शब्द और शब्द - भंडार
एक या अनेक वर्णों से बानी स्वतंत्र और सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं। जैसे-
एक वर्ण - आ (सारी हिंदी भाषा में एक वर्ण वाला 'आ' ही एकमात्र शब्द है।
अनेक वर्ण - राम, छाता, हवा, घर, कमल, जाएगा इत्यादि।
साधारणतः शब्द (ध्वनि - समूह ) दो प्रकार का हो सकता है - सार्थक और निरर्थक
सार्थक - वे शब्द हैं, जिनसे किसी निश्चित अर्थ का बोध हो। जैसे - लोटा। इस शब्द से पीतल आदि किसी धातु के बने एक विशेष बर्तन का बोध होता है। इसी प्रकार पुस्तक, घर, आदि शब्द भी सार्थक हैं।
निरर्थक - जिस शब्द (ध्वनि) से किसी खास अर्थ का बोध न हो। जैसे चैं-चैं, टल्ल, कल्ल।
व्याकरण में केवल सार्थक शब्दों का ही निरूपण तथा विवेचन किया जाता है।
शब्दांश - भाषा में कुछ शब्द समूह ऐसे होते हैं, जिनका अपना कुछ अर्थ नहीं होता अर्थात् उनका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता; परन्तु जब वे किसी दूसरे शब्द के साथ जुड़ जाते हैं, तब वे सार्थक हो जाते हैं। ऐसी स्वतंत्र ध्वनियों को शब्दांश कहते हैं। इसके चार भेद हैं -
कारक - ने, को, का, में, से, के लिए, पर इत्यादि।
क्रिया - ता, ती, एगा, एगी, ती है, ता, था इत्यादि।
उपसर्ग - प्र, परा, अप इत्यादि।
प्रत्यय - ता, पन, त्व इत्यादि।
पद - सभी शब्द तथा धातु अपने मूल रूप में 'शब्द' तथा 'धातु' कहलाते हैं। परन्तु शब्दों के साथ जब करक चिन्ह लग जाते हैं, तो वे 'पद' कहलाते हैं। जैसे - शब्द-लड़का, पद- लड़के ने, लड़के की, लड़के में इत्यादि।
इसी प्रकार धातु के साथ जब क्रिया प्रत्यय लग जाते हैं, तो वे 'पद' कहलाते हैं। जैसे - धातु-'जा', पद- जाता है, जाता था, जाएगा इत्यादि।
शब्द का महत्व - भाषायी अभिव्यक्ति का मूल रूप आधार शब्द होते हैं। शब्द ही बातचीत या कथ्य में आने वाले व्यक्तियों, प्राणियों, वस्तुओं, गुणों, क्रियाओ, भावनाओं, विचारों, आदि को प्रकट करते हैं। कभी कभी उपयुक्त शब्द न मिल पाने के कारण हम अपने मंतव्य को व्यक्त करने में असफल रहते हैं। इस प्रकार किसी भी भाषा में शब्द का अत्यधिक महत्त्व होता है।
अनेक वर्ण - राम, छाता, हवा, घर, कमल, जाएगा इत्यादि।
साधारणतः शब्द (ध्वनि - समूह ) दो प्रकार का हो सकता है - सार्थक और निरर्थक
सार्थक - वे शब्द हैं, जिनसे किसी निश्चित अर्थ का बोध हो। जैसे - लोटा। इस शब्द से पीतल आदि किसी धातु के बने एक विशेष बर्तन का बोध होता है। इसी प्रकार पुस्तक, घर, आदि शब्द भी सार्थक हैं।
निरर्थक - जिस शब्द (ध्वनि) से किसी खास अर्थ का बोध न हो। जैसे चैं-चैं, टल्ल, कल्ल।
व्याकरण में केवल सार्थक शब्दों का ही निरूपण तथा विवेचन किया जाता है।
शब्दांश - भाषा में कुछ शब्द समूह ऐसे होते हैं, जिनका अपना कुछ अर्थ नहीं होता अर्थात् उनका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता; परन्तु जब वे किसी दूसरे शब्द के साथ जुड़ जाते हैं, तब वे सार्थक हो जाते हैं। ऐसी स्वतंत्र ध्वनियों को शब्दांश कहते हैं। इसके चार भेद हैं -
कारक - ने, को, का, में, से, के लिए, पर इत्यादि।
क्रिया - ता, ती, एगा, एगी, ती है, ता, था इत्यादि।
उपसर्ग - प्र, परा, अप इत्यादि।
प्रत्यय - ता, पन, त्व इत्यादि।
पद - सभी शब्द तथा धातु अपने मूल रूप में 'शब्द' तथा 'धातु' कहलाते हैं। परन्तु शब्दों के साथ जब करक चिन्ह लग जाते हैं, तो वे 'पद' कहलाते हैं। जैसे - शब्द-लड़का, पद- लड़के ने, लड़के की, लड़के में इत्यादि।
इसी प्रकार धातु के साथ जब क्रिया प्रत्यय लग जाते हैं, तो वे 'पद' कहलाते हैं। जैसे - धातु-'जा', पद- जाता है, जाता था, जाएगा इत्यादि।
शब्द का महत्व - भाषायी अभिव्यक्ति का मूल रूप आधार शब्द होते हैं। शब्द ही बातचीत या कथ्य में आने वाले व्यक्तियों, प्राणियों, वस्तुओं, गुणों, क्रियाओ, भावनाओं, विचारों, आदि को प्रकट करते हैं। कभी कभी उपयुक्त शब्द न मिल पाने के कारण हम अपने मंतव्य को व्यक्त करने में असफल रहते हैं। इस प्रकार किसी भी भाषा में शब्द का अत्यधिक महत्त्व होता है।
शब्द-भण्डार
किसी भाषा में प्रयोग हो रहे या हो सकने वाले शब्दों के समूह को उस भाषा का शब्द भंडार कहते हैं।
सामान्य रूप से किसी भी भाषा के शब्द भण्डार की सही-सही गणना करना कठिन है क्योंकि अनवरत रूप से प्रयोग में न आने के कारण कुछ शब्द हट जाते हैं और सभ्यता के विकास के साथ - साथ नये - नये सम्मिलित हो जाते हैं।
शब्द और शब्दावली का वर्गीकरण
शब्द और शब्दावली का वर्गकरण निम्नलखित दृष्टि से किया जाता है -
(1)अर्थ की दृष्टि से
(2)प्रयोग की दृष्टि से
(3)इतिहास या स्रोत की दृष्टि से
1. अर्थ की दृष्टि से वर्गीकरण
शब्दों के अर्थ सदा एक समान नहीं रहते हैं। इस कारण अर्थ के आधार पर शब्दों के चार भेद होते हैं -
(1) एकार्थी
(2) अनेकार्थी
(3) पर्यायवाची या समानार्थी
(4) विलोम या विपरीतार्थी
1. एकार्थी - एकार्थी शब्द वे शब्द हैं जिनका एक ही अर्थ होता है। व्यक्ति वाचक संज्ञा शब्द इसी श्रेणी के शब्द होते हैं; जैसे - सरदार पटेल,मोतीलाल नेहरू, गंगा, सोमवार, दिसंबर, हिन्दी (भाषा), ईमानदार, श्रद्धा, अहंकार, ईश्वर, सत्य आदि।
2. अनेकार्थी - अनेकार्थी शब्द वे शब्द हैं जिनके एक से अधिक अर्थ होते हैं। जैसे -'अलि' शब्द के तीन अर्थ हैं -(१)भौंरा (२)सखी (३) कोयल
अनेकार्थी शब्दों के अन्य उदहारण-
कल - आगामी, अगला दिन,अतीत पिछला दिवस, मधुर ध्वनि
कर - हाथ, टैक्स, हाथी की सूँड
अम्बर - आकाश, वस्त्र, कपास
गुरु - शिक्षक, बड़ा, भरी, चालक
घन - बादल , घटा, हथौड़ा, अधिक बड़ा
अनंत - आकाश, ईश्वर, विष्णु, शेषनाग
अण्डा - कमल, शंख, कपूर, चन्द्रमा
अनेकार्थी शब्दों का भेद
अनेकार्थी शब्दों का एक भेद है - समरूपी शब्द।
समरूपी शब्द - समरूपी शब्द उसे कहते हैं जो स्रोतानुसार (तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी) वास्तव में भिन्न -भिन्न हैं किन्तु एक रूप होने के कारण एक शब्द कहलाते हैं और उनके अर्थ अलग अलग होते हैं, जैसे-
बस = बस (अंग्रेजी) बस नामक वाहन, बस (संस्कृत)वंश, बस (फारसी) पर्याप्त।
काम = काम (संस्कृत तत्सम) कामदेव, काम (हिंदी तद्भव) कर्म।
पर = पंख, लेकिन, ऊपर
आम = आम फल (तद्भव),कच्चा (तत्सम), सामान्य आदमी (विदेशी)
3. पर्यायवाची या समानार्थी - जिन शब्दों का अर्थ सामान होता है और जो एक ही वास्तु के व्यंजक होते, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द खा जाता है। जैसे-
रात- निशा, रजनी, विभावरी, रात्रि।
अग्नि- आग, पावक, ज्वाला, अनल।
अचल- पर्वत, पहाड़, शैल, गिरि, नग, भूधर।
घोडा- तुरंग, अश्व, हय, बाजी, घोटक।
चन्द्रमा- शशि, चाँद, विभु, इन्दु, रजनीश, निशाकर, सोम, मयंक।
4. विलोम शब्द या विपरीतार्थी शब्द - वे शब्द जिनका अर्थ किसी अन्य शब्द के अर्थ से उल्टा या विपरीत होता है उन शब्दों को विलोम शब्द कहते हैं। जैसे -
शब्द विपरीत शब्द
आग पानी
सुख दुःख
अंदर बाहर
न्याय अन्याय
न्यून अधिक
अंधकार प्रकाश
संभव असम्भव
अपमान सम्मान
आरम्भ अंत
परकीया स्वकीया
अनेकार्थी शब्दों के अन्य उदहारण-
कल - आगामी, अगला दिन,अतीत पिछला दिवस, मधुर ध्वनि
कर - हाथ, टैक्स, हाथी की सूँड
अम्बर - आकाश, वस्त्र, कपास
गुरु - शिक्षक, बड़ा, भरी, चालक
घन - बादल , घटा, हथौड़ा, अधिक बड़ा
अनंत - आकाश, ईश्वर, विष्णु, शेषनाग
अण्डा - कमल, शंख, कपूर, चन्द्रमा
अनेकार्थी शब्दों का भेद
अनेकार्थी शब्दों का एक भेद है - समरूपी शब्द।
समरूपी शब्द - समरूपी शब्द उसे कहते हैं जो स्रोतानुसार (तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी) वास्तव में भिन्न -भिन्न हैं किन्तु एक रूप होने के कारण एक शब्द कहलाते हैं और उनके अर्थ अलग अलग होते हैं, जैसे-
बस = बस (अंग्रेजी) बस नामक वाहन, बस (संस्कृत)वंश, बस (फारसी) पर्याप्त।
काम = काम (संस्कृत तत्सम) कामदेव, काम (हिंदी तद्भव) कर्म।
पर = पंख, लेकिन, ऊपर
आम = आम फल (तद्भव),कच्चा (तत्सम), सामान्य आदमी (विदेशी)
3. पर्यायवाची या समानार्थी - जिन शब्दों का अर्थ सामान होता है और जो एक ही वास्तु के व्यंजक होते, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द खा जाता है। जैसे-
रात- निशा, रजनी, विभावरी, रात्रि।
अग्नि- आग, पावक, ज्वाला, अनल।
अचल- पर्वत, पहाड़, शैल, गिरि, नग, भूधर।
घोडा- तुरंग, अश्व, हय, बाजी, घोटक।
चन्द्रमा- शशि, चाँद, विभु, इन्दु, रजनीश, निशाकर, सोम, मयंक।
4. विलोम शब्द या विपरीतार्थी शब्द - वे शब्द जिनका अर्थ किसी अन्य शब्द के अर्थ से उल्टा या विपरीत होता है उन शब्दों को विलोम शब्द कहते हैं। जैसे -
शब्द विपरीत शब्द
आग पानी
सुख दुःख
अंदर बाहर
न्याय अन्याय
न्यून अधिक
अंधकार प्रकाश
संभव असम्भव
अपमान सम्मान
आरम्भ अंत
परकीया स्वकीया
2. प्रयोग की दृष्टि से वर्गीकरण
प्रयोग की दृष्टि से शब्द तीन प्रकार के होते हैं -
१. सामान्य शब्दावली के शब्द
२. तकनीकी शब्दावली के शब्द
३. अर्द्धतकनीकी शब्दावली के शब्द
1. सामान्य शब्दावली के शब्द - वे शब्द जो भाषा समुदाय के सभी व्यक्तियों द्वारा बिना किसी भेदभाव के दैनिक कार्यो या क्रियाओं में प्रयुक्त किए जाते हैं,उन्हें सामान्य शब्दावली के शब्द कहते हैं। जैसे- पानी, सूरज, चन्द्रमा, धरती, दुकान, माँ- बाप, रोटी, उठना, बैठना, भाई, ईश्वर, बहन, बस, टेलीफोन, रेडियो, नल, कुआँ, चीनी, गेंहूँ, दाल आदि।
2. तकनीकी शब्दावली के शब्द - ऐसे शब्द जो ज्ञान-विज्ञान और व्यवसाय आदि के क्षेत्रों में पारिभाषिक शब्दावली के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, उन्हें तकनीकी शब्दावली के शब्द कहते हैं। इन शब्दों के प्रयोग द्वारा ही उस विशेष ज्ञान-विज्ञान को समझा जा सकता है। जैसे- बल, रेखा, अनुक्रिया, पूँजी, पर्यावरण आदि।
प्रशासन, बैंक, न्याय, चिकित्सा, कोमा, कनिष्ठ, अभियंता, बंधपत्र, सिमा शुल्क, उपबंध, प्रतिरोधक आदि।
3. अर्द्धतकनीकी शब्दावली के शब्द - ऐसे शब्द जो सामान्य व्यक्ति और विशेषज्ञ दोनों प्रस्तुत करते हैं किन्तु विशेषज्ञ का अर्थ पारिभाषित और ठीक बँधा हुआ होता है जबकि सामान्य व्यक्ति का अर्थ सीमित होता है; उन शब्दों को अर्द्धतकनीकी शब्दावली का शब्द कहा जाता है। जैसे - बस, अर्द्धसैनिक बल, परमाणु बम, ऑपरेशन आदि।
प्रशासन, बैंक, न्याय, चिकित्सा, कोमा, कनिष्ठ, अभियंता, बंधपत्र, सिमा शुल्क, उपबंध, प्रतिरोधक आदि।
3. अर्द्धतकनीकी शब्दावली के शब्द - ऐसे शब्द जो सामान्य व्यक्ति और विशेषज्ञ दोनों प्रस्तुत करते हैं किन्तु विशेषज्ञ का अर्थ पारिभाषित और ठीक बँधा हुआ होता है जबकि सामान्य व्यक्ति का अर्थ सीमित होता है; उन शब्दों को अर्द्धतकनीकी शब्दावली का शब्द कहा जाता है। जैसे - बस, अर्द्धसैनिक बल, परमाणु बम, ऑपरेशन आदि।
3. इतिहास या स्रोत की दृष्टि से वर्गीकरण
स्रोत की दृष्टि से शब्द चार प्रकार के होते हैं -
१.तत्सम
२.तद्भव
३.देशज
४.विदेशी
1. तत्सम - वे शब्द हैं, जो बिना किसी परिवर्तन के संस्कृत के समान ही वैसे- के -वैसे हिंदी भाषा में प्रयुक्त होते हैं। जैसे- माता, निराकार, सत्य, पर्वत।
2. तद्भव - वे शब्द हैं,जो संस्कृत भाषा के शब्दों से बिगड़कर बने हैं। हाथ, खेत, दूध (संस्कृत के हस्त से हाथ, क्षेत्र से खेत, और दुग्ध से दूध बना है।
3. देशज - वे शब्द हैं, जो संस्कृत के शब्दों से कोई सम्बन्ध नहीं रखते, बल्कि लोकप्रसिद्ध और प्रचिलित हैं; अथवा विभिन्न भारतीय भाषाओं या प्रादेशिक बोलियों से हिंदी में आ गए हैं। जैसे - पेट, लथपथ, खिड़की, पगड़ी, छोरा, गुट्ट, गाड़ी, टोली, खुरपा, बेटा, पैसा, जूता, ढेर, रोटी, डोर, ढाँचा आदि।
4. विदेशी - वे शब्द हैं, जो अंग्रेजी अरबी, फ़ारसी, तुर्की, पुर्तगाली,आदि विदेशी भाषाओं से हिंदी में आ गए हैं, जैसे - मास्टर, डॉक्टर, तोप, बूट, बटन, कमर आदि।
अंग्रेजी से - मास्टर, स्कूल, रेल, कोट, स्टेशन, बटन, राशन, फीस, चाक, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, कमेटी, बेंच, स्लेट, टिकट आदि
पुर्तगाली से - प्याला, आलू, पलटन, साबुन, अलमारी, कमरा, नीलाम, पिस्तौल, पादरी, गिर्जा, बाल्टी, तौलिया आदि।
अरबी से - गरीब, फ़कीर, औरत, अमीर, दुनिया, दौलत, कदम, जलसा, अक्ल, कसूर, किल्लत, मालिक, किस्सा, हुक्म, ईमानदार, अदालत आदि।
फ्रेंच से - कूपन, कारतूस आदि।
फारसी से - जल्दी, तमाम, बाग़, अफ़सोस, चाकू, खरीद, शिकायत, सिफारिस, जिंदगी, चश्मा, रूमाल, जमीन, जिन्दा, खरगोश, कारखाना आदि।
तुर्की से - कालीन, लाश, काबू, कैंची, कुली, बावर्ची, दरोगा, बेगम, ताश, आका, तोप, बुलबुल, तमाशा, तमगा, गलीचा आदि।
ग्रीस से - दाम, सुरंग आदि।
चीनी से - चाय, लीची
इसके अतिरिक्त नए शब्दों को बनाने में इन स्रोतों का भी प्रयोग किया जाता है -
(क) अनुकरणात्मक - खटखटाना, फड़फड़ाना, हड़बड़ाना, फुसफुसाना, फुंफकार, ठसक आदि।
(ख) संकर शब्द - दो विभिन्न स्रोतों के मिश्रण से बने शब्दों को संकर शब्द कहते हैं , जैसे-
हिंदी और संस्कृत - वर्षगाँठ (वर्ष-संस्कृत और गाँठ-हिंदी )न माँगपत्र, जाँचकर्ता, कपड़ा-उद्योग, पूँजीपति आदि।
हिंदी और अरबी-फारसी - किताबघर, घड़ीसाज, थानेदार, बैठकबाज आदि।
हिंदी- संस्कृत और अंग्रेजी - रेलगाड़ी, रेलयात्री, योजना, कमीशन, कृषि, मजदूर, रेडियो तरंग, ऑपरेशन कक्ष, अग्निबोट आदि।
अरबी-फारसी और अंग्रेजी - अफसरशाही, बीमा, पालिसी, पार्टीबाजी, गुटबाजी, टिकटघर आदि।
2. तद्भव - वे शब्द हैं,जो संस्कृत भाषा के शब्दों से बिगड़कर बने हैं। हाथ, खेत, दूध (संस्कृत के हस्त से हाथ, क्षेत्र से खेत, और दुग्ध से दूध बना है।
कुछ शब्दों के तत्सम - तद्भव रूप
तत्सम तद्भव
अग्नि आग
हिय हृदय
सप्त सात
कोकिल कोयल
भगिनी बहिन
वधु बहू
मस्तक माथा
गृह घर
गृह घर
पक्षी पंछी
मनुष्य मनुख
मृत्यु मौत
नग्न नंगा
सूर्य सूरज
निद्रा नींद
शिक्षा सीख
आम्र आम
कुम्भकार कुम्हार
ग्राम गाँव
भ्रमर भौंरा
कृष्ण किशन
लक्ष लाख
दन्त दाँत
मुष्टिका मुट्ठी
कर्ण कान
पाद पैर
सूत्र सूत
हस्ती हाथी
अस्थि हड़्डी
हस्त हाथ
उलूक उल्लू
काष्ठ काठ
शर्करा शक्कर
रात्रि रात
जिह्वा जीभ
दुग्ध दूध
घृत घी
दधि दही
मयूर मोर
पर्यंक पलंग
कार्य काज
पृष्ठ पीठ
महिषी भैंस
सत्य सच
भिक्षा भीख
वार्ता बात
पूत पुत्र
नव नौ
अक्षि आँख
उष्ट्र ऊँट
क्षीर खीर
ज्येष्ठ जेठ
क्षेत्र खेत
सर्प साँप
अंधकार अँधेरा
भ्रातृ भाई
अट्टालिका अटारी
पक्व पक्का
अश्रु आँसू
पाषाण पत्थर
4. विदेशी - वे शब्द हैं, जो अंग्रेजी अरबी, फ़ारसी, तुर्की, पुर्तगाली,आदि विदेशी भाषाओं से हिंदी में आ गए हैं, जैसे - मास्टर, डॉक्टर, तोप, बूट, बटन, कमर आदि।
अंग्रेजी से - मास्टर, स्कूल, रेल, कोट, स्टेशन, बटन, राशन, फीस, चाक, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, कमेटी, बेंच, स्लेट, टिकट आदि
पुर्तगाली से - प्याला, आलू, पलटन, साबुन, अलमारी, कमरा, नीलाम, पिस्तौल, पादरी, गिर्जा, बाल्टी, तौलिया आदि।
अरबी से - गरीब, फ़कीर, औरत, अमीर, दुनिया, दौलत, कदम, जलसा, अक्ल, कसूर, किल्लत, मालिक, किस्सा, हुक्म, ईमानदार, अदालत आदि।
फ्रेंच से - कूपन, कारतूस आदि।
फारसी से - जल्दी, तमाम, बाग़, अफ़सोस, चाकू, खरीद, शिकायत, सिफारिस, जिंदगी, चश्मा, रूमाल, जमीन, जिन्दा, खरगोश, कारखाना आदि।
तुर्की से - कालीन, लाश, काबू, कैंची, कुली, बावर्ची, दरोगा, बेगम, ताश, आका, तोप, बुलबुल, तमाशा, तमगा, गलीचा आदि।
ग्रीस से - दाम, सुरंग आदि।
चीनी से - चाय, लीची
इसके अतिरिक्त नए शब्दों को बनाने में इन स्रोतों का भी प्रयोग किया जाता है -
(क) अनुकरणात्मक - खटखटाना, फड़फड़ाना, हड़बड़ाना, फुसफुसाना, फुंफकार, ठसक आदि।
(ख) संकर शब्द - दो विभिन्न स्रोतों के मिश्रण से बने शब्दों को संकर शब्द कहते हैं , जैसे-
हिंदी और संस्कृत - वर्षगाँठ (वर्ष-संस्कृत और गाँठ-हिंदी )न माँगपत्र, जाँचकर्ता, कपड़ा-उद्योग, पूँजीपति आदि।
हिंदी और अरबी-फारसी - किताबघर, घड़ीसाज, थानेदार, बैठकबाज आदि।
हिंदी- संस्कृत और अंग्रेजी - रेलगाड़ी, रेलयात्री, योजना, कमीशन, कृषि, मजदूर, रेडियो तरंग, ऑपरेशन कक्ष, अग्निबोट आदि।
अरबी-फारसी और अंग्रेजी - अफसरशाही, बीमा, पालिसी, पार्टीबाजी, गुटबाजी, टिकटघर आदि।
रचना की दृष्टि से (व्युत्पत्ति की दृष्टि से) शब्द के प्रकार
रचना के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं -
१. रूढ़ (Simple)
२. यौगिक (Compound)
३.योगरूढ़ (Complex)
1) रूढ़ - वे शब्द हैं जो किन्ही अन्य शब्दों के योग से बने हों या जिनके खण्ड का कोई अर्थ न हो, किन्तु विशेष वास्तु के लिए वे प्रशिद्ध हो गए हों। जैसे- घोड़ा, काला, जल।
2) यौगिक - वे शब्द हैं, जो दूसरे शब्दों के योग से बने हों। जैसे- पाठशाला, विद्यालय, पानवाला। 'पाठशाला' यह शब्द- पाठ + शाला, इन दो शब्दों के योग से बना है।
3) योगरूढ़ - वे शब्द हैं, जो यौगिक होने पर भी सामान्य अर्थ को प्रकट न करके किसी विशेष वास्तु के लिए निश्चत हों। जैसे- पंकज, अंगरखा, चारपाई, चौमासा आदि।
यहाँ पंकज शब्द का अर्थ है ' पंक + ज' अर्थात कीचड़ में पैदा हुआ, परन्तु 'पंकज' शब्द केवल 'कमल' के लिए निश्चित हो गया है। अंगों की रक्षा अन्य वस्त्रों से भी होती है, परन्तु अंगरखा लम्बे-से कोट के लिए रूढ़ हो गया है। इसी प्रकार चार पायों वाली 'चारपाई' का अर्थ 'खाट' है और चार मासों का समूह 'चौमासा' का अर्थ 'बरसात' है।
उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को दो भागों में बनता गया है -
१. विकारी (Declinables)
२. अविकारी (Indeclinables)
2) यौगिक - वे शब्द हैं, जो दूसरे शब्दों के योग से बने हों। जैसे- पाठशाला, विद्यालय, पानवाला। 'पाठशाला' यह शब्द- पाठ + शाला, इन दो शब्दों के योग से बना है।
3) योगरूढ़ - वे शब्द हैं, जो यौगिक होने पर भी सामान्य अर्थ को प्रकट न करके किसी विशेष वास्तु के लिए निश्चत हों। जैसे- पंकज, अंगरखा, चारपाई, चौमासा आदि।
यहाँ पंकज शब्द का अर्थ है ' पंक + ज' अर्थात कीचड़ में पैदा हुआ, परन्तु 'पंकज' शब्द केवल 'कमल' के लिए निश्चित हो गया है। अंगों की रक्षा अन्य वस्त्रों से भी होती है, परन्तु अंगरखा लम्बे-से कोट के लिए रूढ़ हो गया है। इसी प्रकार चार पायों वाली 'चारपाई' का अर्थ 'खाट' है और चार मासों का समूह 'चौमासा' का अर्थ 'बरसात' है।
व्याकरणिक विवेचन की दृष्टि से (प्रयोग की दृष्टि से) शब्दों के प्रकार
वाक्यों के प्रयोग के विचार से शब्दों के आठ प्रकार हैं -
1. संज्ञा (Noun) -किसी व्यक्ति, वास्तु, स्थान, या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे- मोहन, पुस्तक, दिल्ली ,मिठास आदि।
2. सर्वनाम (Pronoun) - संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। जैसे- वह, मैं, तू, तुम्हारा, उसका आदि।
3. विशेषण (Adjective) -संज्ञा सर्वनाम की विशेषता प्रकट करने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। जैसे- चतुर, काला, गहरा, ऊँचा, छोटा, आदि।
4. क्रिया (Verb) - जिससे किसी काम का करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- खाता है, पीता है, जाता है, गया आदि।
5. क्रिया विशेषण (Adverb) - क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाले शब्दों को क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे- धीरे-धीरे, जल्दी-जल्दी आदि।
6. सम्बन्धबोधक (Preposition) - संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ सम्बन्ध बताने वाले शब्दों को सम्बन्धबोधक कहते हैं। जैसे- भीतर, पीछे।
7. योजक (Conjunction) -दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले शब्द योजक कहलाते हैं, इन्हें, 'समुच्चयबोधक' भी कहते हैं। जैसे- और, परन्तु।
8. द्योतक (Interjection) - हर्ष, शोक, आश्चर्य आदि मन के भाव प्रकट करने वाले शब्दों को द्योतक कहते हैं। इनका दूसरा नाम 'विस्मयादिबोधक' भी है। जैसे- अरे! आह! छिः! हाय! आदि।
उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को दो भागों में बनता गया है -
१. विकारी (Declinables)
२. अविकारी (Indeclinables)
1. विकारी - वे शब्द हैं, जिनमें विकार (परिवर्तन) हो। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया - ये सब विकारी शब्द हैं, क्योंकि लिंग, वचन, कारक, काल आदि के अनुसार, इनके रूप में विकार (परिवर्तन) हो जाता है। जैसे -
संज्ञा - लड़का, लड़के ने, लड़कों के लिए।
सर्वनाम - वह, वे, उसका, उन्होंने।
विशेषण - काला, काले।
क्रिया - जाता है, गया, जाएगा।
2. अविकारी - वे शब्द हैं, जो सदा एक जैसे ही रहते हैं, जिनमे कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक, समुच्चयबोधक, और विस्मयादिबोधक - ये सब अविकारी शब्द हैं। जैसे -
क्रिया विशेषण - धीरे-धीरे, जल्दी-जल्दी।
सम्बन्धबोधक - ऊपर, आगे, पीछे।
समुच्चयबोधक - और, किन्तु, परन्तु आदि।
विस्मयादिबोधक - अहा, छिः, अरे, वाह वाह!
संज्ञा - लड़का, लड़के ने, लड़कों के लिए।
सर्वनाम - वह, वे, उसका, उन्होंने।
विशेषण - काला, काले।
क्रिया - जाता है, गया, जाएगा।
2. अविकारी - वे शब्द हैं, जो सदा एक जैसे ही रहते हैं, जिनमे कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक, समुच्चयबोधक, और विस्मयादिबोधक - ये सब अविकारी शब्द हैं। जैसे -
क्रिया विशेषण - धीरे-धीरे, जल्दी-जल्दी।
सम्बन्धबोधक - ऊपर, आगे, पीछे।
समुच्चयबोधक - और, किन्तु, परन्तु आदि।
विस्मयादिबोधक - अहा, छिः, अरे, वाह वाह!
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