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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

जब चीन के तानाशाह माओ ने गौरैया के सर्वनाश का आदेश जारी किया 📚

गौरैया को हम बचपन से जानते है लेकिन अफसोस कि गौरैया आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती हुई नजर आ रही हैं। इंसानों ने घर तो बड़े-बड़े बना लिए हैं, पर दिल उनके छोटे ही रह गए। इतनेे छोटे रह गए कि उनमें नन्हीं-सी गौरैया भी नहीं आ पा रही। आज 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस है। पहली बार वर्ष 2010 में विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था।

यह दिवस ख़ास तौर पर इसलिए मनाया जाता है ताकि गायब होती गौरैया और पक्षियों को बचाया जा सके। पहली बार संरक्षण के लिए विशेष प्रयास और जागरूकता अभियान चलाए गए थे, पर अफसोस कि वर्तमान में वे सब ठप्प पड़े हैं।

विश्व भर में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 5 भारत में देखने को मिलती हैं। पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले कुछ सालों में गौरैया की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है। यूरोप में गौरैया संरक्षण-चिंता के विषय वाली प्रजाति बन चुकी है और ब्रिटेन में यह रेड लिस्ट में शामिल हो चुकी है।

भारत में भी लगातार इनकी संख्या घटती जा रही है। अगर हमने इसकी घटती संख्या को गंभीरता से नहीं लिया, तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा- हमेशा के लिए हमसे दूर चली जाएगी।

गौरैया के इस तरह गायब हो जाने का कारण है कि लोगों ने व्यापारिक लाभ, ईंधन और घर बनाने के लिए अंधाधुंध पेड़ों की कटाई शुरूकर दी है। कभी हमारे घर के आंगन में तो कभी मुंडेर पर फुदकती गौरैया भोर के वक्त लोगों की नींद अपनी चहचहाहट से खोला करती थी, मानो अब वो गायब सी हो चुकी है। क्योंकि उनकी वो आवाज अब कहीं गुम सी हो गई है।

पहले गांव के खेत खलिहानों में गौरैया की चहचाहाट की गूंज सुनाई पड़ती थी। लेकिन वो अब वो गुम हो गई है। गौरैया के इस तरह गायब होते जाने के कारणों की पड़ताल की जाए तो मनुष्यों की आधुनिक जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति उदासीनता इसका सबसे बड़ा कारण नजर आती है।

अंधाधुंध कटते पेड़ और आधुनिक बनावट वाले मकानों को चलते गौरैया को अब घोंसले बनाने की जगह ही नहीं मिलती। मनुष्य इतना स्वार्थी हो चुका है कि यदि कहीं जगह भी मिलती है, तो उसे घोंसला बनाने नहीं देते।

घर या बहार थोड़ी-सी गंदगी फैलने के डर से उसके द्वारा मेहनत से जुटाया गया तिनके-तिनके का घर पल भर में उजाड़ देते हैं। कभी- कभी तो उन घोंसलो में जन्म लेने को आतुर बच्चे भी बाहर बिल्ली, कौए, चील, बाज जैसे परभक्षियों का शिकार बनते हैं।

जब चीन के तानाशाह माओ ने गौरैया के सर्वनाश का आदेश जारी किया

गौरेया से संबंधित एक वाक्या साझा करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के शिक्षक अनिरुद्ध सूबेदार बताते है कि 1958 के समय कम्युनिस्ट चीन के तानाशाह माओ त्से तुंग ने एक अभियान प्रारम्भ किया था। जिसे "The Four Pests Campaign" के नाम से जाना जाता है।

इस स्वच्छता अभियान के अंतर्गत चूहे, मच्छर, मक्खियाँ और गौरैया के सर्वनाश का आदेश जारी किया गया। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि गौरैया पर आरोप तय किया गया था कि वह अत्यधिक फसल खा जाती है, उसे 'पूंजीवादी' और 'जनता का शत्रु' घोषित किया गया था।

उसके बाद देश भर में गौरैया को मारने की होड़ लग गयी, जो जितनी अधिक मृत गौरैया मारकर लाता उसे उतना प्रोत्साहन पुरस्कार दिया जाता। गौरैया को मारने का तरीका जितना विचित्र था उतना ही क्रूर भी था। सैकड़ों चीनी ढोल बजाते, थालियां-बर्तन पीटते, पेड़ों के आसपास खड़े हो जाते, संवेदनशील चिड़िया आतंकित होकर आराम करने बैठ भी नहीं पाती और तक कर गिर मर जाती।

जब गौरैयों ने पोलैंड के दूतावास में शरण ली

एक घटना इस संबंध में सुनाई जाती है जब कोई सुरक्षित स्थान न पाकर कई गौरैयों ने पोलैंड के दूतावास में शरण ली, तब वहां के अधिकारियों ने चीनी लोगों को अंदर आने की अनुमति नहीं दी। दो दिन तक चीनी बाहर ढोल पीटते रहे, दो दिन पश्चात दूतावास के लोगों को फावड़े से मृत गौरैयों को बाहर निकालना पड़ा।

इस मूर्खता का अंत तब हुआ जब 2 वर्ष पश्चात समझ आया कि गौरैया मात्र फसल नहीं उसपर लगने वाले कीड़े/इल्लियां भी खाती थी। गौरैय्या के जाने से फसल को खाने वाले कीड़ों की संख्या भयंकर रूप से बढ़ गयी, उत्पादन पहले से भी कम हो गया।

तब कहीं गौरैयों को इस जनता के शत्रु की सूची से हटाया गया। परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। चीन में उस समय आये भयंकर अकाल में यह भी एक कारण था। ऐसा भी कहते हैं कि चीन को सोवियत रूस से गौरैयों आयातित करनी पड़ीं।

भारत में कहां- कहां है खतरा

भारत के बहुत-से हिस्सों में गौरैया की स्थिति बहुत चिंताजनक है। जैसे दिल्ली,उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बैंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और दूसरे शहरों में है।

मानो यहां पर वे दिखाई देना बंद-सी हो गई हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि इनकी संख्या केरल, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में इसमें 20 % तक कम हुई है और आंध्र प्रदेश में 80 % तक की कमी देखी गई है। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में यह गिरावट निश्चित रूप से 70 से 80 % तक दर्ज की गई है।

गौरैया को क्यों बचाएं?

गौरैया को बचने के लिए हमारा प्रयास सिर्फ इंसानियत की वजह से नहीं है बल्कि गौरैया का विलुप्त होना इस बात का संकेत है कि हमारे आसपास के पर्यावरण में कोई भारी गड़बड़ चल रही है, जिसका खामियाजा हमें आज नहीं तो कल भुगतना ही पड़ेगा। क्योंकि प्रकृति की सभी रचनाएं कहीं न कहीं से किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष एक-दूसरे पर निर्भर हैं और हम भी उनमें शामिल हैं।

गौरैया को इसलिए भी बचाना चाहिए क्योंकि पारिस्थितिक तंत्र के एक हिस्से के रूप में हमारे पर्यावरण को बेहतर बनाने में अपना योगदान देती है। चूंकि गौरैया अपने बच्चों को अल्फा और कटवर्म नामक कीड़े खिलाती है, जो फसलों के लिए हानिकारक होते हैं। गौरैया मुख्यतः बाजरा, धान, काकून, पके चावल के दाने और कीड़े खाती है।

गौरैया को कैसे बचाएं?

गौरैया को अंग्रेजी में ‘हाउस स्पैरो’ यानी घर में रहने वाली चिड़िया कहते है। गौरैया को हमसे बस थोड़ा-सा प्यार और थोड़ी-सी फिक्र चाहिए, और उसको रहने के लिए हमारे घर में और हमारे दिल में थोड़ी-सी जगह चाहिए वह तो दे ही सकते है।

गौरैया सिर्फ घरों में ही नहीं छोटे पेड़ों और झाड़ियों में भी घोंसला बनाती है। घरों में लगे घोंसलों को उजाड़े नहीं और छोटे पेड़ों और झाड़ियों को भी काटें-छांटें नहीं। गौरैया अक्सर बबूल, कनेर, नींबू, अमरूद,बांस आदि छोटे पेड़ों को पसंद करती है।

इन्हें अब कोई लगाना नहीं चाहता, कोशिश यह करें कि इन छोटे पेड़ों को लगाएं। मोबाइल फ़ोन के टावर भी गौरैया समेत दूसरे पक्षियों के लिए बड़ा ख़तरा बने हुए हैं। इनसे निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालती हैं।

इससे निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणों की फ्रिक्वेंसी को कम किया जाए। इसके अलावा उनके दाना-पानी की भी समस्या है, गर्मियों के दिनों में दाना-पानी की समस्या रहती है, न जाने कितनी गौरैया भूख- प्यास से मर जाती हैं इसलिए इनके लिए दाने- पानी को इंतजाम अवश्य करें।

पूरे विश्व में हर वर्ष 20 मार्च को गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। गौरैया के जीवन संकट को देखते हुए हमारी छोटी-सी कोशिश गौरैया को जीवनदान दे सकती है। गौरैया के लिए नमक हानिकारक होता है इसलिए नमक वाला खाना नहीं डालना चाहिए!

आप पास कोई जानकारी हो अवश्य दें।

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