संदर्भ:
आर्थिक मामलों के सचिव के अनुसार, देश में बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य में सुधार करने हेतु सरकार ‘बैड बैंक’ (Bad Bank) की स्थापना सहित अन्य सभी विकल्पों की तलाश कर रही है।
⏰आवश्यकता:
वर्तमान परिस्थितियों में, जब गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) में अत्यधिक वृद्धि होने की सम्भावना है और इनके अधिकाँश समाधान ‘दिवाला एवं दिवालियापन संहिता’ (IBC) तंत्र से बाहर ही करने होंगे। ऐसे में सरकार का यह कदम न केवल आवश्यक है, बल्कि अपरिहार्य भी है।
✅बैड बैंक की अवधारणा:
👉बैड बैंक, दूसरे वित्तीय संस्थानों के खराब ऋण और अन्य अवैध परिसंपत्तियों को खरीदने के लिए स्थापित किया जाने वाला बैंक होता है।
👉बड़ी मात्रा में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां रखने वाली संस्थाओं द्वारा इन परिसंपत्तियों को बाजार मूल्य पर बैड बैंक को बेंचा जाएगा।
👉इस तरह की परिसंपत्तियों को बैड बैंक में स्थानांतरित करने से, मूल संस्थाओं द्वारा अपनी बैलेंस शीट को सही किया जा सकता है – हालांकि इन्हें परिसंपत्तियों के अनुमानित मूल्य में कटौती करना होगा।
⏰ख़राब ऋणों के बारे में चिंता का विषय:
भारतीय बैंकों के ख़राब ऋणों का ढेर अर्थव्यवस्था पर एक बहुत बड़ा दबाव है।
यह बैंकों के मुनाफे को हानि पहुंचाता है। क्योंकि मुनाफा खत्म हो जाने से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB), जिनमे ख़राब ऋणों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, विकास दर में वृद्धि हेतु पर्याप्त पूंजी नहीं जुटा पाते हैं।
क्रेडिट वृद्धि का अभाव में, अर्थव्यवस्था के 8% विकास दर प्राप्त करने के मार्ग में बाधक बनता है। अतः, ख़राब ऋणों की समस्या का प्रभावी समाधान शीघ्र किए जाने की आवश्यकता है।
✅बैड बैंक से लाभ:
इससे बैंकों या वित्तीय संस्थाओं को बैड लोन ट्रांसफर करके अपनी बैलेंस शीट सही करने में मदद मिलती है और ये मूल व्यवसायिक ऋण गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
बड़े देनदारों के पास कई लेनदार होते हैं। चूंकि, इस उपाय से ऋण एक ही संस्था में केंद्रीकृत हो जाएंगे जिससे बैड बैंक समन्वय की समस्या को हल कर सकते हैं।
विभिन्न बैंकों को अलग करके, बैड बैंक कर्जदारों के साथ तेजी से समझौता कर सकता है।
यह ऋणकर्ताओं के साथ बेहतर सौदेबाजी कर सकता है और उनके खिलाफ अधिक कठोर प्रवर्तन कार्रवाई कर सकते हैं।
केवल सरकार ओर देखने के बजाय बैड बैंक खुद ही संस्थागत निवेशकों से पैसा जुटा सकते हैं।
⚠️बैड बैंक से संबधित चिंताएं:
उदाहरण के लिए मान लीजिए, कोई बैंक अपने ख़राब ऋणों की बिक्री करता है। तब इसे कुछ केश कर्तन करना पड़ता है, क्योंकि जब 100 रुपये खराब होते हैं, तब वास्तविक राशि में 100 रुपये से कम होने का अनुमान होता है। ऐसी स्थिति में बैंक की लाभ और हानि (P&L) प्रभावित होती है।
इसलिए, जब तक कि इस विशेष पहलू का समाधान नहीं किया जाता है, तब तक एक नई संरचना का निर्माण, समस्या को हल करने में पूर्णतयः सक्षम नहीं होगा।
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