किसी का जाना हमे दुख देता है , महापुरुष का जाना और भी अधिक लेकिन उनके कष्टदायक जीवन से मृत्यु सुखद है , अस्वस्थ जीवन से चिरनिद्रा मे लीन श्रद्धेय भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
ठन गई!
जब मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
कहते हैं कि जीते जी व्यक्ति के वैभव और जाने के बाद व्यवहार की चर्चा होती है। परंतु वाजपेयी जी ने अपने स्वभाव व सिद्धांत से ऐसी आभामण्डल निर्मित की कि उनके बड़े बड़े पद भी पार्श्व में चले गए। आडवाणी जी के साथ आप भाजपा के स्तम्भ थे। आप ही 1980 में निर्मित भाजपा के पहले अध्यक्ष थे। आप तीन बार प्रधानमंत्री बने। 2004 में भाजपा का सत्ता में वापस न आना भारतीय राजनीति का एक आश्चर्य माना जाता है, ऐसी थी आपकी क्षमता व लोगों का विश्वास।
ठन गई!
जब मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
कहते हैं कि जीते जी व्यक्ति के वैभव और जाने के बाद व्यवहार की चर्चा होती है। परंतु वाजपेयी जी ने अपने स्वभाव व सिद्धांत से ऐसी आभामण्डल निर्मित की कि उनके बड़े बड़े पद भी पार्श्व में चले गए। आडवाणी जी के साथ आप भाजपा के स्तम्भ थे। आप ही 1980 में निर्मित भाजपा के पहले अध्यक्ष थे। आप तीन बार प्रधानमंत्री बने। 2004 में भाजपा का सत्ता में वापस न आना भारतीय राजनीति का एक आश्चर्य माना जाता है, ऐसी थी आपकी क्षमता व लोगों का विश्वास।
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