परिचय : व्याकरणाचार्य - किशोरीदास वाजपेयी

✍किशोरीदास वाजपेयी हिन्दी और संस्कृत के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं व्याकरणाचार्य थे। 

✍संस्कृत और हिन्दी के विद्वान, व्याकरण के पंडित, हिन्दी के आधुनिक पाणिनी की तरह जिन्हें डॉ. रामविलास शर्मा, राहुल सांकृत्यायन आदि मानते थे, वे स्वतंत्र वृत्ति से कनखल में अत्यन्त आर्थिक कष्ट में जीवनयापन करते रहे। 

✍कुछ समय के लिए उन्होंने शिक्षक का कार्य किया, और नागरी प्रचारिणी सभा के कोश विभाग में भी रहे। वे स्वाभिमानी और अक्खड़ स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे। 

✍1978 में मोरारजी देसाई ने मंच से नीचे उतरकर उत्तर प्रदेशका सम्मान उन्हें दिया। 

✍किशोरीदास वाजपेयी को हिन्दी का प्रथम वैज्ञानिक भी कहा जाता है।

✍आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का जन्म सन्‌ 1898 में रामनगर, कानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। 

✍इन्होंने लाहौर से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की थी। 

✍आचार्य वाजपेयी के जीवन पर आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के कृपापूर्ण प्रोत्साहन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। 

✍कुछ सहृदय एवं मूल्यांकन करने वाले विद्वानों में उन्हें 'हिन्दी का पाणिनि' तक घोषित किया है।

✍ महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने कह-कहकर उनसे 'हिंदी शब्दानुशासन' लिखवा लिया। 

✍वाजपेयी जी ने 'सुदामा' नाम से नाटक भी लिखा। 'तरंगिणी' नामक संग्रह में उनकी ब्रज-कविताएं और दोहे संकलित हैं। 

✍वाजपेयी जी ने 'ब्रजभाषा व्याकरण' नामक एक उत्तम ग्रंथ भी लिखा था। इसमें केवल व्याकरण ही नहीं, ब्रजभाषा के उद्भव, विकास और उसके स्वरूप का भी गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। 

✍उन्होंने कुछ समसामयिक विषयों पर भी पुस्तकें लिखी हैं। जैसे 'कांग्रेस का इतिहास' और 'नेताजी सुभाषचंद्र बोस'। एक अन्य पुस्तक में उन्होंने अपने साहित्यिक संस्मरण भी लिखे। 

✍'हिन्दी शब्दानुशासन' तो उनके जीवन का मुख्य ग्रंथ है ही। 

✍इसके अतिरिक्त इसी विषय पर उनकी एक और कृति 'राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण' भी है। 

✍वाजपेयी जी के भाषा-शास्त्रीय स्वरूप को जानने के लिए उनकी अन्य पुस्तक 'भारत का भाषा-विज्ञान' का अध्ययन भी आज की पीढ़ी के लिए कम महत्त्व का नहीं। 

0 comments:

Post a Comment

We love hearing from our Readers! Please keep comments respectful and on-topic.