। इससे बचने का एकमात्र उपाय ज्ञान और कौशल अर्जित करना और नवान्वेषण सीखना है। हमारी जनता की आकांक्षाओं से जुड़े समावेशी नवान्वेषण समाज के बड़े हिस्से को लाभ पहुंचा सकते हैं और हमारी अनेकता को भी सहेज सकते हैं। एक राष्ट्र के रूप में हमें रचनात्मकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना चाहिए। इसमें, हमारे स्कूल और उच्च शिक्षा संस्थानों का एक विशेष दायित्व है।
12. हम अकसर अपने प्राचीन अतीत की उपलब्धियों पर खुशी मनाते हैं, परंतु अपनी सफलताओं से संतुष्ट होकर बैठ जाना सही नहीं होगा। भविष्य की ओर देखना ज्यादा जरूरी है। सहयोग करने, नवान्वेषण करने और विकास के लिए एकजुट होने का समय आ गया है। भारत ने हाल ही में उल्लेखनीय प्रगति की है, पिछले दशक के दौरान प्रतिवर्ष अधिकतर आठ प्रतिशत से ऊपर की विकास दर हासिल की गई है। अंतरराष्ट्रीय अभिकरणों ने विश्व की सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के स्तर को पहचाना है और व्यापार और संचालन के सरल कार्य-निष्पादन के सूचकांकों में पर्याप्त सुधार को मान्यता दी है। हमारे युवा उद्यमियों के स्टार्ट-अप आंदोलन और नवोन्मेषी भावना ने भी अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकृष्ट किया है। हमें अपनी मजबूत विशेषताओं में वृद्धि करनी होगी ताकि यह बढ़त कायम रहे और आगे बढ़ती रहे। इस वर्ष के सामान्य मानसून ने हमें पिछले दो वर्षों, जब कम वर्षा ने कृषि संकट खड़ा कर दिया था, के विपरीत खुश होने का कारण दिया है। यह तथ्य कि दो लगातार सूखे वर्षों के बावजूद भी, मुद्रा-स्फीति 6 प्रतिशत से कम रही और कृषि उत्पादन स्थिर रहा, हमारे देश के लचीलेपन का और इस बात का भी साक्ष्य है कि स्वतंत्रता के बाद हमने कितनी प्रगति की है।
प्यारे देशवासियो:

13. हाल के समय में हमारी विदेश नीति में काफी सक्रियता दिखाई दी है। हमने अफ्रीका और एशिया प्रशांत के पारंपरिक साझीदारों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को पुन: सशक्त किया है। हम सभी देशों, विशेषकर अपने निकटतम विस्तारित पड़ोस के साथ साझे मूल्यों और परस्पर लाभ पर आधारित नए रिश्ते स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं। हम अपनी ‘पड़ोस प्रथम नीति’ से पीछे नहीं हटेंगे। इतिहास, संस्कृति, सभ्यता और भूगोल के घनिष्ठ संबंध दक्षिण एशिया के लोगों को एक साझे भविष्य का निर्माण करने और समृद्धि की ओर मिलकर अग्रसर होने का विशेष अवसर प्रदान करते हैं। इस अवसर को बिना देरी किए हासिल करना होगा। विदेश नीति पर भारत का ध्यान शांत सह-अस्तित्व और इसके आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी और संसाधनों के उपयोग पर केंद्रित होगा। हाल में की गई पहलों ने ऊर्जा सुरक्षा में संवर्धन किया है। खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया है और हमारे प्रमुख विकास कार्यक्रमों को आगे ले जाने में अंतरराष्ट्रीय साझीदारी का सर्जन किया है।
14. विश्व में उन आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है जिनकी जड़ें धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हुई हैं। ये ताकतें धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या के अलावा भौगोलिक सीमाओं को बदलने की धमकी भी दे रही हैं जो विश्व शांति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। ऐसे समूहों की अमानवीय, मूर्खतापूर्ण और बर्बरतापूर्ण कार्यप्रणाली हाल ही में फ्रांस, बेल्जियम, अमरीका, नाइजीरिया, केन्या और हमारे निकट अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में दिखाई दी है। ये ताकतें अब सम्पूर्ण राष्ट्र समूह के प्रति एक खतरा पैदा कर रही हैं। विश्व को बिना शर्त और एक स्वर में इनका मुकाबला करना होगा।
प्यारे देशवासियो:
15. उन सभी चुनौतियों के लिए जो हमारे सामने हैं, मेरा प्राचीन देश के रूप में हमारी जन्मजात और विरासत में मिली क्षमता में पूरा विश्वास है जिसकी मूल भावना तथा जीने और उत्कृष्ट कार्य करने की जिजीविषा का कभी दमन नहीं किया जा सकता। अनेक बाहरी और आंतरिक शक्तियों ने सहस्राब्दियों से भारत की इस मूल भावना को दबाने का प्रयास किया है परंतु हर बार यह अपने सम्मुख प्रत्येक चुनौती को समाप्त, आत्मसात और समाहित करके और अधिक शक्तिशाली और यशस्वी होकर उभरी है।
16. भारत ने अपने विशिष्ट सभ्यतागत योगदान के द्वारा अशांत विश्व को बार-बार शांति और सौहार्द का संदेश दिया है। 1970 में इतिहासकार आर्नोल्ड टॉयनबी ने समकालीन इतिहास में भारत की भूमिका के बारे में कहा था, ‘‘आज, हम विश्व इतिहास के इस संक्रमणकारी युग में जी रहे हैं, परंतु यह पहले ही स्पष्ट होता जा रहा है कि इस पश्चिमी शुरुआत का, यदि इसका अंत मानव जाति के आत्मविनाश से नहीं हो रहा है तो समापन भारतीय होगा।’’ टॉयनबी ने आगे यह भी कहा कि मानव इतिहास के मुकाम पर, मानवता की रक्षा का एकमात्र उपाय भारतीय तरीका है।
प्यारे देशवासियो:
17. मैं इस अवसर पर, हमारे सैन्य बलों, अर्द्धसैन्य और आंतरिक सुरक्षा बलों के उन सदस्यों को विशेष बधाई और धन्यवाद देता हूं जो हमारी मातृभूमि की एकता, अखंडता और सुरक्षा की चौकसी तथा रक्षा इन्हें कायम रखने के लिए अग्रिम सीमाओं पर डटे हुए हैं।
18. अंत में मैं एक बार दोबारा उपनिषद का आह्वान करता हूं जैसा कि मैंने चार वर्ष पूर्व स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संबोधन में किया था। यह भारत माता की तरह सदैव जीवंत रहेगी :

    ‘‘ईश्वर हमारी रक्षा करे
    ईश्वर हमारा पोषण करे
    हम मिलकर उत्साह और ऊर्जा के साथ कार्य करें
    हमारा अध्ययन श्रेष्ठ हो
    हमारे बीच कोई वैमनस्य ना हो
    चारों ओर शांति ही शांति हो।’’
    जय हिंद!

15 August 2016(Monday) के समाचारपत्रों से परीक्षोपयोगी सामग्री

1.राष्ट्रपति ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में दिया सख्त सन्देश : हर संस्थान करे मर्यादा का पालन 

• गोरक्षा के नाम पर दलितों के साथ हिंसा हो या महिलाओं संग दुराचार की घटनाएं, प्रधानमंत्री के बाद राष्ट्रपति भी इनसे सख्ती से निपटना चाहते हैं। 70वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संबोधन में भी ये दो मुद्दे सबसे अहम रहे। ऐसी घटनाओं के प्रति सचेत करते हुए प्रणब ने जहां सख्त कार्रवाई का संदेश दिया वहीं स्पष्ट कर दिया कि किसी भी व्यक्ति या व्यक्ति समूह को अपना कानून चलाने की अनुमति नहीं हो सकती है। 
• अधिकारों को लेकर एक दूसरे से उलझ रहे संस्थानों को भी उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हर कोई ‘मर्यादा’ में रहे। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संबोधन में अक्सर राजनीतिक संदेश देने वाले प्रणब ने इस बार सामाजिक सरोकार को लेकर चिंता जताई। किसी का नाम लिए बगैर उन्होंने गुजरात के ऊना में दलितों संग हुई घटनाओं और बुलंदशहर की हैवानियत पर सवाल उठाया। कहा, ‘गत चार वर्षो में मैंने कुछ अशांत, विघटनकारी व असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते देखा है। 
• कमजोर तबकों पर हो रहे हमलों से सख्ती से निपटने की जरूरत है।’ उन्होंने विश्वास जताया कि ऐसी शक्तियों के खिलाफ कार्रवाई होगी और आगाह किया कि विभाजनकारी राजनीतिक एजेंडा और ध्रुवीकरण की कोशिशें लोकतंत्र को कमजोर करती हैं। 
• इससे हर किसी को सावधान और सतर्क रहना होगा। मालूम हो, पीएम मोदी ने कुछ दिन पहले ऐसे गोरक्षकों को चेतावनी देते हुए राज्य सरकारों से कार्रवाई करने को कहा था। प्रणब ने महिलाओं के ख्रिलाफ बढ़ रही गतिविधियों के प्रति भी सचेत किया और कहा कि महिलाओं व बच्चों के प्रति ¨हसा सभ्य समाज की आत्मा पर घाव है। 
• उन्होंने कहा, ‘यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो कभी सभ्य समाज नहीं कहे जा सकते हैं।’ पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन का हवाला देते हुए प्रणब ने कहा, किसी भी व्यक्ति को अपना कानून चलाने की इजाजत नहीं मिल सकती है। 
• एक दिन पहले ही विश्व हंिदूू परिषद ने केंद्र सरकार की एडवाइजरी भी धता बताते हुए कहा था कि अगर कहीं गोवध होता है तो गोरक्षकों को कार्रवाई करने का हक है। कानून के अनुसार उन्हें सिर्फ पुलिस को इसकी सूचना देनी है। केंद्र सरकार की एडवाइजरी में भी इसका उल्लेख है। 20 मिनट लंबे भाषण में वह जीएसटी विधेयक पारित होने से लेकर आतंकवाद, व देश को आगे बढ़ाने में स्टार्ट अप, स्किल इंडिया जैसी कवायदों की जरूरत पर भी बोले। 
• साथ ही आगाह किया कि अगर समाज में एक दूसरे के प्रति सदभावना की कमी होगी तो सभी समृद्धि बेकार जाएगी। राष्ट्रपति ने सभी संप्रदाय के बीच सहभागिता पर जोर दिया और विश्वास को भी तर्क की कसौटी पर कसने की सलाह दी। उन्होंने अतीत की उपलब्धियों पर खुशी मनाने से यादा भविष्य की ओर देखने का सुझाव दिया। भारत की सक्रिय विदेश नीति पर संतोष जताते हुए ‘पड़ोस प्रथम नीति’ की समर्थन किया। पाकिस्तान व इस्लामिक वल्र्ड में पनप रही कट्टरता के प्रति सचेत भी किया। 
• अंत में उन्होंने भारतीय सोच के महत्व को बताया व इतिहासकार टायनबी का जिक्र किया। कहा, ‘आज हम विश्व इतिहास के संक्रणमकारी युग में जी रहे हैं..यदि इसका अंत मानवजाति के आत्मविश्वास से नहीं हो रहा है तो इसका तरीका भारतीय होगा।’ राष्ट्रपति ने परोक्ष रूप से सभी अंगों को भी संदेश दिया कि संविधान में हर किसी के कर्तव्य और दायित्व स्पष्ट हैं।

2. सरकार के सुझाव को खारिज कर सकता है कॉलेजियम

• उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम न्यायाधीश के पद के लिए किसी की उम्मीदवारी खारिज करने और प्रक्रि या ज्ञापन (एमओपी) के संशोधित मसौदे में आवेदनों का मूल्यांकन करने के लिए छानबीन समिति गठित करने के सरकार के अधिकार समेत कुछ सरकारी प्रस्तावों पर अपनी आपत्ति दोहरा सकता है। 
• एमओपी में उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए दिशानिर्देश होते हैं। इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि भारत के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम को संशोधित मसौदा एमओपी में विवाद वाले उपबंधों को लेकर आपत्तियां हैं जो कानून मंत्रालय ने तीन अगस्त को उसे सौंपा है। इसका अर्थ होगा कि दस्तावेज को अंतिम रूप देने में अभी और समय लगेगा।
• संशोधित मसौदे पर विचार-विमर्श करने के लिए आने वाले दिनों में कॉलेजियम की बैठक हो सकती है। संशोधित मसौदे में सरकार ने दोहराया है कि उसे ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘‘जनहित’ के आधार पर कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए किसी नाम को खारिज करने का अधिकार होना चाहिए।
• मई में कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से इस उपबंध को खारिज करते हुए कहा था कि यह न्यायपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप के समान है। मार्च के शुरुआती मसौदे में सरकार ने कॉलेजियम को खारिज किए गए नाम फिर से भेजने का अधिकार देने से इनकार किया था, वहीं नए मसौदे के अनुसार सरकार कॉलेजियम को उसकी सिफारिश को खारिज करने के कारण के बारे में बताएगी।
• सरकार और न्यायपालिका द्वारा एमओपी को अंतिम रूप दिए जाने की कोशिशों के बीच उच्चतम न्यायालय ने शुक्र वार को कहा कि न्याय प्रदान करने की व्यवस्था का पतन हो रहा है। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के कॉलेजियम के फैसले को लागू नहीं करने को लेकर केंद्र से नाराजगी प्रकट की थी। 
• शीर्ष अदालत ने दो दिन पहले इस संबंध में कहा था कि वह गतिरोध को बर्दाश्त नहीं करेगी और उसे जवाबदेह बनाने के लिए हस्तक्षेप करेगी।प्रधान न्यायाधीश ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, हम न्यायाधीशों की नियुक्ति में गतिरोध को बर्दाश्त नहीं करेंगे जिससे न्यायिक कामकाज बाधित हो रहा है। हम जवाबदेही पर जोर देंगे।
• सीजेआई ठाकुर ने उम्मीदवारों के आवेदनों का मूल्यांकन करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की समिति बनाने के सरकार के कदम को खारिज कर दिया था।

3. अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में पाक को खानी पड़ रही मुंह की

• कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश में लगे पाकिस्तान को हर तरफ से मुंह की खानी पड़ रही है। कभी कश्मीर के मुद्दे पर यूरोपीय देशों के अलावा संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका से भी समर्थन हासिल करने वाला पाकिस्तान इस मुद्दे पर अलग-थलग है। अब कश्मीर पर न तो यूरोपीय संघ के संसद में और न ही ब्रिटिश संसद में कोई प्रस्ताव पारित होता है। 
• संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और अमेरिका ने भी पाकिस्तान को सांकेतिक तौर पर बता दिया है कश्मीर में जब तक उसकी मदद से चल रही हिंसा समाप्त नहीं होगी तब तक कश्मीर समस्या का हल नहीं निकल सकता। जानकारों के मुताबिक कश्मीर पर पाकिस्तान की दोहरी रणनीति को दुनिया के सामने लाने में भारत की कूटनीति के साथ आतंक को एक सरकारी नीति के तहत बढ़ावा देने की पाक की आदत भी है। 
• दुनियाभर की अधिकांश आतंकी घटनाओं के तार जिस तरह से पाकिस्तान की धरती से जुड़े हुए पाए गए हैं उसे देखते हुए फिलहाल कोई भी देश कश्मीर पर उसकी बयानबाजी को गंभीरता से नहीं ले रहा है। पिछले दिनों एक पाकिस्तानी समाचारपत्र के प्रतिनिधि ने जब अमेरिकी विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता से कश्मीर में जारी हिंसा और ‘भारतीय क्रूरता’ के बारे में सवाल पूछा तो प्रवक्ता ने जवाब दिया कि यह मुद्दा दोनों देशों को ही हल करना होगा। 
• बाद में अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने यह भी नसीहत दे दी कि पाकिस्तान को न सिर्फ अपने घर में परेशानी पैदा करने वाले आतंकियों पर नकेल कसनी होगी बल्कि पड़ोसी देशों के लिए मुसीबत बनने वाले आतंकियों को भी काबू में करना होगा। इसी तरह से यूएन में बार-बार कश्मीर मुद्दा उठाने के बावजूद उसकी बात का असर पड़ता नहीं दिख रहा है। 
• यूएन के महासचिव बान की मून ने कश्मीर पर सभी पक्षों को एहतियात बरतने की सलाह दी है। हालांकि पाकिस्तान की तरफ से लगातार बान की मून पर बयान देने का दबाव बनाया जा रहा है। पाकिस्तान की मीडिया ने यहां तक लिखा है कि यूएन महासचिव ने कश्मीर पर मुंह नहीं खोलने की कसम खा ली है। पाकिस्तान को अपने पुराने हितैषी तुर्की का साथ जरूर मिला है। 
• पाकिस्तान ने इस्लामिक देशों के संगठन (ओआइसी) से विशेष दल कश्मीर भेजने का आग्रह किया है। यही नहीं कभी यूरोपीय संघ के संसद और ब्रिटिश संसद में भी कश्मीर को लेकर पाकिस्तान नजरिये को जगह मिलती थी, वह अब पूरी तरह से बंद है। 
• कश्मीर पर ब्रिटिश संसद में अंतिम बहस सितंबर, 2014 में हुई थी जिसमें भाग लेने वाले 18 सांसदों में से सिर्फ तीन ने पाकिस्तान के नजरिये का समर्थन किया था। कभी यूरोपीय संघ का संसद भी कश्मीर में जारी ¨हसा को आतंकी घटना नहीं मानता था लेकिन अब उसके नजरिये में बदलाव आ रहा है। जिस तरह से पिछले दो वर्षो के भीतर यूरोपीय संघ के विभिन्न सदस्य देशों में आतंकी घटनाएं हुई है उसे इस बदलाव के पीछे अहम वजह माना जा रहा है। 
• बहरहाल, नए माहौल और कश्मीर में आग को नए सिरे से भड़काने की पाकिस्तान की कोशिशों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करने में भारत नए सिरे से जुटेगा।

=>"15 अगस्त को ही आजाद हुए पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त कैसे हो गया?
प्रश्न :- इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट के मुताबिक भारत और पाकिस्तान एक ही दिन आजाद हुए थे. तो फिर पाकिस्तान अपनी आजादी का जश्न 14 अगस्त को कैसे मनाने लगा?

- मर्डर ऑफ हिस्ट्री नाम की अपनी किताब में जाने-माने पाकिस्तानी इतिहासकार केके अजीज लिखते हैं, ‘आम धारणा यही है और आजादी के आधिकारिक समारोहों ने इसे मजबूत ही किया है कि पाकिस्तान 14 अगस्त को आजाद हुआ. लेकिन यह सच नहीं है. जो इंडियन इंडिपेंडेंस बिल चार जुलाई को ब्रिटिश संसद में पेश हुआ था और जिसने 15 जुलाई को कानून की शक्ल ली थी, उसमें कहा गया था कि 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को भारत का बंटवारा होगा जिससे भारत और पाकिस्तान नाम के दो नए देश वजूद में आ जाएंगे.’

- खुद मुहम्मद अली जिन्ना ने देश के नाम यह संदेश जारी किया था, ‘ढेर सारी खुशियों के साथ मैं आपको बधाइयां देता हूं. 15 अगस्त स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र पाकिस्तान का जन्मदिन है.’

- ‘इन दो नए देशों को सत्ता का हस्तांतरण अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को करना था जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के एकमात्र प्रतिनिधि थे. लेकिन माउंटबेटन एक ही वक्त पर नई दिल्ली और कराची में मौजूद नहीं हो सकते थे. न ही ऐसा हो सकता था कि वे 15 अगस्त को पहले भारत को सत्ता का हस्तांतरण करें और फिर कराची जाएं क्योंकि भारत को सत्ता हस्तातंरित करते ही कानून के मुताबिक उनकी भूमिका भारत के गवर्नर जनरल की हो जानी थी.

- इसलिए व्यावहारिक रास्ता यही था कि वे वायसराय रहते हुए 14 अगस्त को ही पाकिस्तान को सत्ता हस्तांतरित कर दें और भारत के लिए यह काम अगले दिन हो. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान को अपनी आजादी 14 अगस्त को मिली क्योंकि इंडियन इंडिपेडेंस एक्ट में यह तारीख 15 अगस्त ही थी.’

- पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी मुहम्मद अली ने भी अपनी किताब द इमरजेंस ऑफ पाकिस्तान में इस बात की पुष्टि की है. उनके मुताबिक 15 अगस्त 1947 को रमजान का आखिरी जुमा था जो इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से सबसे मुबारक दिनों में से एक है. मुहम्मद अली लिखते हैं कि इस मुबारक दिन पर कायदे आजम पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने, कैबिनेट ने शपथ ली, चांद सितारे वाला झंडा फहराया गया और दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान वजूद में आया.

- खुद कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग सर्विस की शुरुआत करते हुए देश के नाम यह संदेश जारी किया था, ‘ढेर सारी खुशियों के साथ मैं आपको बधाइयां देता हूं. 15 अगस्त स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र पाकिस्तान का जन्मदिन है.’ 1948 में पाकिस्तान ने जो पहला डाक टिकट जारी किया उसमें आजादी की तारीख 15 अगस्त 1947 ही दर्ज है.

- लेकिन आज रेडियो पाकिस्तान 15 अगस्त की बधाई वाला जिन्ना का संदेश 14 अगस्त को प्रसारित करता है. दरअसल 1948 में जश्ने आजादी की इस तारीख को 14 अगस्त कर दिया गया था. ऐसा क्यों हुआ इसकी पड़ताल करने पर अलग-अलग बातें सामने आती हैं. 

- कई रिपोर्टों में कहा गया है कि उस साल 14 अगस्त को रमजान का 27वां दिन यानी शब-ए-कद्र पड़ रहा था. मान्यता है कि इसी रात धार्मिक ग्रंथ कुरआन मुकम्मल हुआ था. इसके बाद पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को ही मनाया जाने लगा. यह भी कहा जाता है कि 14 अगस्त को वायसराय के सत्ता हस्तांतरित करने के बाद ही कराची में पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया गया था और इसलिए बाद में पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की तारीख 14 अगस्त ही कर दी गई.

- हालांकि भारत और पाकिस्तान में एक वर्ग है जिसका मानना है कि पाकिस्तान ने अपने स्वतंत्रता दिवस की तारीख 14 अगस्त इसलिए की कि उसे भारत से अलग दिखना था. कुछ तो इसके तार राष्ट्रवाद से जोड़ते हुए यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान के कर्ता-धर्ता यह दिखाना चाहते थे कि उनका देश भारत से एक दिन पहले आजाद हुआ है. 
- ‘इससे क्या फर्क पड़ता है कि पाकिस्तान कौन से दिन आजाद हुए. अहम बात यह है कि आजादी के बाद से अब तक पाक ने क्या हासिल किया है.

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