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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

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हिंदी भाषा एवं साहित्य से जुड़े तथ्य।।

📖 वस्तुनिष्ठ प्रश्न 💐❣ UGC NET ❣💐

Q. भूतकाल के कितने भेद होते हैं?
(A) पांच भेद
(B) छः भेद
(C) सात भेद
(D) नौ भेद

✅ Answer : छः भेद

Explanation : भूतकाल के छः भेद होते हैं– 
1. सामान्य भूत, 
2. आसन्न भूत, 
3. पूर्ण भूत, 
4. अपूर्ण भूत, 
5. संदिग्ध भूत और 
6. हेतुहेतुमद् भूत 

1. सामान्य भूत – सामान्य भूतकाल में साधारण रूप से क्रिया के हो चुकने का ज्ञान होता है। यह नहीं जाना जा सकता है कि क्रिया को समाप्त हुए थोड़ी देर हुई है या अधिक। जैसे–गाड़ी आई पानी बरसा।

2. आसन्न भूत – इस काल में यह स्पष्ट होता है कि कार्य निकट भूत में, अथवा अभी-अभी पूरा हुआ है। जैसे–मैंने पढ़ा है। राकेश ने पुस्तक पढ़ ली है, उसने भोजन कर लिया है।

3. पूर्ण भूत – इस काल से यह ध्वनित होता है कि कार्य को समाप्त हुए बहुत समय व्यतीत हो चुका है। इसमें कार्य निश्चित अवधि से पूर्व समाप्त हो जाता है। जैसे–वह पुस्तक पढ़ चुका था।

4. अपूर्ण भूत – इस काल से यह ज्ञात होता है कि कार्य भूतकाल में आरंभ किया गया था, किंतु वह समाप्त नहीं हुआ था। जैसे–राकेश पुस्तक पढ़ रहा था।

5. संदिग्ध भूत – जिससे कार्य के भूतकाल में होने का संदेह हो। जैसे–उसने पुस्तक पढ़ी होगी।

6. हेतुहेतुमद् भूत – यह क्रिया का वह रूप है जिसमें भूतकाल में होने वाली क्रिया का होना किसी दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर हो। जैसे– यदि स्टेशन ठीस समय से पहुँच जाता तो गाड़ी न छूटती। यदि पानी बरस जाता तो फसल न सूखती।

Q. भविष्य काल के कितने भेद होते हैं?
(A) दो भेद
(B) तीन भेद
(C) चार भेद
(D) पांच भेद

✅ Answer : तीन भेद

Explanation : भविष्य काल के तीन भेद होते हैं– 
1. सामान्य भविष्य, 
2. संभाव्य भविष्य और 
3. हेतुहेतुमद् भविष्य। 

1. सामान्य भविष्य – जहाँ साधारण रूप में भविष्यत्काल में कार्य का होना पाया जाए। जैसे – सुरेश खाना खायेगा। कल वर्षा होगी।

2. संभाव्य भविष्यत् – जिसमें भविष्यत् काल में कार्य के होने में संदेह या संभावना हो। जैसे – संभव है आज धूप निकले। आज वह आ सकता है।

3. हेतुहेतुमद्भविष्य – इसमें एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर करता है। जैसे – वह आये तो मैं जाऊँ, जो बोये सो काटे।

Q. भारत (Bharat) का पर्यायवाची शब्द क्या होगा?
(A) भारतखंड
(B) हिंदुस्तान
(C) भारतवर्ष
(D) उपयुक्त सभी

✅ Answer : उपयुक्त सभी
भारत (Bharat) का पर्यायवाची शब्द होगा – इंडिया, भारतवर्ष, भारतखंड, भरतखंड, हिंद, हिंदुस्तान, हिंदुस्तां, आर्यावर्त आदि। 
किसी शब्द के समान अथवा लगभग समान अर्थ का बोध कराने वाले शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं। चूंकि पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में समानता होती है, लेकिन प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है और भाव में एक-दूसरे से किंचित भिन्न होते हैं। जैसे पर्यायवाची शब्द फूल, पुष्प, सुमन, कुसुम, मंजरी, प्रसून इत्यादि। पर्यायवाची शब्दों को ‘प्रतिशब्द’ या ‘समानार्थी शब्द’ भी कहते हैं। पर्यायवाची शब्द किसी भी भाषा की सबलता के प्रतीक हैं जिस भाषा में जितने ही अधिक पर्यायवाची शब्द होंगे वह भाषा उतनी ही अधिक समृद्ध होगी। इस दृष्टिकोण से हिन्दी सम्पन्न भाषा है।

Q. ब्रजभाषा गद्य का सूत्रपात कब हुआ?
(A) संवत् 1200
(B) संवत् 1300
(C) संवत् 1400
(D) संवत् 1500

✅ Answer : संवत् 1400

Explanation : ब्रजभाषा गद्य का सूत्रपात संवत् 1400 के करीब हुआ। कृष्ण-भक्तिधारा के कवियों तथा भक्तों ने उसके विकास और संवर्द्धन में विशेष योग दिया। सत्रहवीं शताब्दी तक की लिखी हुई जो रचनाएँ उपलब्ध हैं, उनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ का श्रृंगार रस-मंडन', गोकुलनाथजी के 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' और 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता', नाभादासजी का 'अष्टयाम', बैकुंठमणि शुक्ल के 'अगहन-माहात्म्य' और 'वैशाख-माहात्म्य' तथा लल्लूलाल कृत 'माधव-विलास' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 

ब्रजभाषा बोली का प्रभाव क्षेत्र भरतपुर, धौलपुर, मथुरा, अलीगढ़, आगरा, एटा, मैनपुरी, बुलंदशहर, ग्वालियर तथा बदायूँ, बरेली, नैनीताल, की तराई में फैला है। विस्तृत क्षेत्र के कारण स्थानीय प्रभाव के अंतर्गत इसकी कई उपबोलियाँ विकसित हो गई। धौलपुर और पूर्वी जयपुर की बोली डांगी; एटा, मैनपुरी, बदायूँ, बरेली जिलों की बोली, अंतर्वेदी तथा नैनीताल को बोली भूक्सा उपबोलियों के उदाहरण हैं। मथुरा, अलीगढ़ तथा आगरा की बोली ही आदर्श ब्रजभाषा है। ब्रजभाषी लोगों की संख्या दो करोड़ से अधिक है। ब्रजभाषा के प्रचुर साहित्य में सूरदास, बिहारी, भूषण, मतिराम, चिंतामणि, पद्माकर, भारतेंदु तथा जगन्नाथदास रत्नाकर के नाम प्रमुख हैं।

◾️ सहसा विदधीत न क्रियाम् किस सूक्ति में युक्त रचना है?
(A) शिशुपालवधम्
(B) किरातार्जुनीयम्
(C) नैषधीय चरितम्
(D) कुमार सम्भवं

✅ Answer : कुमार सम्भवं

Explanation : 'सहंसा विदधीत ने क्रियाम्' इस सूक्ति से युक्त रचना भारवि की 'किरातार्जुनीयम्' है। यह भारवि का अति प्रिय श्लोक था तथा उसे अपने शयन-कक्ष में लगा रखे थे। किसी समय पत्नी की आवश्यकता के लिए उन्हें एक वणिक से कुछ ऋण लेना पड़ा और धरोहर के रूप में उन्होंने सहसा विदधीत न क्रियाम् श्लोक रख दिया। उनका वास्तविक नाम दामोदर था और 'भारवी' उनकी उपाधि थी।

◾️ प्रगतिवाद के जन्म में किसका योगदान है?
(A) छायावादी रोमानियम एवं पलायनवादी प्रवृत्ति
(B) प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना
(C) मार्क्सवादी प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी

✅ Answer : उपर्युक्त सभी

Explanation : प्रगतिवाद के जन्म में छायावादी रोमानियम एवं पलायनवादी प्रवृत्ति, प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना और मार्क्सवादी प्रभाव इन सभी का योगदान है अर्थात् छायावादी रोमानियत एवं पलायनवादी प्रवृति ने भी प्रगतिवाद के जन्म में योगदान दिया। 1936 में सज्जाद जहीर और डॉ. मुल्कराज आनंद के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हो चुकी थी तथा प्रगतिवाद मार्क्सवादी दर्शन के आलोक में सामाजिक चेतना और भावबोध को अपना लक्ष्य बनाकर चला। 

◼️ कलम का सिपाही किसकी रचना है?
(A) प्रेमचंद
(B) विष्णु प्रभाकर
(C) अमृत राय 
(D) रामविलास शर्मा

✅ Answer : अमृत राय
Explanation : कलम का सिपाही अमृत राय की रचना है। 'कलम का सिपाही' प्रेमचंद की जीवनी है। अमृतराय का जन्म 1921 में वाराणसी में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध उपन्यासकार, निबंधकार, समीक्षक तथा अनुवादक थे। वे प्रेमचंद के छोटे पुत्र थे। पिता की तरह अमृतराय मूलतः कहानीकार व उपन्यासकार थे। प्रेमचंद की जीवनी 'कलम का सिपाही' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया था। नाट्य-लेखन में भी सक्रिय रहे। अंग्रेज़ी, बंगला और हिन्दी पर अमृतराय को समान अधिकार प्राप्त था। उनका निधन इलाहाबाद में 14 अगस्त, 1996 को हुआ।

◾️ किरातार्जुनीयम् के प्रत्येक सर्ग का अंतिम पद क्या है?
(A) लक्ष्मी
(B) विभु
(C) शिव
(D) श्री

✅ Answer : लक्ष्मी
Explanation : 'किरातार्जुनीयम्' के प्रत्येक सर्ग का अंतिम पद 'लक्ष्मी' है। महाकवि भारवि संस्कृत साहित्य के देदीप्यामनरत्नों में से एक हैं। उनका महाकाव्य वृहत्रयी का प्रथम रत्न है। वस्तुत: भारवि संस्कृत-काव्यों में रीति-शैली के जन्मदाता हैं। उनके ग्रंथ के आरंभ में 'श्री' शब्द तथा सर्गान्त श्लोकों में 'लक्ष्मी' शब्द का प्रयोग उनकी प्रमुख विशेषता है। माघ ने 'शिशुपाल वध' में इसी शैली का अनुकरण किया है।

◼️ ठेठ हिंदी में उपन्यास लिखने वाले कौन है?
(A) निराला
(B) प्रेमचंद
(C) प्रसाद
(D) हरिऔध

✅ Answer : हरिऔध
Explanation : ठेठ हिंदी में उपन्यास लिखने वाले अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी हैं। इनके प्रसिद्ध उपन्यास ठेठ हिंदी का ठाठ (1899) तथा अधखिला फूल (1907) हैं। उपन्यासकार के रूप में प्रसाद की असफलता का प्रमुख कारण यह है कि उनकी भाषा बिल्कुल ही उपन्यासोचित नहीं है। प्रेमचंद के उपन्यासों की भाषा की खूबी यह है कि शब्दों के चुनाव तथा वाक्य-योजना की दृष्टि से उसे सरल और 'बोलचाल की भाषा' कहा जा सकता है। निराला ने जयशंकर प्रसाद की शैली का अनुकरण किया है।

■ सतसई काव्य-परंपरा को आगे बढ़ाने कौन है?
(A) गयाप्रसाद शुक्ल स्नेही
(B) अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
(C) वियोगी हरि
(D) अनूप शर्मा

✅ Answer : वियोगी हरि
Explanation : सतसई काव्य-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले श्री वियोगि हरि जी हैं। ब्रजभूमि, ब्रजभाषा और ब्रजपति के वे अनन्य उपासक हैं। वियोगी हरि जी ने 'वीर सतसई' नामक एक बड़ा काव्य दोहों में लिखा है जिसमें भारत के प्रसिद्ध वीरों की प्रशस्तियाँ हैं। इनकी अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं-प्रेतशतक, प्रेम पथिक, प्रेमांजलि, चरखे की गूंज, चरखा स्रोत, असहयोग वीणा आदि हैं।

■ मात्रा की दृष्टि से दोहा के ठीक विपरीत क्या होता है?
(A) रोला
(B) छप्पय
(C) चौपाई
(D) सोरठा

✅ Answer : सोरठा
Explanation : मात्रा की दृष्टि से दोहा के ठीक विपरीत सोरठा होता है। सोरठा (चार चरण-11, 13, 11, 13 मात्राएँ) के पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। जबकि दोहा (चार चरण-13, 11, 13, 11 मात्राएँ) के विषम चरणों में 13 और समचरणों में 11 मात्राएँ होती हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। चौपाई के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं तथा छप्पय जो कि मात्रिक विषम और संयुक्त छन्द है में 6 चरण, प्रथम 4 चरण रोला के तथा शेष दो चरण उल्लाला के होते हैं।

■ रामधारी सिंह दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार किस रचना पर मिला?
(A) उर्वशी
(B) कुरुक्षेत्र
(C) सामधेनी
(D) हुंकार

✅ Answer : उर्वशी
Explanation : रामधारी सिंह दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार उर्वशी रचना पर मिला था। 'उर्वशी' दिनकर की नवीनतम प्रबंध कृति है जो ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित है। इसमें कवि ने उर्वशी एवं पुरुवरा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है। 'उर्वशी' प्रेम और सौन्दर्य का काव्य है। दिनकर की प्रमुख कृतियाँ हैं-बारदोली विजय, प्रणभंग, रेणुका, हुँकार, रसवंती, कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, मृत्तितिलक, हारे का हरिनाम, सीपी और शंख, आत्मा की आँखें (दोनों अनुदित) रश्मिलोक (कविता संकलन), संस्कृत के चार अध्याय तथा शुद्ध कविता की खोज (दोनों गद्य रचनाएँ), बुद्धदेव, कला तीर्थ, कलिंग विजय, हिमालय का संदेश (चारों कविताएँ हैं) आदि।

■ ‘आवारा मसीहा’ किसकी जीवनी से संबंधित है?
(A) शरतचंद्र
(B) बंकिमचंद्र
(C) अमृतलाल नागर
(D) विमल मित्र

✅ Answer : शरतचंद्र
Explanation : 'आवारा मसीहा' उपन्यासकार शरतचंद्र की जीवनी से संबंधित है। इसके लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। अन्य साहित्यकारों की प्रशंसित जीवनियों में प्रेमचन्दाधारित 'कलम का सिपाही' (अमृत राय), निराला पर (रामविलास शर्मा कृत) 'निराला की साहित्य साधना', शांति जोशी कृत 'पंत की जीवनी' तथा भगवती प्रसाद सिंह द्वारा भगवती प्रसार सिंह प्रणीत कविनाथ गोपीराज की जीवनी 'मनीषी की लोकयात्रा' उक्त क्षेत्र का साहित्यिक श्रृंगार है।

■ नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध का क्या उद्देश्य है?
(A) सामाजिक बुराइयों से हार जाना
(B) हिंसा से ग्रसित होकर असभ्य बनना
(C) समाज के अपवाद
(D) हिंसा से मुक्त होकर सभ्य बनने का प्रयत्न

✅ Answer : हिंसा से मुक्त होकर सभ्य बनने का प्रयत्न
Explanation : नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध का उद्देश्य हिंसा से मुक्त होकर सभ्य बनने का प्रयत्न है। नाखून आदिम हिंसक मनोवृत्ति का प्रतीक है, इसे बार बार काट देना सभ्यता का प्रतीक है। जब मनुष्य के नाखून बार-बार बढते हैं और मनुष्य उन्हें बार-बार काट देता है तथा इस तरह वह सभ्य बनने का प्रयत्न करता है। इसी तरह मानव जीवन में आए दिन अनेक सामाजिक बुराइयों का सामना होता है। सभ्य समाज इसको नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है, साधु-संत अपने उपदेशों द्वारा मानव की इन बुराइयों से दूर रहने के लिए सचेत करते रहते है। 'नाखून क्यों बढते है' हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रसिद्ध निबंध है। इनके अन्य प्रमुख निबन्ध हैं-अशोक के फूल, कल्पलता, आलोक पर्व, विचार और वितर्क, मध्यकालीन, धर्मसाधना, विचार प्रवाह तथा कुटज। सरलता के साथ व्यंग विनोद-प्रियता इनके निबन्धों की निजी विशेषता है।

■ मगही किस उपभाषा की बोली है?
(A) राजस्थानी
(B) पश्चिमी हिंदी
(C) पूर्वी हिंदी
(D) बिहारी

✅ Answer : बिहारी
Explanation : 'मगही' बिहारी उपभाषा की बोली है। बिहारी हिंदी की अन्य बोलियाँ भोजपुरी और मैथिली हैं। पश्चिमी हिंदी की बोलियाँ है-खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रजभाषा, बुन्देली तथा कन्नौजी। पूर्वी हिंदी की बोलियाँ हैं-अवधी, छत्तीसगढ़ी तथा बघेली जबकि राजस्थानी हिंदी की बोलियाँ हैं- मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती तथा मालवी।

■ आधुनिक एकांकी के जनक कौन माने जाते हैं?
(A) उदयशंकर भट्ट
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) रामकुमार वर्मा
(D) जगदीशचंद्र माथुर

✅ Answer : रामकुमार वर्मा
Explanation : आधुनिक एकांकी के जनक रामकुमार वर्मा माने जाते है। हिंदी साहित्य का प्रथम एकांकी 1929 में प्रसाद कृत 'एक बूंट' माना जाता है। राम कुमार वर्मा आज के एकांकी के जन्मदाता हैं। इन्होंने ऐतिहासिक एवं सामाजिक एकांकी लिखे हैं और वे अधिकांश में दुखांत हैं। पृथ्वीराज की आँखे, रेशमी टाई, चारुमित्रा, सप्तकिरण एवं कौमुदी महोत्सव वर्मा की प्रसिद्ध एकाकियाँ हैं।

■ ‘उपसर्ग’ से संबंधित सूत्र कौन सा है?
(A) प्रादयः
(B) पर
(C) गतिश्च
(D) इनमें से कोई नहीं

✅ Answer : प्रादयः
Explanation : प्रादय:-यह उपसर्ग का सूत्र है । उपसर्ग को गतिसंज्ञक भी कहा जाता है। प्र, परा, अय, सम्, अनु, अव, मिस्, मिर्, दुस, दुर, वि, आङ, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उपये प्रादप या प्रदि कहलाते हैं । ये प्रादि जब क्रिया के साथ व्यवहत होते हैं तब इनकी उपसर्ग संज्ञा और गति संज्ञा होती है। कुछ उपसर्ग धातु के अर्थ को ही बदल देते हैं, जैसे-गच्छति (जाता है), आगच्छति (आता है)।

■ हंस पत्रिका के संस्थापक कौन थे?
(A) प्रेमचंद
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) राजेंद्र यादव
(D) मार्कण्डेय

✅ Answer : प्रेमचंद
Explanation : 'हंस' पत्रिका के संपादक प्रेमचंद है। मुंशी प्रेमचंद द्वारा संपादित 'हंस' बनारस-1930 तत्कालीन साहित्यिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण माध्यम बनने में समर्थ हुआ। प्रकाशित होते ही 'हंस' समकालीन हिंदी-कथा-साहित्य का प्रतिनिधि पत्र बन गया। कथा-साहित्य के अतिरिक्त इसमें उच्च कोटि की कविताएँ, एकांकी, निबंध और आलोचनाएँ भी प्रकाशित होती थीं। प्रेमचंद की मृत्यु के बाद शिवदान सिंह चौहान, अमृतराव आदि ने 'हंस' का संपादन किया। इस युग का यह एक जागरूक मासिक पत्र था।

■ ग्वालियर की बोली कौन सी है?
(A) बुंदेली
(B) ब्रजभाषा
(C) खड़ी बोली
(D) कन्नौजी

✅ Answer : बुंदेली
Explanation : ग्वालियर की बोली 'बुंदेली' है। इसके अलावा यह बोली उत्तर प्रदेश के झाँसी, उरई, जालौन, हम्मीरपुर, बाँदा तथा मध्य प्रदेश में ओड़छा, पन्ना, दतिया, चरखारी, सागर, टीकमगढ़, दमोह, नृसिंहपुर, सिउनी, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, बालाघाट तथा भोपाल में बुन्देली बोली जाती है। ग्वालियर मध्य प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक एवं प्रमुख नगर है। यह शहर गुर्जर प्रतिहार राजवंश, तोमर तथा बघेल कछवाहों की राजधानी रहा है। इनके द्वारा छोड़े गये प्राचीन चिन्ह स्मारकों, किलों, महलों के रूप में मिल जाएंगे। वर्तमान में ग्वालियर एक आधुनिक शहर है और एक जाना-माना औद्योगिक केंद्र है। ग्वालियर को गालव ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है।

◾️ रीति संप्रदाय से संबंधित काव्य शास्त्रीय ग्रंथ कौन सा है?
(A) काव्यालंकार सूत्र 
(B) काव्यालंकार
(C) काव्यालंकार सूत्रवृत्ति
(D) काव्यादर्श

✅ Answer : काव्यालंकार सूत्र
Explanation : रीति संप्रदाय से संबंधित काव्य शास्त्रीय ग्रंथ काव्यालंकार सूत्र है। रीति संप्रदाय-काव्यलंकार सूत्रकार आचार्य वामन रीति संप्रदायक प्रवर्तक हैं। उन्होंने रीति को काव्य की आत्मा स्वीकार किया है। 'रीतिरात्मा काव्यस्य' रीति क्या वस्तु है? वामन विशिष्ट पद रचना को रीति बताते हैं। रीति संप्रदाय को गुण संप्रदाय भी कहते हैं। वामन के पूर्व दंडी ने रीति का वर्णन किया है तथा दस गुणों को वैदर्भ मार्ग का प्राण बताया है-"इति वैदर्भ मार्गस्य प्राणादश गुण : स्मृतः।" वामन के पश्चात् कुंतक ने रीति का मार्ग की संज्ञा दी है और कवि प्रस्थान हेतु भी कहा है। आनंदवर्धन ने रीति को संघटना और राजशेखर ने वचन विन्यास क्रम की संज्ञा दी है। इस प्रकार रीति को काव्यशास्त्र का प्रमुख संप्रदाय माना जाता है।

◼️ मौर्य विजय किसकी रचना है?
(A) मैथिलीशरण गुप्त
(B) सियाराम शरण गुप्त
(C) श्याम नारायण पांडेय
(D) इनमें से कोई नहीं

✅ Answer : सियाराम शरण गुप्त
Explanation : मौर्य विजय सियाराम शरण गुप्त की रचना है। ये राष्ट्रीय कविता के गायक मैथिली शरण गुप्त के छोटे भाई हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-अनाथ, आर्द्रा, विषाद, पूर्वादल, पाथेय, मृण्मयी, बापू, उन्मुक्त, अकुल, नोआखाली में, जयहिन्द आत्मोत्सर्ग, दैनिकी, गोपिका, गोद और नारी, अंतिम आकांक्षा, मानुषी तथा पुण्यपर्व आदि। सियारामशरण गुप्त (Siyaram Sharan Gupt) का जन्म 4 सितंबर 1895 को हुआ था। गाँधीवाद से प्रभावित इन्हें एक कवि के रुप में विशेष ख्याति मिली। इनकी भाषा शैली सहज, सरल साहित्यिक खड़ीबोली हिंदी थी। इन्होंने व्यावहारिक शब्दावली का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है। लंबी बीमारी के चलते 29 मार्च 1963 को इनका निधन हो गया।

◾️ सरसी छंद में कितनी मात्राएँ होती है?
(A) 27 मात्राएँ, 16, 11 पर यति, अंत में लघु-गुरु
(B) 28 मात्राएँ, 16, 12 पर यति, अंत में लघु-गुरु
(C) 28 मात्राएँ, 16, 12 पर यति, अंत में गुरु-लघु
(D) 27 मात्राएँ, 16, 11 पर यति, अंत में गुरु-लघु

✅ Answer : 27 मात्राएँ, 16, 11 पर यति, अंत में गुरु-लघु
Explanation : सरसी छंद के प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ होती हैं। 16 और 11 पर यति होती है और अंत में गुरू-लघु होता है। पहली 16 मात्राओं की लय चौपाई की तरह तथा शेष 11 मात्राओं की लय दोहे के दूसरे चरण की तरह ही होती है। उदाहरण–
अंशुमालि के शुभागमन की बेला समझ समीप। नभी में बुझा चुके थे सुर भी अपने घर के दीप।।

◾️ वैशाली की नगरवधू के लेखक कौन है?
(A) वृंदावन लाल वर्मा
(B) आचार्य चतुरसेन शास्त्री
(C) इलाचंद्र जोशी
(D) यशपाल

✅ Answer : आचार्य चतुरसेन शास्त्री (Acharya Chatursen Shastri)
Explanation : वैशाली की नगरवधू उपन्यास के लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री है। इनके अन्य प्रमुख उपन्यास हैं-वयं रक्षामः, सोमनाथ, आलमगीर, सोना और खून, रक्त की प्यास, आत्मदाह, अमर अभिलाषा, मन्दिर की नर्तकी, अपराजिता आदि। हालांकि उनके उपन्यासों में जो शोहरत 'वैशाली की नगरवधू', 'वयं रक्षामः' और 'सोमनाथ' को मिली, वह अन्य को हासिल नहीं है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त, 1891 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के चंदोख में हुआ था। उन्होंने 32 उपन्यास लिखे। इनके अलावा लगभग साढ़े चार सौ कहानियां लिखीं। उनके जीवनकाल में ही उनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 हो चुकी थी जो अपने आपमें एक ​कीर्तिमान था। 2 फरवरी, 1960 को जब उनका देहांत हुआ।

◾️ दूसरी परंपरा की खोज के लेखक कौन है?
(A) रामविलास शर्मा
(B) शिवदास सिंह चौहान
(C) नामवर सिंह
(D) देवीशंकर अवस्थी

✅ Answer : नामवर सिंह
Explanation : 'दूसरी परंपरा की खोज' के लेखक डॉ. नामवर सिंह हैं। ये मार्क्सवाद के समर्थक होते हुए भी रामविलास शर्मा की तरह मार्क्सवादी आलोचक नहीं हैं। इनके अन्य प्रमुख ग्रंथ हैं-कहानी और नयी कहानी, छायावाद, कविता के नए प्रतिमान, इतिहास और आलोचना तथा आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां। नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई, 1926 को बनारस जिले की चंदौली तहसील, जो अब जिला बन गया है, के जीयनपुर गांव में हुआ था। उन्होंने कविता से लेखकीय जीवन की शुरुआत 1941 में की। नामवर सिंह की पहली कविता बनारस की 'क्षत्रियमित्र’ पत्रिका में छपी। नामवर सिंह ने वर्ष 1949 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिंदी में एम.ए. किया। वर्ष 1953 में वह बीएचयू में ही टेंपरेरी लेक्चरर बन गए।

◾️ सहसा विदधीत न क्रियाम् किस सूक्ति में युक्त रचना है?
(A) शिशुपालवधम्
(B) किरातार्जुनीयम्
(C) नैषधीय चरितम्
(D) कुमार सम्भवं

✅ Answer : कुमार सम्भवं
Explanation : 'सहंसा विदधीत ने क्रियाम्' इस सूक्ति से युक्त रचना भारवि की 'किरातार्जुनीयम्' है। यह भारवि का अति प्रिय श्लोक था तथा उसे अपने शयन-कक्ष में लगा रखे थे। किसी समय पत्नी की आवश्यकता के लिए उन्हें एक वणिक से कुछ ऋण लेना पड़ा और धरोहर के रूप में उन्होंने सहसा विदधीत न क्रियाम् श्लोक रख दिया। उनका वास्तविक नाम दामोदर था और 'भारवी' उनकी उपाधि थी।

◾️ प्रगतिवाद के जन्म में किसका योगदान है?
(A) छायावादी रोमानियम एवं पलायनवादी प्रवृत्ति
(B) प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना
(C) मार्क्सवादी प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी

✅ Answer : उपर्युक्त सभी
Explanation : प्रगतिवाद के जन्म में छायावादी रोमानियम एवं पलायनवादी प्रवृत्ति, प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना और मार्क्सवादी प्रभाव इन सभी का योगदान है अर्थात् छायावादी रोमानियत एवं पलायनवादी प्रवृति ने भी प्रगतिवाद के जन्म में योगदान दिया। 1936 में सज्जाद जहीर और डॉ. मुल्कराज आनंद के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हो चुकी थी तथा प्रगतिवाद मार्क्सवादी दर्शन के आलोक में सामाजिक चेतना और भावबोध को अपना लक्ष्य बनाकर चला। 

◼️ कलम का सिपाही किसकी रचना है?
(A) प्रेमचंद
(B) विष्णु प्रभाकर
(C) अमृत राय 
(D) रामविलास शर्मा

✅ Answer : अमृत राय
Explanation : कलम का सिपाही अमृत राय की रचना है। 'कलम का सिपाही' प्रेमचंद की जीवनी है। अमृतराय का जन्म 1921 में वाराणसी में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध उपन्यासकार, निबंधकार, समीक्षक तथा अनुवादक थे। वे प्रेमचंद के छोटे पुत्र थे। पिता की तरह अमृतराय मूलतः कहानीकार व उपन्यासकार थे। प्रेमचंद की जीवनी 'कलम का सिपाही' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया था। नाट्य-लेखन में भी सक्रिय रहे। अंग्रेज़ी, बंगला और हिन्दी पर अमृतराय को समान अधिकार प्राप्त था। उनका निधन इलाहाबाद में 14 अगस्त, 1996 को हुआ।

◾️ किरातार्जुनीयम् के प्रत्येक सर्ग का अंतिम पद क्या है?
(A) लक्ष्मी
(B) विभु
(C) शिव
(D) श्री

✅ Answer : लक्ष्मी
Explanation : 'किरातार्जुनीयम्' के प्रत्येक सर्ग का अंतिम पद 'लक्ष्मी' है। महाकवि भारवि संस्कृत साहित्य के देदीप्यामनरत्नों में से एक हैं। उनका महाकाव्य वृहत्रयी का प्रथम रत्न है। वस्तुत: भारवि संस्कृत-काव्यों में रीति-शैली के जन्मदाता हैं। उनके ग्रंथ के आरंभ में 'श्री' शब्द तथा सर्गान्त श्लोकों में 'लक्ष्मी' शब्द का प्रयोग उनकी प्रमुख विशेषता है। माघ ने 'शिशुपाल वध' में इसी शैली का अनुकरण किया है।

◼️ ठेठ हिंदी में उपन्यास लिखने वाले कौन है?
(A) निराला
(B) प्रेमचंद
(C) प्रसाद
(D) हरिऔध

✅ Answer : हरिऔध
Explanation : ठेठ हिंदी में उपन्यास लिखने वाले अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी हैं। इनके प्रसिद्ध उपन्यास ठेठ हिंदी का ठाठ (1899) तथा अधखिला फूल (1907) हैं। उपन्यासकार के रूप में प्रसाद की असफलता का प्रमुख कारण यह है कि उनकी भाषा बिल्कुल ही उपन्यासोचित नहीं है। प्रेमचंद के उपन्यासों की भाषा की खूबी यह है कि शब्दों के चुनाव तथा वाक्य-योजना की दृष्टि से उसे सरल और 'बोलचाल की भाषा' कहा जा सकता है। निराला ने जयशंकर प्रसाद की शैली का अनुकरण किया है।

कामायनी महाकाव्य के बारे में महत्वपूर्ण कथन।।

कामायनी महाकाव्य -जय शंकर प्रसाद
सर्ग – 15
मुख्य छंद – तोटक
कामायनी पर प्रसाद को मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार मिला है
काम गोत्र में जन्म लेने के कारण श्रद्धा को कामायनी कहा गया है।
प्रसाद ने कामायनी में आदि मानव मनु की कथा के साथ साथ युगीन समस्याओं पर प्रकाश डाला है।
कामायनी का अंगीरस शांत रस है।
कामायनी दर्शन समरसता – आनन्दवाद है।
कामायनी की कथा का आधार ऋग्वेद,छांदोग्य उपनिषद् ,शतपथ ब्राहमण तथा श्री मद्भागवत हैं।
घटनाओं का चयन शतपथ ब्राह्मण से किया गया है।
कामायनी की पूर्व पीठिका प्रेमपथिक है।
कामायनी की श्रद्धा का पूर्व संस्करण उर्वशी है।
कामायनी का हृदय लज्जा सर्ग है।

कामायनी के विषय में कथन:-

1. कामायनी मानव चेतना का महाकाव्य है।यह आर्ष ग्रन्थ है।
-©डॉ.नगेन्द्र
2.कामायनी फैंटेसी है।~©मुक्तिबोध
3.कामायनी एक असफल कृति है।-©इन्द्रनाथ मदान
4. कामायनी नये युग का प्रतिनिधि काव्य है।-©नन्द दुलारे वाजपेयी
5.कामायनी ताजमहल के समान है-©सुमित्रानन्दन पंत
6.कामायनी एक रूपक है-©नगेन्द्र
7.कामायनी विश्व साहित्य का आठवाँ महाकाव्य है~©श्यामनारायण
8. कामायनी दोष रहित दोषण सहित रचना ~©रामधारी सिंह दिनकर
9. कामायनी समग्रतः में समासोक्ति का विधान लक्षित करती है~©डॉ नगेन्द्र
10. कामायनी आधुनिक सभ्यता का प्रतिनिधि महाकाव्य है~©नामवर सिंह
11. कामायनी आधुनिक हिन्दी साहित्य का सर्वोत्तम महाकाव्य है-©हरदेव बाहरी
12.कामायनी मधुरस से सिक्त महाकाव्य है-©रामरतन भटनाकर
13. कामायनी विराट सांमजस्य की सनातन गाथा है -©विशवंभर मानव
14.कामायनी का कवि दूसरी श्रेणी का कवि है -©हजारी प्रसाद द्विवेदी
15. कामायनी वर्तमान हिन्दी कविता में दुर्लब कृति है- ©हजारी प्रसाद द्विवेदी
16. कामायनी में प्रसाद ने मानवता का रागात्मक इतिहास प्रस्तुत किया है जिस प्रकार निराला ने तुलसीदास के मानस विकास का बड़ा दिव्य और विशाल रंगीन चित्र खिंचा है~©रामचन्द्र शुक्ल
17. कामायनी छायावाद का उपनिषद है-©शांति प्रिय द्विवेदी
18.कामायनी को कंपोजिशन की संज्ञा देने वाले-©रामस्वरूप चतुर्वेदी
19.मुक्तिबोध का कामायनी संबंधि अध्ययन फूहड़ मार्क्सवाद का नमूना है-©बच्चन सिंह
20.कामायनी जीवन की पूनर्रचना है -©मुक्तिबोध

बुद्ध ने ज्ञान के सार को कुल 55 बिंदुओं में समेट दिया।

          चार - आर्य सत्य
          पाँच - पंचशील
          आठ - अष्टांगिक मार्ग और
          अड़तीस - महामंगलसुत 

☸.. बुद्ध के चार आर्य सत्य..☸

    1. दुनियाँ में दु:ख है।
     2. दु:ख का कारण है।
     3. दु:ख का निवारण है। और
     4. दु:ख के निवारण का उपाय है।           

☸.. पंचशील ..☸

     1. झूठ न बोलना
     2. अहिंसा
     3. चोरी नहीं करना
     4. व्यभिचार नहीं करना और
     5. नशापान/मद्यपान नहीं करना
                  
☸.. अष्टांगिक मार्ग ..☸

1. सम्यक दृष्टि (दृष्टिकोण) /Right view
2. सम्यक संकल्प / Right intention
3. सम्यक वाणी / Right speech
4. सम्यक कर्मांत/ Right action
5. सम्यक आजीविका/ Right livelihood (profession)
6. सम्यक व्यायाम / Right exersie (physical activity)
7. सम्यक स्मृति / Right mindfulness
8. सम्यक समाधि / Right meditation (Vipassana Meditation)


 ☸  तथागत बुद्ध ने 38 प्रकार के मंगल कर्म बताये है जो महामंगलसुत के नाम से भी जाना जाता है, निम्न प्रकार है..,
1). मुर्खो की संगति ना करना।
2. बुद्धिमानों की संगति करना। 
3. शीलवानो की संगति करना। 
4. अनुकूल स्थानों में निवास करना। 
5. कुशल कर्मों का संचय करना। 
6. कुशल कर्मों में लग जाना। 
7. अधिकतम ज्ञान का संचय करना। 
8. तकनीकी विद्या अर्थात शिल्प सीखना। 
9. व्यवहार कुशल एवं विनम्र होना। 
10. विवेकवान होना। 
11. सुंदर वक्ता होना। 
12. माता पिता की सेवा करना। 
13. पुत्र-पुत्री-स्त्री का पालन पोषण करना। 
14. अकुशल कर्मों को ना करना। 
15. बिना किसी अपेक्षाके दान देना। 
16. धम्म का आचरण करना। 
17. सगे सम्बंधियों का आदर सत्कार करना। 
18. कल्याणकारी कार्य करना। 
19. मन, शरीर तथा वचन से परपीड़क कार्य ना करना। 
20. नशीली पदार्थों का सेवन ना करना। 
21. धम्म के कार्यों में तत्पर रहना। 
22. गौरवशाली व्यक्तित्व बनाए रखना। 
23. विनम्रता बनाए रखना। 
24. पूर्ण रूप से संतुष्ट होना अर्थात तृप्त होना। 
25. कृतज्ञता कायम रखना। 
26. समय समय पर धम्म चर्चा करना ।
27. क्षमाशील होना। 
28. आज्ञाकारी होना। 
29. भिक्षुओ, शीलवान लोगों का दर्शन करना। 
30. मन को एकाग्र करना। 
31. मन को निर्मल करना। 
32. सतत जागरूकता बनाए रखना ।
33. पाँच शीलों का पालन करना। 
34. चार आर्य सत्यों का दर्शन करना ।
35. आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना। 
36. निर्वाण का साक्षात्कार करना। 
37. लोक धम्म लाभ हानि, यश अपयश, सुख-दुख,जय-पराजय से विचलित ना होना। 
38. शोक रहित, निर्मल एवं निर्भय होना। 

☸अगर कोई अपने दैनिक जीवन में इन 38 मंगल कर्मों का पालन करने लग जाये, तो उसके जीवन से सारे दुःख एवं परेशानियां हमेशा के लिए दूर हो जायेंगी।।।

अध्यात्म के क्षेत्र में गहरा उतरने वालों को त्रिपिटक का अध्ययन करना चाहिए किंतु, गृहस्थ जीवन सफल और सम्मानित तरीके से जीने और निर्वाण प्राप्त करने के लिए यहाँ दी गई 55 बातें हीं काफी (सफिसियेंट) है।

तो आईये। बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर जीवन यापन करें और धार्मिक आडंबरों और पाखंड से दूर रहें।

बुद्धं शरणम गच्छामि!
धम्मं शरणम गच्छामि!
संघम् शरणम गच्छामि!

नमो बुद्धाय !

रजोदर्शन क्या है? (What is Rajodarshan)


Menstruation Period/Cycle (मासिक धर्म)

इस विषय का विवेचन करते हुए भगवान धन्वन्तरि ने सुश्रुत शारीरस्थान में लिखा है।

मासेनोपचितं काले धमनीभ्यां तदार्तवम्।
ईषत्कृष्ण विदग्धं च वायुर्योनिमुखं नयेत।।

अर्थात् - स्त्री के शरीर में वह आर्तव (एक प्रकार का रूधिर) एक मास पर्यन्त इकट्ठा होता रहता है। उसका रंग काला पड़ जाता है। तब वह धमनियों द्वारा स्त्री की योनि के मुख पर आकर बाहर निकलना प्रारम्भ होता है, इसी को रजोदर्शन कहते हैं।

रजोदर्शन, स्त्री के शरीर से निकलने वाला रक्त काला तथा विचित्र गन्धयुक्त होता है। अणुवीक्षणयन्त्र द्वारा देखने पर उसमें कई प्रकार के विषैले कीटाणु पाये गए है। दुर्गंधादि दोषयुक्त होने के कारण उसकी अपवित्रता तो प्रत्यक्ष सिद्ध है ही। इसलिए उस अवस्था में जब स्त्री के शरीर की धमनियां इस अपवित्र रक्त को बहाकर साफ करने के काम पर लगी हुई है और उन्हीं नालियों से गुजरकर शरीर के रोमों से निकलने वाली उष्मा तथा प्रस्वेद के साथ रज कीटाणु भी बाहर आ रहे होते हैं, ऐसे में यदि रजस्वला स्त्री के द्वारा छुए जलादि संक्रमित हो जाते हैं तथा अन्य मनुष्य के शरीर पर भी अपना दुष्प्रभाव डाल सकते हैं।

~ पण्डित घनश्याम ओझा 

वैज्ञानिक तथ्य

पाश्चात्य डॉक्टरों ने एक अनुसंधान में पाया कि रजस्वला के स्राव में विषैले तत्व होते हैं। एक शोध में पाया गया कि रजस्वला स्त्री के हाथ में कुछ ताजे खिले हुये फूल रखते ही कुछ ही समय में मुरझा जाते हैं। रजस्वला स्त्री का प्रभाव पशुओं पर भी पड़ता है, कुछ पशुओं की तो हृदय गति अचानक मन्द हो जाती है। यह सब परीक्षण किए गए प्रयोग हैं। इसलिए रजस्वला स्त्री को उस दुर्गंध तथा विषाक्त किटाणुओं से युक्त रक्त के प्रवहरण काल में किसी साफ सुथरी, पवित्र वस्तुओं को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

अपने घर में भी प्रयोग कर सकते हैं-

आप घर पर भी कुछ प्रयोग कर सकते हैं - जैसे तुलसी या किसी भी अन्य पौधे को रजस्वला के पास चार दिनों के लिए रख दिजीये वह उसी समय से मुरझाना प्रारंभ कर देंगे और एक मास के भीतर सूख जाएंगा।

रजस्वला धर्म संतानोत्पति का प्रथम चरण है

इसलिए कहा जाता है कि रजोदर्शन एक प्रकार से स्त्रियों के लिए प्रकृति प्रदत्त विरेचन है। ऐसे समय उसे पूर्ण विश्राम करते हुए इस कार्य को पूरा होने देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो कभी कभी दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। अतः अनिवार्य है कि रजस्वला स्त्री को पुर्ण सम्मान से आराम कराना चाहिए। उन 4 - 5 दिनों तक वह दिन में शयन न करें, रोवे नहीं, अधिक बोले नहीं, भयंकर शब्द सुने नहीं, उग्र वायु का सेवन तथा परिश्रम न करें क्योंकि हमारे और आपके भविष्य के लिए यह जरूरी है क्योंकि रजस्वला धर्म संतानोत्पति का प्रथम चरण है।


लिंगपुराण

इस विषय पर लिंगपुराण के पूर्वभाग अध्याय 89 श्लोक 99 से 119 में बहुत ही विशद वर्णन किया गया है। उसमें रजस्वला स्त्री के कृत्य और इच्छित संतानोत्पति के लिए इस कारण को उत्तरदायी बताया गया है इससे शरीर की शुद्धि होती है।

इतना तो करना ही चाहिेए

लिंगपुराण के अनुसार, रजस्वला स्त्री को भोजन नहीं बनाना चाहिए, पूजा-पाठ यज्ञादि में भाग नहीं लेना चाहिए, मंदिर में इसलिए प्रवेश नहीं करना चाहिए- इसका बहुत बड़ा कारण है कि मंदिर की औरा शक्ति बेहद सघन होता है, हम जो भी पूजा पाठ घर पर करते है, उसकी सात्विक ऊर्जा मंदिर से बेहद कम होती है। जब भी शरीर से स्राव (विरेचन) होता है, उस व्यक्ति की सात्विक ऊर्जा घट जाती है। मासिक स्राव द्वारा जैसे ही यह वेस्टेज शरीर से बाहर निकलता है, हमारा शरीर पुनः ऊर्जा से भर जाता है।

जब भी मंदिर के भीतर बहने वाली चुम्बकीय तरंगों को काटा जाता है तो उसका प्रभाव काटने वाली वस्तु पर भी होता है। इसलिए मंदिरों में एक नियम बनाया गया कि स्त्री मासिक धर्म के दौरान अपनी तामसिक या राजसिक तरंगों से मंदिर की औरा प्रभावित ना करे, बल्कि उन दिनों विश्राम करे, विरेचक पदार्थ को निकलने के बाद ही मंदिर में प्रवेश करे। रक्त स्राव के दिनों में कोई भी वस्तु प्रभु को अर्पण नहीं करनी चाहिए।।

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बूझो तो जानें??

पहेलियां ही पहेलियां ( बुंदेलखंडी/ बुन्देलखण्डी पहेलियां )

1. एक पेड़ सर्रौआ जा पे बैठे चील ना कौवा
~ धुंआ/ Smoke

2. इधर खूंटा उधर खूंटा भैंस मरखनी दुधा मीठा
~ सिंघाड़ा

3. हरी थी दुधभरी थी राजा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी
~ अडिया/ मका/ भुट्टा/ Corn

4. एक मठी के दो द्वारे बाबा निकले दे मारे
~ नाक/Nose

5. हम कटे तुम काहे रोए
~ प्याज/ Onion

6. करिया मुंह करहाएं पे आंखें
~ भारा/ भारो ( भाड़ )

7. गेर-गेर बारी लगी वीच में कुइया 
~ आँख

8. चार चरण छोटी भुजा नही पीठ न शीश रामायण न ढूंढीयो हनुमान न होय.
~ (खेंटन) लांकरी 

9. मड भीतर देवरा बसे, ननद बसे आकाश पिया हमारे बन रहें, जेठा जल के पास. 
~ (पान) 

10. सिव के सूत की मांत के, आखर चारे सुरेश बीच-बीच के छोड़के, भेजो करे हमेश 
~ (चिट्ठी-पतरी) 

11. पन्द्रा आये पंवने, बार बनाओ एक सबखां परसों आदौ-आदौ, दूले परसों एक. 
~ (पूर्णमासी) 

12. झट नाहाँ झट माँहाँ, छै गोडे दो बाहाँ पीठ के ऊपर पूँछ लटके, जौ तमासौ काँ है. 
~ (तराजू) 

13. तीन नेत्र शंकर नहीं, दूध देत नहिं गाय, पेड़ चढ़ो पंछी नहीं, ईकौ अरथ बताय. 
~ ( कच्चा नारियाल ) 

14. दस नख धरनी पे चलें, अतफर चलें पचास तीन मूड दो अँखियाँ, पतो लगा दो ख़ास. 
~ अंधे माता- पिता को कांवर में बैठाकर श्रवणकुमार उन्हें ले जा रहे हैं. 

15. तेली लौ कौ तेल,कुमार हंडी हाँती कैसी सूंड, नाबाव की झंडी. 
~ (दीपक और उसकी लौ) 

16. गंगा सिर पर ऊपर बहत, गरें मुंड कीमाल बरधा पे असवार गौ, गौर कौ पति नाय. 
~ (रहट) 

17. नीर छीर की उठें हिलोरे, बोले हाँ-हूँ बानी भरे कुआ में बुड्की दैबे, और मुगावे पानी. 
~ (नवनीत या मक्खन) 

18. घर में बावन चोर घुसे हैं, सबरं कौ मौ कारो पूँछ पाकर के तनक रगड़ दो, करन लगत उज्यारो. 
~ (माचिस और उसकी तीलियाँ) 

19. एक रंग के हैं दो भैया, बड़ो है उनमें नाता एक-एक से बिछुर जाय तौ, दूजौ काम न आता. 
~ (जूते की जोड़ी) 

20. लाल मूड़ मुरगा नहीं, लम्बी पूंछ नहीं मोर।
नीलकंठ शंकर नहीं, चार पाँव नहिं ढोर. 
~ (गिरगिट) 

21. बे हांत कौ बे पाँव कौ, पहार चडो जाय देखौ बनखंडी बाबा, कौन जनावर आय 
~ (धुआं और बादल) 

22. संजा कें पैदा भई, आधी रात जवान होत भुनसरा मर गयी, घर हो गओ मसान. 
~ (ओस) 

23. सोने की वह है नहीं, सोने की है नार खाती पीती कुछ नहीं, बूझौ बूझनहार 
(खटिया) 

24. चार खूंट कौ नगर बसों है, चार कुंआ बिन पानी छाए अठारा ऊके अन्दर, संग में लयें एक रानी।। 
( कैरम बोर्ड )

25. पहार है पर पथरा नइयां, नदी है पर पानी नइयां सहर है पर आदमी नइयां, जंगल है पर पेड़ नइयां 
(नओसुआ)

26. जैसी हिरनी वैसी बछिया जैसी मताई वैसी बिटिया 
(सही विवेक न होना)

27. दाल भात में मूसर चंद 
(बना काम बिगाड़ना) 

28. नंगी नाचे पूते खाय, बेटा की सों जेई जाय 
(बार-बार झूठ बोलना) 

29. भोंदू लला की उल्टी रीत, भर वसकारें उठावें भीत 
(उलटे काम करना) 

30. भरे समुद्र में घोघा पियासो 
(समय का सदुपयोग न करना) 

31. तीन दिन काउ तीनक नीना फिर अंधियारी रात 
(अपना रौब ज़माना) 

32. बच्चन से हम बोलत नाहीं, ज्वान लगे हमाये भैया।
बुढन के हम छोड़त नाहीं, चाहे ओढ़ें फिरें रजइया।।
(सर्दी/ठंड)

33. खट पांय खट पांय चलत विकट पानी पांय तीन मूड़ दस पांय
बताओ क्या :~ (हल जोतता किसान)

34. पीते भी हैं खाते भी हैं और जलाते भी हैं :~(नारियल)

35. उठो दीदी हम लेटें :~ (रोटी)

36. चार चिड़ियां चारों कलर की दरवा में घूसें एक ही कलर की :~
(पान)

37. जूता क्यों ना पहना समोसा क्यों न खाया ~ ( तला ना था )

38. एक खड़ी थी एक पड़ी थी एक दनादन नाच रही थी ~ ( रोटी )

39 सात रोज़ में हूं आता, बालकों का हूं चहेता । वे करते हैं बस मुझसे प्यार, नित्य करते हैं इंतजार ।। ~ रविवार ( Sunday )

अगर आप भी ऐसी ही पहेलियां हमसे साझा करना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में लिखें ।।

#बताइये क्या ??

कुछ पुरानी पहेलियां, अनकही पहेलियां, अनसुनी पहेलियां, पहेली का उत्तर दो तो जानें, अम्मा बाबा की पहेलियां, 

वेद ।। ( THE VEDAS )


🏮 वेद [भाग - 1]

#ऐतिहासिक स्रोत

📍 वेद शब्द विद् धातु (शाब्दिक अर्थ, 'जानना') से आया है और इसका अर्थ है 'ज्ञान'।

📍 वेदों को श्रुति का दर्जा प्राप्त है (शाब्दिक रूप से, 'जो सुना गया है')।

📍 उन्हें ऋषियों (द्रष्टाओं) द्वारा ध्यान की अवस्था में महसूस किए गए या देवताओं द्वारा प्रकट किए गए एक शाश्वत, स्वयंभू सत्य को मूर्त रूप देने के लिए सोचा जाता है।

📍 स्मृति (शाब्दिक रूप से, 'याद किया गया') ग्रंथों की श्रेणी में वेदांग, पुराण, महाकाव्य, धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र शामिल हैं।

📍 चार वेद हैं- ऋग, साम, यजुर और अथर्व।

#Historicalsources

📍 The word Veda comes from the root vid (literally, ‘to know’) and means ‘knowledge’. 

📍 The Vedas have the status of shruti (literally, ‘that which has been heard’).

📍 They are thought to embody an eternal, self-existent truth realized by the rishis (seers) in a state of meditation or revealed to them by the gods.

📍 The category of smriti (literally, ‘remembered’) texts includes the Vedanga, Puranas, epics, Dharmashastra, and Nitishastra. 

📍 There are four Vedas—Rig, Sama, Yajur, and Atharva.


🏮 वेद [ भाग 2 ]

#ऐतिहासिक स्रोत

प्रत्येक वेद के चार भाग होते हैं, जिनमें से अंतिम तीन कभी-कभी एक-दूसरे में मिल जाते हैं- संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद।

संहिता

📍ऋग्वेद संहिता 10 पुस्तकों में व्यवस्थित 1,028 भजनों का संग्रह है।

📍सामवेद में 1,810 श्लोक हैं, जो ज्यादातर ऋग्वेद से उधार लिए गए हैं, जिन्हें संगीत संकेतन की जरूरतों के अनुसार व्यवस्थित किया गया है।

📍 यजुर्वेद अनुष्ठानों के प्रदर्शन के विवरण से संबंधित है।

📍अथर्ववेद नवीनतम वेद है और इसमें भजन शामिल हैं, लेकिन मंत्र और आकर्षण भी हैं जो लोकप्रिय मान्यताओं और प्रथाओं के पहलुओं को दर्शाते हैं।

ब्राह्मण

📍ब्राह्मण संहिता के अंशों की गद्य व्याख्याएं हैं और बलि अनुष्ठानों और उनके परिणामों का विवरण और स्पष्टीकरण देते हैं।

अरण्यक

📍 यह प्रतीकात्मक और दार्शनिक तरीके से बलिदान अनुष्ठानों की व्याख्या करता है।

 उपनिषदों

📍 108 उपनिषद हैं, जिनमें से 13 प्रमुख माने जाते हैं।

#Historicalsources

Each Veda has four parts, the last three of which sometimes blend into each other— the Samhita, Brahmana, Aranyaka, and Upanishad.

SAMHITA

📍The Rig Veda Samhita is a collection of 1,028 hymns arranged in 10 books. 

📍The Sama Veda consists of 1,810 verses, mostly borrowed from the Rig Veda, arranged according to the needs of musical notation. 

📍The Yajur Veda deals with the details of the performance of rituals. 

📍The Atharva Veda is the latest Veda and contains hymns, but also spells and charms which reflect aspects of popular beliefs and practices. 

BRAHMANAS

📍The Brahmanas are prose explanations of the Samhita portions and give details and explanations of sacrificial rituals and their outcome. 

ARANAYAKAS

📍 It interpret sacrificial rituals in a symbolic and philosophical way. 

 UPNISHADS

📍 There are 108 Upanishads, among which 13 are considered the principal ones.

अरावली पर्वतमाला से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य 🌋

1. अरावली पहाड़ियां भारत के चार राज्यों – राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली में फैली हुई हैं।

2. इस पर्वत श्रंखला की लंबाई 692 किमी. हैं।

3. अरावली पर्वतमाला का 80% भाग राजस्थान में स्थित हैं।

4. दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन रायशेला पहाड़ी पर बना हुआ है, जो कि अरावली पर्वतों का ही भाग हैं।

5. अरावली की सबसे ऊंची चोटी: गुरु–शिखर है जो सागर तल से 1,722 मीटर ऊंची है।

निम्न जानकारी शास्त्रोक्त आधार पर है।।

जानें, 2 से लेकर 10 तक की संख्या में हिंदू धर्मशास्त्र की रोचक जानकारी।।

दो लिंग : नर और नारी ।

दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।

दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।

दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।

तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।

तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।

तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।

तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।

तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।

तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।

तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।

तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।

तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।

तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।

तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।

तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।

चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।

चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।

चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।

चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।

चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।

चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।

चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।

चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।

चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।

चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।

चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।

चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।

चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।

चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।

चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।

चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।

पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।

पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।

पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।

पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।

पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।

पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।

पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।

पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।

पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।

पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।

पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।

पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।

पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।

छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।

छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।

छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।

सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।

सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।

सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।

सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।

सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।

सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।

सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।

सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।

सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।

सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।

सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।

सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।

आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।

आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।

आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।

आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।

नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।

नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।

दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य,वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।

दस दिक्पाल- इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।

दस अवतार (विष्णुजी)- मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।

दस सती- सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

नदी में पैसे नहीं डालने चाहिए। क्यों?

आईए जानते हैं-"अर्थव्यवस्था पर भारी आस्था" एक लेख !

हमारे देश में रोज न जाने कितनी रेलगाड़ियाँ, जाने कितनी नदियों को पार करती हैं और उनके यात्रियों द्वारा हर रोज नदियों में सिक्के फेंकने का चलन है!
अगर रोज के सिक्कों के हिसाब से गणना की जाए तो ये रकम कम से कम दहाई के चार अंको को तो पार करती होगी।
सोचो इस तरह हर रोज कितनी भारतीय मुद्रा ऐसे फेंक दी जाती है?
इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुँचता होगा, ये तो एक अर्थशास्त्री ही बता सकता। लेकिन एक रसायनज्ञ होने के नाते मैं लोगों को सिक्के की धातु के बारे में इतना अवश्य जागरूक कर सकता हूँ कि वर्तमान सिक्के 83% लोहा और 17 % क्रोमियम के बने होते हैं। और,
क्रोमियम एक भारी जहरीली धातु है।
क्रोमियम दो अवस्था में पाया जाता है, एक Cr (III) और दूसरी Cr (IV)। इनमें क्रोमियम (IV) जीव जगत के लिए घातक होता है।अगर इसकी मात्रा 0.05% प्रति लीटर से ज्यादा हो जाए तो ऐसा पानी हमारे लिए जहरीला बन जाता है। जो सीधे कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देता है।
 सोचो एक नदी जो अपने आप में बहुमूल्य खजाना छुपाए हुए है और हमारे एक-दो रूपये से कैसे उसका भला हो सकता है ? 

सिक्के फेंकने का चलन ताँबे के सिक्के के समय था।
प्राचीनकाल में एक बा दूषित पानी से बीमारियाँ फैली थीं तो, राजा ने हर व्यक्ति को अपने आसपास के जल के स्रोत या जलाशयों में ताँबे के सिक्के को फेकना अनिवार्य कर दिया था। क्योंकि ताँबा जल को शुद्ध करने वाली सबसे अच्छी धातु है"
आजकल सिक्के नदी में फेंकने से किसी तरह का उपकार नहीं बल्कि जल प्रदूषण और बीमारियों को बढ़ावा हो रहा है।
इसलिए आस्था के नाम पर भारतीय मुद्रा को हो रहे नुकसान को रोकने की जिम्मेदारी हम सब नागरिकों की है।

अतः आपसे निवेदन कि इसे आप अपने मित्रों, बच्चों तथा अशिक्षित व्यक्तियों को विशेष रूप से समझाएँ, ताकि अज्ञानतावश गलती न हो।
धन्यवाद।

केंद्रीय जल आयोग भारत सरकार की ओर से राष्ट्रहित एवं जनहित में जारी। जानकारी के लिए इसे शेयर जरूर करें !

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Important Different Dance forms of India with States (Classical / Folk & Tribal Dances) 💃



🔶Classical Dances

▫Bharat Natyam=Tamil Nadu
▫Bihu=Assam
▫Bhangar=Punjab
▫Chan=Bihar, Orissa, West Bengal and Mando
▫Garwali=Uttaranchal
▫Garba=Gujarat
▫Hatlari=Karnataka
▫Kathak=North India
▫Kathakali=Kerala
▫Kuchipudi=Andhra Pradesh
▫Khantumm Bamboo Dance=
Mizoram
▫Karma=Madhya Pradesh
▫Laho=Meghalaya
▫Mohiniattam=Kerala
Goa,Jharkhand
▫Manipuri=Manipur
▫Nati=Himachal Pradesh
▫Nat-Natin=Bihar
▫Odissi=Orissa
▫Ronf=Jammu and Kashmir
▫Yakshagan=Karnataka

🔶Folks and Tribal Dances

▫Kathakeertan, Lezin, Dandaniya, Tamasha, Gafa, Dahikala, Lovani, Mauni, Dasavtar
=Maharashtra
▫Rakhal, Nat Rash, Maha Rash, Raukhat
=Manipur
▫ Baala=Meghalaya
Khanatm, Pakhupila, Cherokan
=Mizoram
▫ Huttari, Suggi Kunitha, Yakashagana
=Karnataka
▫ Kaikottikali, Kaliyattam, Thappatikkali
=Kerala
▫ Kokattam, Pinnal Kolattam, Kummi, Kavadi, Karagam
=Tamil Nadu
▫ Ghanta Mardala, Veedhi Natakam, Burrakatha, Ghantamardala, Ottam Thedal, Kummi, Siddhi, Madhuri, Chhadi.
=Andhra Pradesh
▫ Ghumara Sanchar, Chadya Dandanata, Chhau
=Orissa
▫ Kathi, Chhau, Baul Kirtan, Jatra, Lama
=West Bengal
▫ Bihu, Khel Gopal, Rash Lila, Tabal Chongli, Canoe
=Assam
▫ Giddha (Women), Bhangra (Men), Daff, Dhaman
=Punjab
▫ Rauf, Hikat, Mandjas, kud Dandi nach, Damali.
=Jammu and Kashmir
▫ Chhanu, Sarahul, Jat-Jatin, Karma, Danga, Bidesia, Sohrai.
=Jharkhand
▫ Jhora, Jhali, Dangli, Mahasu, Jadda, Jhainta, Chharhi
=Himachal Pradesh
▫ Jhumar, Ras Leela, Phag dance, Daph, Dhamal, Loor, Gugga, Khoria, Gagor
=Haryana
▫ Garba, Dandiya Rass, Tippani, Gomph
=Gujarat
▫ Mandi, Jhagor, Khol, Dakni
=Goa
▫ Ginad, Chakri, Gangore, Terahttal. Khayal. Jhulan Leela, Jhumaa, Suisini
=Rajasthan
▫ Jata Jatin, Jadur, Chhau, Kathaputli, Bakho, Jhijhiya, Samochakwa, Karma, Jatra, Natna
=Bihar
▫ Nautanki, Thora, Chappeli, Raslila, Kajri
=Uttar Pradesh
▫ Gadhwali, Kumayuni, Kajari, Jhora, Raslila, Chappeli.
=Uttarakhand
▫ Goudi, Karma, Jhumar, Dagla, Pali, Tapali, Navrani, Diwari, Mundari.
=Chhattisgarh
▫ Mask dance (Mukhauta Nritya), War dance.
=Arunachal Pradesh
▫ Chong, Khaiva, Lim, Nuralim
=Nagaland

Interesting Facts

🔮International Dance Day was introduced in 1982 by the International Dance Council (CID, Conseil International de la Danse), a UNESCO partner NGO, and is celebrated yearly, on April 29.

Bharatanatyam culture of South India

🔮Mridangam, Veena, Flute, Violin, and Talam are some of the instruments used in Bharatanatyam performance

🔮Kathak is intermingled with the culture of North India. This classical dance form is associated with the recital art of storytelling. 

🔮Heavy makeup and colorful costume are the most amazing facets of Kathakali

🔮noble hero or god wears green makeup on the face while the dance playing a demon smears his face in green with red marks on the cheeks.
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क्या आप इन 5 भारतीय स्मारकों के बारे में जानते हैं जिन्हें महिलाओं ने बनवाया था, जानिए इतिहास !

1-:-)नई दिल्ली में स्थित हुमायूं का मकबरा:

नई दिल्ली में स्थित हुमायूं का मकबरा भारत के प्रसिद्ध मकबरों में से एक है, जिसका निर्माण हुमायूं की बेग़म, हामिद बानो बेग़म ने करवाया था। यह स्मारक फ़ारसी और भारतीय शैली को मिलाकर बनाई गई सबसे पुरानी रचनाओं में से एक है। हामिदा बेगन के मरने के बाद उन्हें भी इस मक़बरे में दफ़नाया गया था। ✅

2:-) आगरा में इतिमाद-उद-दौला का मक़बरा:

महारानी नूर जहां ने भारत में संगमरमर का सबसे पहला मकबरा अपने पिता मीर गयास बेग की याद में सन् 1622 से 1628 के बीच बनवाया था जिसका नाम इतिमाद-उद-दौला का मक़बरा है। यह मकबरा बाग़ में स्थित किसी ख़ज़ाने के बक्से की तरह दिखता है जिसमें कोरल के साथ लाल और पीले बालू के पत्थर पर बारीक काम किया गया है। ✅

3:-) गुजरात में रानी की वाव:

भारत की सबसे खूबसूरत बावलियों में से एक रानी की बावली दुनिया की सबसे पहली वाव है जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत धरोहरों की सूचि में रखा गया है। गुजरात के पाटण में मौजूद इस वाव को रानी उदयमति द्वारा अपने पति राजा भीमदेव प्रथम की याद में सन् 1063 में बनवाया गया था। सरस्वती नदी के किनारे बसा यह वाव नदी के कीचड़ से भर गया था जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा फिर से खोद कर निकाला गया है। ✅

4:-) कर्नाटक का मिरजान किला:

मिरजान किला कर्नाटक के पूर्वी कन्नड़ जिले के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है। यह किला ऊंची दीवारों और ऊंचे गढ़ों की डबल परत से घिरा हुआ है, जिसे गरसोप्पा की रानी, चेन्नाभैरादेवी द्वारा बनवाया गया। उन्हें रैना दे पिमेंता भी कहा जाता था जिसका मतलब काली मिर्च की रानी है। उनका नाम काली मिर्च पर इसलिए पड़ा क्योंकि वो उस जगह शासन करती थीं जहां काली मिर्च की ज्यादा पैदावार होती थी। ✅

5-:) नई दिल्ली में खैर-अल-मंजिल मस्जिद:

नई दिल्ली में खैर-अल-मन्ज़िल मस्जिद का निर्माण सन् 1561 में अकबर की दाई मां महम अंगा ने कराया था। महम अंगा मुग़ल दरबार की सबसे प्रभावशाली महिला थीं जिन्होंने अकबर के बचपन के समय मुग़ल साम्राज्य पर शासन किया। विद्वानों के अनुसार इस मस्जिद का इस्तेमाल मदरसे के रूप में भी किया जाता था  ✅

मुग़ल साम्राज्य का रोचक इतिहास – Mughal Empire History In Hindi

❂ मुगल वंश के बारे में जानकारी ❂

साम्राज्यवंश का नाम :- मुगल वंश शासन काल १५२६-१८५७

प्रमुख सत्ताकेंद्र स्थान : – दिल्ली, औरंगाबाद, आग्रा

प्रमुख शक्तिशाली शासक :- बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहां, औरंगजेब

शासन काल मे कला से जुडी प्रमुख उपलब्धीया :- ताजमहाल, लाल किला, जामा मस्जिद, बीबी का मकबरा, लाहोर मस्जिद, मोती मस्जिद, तक्ख्त-ए- ताउस इत्यादी

प्रथम शासक : – बाबर

अंतिम शासक :-  बहादूर शाह जफर

साम्राज्य का कुल शासनकाल :- लगभग ३३१ साल

मुगल वंश के शासकों की सूची – List of Mughal Emperors In Hindi🎸🎸

🔹🔹मुगल वंश के संस्थापक बाबर🔹🔹 

🔸🔸(30 अप्रैल 1526-26 दिसम्बर 1530)🔸🔸

भारत में साल 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद भारत में लोदी वंश और दिल्ली सल्लनत का अंत हुआ एवं बाबर द्धारा मुगल वंश की स्थापना की गई। बाबर के बारे में एक नजर में

पूरा नाम :- जहीर-उद-दिन मुहम्मद बाबर

जन्म :- 14 फरवरी, 1483, अन्दिझान (उज्बेकिस्तान)

पिता :- उमर शेख मिर्जा (फरगना राज्य  के शासक)

माता :- कुतलुग निगार खानुम

पत्नियां :- आयेशा सुलतान बेगम, जैनाब सुलतान बेगम, मौसमा सुलतान बेगम, महम बेगम, गुलरुख बेगम, दिलदार अघाबेगम, मुबारका युरुफझाई, सहिला सुलतान बेगम, हज्जाह गुलनार अघाचा, नाझगुल अघाचा, बेगा बेगम।

पुत्र /पुत्रियां :- हुमायूँ, कामरान, अस्करी, हिन्दाल, गुलबदन बेगम

शासन काल :- सन 1526 से 1530 ई.

निर्माण :- क़ाबुली बाग़ मस्जिद, आगरा की मस्जिद, जामा मस्जिद, बाबरी मस्जिद,नूर अफ़ग़ान

मृत्यु :- 26 दिसम्बर 1530

🔹🔸 मुगल सम्राट हुमायूं 🔹🔸

पूरा नाम :- नासीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं

जन्म :- 6 मार्च, सन् 1508 ई., क़ाबुल

पिता :- बाबर

माता :- माहम बेगम

शासन काल :- (26 दिसंबर, 1530 – 17 मई, 1540 ई. और 22 फ़रवरी, 1555 – 27 जनवरी, 1556 ई.)

उत्तराधिकारी :- अकबर

मृत्यु :- 27 जनवरी, सन् 1555 ई., दिल्ली

🔹🔹मुगल सम्राट अकबर द महान🔹🔹

नाम :- अबुल-फतह जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर

जन्म :- 15 अक्टूबर, 1542, अमरकोट

पिता :- हुमांयू

माता :- नवाब हमीदा बानो बेगम साहिबा

शासनकाल :- 11 फरवरी 1556 से 27 अक्टूबर 1605

उत्तराधिकारी :- जहांगीर

मृत्यु :- 27 अक्टूबर 1605 (फतेहपुर सीकरी, आगरा)

अकबर के दरबार के नवरत्न :- बीरबल, अबुल फजल, मानसिंह, भगवानदास, तानसेन, फैजी। अब्दुर्रहीम खानखाना, मुल्ला दो प्याजा, टोडरमल,

🔷 मुगल शासक जहांगीर (1605से1627तक)🔷

पूरा नाम :- मिर्ज़ा नूर-उद्दीन बेग़ मोहम्मद ख़ान सलीम जहाँगीर

जन्म :- 30 अगस्त, सन् 1569, फ़तेहपुर सीकरी

पिता :- अकबर

माता :- मरियम उज़-ज़मानी

विवाह :- नूरजहाँ, मानभवती, मानमती

शासनकाल :- सन 15 अक्टूबर, 1605-8 नवंबर, 1627

🔹🔹मुगल शासक शाहजहां(1628-1658)🔹🔹

पूरा नाम :- मिर्ज़ा साहब उद्दीन बेग़ मुहम्मद ख़ान ख़ुर्रम

जन्म :- 5 जनवरी, सन् 1592, लाहौर, पाकिस्तान

पिता :- जहांगीर

माता :- जगत गोसाई (जोधाबाई)

विवाह :- अर्जुमन्द बानो (मुमताज)

शासनकाल :- 8 नवम्बर 1627 से 2 अगस्त 1658 ई.तक

निर्माण :- ताजमहल, लाल क़िला दिल्ली, मोती मस्जिद आगरा, जामा मस्जिद दिल्ली

उपाधि :- अबुल मुज़फ़्फ़र शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी, शाहजहाँ (जहाँगीर के द्वारा प्रदत्त)

🔸🔸मुगल शासक – औरंगजेब🔸🔸

पूरा नाम :- अब्दुल मुज़फ़्फ़र मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर पादशाह गाज़ी

जन्म :- 4 नवम्बर, सन् 1618 ई., दाहोद (गुजरात)

पिता :- शाहजहाँ

माता :- मुमताज महल

शासनकाल :- 31 जुलाई, सन् 1658 से 3 मार्च, सन् 1707 तक

निर्माण :- लाहौर की बादशाही मस्जिद 1674 ई. में, बीबी का मक़बरा, औरंगाबाद, मोती मस्जिद

उपाधि :- औरंगज़ेब आलमगीर

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हनुमानजी और शनि महाराज का एक प्रसंग।।



आज हनुमानजी और शनि महाराज के एक प्रसंग का स्वाध्याय करेंगे, तुलसीदासजी कहते हैं- "संकट ते हनुमान छुड़ावें" शनि को हम संकट कहते हैं, एक बार हनुमानजी पहाड़ की तलहटी में बैठे थे तभी शनि महाराज हनुमानजी के सिर पर आ गये, हनुमानजी ने सिर खुजाया लगता है कोई कीड़ा आ गया, हनुमानजी ने पूछा तू है कौन? शनिदेव ने कहां- मैं शनि हूँ, मैं संकट हूँ, हनुमानजी ने कहा मेरे पास क्यो आये हो? शनि बोले मैं अब आपके सिर पर निवास करूँगा।

हनुमानजी ने कहाँ- अरे भले आदमी, मैंने ही तुझे रावण के बंधन से छुड़वाया था और मेरे ही सिर पर आ गये, बोले हाँ क्यो छुड़ाया था आपने, इसका फल तो आपको भोगना पडे़गा, अच्छा कितने दिन रहना है? शनि बोला साढ़े सात साल और अच्छी खातिरदारी हो गयी तो ढाई साल और, हनुमानजी ने कहा भले आदमी किसी और के पास जाओं।

मैं भला श्री रामजी का मजदूर आदमी, सुबह से शाम तक सेवा में लगा रहता हूँ, मुश्किल पड़ जाएगी, तुम भी दुःख भोगेगे और मुझे भी परेशान करोगे, शनिदेव ने कहा मैं तो नही जाऊंगा, हनुमानजी बोले कोई बात नही तुम ऐसे नही मानोगे, हनुमानजी ने एक बहुत बड़ा पत्थर उठाया और अपने सिर पर रखा, 

पत्थर शनिदेव के ऊपर आ गया, शनि महाराज बोले यह क्या कर रहे हो? बोले माँ ने कहा था कि चटनी बनाने के लिए एक बटना ले आना वह ले जा रहा हूँ, हनुमानजी ने जैसे ही पत्थर को उठाकर मचका दिया तो शनि चीं बोलने लगा, दूसरी बार किया तो बोले क्या करते हो? बोले चिन्ता मत करों, शनिदेव बोले- छोड़ो-छोड़ो, हनुमानजी बोले नहीं अभी तो साढ़े सात मिनट भी नहीं हुये है, तुम्हें तो साढ़े सात साल रहना है।

जब दो-तीन मचके ओर दिये तो शनिदेव तिलमिला गये, शनिदेव ने कहा भैय्या मेरे ऊपर कृपा करो, बोले ऐसी कृपा नही करूँगा, बोले वरदान देकर जाओं, शनि का ही दिन था, हनुमानजी ने कहा कि तुम मेरे भक्तो को सताना बंद करोगे, तब शनि ने कहा कि हनुमानजी के जो भी भक्त शनिवार को आपका स्मरण करेगा आपके चालीसा का पाठ करेगा मैं उसके यहाँ नही, बल्कि उसके पडोसी के वहाँ भी कभी नही जाऊंगा, उसका संकट दूर हो जायेगा।

फिर शनिदेव ने कहा कि हनुमानजी एक कृपा आप भी मुझ पर कर दीजिये, हनुमानजी बोले क्या? शनिदेव बोले- आपने इतनी ज्यादा मेरी हड्डियां चरमरा दी हैं, इसलिये थोड़ी तेल मालिश हो जाये तो बड़ी कृपा हो जायें, हनुमानजी ने कहा कि ठीक है मैं अपने भक्तो को कहता हूँ कि शनिवार के दिन जो शनिदेव को तेल चढ़ायेंगा उसके संकट मैं स्वयं दूर करूँगा।

दूसरा संकट क्या है? त्रिताप ही संकट है, दैविक, दैहिक तथा भौतिक ताप यही संकट है और इसकी मुक्ति का साधन क्या है? केवल भगवान् का सुमिरन, "राम राज बैठें त्रैलोका, हरषित भये गये सब सोका" रामराज कोई शासन की व्यवस्था का नाम नही है, रामराज मानव के स्वभाव की अवस्था का नाम है, समाज की दिव्य अवस्था का नाम है।

आज कहते हैं कि हम रामराज लायेंगे, तो भाई-बहनों फिर राम कहाँ से लायेंगे? नहीं-नहीं व्यवस्था नहीं, वह अवस्था जिसको रामराज कहते हैं, रामराज्य की अवस्था क्या है? "सब नर करहिं परस्पर प्रीती, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती" यह रामराज्य की अवस्था है, व्यवस्था कैसी भी हो अगर, व्यक्तियों की और समाज की यह अवस्था रहेगी तो शासन में कोई भी बैठो राज्य राम का ही माना जायेगा, 

राम मर्यादा है, धर्म है, सत्य है, शील है, सेवा है, समर्पण है, राम किसी व्यक्तित्व का नाम नही है, राम वृत्ति का नाम है, स्वरूप का नाम राम नहीं है बल्कि स्वभाव का नाम राम है, इस स्वभाव के जो भी होंगे वे सब राम ही कहलायेंगे, वेद का, धर्म की मर्यादा का पालन हो, स्वधर्म का पालन हो, यही रामराज्य है।

स्वधर्म का अर्थ हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध धर्म का पालन नही है, स्वधर्म का अर्थ है जिस-जिस का जो-जो धर्म है, पिता का पुत्र के प्रति धर्म, पुत्र का पिता के प्रति धर्म, स्वामी का धर्म, सेवक का धर्म, राजा का धर्म, प्रजा का धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, शिक्षक का धर्म, शिष्य का धर्म।

यानी अपने-अपने कर्तव्य का पालन, जैसे सड़क पर अपनी-अपनी लाईन में यदि वाहन चलेंगे तो किसी प्रकार की टकराहट नही होगी, संघर्ष नही होगा और जब आप लाईन तोड़ देंगे जैसे मर्यादा की रेखा जानकीजी ने तोड़ दी थी, आखिर कितने संकट में फँस गयी, कितना बड़ा युद्ध करना पड़ा जानकीजी को छुड़ाने के लियें।

जरा सी मर्यादा का उल्लंघन जीवन को कितने बड़े संकट में फँसा सकता है, जो रामराज्य में रहेगा हनुमानजी उसके पास संकट आने ही नही देंगे, क्योंकि रामराज्य के मुख्य पहरेदार तो श्रीहनुमानजी महाराज हैं, तीनों कालों का संकट हनुमानजी से दूर रहता है, संकट होता है- शोक, मोह और भय से, भूतकाल का भय ऐसा क्यों कर दिया, ऐसा कर देता तो मोह होता है।

वर्तमान में जो कुछ सुख साधन आपके पास हैं यह बना रहे, इसको पकड़कर बैठना यह मोह और भय होता है, भविष्यकाल में कोई छीन न ले कोई लूट न ले, भविष्य का भय की मेरा क्या होगा? भाई-बहनों आपको भविष्य की चिंता छोड देना, क्योंकि, हनुमानजी सब कालों में विधमान हैं, "चारों जुग प्रताप तुम्हारा, है प्रसिद्ध जगत उजियारा" हनुमानजी तो अमर हैं।

चारों युगों में हैं सम्पूर्ण संकट जहाँ छूट जाते हैं शोक, मोह, भय वह है भगवान् श्री रामजी की कथा, कथा में हनुमानजी रहते हैं, अगर वृत्तियाँ न छूटे तो हनुमानजी छुड़ा देंगे, बिल्कुल मानस के अंत में पार्वतीजी ने प्रमाणित किया है, "सुनि भुसुंडि के बचन सुहाये, हरषित खगपति पंख फुलाये" तीनों संकट अगर दूर चले जाते हैं, या छोड़ देते हैं, मनुष्य को तो वह श्रीराम की कृपा मिल जाती है, और उस कृपा से मोह का नाश होता है, 

बिनु सतसंग न हरि कथा, तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु राम पद, होय न दृढ़ अनुराग।।

भगवत कथा, सत्संग यह मोह का नाश करती है, संत-मिलन संत-दर्शन शोक को दूर करता है "तोहि दैखि वेग शीतल भई छाती" जैसे हनुमानजी मिले तो जानकीजी का ह्रदय शान्त हो गया, शीतल हो गया, हनुमानजी के प्रति श्रद्धा रखियें, श्रद्धा से भय का नाश होता है, आपके मन में यदि भगवान् के प्रति श्रद्धा है तो आप कभी किसी से भयभीत नही होंगे।

जय श्री रामजी 
जय श्री हनुमानजी.

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या है अंतर ?


!!!रोचक तथ्य!!!

पहला अंतर

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे ध्वजारोहण कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है।

जबकि

26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है।

दूसरा अंतर

15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं।

जबकि

26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं

तीसरा अंतर

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है।

जबकि

गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।

आपसे आग्रह अपने बच्चों को जरूर बताएं।🙏🙏


Why 'Bhakti Movement' is Marxist Propoganda



Marxist Propgandists have shown Vaishnava Acharyas and Sants as some Reformists who tried to dilute the Brahmanical and Vedic Hinduism. 

Vedas are the root if Hinduism, and the Sole Duty of Preaching Vedas is only to Brahmanas, it is not a right, it is a Duty which has been laid upon them by Paramatma itself and they're supposed to learn and teach Vedas since birth. 

Vaishnava Acharyas like Ramanuja are considered to be the ones to start the Bhakti Movement. 

It is definitely true that Ramanujacharya revived and popularized Bhakti again among the masses. But he has not opposed anything of the Vedas. Pashubali has not been opposed, He did not allow Shudras to read Vedas, and what he did was He showed how Shastras are not granting Moksha only to Brahmanas, which was the previous misconception.

Entry into temples which did not violate Vedic Norms was popularized and promoted.

Inclusiveness is the Nature of Bhakti. And it included giving Mantras to all castes and even Mlechhas are eligible to worship Bhagavan. There is no stopping Anyone.  

Moksha through Jnanamarga is only open to Brahmanas, but Moksha through Vaishnava Pancharatra Shastras, Ramayana, Mahabharata, Bhagavata Purana etc is Universal. Books where written to explain the crux of thr Upanishads and the Secrets of the Upanishads where elaborated within them withou quoting the Vedas hence making them Universally accessible. 

Bhagavata-Shreshthas like Suradasa ji Tulasidasaji Ashtachhapa Bhakta Kavis of Vallabha Pushti Bhakti, Hita Harivamsha ji, Alwar Sants, Annamacharya, Ramadasu ji, Nrisimha Mehta ji, Tukarama ji, Ravidasa ji etc wrote the Essence of Bhakti, the Crux of all Vedas and Vedantic Philosophical concepts in Local languages and made Brahma-jnana easily accessible by All. 

Bhakti they proved is the main intent of Upanishads, its not Jnana not Karma, it is how भागवत says ज्ञानवैराग्ययुक्तया श्रुतिगृहीतया भक्त्या (while using सहयुक्तेप्रधाने अप्रधानतृतीया) such Bhakti known through Shruti, where Jnana and Vairagya are Parts 
Will give Biggest fruit which is भगवत्-साक्षात्कार (appearance of Hari). 

They did not make any reforms or ammendments in Vedas. They revived the Bhakti Which had becomes less popular. And where people where being deluded by delusional philosophies spread in the name of Jnanamarga, Acharyas like Vallabhacharya enlightened the world by Showing the Real Jnana-marga of the True Sankhya-yoga (jnana-yoga) expounded by Maharshi Kapiladeva. 

It was Marxists who started using Bhakti Sants and show them as Anti-Vedas, or such people who made changes or ammendments in Vedas. Their purpose was to crrate divide in minds of Hindus and misguide them from Vedic Dharma and teach them Avedic Liberalism in the name of Bhakti. 

Kabridasji was never secular. Tulasidasji was completely Brahmanical even though he showed Rama hugging the Nishada. Surdasji wrote how Rama ate the eaten fruits of Shabari, still their was no intent to Seculaize or Liberalize or Reform Dharma.  

Reform means the idea that Vedic Dharma was of oldage. Now new rules should come. And hence they spread lies about Dharma to be flexible and Smritis to undergo changes. "Change" itself is Marxist Propoganda. Kabirdasji was student of Ramanandacharya and never said those secular things. All these verses are added later.

Beware of Marxist Propoganda fed to you in the name of Bhakti Movement. Bhakti Movement did happen but was not Reformist and Anti-Brahmanical. It was definitely All-Inclusive. and even the lower class Sants like Tukaramji Ravidasji have written about how Vedic Dharma is only True and Brahmanas are hailed by each! Bhakti is Hailed by the Vedas to be the Only way to reach the Highest Gati. Then why show it as Anti-Vedic/Reformist? Bhakti out of 3 ways to Reach Bhagavan is the Highest way. 


Why Traditional Gurus?

Dear Hindus,

If you fall sick, do you go to an authentic doctor, or just eat medicines prescribed by a random person on social media?

If you want to understand a scientific research paper, would you approach a scholar in that field, or would you assume anybody and everybody to be a scholar and start believing in whatever they say?

If you want to learn Business Administration, would you learn from an authentic college, or would you learn from strangers on social media? Even the best books can't teach you MBA fully. Only qualified experts can. 

Be it theoretical knowledge, practical knowledge or health, we always seek only authentic sources.

Why then do we not do the same thing in Sanatanadharma? How come people seek knowledge from strangers without verifying their authenticity?

When we do not know something, why to make public posts, seek answers from everyone, and get confused and/or misled?

We have traditional pathashalas. People respect them but don't want to study there. We have traditional gurus and paramparik acharyas of authentic sanpradayas. But people don't want to seek them either.

People want knowledge, but are so greedy that they don't care about authenticity. And after all these failures to support traditional gurus and Acharyas, when they get into any problem, these same people immediately ask

"What have traditional gurus and Acharyas done to save dharma?"

There's no bigger hypocrisy than this.

As long as people ignore traditional gurus and seek knowledge from anybody and everybody,

1. Misconceptions and misunderstandings about Sanatanadharma will only keep on increasing.

2. Conversions away from Hinduism will keep on increasing.

3. Traditional, authentic gurus and institutions will continue to suffer and continue to be helpless.

4. Fake scholars who have read books and interpreted based on their little knowledge would keep on increasing.

5. Anti-Hindu interpretations of Hindu scriptures would continue to rise.

6. The lives of great saints and scholars who spent their entire lives in protecting scriptures by giving the correct interpretation through commentaries and sub-commentaries would go waste.

Hence, dear friends, stop being greedy for knowledge. If you don't know certain things, it's absolutely OK. No need to learn from random people who pass on their comments after self-interpreting. No need to self-interpret and present yourself as a scholar in front of everyone.

If you have a Guruparampara, cite your Poorvacharyas. If you don't have a Guruparampara, seek one instead of competing with the millennia old tradition mandated by the scriptures themselves.

All Itihasa and Purana unanimously show us one thing - service to a Brahmana reaps much greater karmic merits than service to anyone else. Why? Is it because others are iNfErIoR?

Others are indeed inferior and that inferiority will be elaborated and explained in this post. Are others inferior simply because they don’t have a Brahmana surname? No. The inferiority lies in Tapobala - penance. 

A Brahmana’s tapobala is much much higher at birth itself than any other lineage’s. But is birth alone the sole retaining factor for tapobala and Brahmanatva? No. Birth followed by practice of Shastras according to one’s Varna is paramount to retain oneself in one’s Varna of birth. A Brahmana must lead a life of the sort that would involve greater austerity and religiosity than other Varnas as even the normal rules and regulations of the Shastras which apply to a Brahmana will be much greater in terms of responsibility for him than for anyone else. Why is this? Because the Brahmana's Prarabdhakarmpahala mandates that he do all this to retain his position as Brahmana. 

it is for this reason that the Shastras will prescribe the maximum rules for Brahmanas. The do’s for a Brahmana are not as great in number as the dont’s.  A person born in a Brahmana lineage who does not perform his Nityakarma and does not maintain all the necessary shuddhi for that Nityakarma to bear fruit (moral and personal hygiene prescribed in the Shastras), will cease to be a Brahmana and will become a Brahmabandhu.

When you serve a Brahmana, you are serving one who was born with Brahmanatva and is retaining his Brahmanatva by the rigorous practice of the Shastras.  Simply serving someone with a certain Brahmin lineage’s surname does not mean that you are serving a real Brahmana. You may even be inadvertently serving a Brahmabandhu thinking it is a Brahmana. Given that a Brahmana leads the sort of life that allows him to retain the tapobala of his forefathers, he becomes worthy of being served, you will only stand to gain by serving such a person in whatever capacity Varnashrama allows you to serve him. In this regard, you must note that a Brahmana’s blessing too will carry so much more power as will his curse.

Why must the Brahmana do all this? After all, being a materialistic people who look for returns in all things, one will ask - what is the benefit in a Brahmana being this way? 

A Brahmana manifests to take others' sins to expiation, and ensure that wherever his feet touch, only sattvaguna shall dominate over that land. His presence in a land is supposed to end so many sins in that land, that only good people will be born there, diseases won't come there, all Varnas follow their duties according to the Karmic reasons for which they manifested from Brahma and his creations. A Brahmana can be capable of absorbing such sins ONLY IF he follows his Dharma and NEVER otherwise. 

A Brahmana's purpose for existing is to help other creatures move closer to Bhagavan - it is called the First Varna for this reason that its truest members can expiate others' sins more than any other living creature can. And this also makes it doubly difficult to retain one's Brahmanatva after being born in a Brahmana lineage, for the necessities to retain this position are humongous in nature and difficult. Yet it is possible and those of these lineages must strive to do this. 

When you hear the term Brahmana, start training yourself to make the distinction of -  Person born in a Brahmana lineage and nothing more, or person born as a Brahmana and living as one as well. If you come across the former kind, note that touching their feet too is a sin as they have lost their Brahmanatva and have neither moral nor spiritual sanction to bless anyone. They will only pass on their sins to others and gain their sins in turn if they have anyone touch their feet. The same reasoning of birth + way of life applies to all other Varnas. A Kshatriya too must be born a Kshatriya and perform Nityakarma after Upanayana (ceremony of the Yagnyopavitam). Same goes for a Vaishya. 

And the Shudra is a by birth itself and must follow Shudratva as shown in the Shastras (which involves service to the members of the other Varnas who are properly retaining their Varna status by practising their karma as per Dharmic morals). A Shudra can fall further if he/she becomes adharmic - they can turn into Chandalas and avarnas. And eventually Mlecchas. Any once-Dharmic lineage can turn into Mlecchas - one lineage of Yayati's own sons have turned into Mlecchas. The Mahabharata also says that beyond the western deserts of Bharatavarsha near the lands of the Ramatha, Shudras and Mlecchas are kings of that land. Thus, falling into avarnatva is very easy. Retaining Varna is very tough but must be done for good things are always going to be tough to do but must be done nevertheless.

Don't be too proud of your surname. A surname speaks only about your forefathers. It says little to nothing about you whatsoever.

When Nahusha fell into the Indologist's fallacy:

Nahusha was appointed by the Devas and a group of Devarishis as the next Indra when the then Indra fell from his position after killing Vrtrasura. Nahusha lusts after that behind Shachidevi - the wife of Indra and ends up committing a huge sin in his arrogance - he says all Yagnyas and Mantras are of him, and that creation exists because of him. Just because he got the Indrapada, he began to think that all names such as Indra, Shatakratu, Marduvaan, etc. from the Vedas referred to the holder of the Indrapada position (while in reality they refer to Shriman Narayana).

This is not new today as Indologists say similar things - that 'originally' the Vedas spoke of 'gods' such as Indra and Agni but 'later' Brahmanas 'invented' Vishnu, Shiva, etc and discarded their own 'old gods'. Our scriptures show how big a sin it is to -

Make comments on Vedas when you have no authority on them.
Mistake Devas to be Paramatman. 
Thinking of yourself to be Paramatman.
Discarding the existence of Paramatman by calling Him a 'new god.'

Nahusha is condemned to live a life as a snake on Bhuloka in an inferior body for lakhs of years while being allowed to retain memories of Svarga as punishment for his evil lustful and borderline atheistic thoughts which were not very different from what Hiranyakashipu believed of himself by the time his end came.

- perumal vasudevan

Passage of Varna - Through Samskaras or Genetics? ( वर्ण व्यवस्था )


"How does Varna flow in Lineage? I Will answer the last time and debunk all the neo wannabe Trads. This concept which I speak of is a Universally accepted one and is unquestioned by any traditional school. 

Jati means that which percieved through Aakriti, like Treeness (jati) in trees can be percieved through Akriti (figure of tree like branches leaves etc). But Brahmanas and Shudras have same External Aakriti, so in a group of humans we can't determine who's brahmana and who isn't. The internal characteristics can be Genes, blood, Dna etc if are to be considered Aakriti in case of Brahmanhood or Kshatriyahood, Still there is no guarantee that all these even though are present in a body, would 100% determine Varna. 

Note= I dont deny common genetics and bloodline to be found in Same Varnas but i deny that they can be used as valid parameters to determine Varna or the flow of Varna to the next generation. Different methods according to different Yugas determine Varna, and its flow and its only the Shaastras which decide. It defies all logic.

The reason is simple, there is ban on Intervarna marriages today, but in Previous Yugas Brahmanas did marry a lower Varna woman 2nd or 3rd time. When it was allowed, the progeny obtained the paternal Varna. Now there is Bloodmixing and Genemixing as well, but he got the Varna of Father. And was eligible for Shraaddhas (ancestral rites) also. Now let's see if a Brahmana born of Pure Brahmana Parents with no intermixing in Clan, will he obtain Brahmanhood at birth for guarantee? Not necessarily. 

If the parent has not had an Upanayana (janeu), then the Son would be a Vraatya. If such Upanayana stops till more than 6-7 generations in Lineage, than the Progeny would be Shudra. Manu 10.43 shows how Kshatriya families due to lack of rituals became Shudras in due course of time. 

Today, all kinds of Intervarna are banned, and if you say the reason is Genes etc, why where they allowed previously? Varna passes down only through Samskaras. Hence its proved Varna isn't a physical quality nor can it be determined through anything like Genes or Dna. The flow of Varna is through Unbroken Samskaras in a Lineage. If I do not undergoe Upanayana at time, and do not have Prayashchitta, my son won't inherit Brahmanhood at birth. The Garbhadhana also is a Samskara which depends on the Parents' Samskaras. And through these Samskaras the born child can be considered as a Brahmana. 

You can ask me Why Lineage is Important, but not Bloodline. Because Lineage just means Parampara, an Unbroken Chain. Lineage hence doesnt qualify as Bloodline. Unbroken Chain of what? = Samskaras. भागवत 7.11.13 says संस्कारा यदविच्छिन्ना स द्विजः (where Samskaras are unbroken, he is a Dvija). So birth is indeed important, but in such a family, where all generations have undergone Upanayana/Janeu. Even if one generation has not done Janeu, the child will be born a Vraatya (Potential Brahmana). Even Janma requires Garbhadhana Samskara. Mating too has proper procedure to follow.

Aapastamba hence says अथयस्य प्रापितामह आदि नानुस्मार्यत।
उपनयनम् ते शमशानसमस्तुताः।। "And those who's ancestors' intiation/janeu is not conducted, those offsprings are equivalent to graveyards" . Bhagavata Purana says that Uninitiated Dvijas or Dvijabandhus cannot even Hear Vedas = स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा, Skanda Purana says जन्मना जायते शूद्रः = Everyone is born equivalent to a Shudra (ie unauthorized in Vedas). This proves Birth has no Purity, Purity is only through Samskaras. 

Gautama gave birth to a Shudra, whom he converted to a Brahmana by his Tapas, and his Clan is the Gautama Gotra of Brahmanas, having blood and genes of a Shudra. In Mahabharata, Brahmanas have said to have Niyoga with Kshatriya women and produce Kshatriyas, these should ideally be Sankaras due to mixture, but are not. They get Kshatriya and Brahmana both genes/blood still are Pure Kshatriyas. As Varna isn't Phsyical or obtained through Physical Means but Divine Samskaras. संस्काराद् द्विज उच्यते (Skanda Purana, Atri

. The Sons of Vishvamitra should be Kshatriya by this Gene Theory because they don't have the Brahmana Genes now.

If you emphasize so much over Genes Blood or DNA, you're making a fool of yourself. This is Pseudo-science as the Old Darwinian Model has long been rejected. This is Epic eg of Raitahood, similar to what dimwits speak of Radiations in Mandir Bells, Downward flow in Period Blood and what not. I dont deny Biological Benefits of not marrying in Same Gotra or having similar occupation and similar Genes and similar bloodline. What I explain is that these Physical Traits aren't a Parameter to Determine Varna. Because there are many Shaastriya Methods to have a different bloodline still inherit Varna in previous Yugas.

The reason why today Intervarna marriage is denied isn't due to Physical Gene Maintainance or maintaining Bloodline, it is the imbalance of Gunas (Sattva rajas tamas) which will take place if you intermarry and produce. Such imbalance could be avoided in Previous Yugas due to Tapas of Brahmanas. Today they dont have such Tapas and powers, so imbalance in Non-physical Gunas would create progeny with mixed Gunas. Such imbalance of Gunas would prevent Varna to flow in future Generations and make you Unauthorized for Upanayana.

In this Video Acharya clearly says if Yajnopavita not done or done after time limit, 'शास्त्रीय परम्परा के अनुसार उसे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य नहीं कह सकते' 
We cannot call him a Brahmana Kshatriya Vaishya. 

Bloodline or no Bloodline, the point is not about bloodline importance here. Main question is "Can Bloodline Determine Varna"? No. Because even with bloodline he is not Brahmana without lineage of Samskaras in Paternal Ancestry.

He shared Raghavacharya ji's video talking रक्तशुद्बि  but that was from a video where His Holiness is Generalizing रोटी बचाओ और खून बचाओ, and explaining to mass in simple language. Even taking Daan from some adharmi would mean inheriting his Gunas and Karmas, so is taking food or blood from unauthorized guy, impurity still isn't physical but abt imbalance in Gunas.

Still I haven't denied same bloodline in Varnas and also can be said to not do intermarriage. But pt is can blood determine Varna? No