रोज़ की तरह माँ ने दलजीत को आवाज़ लगाई। दलजीत अभी भी बिस्तर में ही थी। आज उसका स्कूल जाने का मन नहीं था। तभी माँ को बस के हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी। माँ ने ऊँची आवाज़ में कहा, "दलजीत क्या तुम्हें आज स्कूल नहीं जाना?" दलजीत ने बिस्तर में लेटे-लेटे ही कहा, "माँ आज मेरा स्कूल जाने का मन नहीं है।" माँ दूसरा सवाल पूछ पाती उससे पहले ही स्कूल की बस दो बार हॉर्न बजाकर जा चुकी थी।
लगभग दो घंटे के बाद जब दलजीत सोकर उठी, तो वह बहुत उदास थी। माँ उसके पास गई। पर दलजीत आँखें मूँदे पड़ी रही। कुछ देर तक उसने किसी से बात तक नहीं की। माँ ने दलजीत से नाश्ता करने के लिए कहा, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। सुबह से दोपहर हो गई। इस बार माँ ने दलजीत से कहा, "तुम स्कूल तो नहीं गई, लेकिन अपना होमवर्क तो पूरा कर लो। दलजीत चुप रही. मानो उसने कुछ सुना ही न हो। चुपचाप अपने कमरे में जाकर उसने अपना बैग खोला। बैग से गणित की कॉपी निकाली। कुछ पन्नों को पलटा । एक पन्ने पर स्टार बना हुआ था। दूसरे पन्ने पर एक छोटा-सा मुस्कराता चेहरा बना हुआ था, कहीं-कहीं गलती करने पर गोले भी बने हुए थे। कॉपी के आखिरी पन्ने पर नीलम मैडम के हस्ताक्षर थे । दलजीत ने नीलम मैडम के नाम पर प्यार से हाथ फेरा। आज से उसकी सबसे प्यारी टीचर उसे स्कूल में नहीं दिखेंगी... दलजीत की आँख से एक आँसू गिरा और उसने कॉपी बंद करके गले से लगा लिया।
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