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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

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सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगर ।।

नगर - नदी

◆ मोहनजोदड़ो - सिंधु नदी 

◆ हड़प्पा - रावी नदी 

◆ रोपड़ - सतलज नदी 

◆ माँडा - चिनाब नदी 

◆ कालीबंगा - घग्गर नदी 

◆ लोथल - भोगवा नदी 

◆ सुत्कांगेडोर - दाश्क नदी 

◆ बालाकोट - विंदार नदी 

◆ सोत्काकोह - शादिकौर 

◆ आलमगीरपुर - हिण्डन नदी 

◆ रंगपुर - मादर नदी

◆ कोटदीजी - सिंधु नदी 

◆ बनवाली - प्राचीन सरस्वती नदी

◆चन्हूदड़ों - सिंधु नदी


सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगर और किस नदी के किनारे/ मुहाने मिले, 

प्राचीन इतिहास से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य -

✍️ मगध के राजा बिंबिसार ने बुद्ध के निवास के लिए 'वेणुवन' नामक महाविहार बनवाया। लिच्छवियों ने उनके निवास के लिए महावन में प्रसिद्ध 'कुटाग्रशाला' का निर्माण करवाया। 

✍️ धम्मपद – इसे बौद्ध धर्म की गीता कहते हैं। यह अकेला ऐसा ग्रन्थ है जिसमें बौद्ध दर्शन के प्राय: सभी सिद्धान्तों का वर्णन है। डॉ. भण्डारकर ने सर्वप्रथम बताया कि अशोक के धम्म सिद्धान्तों को राहुलोवादसुत्त में लिखा गया है। विमानवत्थु नामक ग्रन्थ में स्वर्गीय सुखों का वर्णन है। अशोक के दिव्य नाटकों का स्त्रोत यही है। 

✍️ आर्यमंजूश्रीमूलकल्प - यह 9 वीं शताब्दी में रचित महायान बौद्ध ग्रंथ है। राहुल सांकृत्यायन इस ग्रन्थ की प्रति को तिब्बत से भारत लाए। के.पी. जायसवाल ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। इसे 1925 ई. में गणपतिशास्त्री ने प्रकाशित किया। इसमें बौद्ध दृष्टिकोण से गुप्त शासकों का वर्णन किया गया है।  

✍️ बौद्ध धर्म के बारे में विशद ज्ञान त्रिपिटक (विनयपिटक, सूत्रपिटक व अभिधम्मपिटक) में प्राप्त होता है।, तीनों पिटकों की भाषा पालि है। बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। बौद्ध धर्म में सम्मिलित होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 15 वर्ष थी। बौद्धसंघ में प्रविष्ट होने को उपसम्पदा कहा जाता था।, बौद्ध धर्म के त्रिरत्न – बुद्ध, धम्म और संघ। हीनयान और महायान बौद्धधर्म से संबंधित हैं।   

Important Facts Related to Ancient History -

✍️ King Bimbisara of Magadha built a Mahavihara named 'Veluvan' as the resident of Buddha. The Lichchhavis built the famous 'Kutagrashala' at Mahavan for Budha’s residence. Dhammapada - It is called the Gita of Buddhism. This is the only book in which almost all the principles of Buddhist philosophy are described.

✍️ Dr. Bhandarkar first asserted that Ashoka's Dhamma principles have been written in Rahulovadasutta. The book entitled Vimanavatthu describes heavenly pleasures. This is the source of Ashoka's divine plays.

✍️ Aryamanjushrimulakalpa - This is a 9th century Mahayana Buddhist book. Rahul Sankrityayan brought a copy of this book from Tibet to India. K.P. Jaiswal translated it into English. It was published by Ganapati Shastri in 1925 AD. It describes the Gupta rulers from a Buddhist point of view.

✍️ Detailed knowledge about Buddhism is found in Tripitaka (Vinayapitaka, Suttaapitaka and Abhidhammapitaka). The language of the three Pitakas is Pali. The Tripitaka is the oldest epic of the Theravada schools. There is a belief of rebirth in Buddhism. The minimum age limit for joining Buddhism was 15 years. Entering into the Buddhist Sangha was called Upasampada., The triratna of Buddhism are - Buddha, Dhamma and Sangha. Hinayana and Mahayana are related to Buddhism.

मध्यकालीन इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य ।।

✍️ गियासुद्दीन तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने 'गाज़ी' की उपाधि ली थी।

✍️ फिरोज तुगलक का शासनकाल भारत में सबसे ज्यादा नहरों के निर्माण के कारण प्रसिद्ध रहा है। फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया था। फिरोज शाह तुगलक द्वारा अशोक के दो स्तंभों को मेरठ एवं टोपरा से दिल्ली लाया गया था। 

✍️ फिरोजशाह तुगलक ने आदेश दिया कि उसके शासनकाल में भविष्य में होने वाले समारोह 21 दिन ही चलेंगे।

✍️ फिरोज अपनी आत्मकथा में बताता है कि उसने शासन के प्रथम 6 वर्षो में मिस्त्र के खलीफा से दो बार सुल्तान पद की स्वीकृति ली। 

✍ वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने स्वयं को खलिफा का नायब कहा। सीरत-ए-फिरोजशाही का लेखक बताता है फिरोज को क्रमश: ‘अमीरुल मोमिनीन’ मोहम्मद अबू बक्र मुतवक्किल-ए-अल्लाह से ‘मानाभिषेक पत्र’ प्राप्त हुआ था । उसे पहला मन्शूर ईद के दिन 17 दिसम्बर 1355 ई. को प्राप्त हुआ था। 

✍️ संतो की मजारों पर मुस्लिम स्त्रियों के जाने को रोक लगा दिया ताकि महिलाएं लोगों की कामुक नजरों से बची रहे। 

✍️ जजिया को पृथक कर बनाया और उसे ब्राहृाणों पर भी लगाया जिससे अभी तक वह मुक्त थे। उसने एक ब्राहृाण को जिन्दा जलवा दिया था। 

✍️ महल के सुन्दर भित्ति-चित्रों को मिटवा दिया क्योंकि इस्लाम में इसकी मनाही थी। भोजन हेतु सोने एवं चांदी के वर्तनों की मनाही कर दी। उसने शुद्ध रेशमी या जरीदार वस्त्रों एवं मानव आकृतियों के चित्र बने हुए वस्त्रों पर रोक लगा दी। 

Important One liner related to Medieval History

✍️ The reign of Firoz Tughlaq has been famous for the construction of the largest number of canals in India. Firoz Tughlaq imposed Jizya tax on Brahmins also. Two pillars of Ashoka were brought from Meerut and Topra to Delhi by Firoz Shah Tughlaq.

✍️ Ferozeshah Tughlaq ordered that ceremonies to be held future in will run for 21 days only under his reign.

✍️ Feroz states in his autobiography that he twice awarded the position of Sultan by the Khalifa of Egypt in the first 6 years of his rule.

✍️ He was the first Sultan of Delhi Sultanate to call himself the Nayab of the Khalifa. The author of Sīrat-e-Firozshahi states that Feroz received ‘Manabhishek Patra’ from ‘Amirul Mominin’ Mohammad and Abu Bakr Mutavakkil-e-Allah respectively. He got his first Mansoor on 17 December 1355 AD on the day of Eid.

✍️ Restricted the entry of Muslim women to the shrines of the saints so that the women remain protected from the erotic eyes of the people.

✍️ Strictly imposed Jaziya and also imposed this on the Brahmins as well, so far brahmins were free from this tax. He once burnt alive a Brahmin.

✍️ Eliminated the beautiful murals of the palace as it was forbidden in Islam. Gold and silver utensils were forbidden for food. He banned pure silk or brocade garments and clothes which bore of human images.

मध्ययुगीन काल में शिक्षा ।।

● मुख्य विशेषताएं। शिक्षा के उद्देश्य। शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष ।।

० मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा की विशेषताएं (muslim shiksha ki visheshta)
जैसा की पूर्व मे हमने पढ़ा कि मुस्लिम शासक भारत मे अपनी संस्कृति और अपना धर्म लेकर आए थे। इन्होंने भारत पर शासन करने के साथ-साथ यहाँ अपनी संस्कृति और धर्म का प्रचार एवं प्रसार भी किया। अपनी संस्कृति और धर्म का प्रचार करने लिए इन्होंने शिक्षा का सहारा लिया। इन्होंने अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिस शिक्षा प्रणाली का विकास किया, 'उसे मुस्लिम शिक्षा प्रणाली' के नाम से जाना जाता है। मुसलमानों की यह नवीन शिक्षा-प्रणाली इस देश मे लगभग 600 वर्ष तक प्रचलित रही और मकतबों के रूप मे इसके अवशेष आज भी यत्र-तत्र दिखाई देते है। इस शिक्षा-प्रणाली मे कुछ ऐसी विशेषताएं थी, जिन्होंने भयंकर विप्लवों और राजनीतिक संघर्षों के मध्य भी इसकों जीवित रखा। मध्यकालीन शिक्षा या मुस्लिम शिक्षा की विशेषताएं निम्नलिखित है-- 

1. विस्मिल्लाह रस्म 

मुस्लिम शिक्षा विस्मिल्लाह रस्म से शुरू होती थी। ये विस्मिल्लाह रस्म वैदिक काल के उपनयन संस्कार तथा बौद्ध काल के पवज्जा संस्कार से मिलजी-जुलती थी। इसमे बालक को नये कपड़े पहनाकर मौलवी के पास ले जाया जाता था। बालक को यहाँ पर मौलवी के द्वारा उच्चारित कुरान की कुछ आयतों को दुहराना पड़ता था। यदि बालक उन आयतों को दुहराने मे असमर्थ रहता था, तब विस्मिल्लाह शब्द कहना ही पर्याप्त माना जाता था। इसके बाद बालक की प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ हो जाती थी, तथा मौलवी को कुछ नजराना देकर बालक को मकतब मे प्रवेश दे दिया जाता था। 

2. निः शुल्क शिक्षा 

मकतबों तथा मदरसों मे निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था थी। शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से किसी भी प्रकार का शुल्क नही लिया जाता था। शिक्षा-संस्थाओं के संपूर्ण खर्च का भार इनको स्थापित करने एवं संचालित करने वाले शासको या धनी व्यक्तियों द्वारा उठाया जाता था। 

3. कक्षा-नायकीय पद्धित 

इन शिक्षा-संस्थाओं में कक्षा-नायकीय पद्धित का प्रचलन था। इस पद्धित मे उच्च कक्षाओं के योग्य छात्रों को नायक बनाया जाता था जो निम्न कक्षा के छात्रों का शिक्षण कर, अध्यायक के अध्यापन कार्य में सहायता देते थे। 

4. व्यावहारिक शिक्षा 

मुस्लिम लोगों का परलोक एवं पुनर्जन्म मे कोई विश्वास नही थी इसलिए ये शिक्षा को आध्यात्मिक विकास और मोक्ष प्राप्ति का साधन नही मानते थे। इनका विश्वास था कि जीवन इसी संसार मे है और इस कारण शिक्षा द्वारा व्यक्ति को इस जीवन हेतु तैयार किया जाना चाहिए। इसी विचार से प्रेरित होकर इन्होंने शिक्षा को व्यावहारिक रूप प्रदान किया। 

5. शिक्षा का संरक्षण 

संपूर्ण मुस्लिम काल मे शिक्षा को राज्य का संरक्षण प्राप्त था, यह तथ्य निर्विवाद है। इसके साथ ही यह कथन भी विवाद से दूर है कि लगभग सभी मुस्लिम शासकों ने तकतबों एवं मदरसों की स्थापना करके, शिक्षा के प्रति अपने प्रेम तथा उदारता का परिचय दिया। 

6. शिक्षा का भाषा माध्यम 

मुस्लिम का मे शिक्षा का माध्यम अरबी-फारसी भाषायें थी। फारसी भाषा राज भाषा होने के कारण सरकारी नौकरी पाने का साधन थी तथा इसी भाषा के ज्ञान द्वारा व्यक्ति को राजपद मिल सकता था। यही कारण था कि कुछ हिन्दू भी फारसी भाषा सीखने लगे थे। अकबर ने हिन्दी को तथा औरंगजेब ने उर्दू को प्रोत्साहन दिया, फिर भी अरबी और फारसी भाषा का महत्व भाषा के माध्यम के रूप मे बना रहा। संस्कृत व पाली आदि भाषाओं के लिए मुस्लिम शिक्षा मे कोई स्थान नही था।

7. शिक्षक की स्थिति 

शिक्षा के प्रति लौकिक दृष्टिकोण के कारण, मुस्लिम युग में शिक्षक की स्थिति मे बहुत परिवर्तन हो गया था। इन शिक्षकों की स्थिति, प्राचीन भारतीय शिक्षकों के समान उच्च नही थी। 

8. शिक्षण पद्धित 

मुस्लिम काल मे शिक्षण की पद्धित मुख्य रूप से मौखिक थी, रटने एवं स्मरण पर बल दिया जाता था। व्याख्यान, प्रश्नोत्तर तथा वाद-विवाद विधियों का प्रयोग किया जाता था। विद्यार्थियों को स्वाध्याय विधि से ज्ञान प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता था। शिक्षक की उपस्थिति मे बड़ी कक्षाओं के कुशल तथा योग्य विद्यार्थी छोटी कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाने का कार्य करते थे। राजदरबारों मे महत्वपूर्ण विषयों पर शास्त्रर्थ भी कराया जाता था। 

7. धार्मिक लौकिक शिक्षा का समन्वय 

धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा का समन्वय मुस्लिम शिक्षा की एक मुख्य विशेषता थी। इस शिक्षा पद्धित मे प्राथमिक स्तर पर बालकों को कुरान की आयतें कंठस्थ कराने के साथ-साथ उन्हें अंकगणित, पत्र-लेखन कला तथा अन्य जीवनोपयोगी विषयों का अध्ययन कराया जाता था। उच्च स्तर पर कुरान के नियमित अध्ययन कराने के साथ उन्हें इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र इत्यादि विषयों का अध्ययन कराया जाता था।

8. धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा 

मुस्लिम शिक्षा प्रणाली मे धर्म के नाम पर इस्लाम धर्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती थी और नैतिकता के नाम पर शरीयत (इस्लामिक नियम व कानून) की शिक्षा दी जाती थी। यह धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा का संकुचित रूप था। 

9. व्यक्तिगत संपर्क 

प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धित की तरह ही मुस्लिम शिक्षा पद्धित मे भी गुरू शिष्य का व्यक्तिगत संपर्क था। शिक्षक के विचारों और आदर्शों से प्रभावित होकर, छात्र भी स्वयं की प्रतिभा, कुशलता व योग्यता मे वृद्धि करने मे संलग्न रहते थे। टी. एन. सिक्वेरा के अनुसार," शिक्षा को व्यक्तिगत प्रक्रिया माना जाता था। शिक्षक को अपने छात्रों के साथ रहना पड़ता था।" 

10. गुरू-शिष्य संबंध

मुस्लिम काल मे गुरू तथा शिष्यों के संबंध अधिक घनिष्ठ थे। शिक्षकों को समाज मे बहुत अधिक सम्मानीय स्थान दिया जाता था। शिक्षकों को वेतन बहुत कम मिलता था फिर भी उन्हें सभी स्थानों पर अत्यधिक सम्मान मिलता था। विद्यार्थी गुरू के आदेशों का पालन करके अनुशासित, विनम्र तथा सहनशील बन जाते थे और गुरू-विद्यार्थियों मे श्रद्धा पाकर पूजनीय बन जाता था। 

11. अनुशासन 

माध्यमिक कालीन शिक्षा व्यवस्था मे अनुशासन को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था। मकतबों और मदरसों दोनों ही स्तरों पर ग्रहण करने की अवधि मे छात्रों को मुस्लिम शिक्षा प्रणाली के नियमों, रीति-रिवाजों, आदेशों, परम्पराओं और मुस्लिम कानूनों का कड़ाई से पालन करना अनिवार्य होता था। इन सभी नियमों और पद्धितियों को शिक्षक के आदेशों व निर्देशों के माध्यम से छात्रों तक संप्रेषित किया जाता था। अतः सामान्यतया शिक्षकों की आज्ञा व आदेशों का पालन करना ही अनुशासन के अंतर्गत आता था। जो छात्र इन आदेशों व नियमों आदि का पालन नही करते थे, उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था। चूँकि उस समय तक मनोवैज्ञानिक शिक्षण व्यवस्था का प्रचलन नही था, इसलिए दमनात्मक शासन (Repressionistic Discipline) द्वारा ही छात्रों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता था। 

12. शिक्षा की अनिवार्यता 

मुसलमानों द्वारा शिक्षा को व्यक्ति के जीवन हेतु तीन मुख्य कारकों से जरूरी माना जाता है। 

पहला, कुरान शरीफ में ज्ञान प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य बताया गया है।

दूसरा, मुसलमानों द्वारा मुहम्मद साहब के इस कथन मे विश्वास किया जाता है," जो छात्र, ज्ञान की खोज करता है, उसे ईश्वर-स्वर्ग मे उच्च स्थान प्रदान करता है।"

तीसरा इस्लाम धर्म मे कहा गया है," जो मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है, वह धार्मिक कार्य करता है, जो ज्ञान की बात करता है, वह ईश्वर की प्रशंसा करता है, जो ज्ञान की खोज करता है, वह ईश्वर की उपासना करता है।" 

इस तरह की धार्मिक पृष्ठभूमि मे शिक्षा को व्यक्ति हेतु अनिवार्य समझा गया। यही कारण था कि सभी मुस्लिम शासकों तथा ज्ञान-प्रेमी व्यक्तियों ने मकतबों एवं मदरसों की स्थापना करके तथा उनमें निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करके जनसाधारण हेतु शिक्षा को अधिक-से-अधिक सुलभ बनाने का प्रयास किया। 

13. सांस्कृतिक एकता की अभिवृद्धि 

मुस्लिम शासकों के आरंभ मकतबों तथा मदरसों मे प्रदान की जाने वाली शिक्षा सिर्फ मुसलमानों तक ही सीमित थी तथा उनमें हिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था। सिकंदर लोदी के समय से यह प्रतिबंध हटा दिया गया था। फलस्वरूप, सभी जातियों के हिन्दू-मकतबों तथा मदरसों में प्रवेश करके, मुसलमानों के साथ शिक्षा ग्रहण करने लगे थे। 

इस तरह मुस्लशिक्षा-संस्थाओं ने सभी जातियों के हिन्दुओं तथा मुसलमानों में पारस्परिक संपर्क स्थापित किया, जिसके दो सुंदर परिणाम दृष्टिगोचर हुए-जातीय बंधनों की समाप्ति तथा सांस्कृतिक एकता की अभिवृद्धि। 

14. भाषा तथा विज्ञानों को प्रोत्साहन 

मुस्लिम युग मे फारसी भाषा तथा विज्ञानों को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया जाता था। इसका कारण यह था कि फारसी सभी मुस्लिम शासकों की राजभाषी थी। अतः इस भाषा के विद्वानों को राजपदों हेतु बहुत माँग थी। इसी तरह विज्ञानवेत्ताओं की भी मांग थी। 

उक्त दोनों माँगों को पूरा करने के लिए मुस्लिम काल मे फारसी भाषा तथा विज्ञानों की शिक्षा का प्रधान लक्ष्य निर्धारित किया गया। 

15. साहित्य तथा इतिहास का विकास 

मुस्लिम काल मे साहित्य तथा इतिहास का पर्याप्त विकास हुआ। कई मुस्लिम शासक, विद्या के प्रेमी तथा विद्वानों के संरक्षक थे। संरक्षण-प्राप्त विद्वानों का आर्थिक चिंता से मुक्त होना तथा इसके कारण उनके द्वारा साहित्य सृजन के प्रति ध्यान दिया जाना स्वाभाविक था। यही कारण था कि मुस्लिम युग मे नीति, दर्शन आदि विषयों पर साहित्य का निर्माण हुआ तथा रामायण, महाभारत आदि हिन्दू ग्रंथों का फारसी अनुवाद किया गया।

मध्ययुगीन काल में शिक्षा

● मुख्य विशेषताएं। शिक्षा के उद्देश्य। शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष ।।

० मुस्लिम शिक्षा प्रदान करने वाली प्रमुख संस्थाएं 
मुस्लिम काल मे शिक्षा प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य कई अभिकरणों ने किया था। इन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों मे विभाजित किया जा सकता है-- 

(अ) प्राथमिक शिक्षा से संबंधित, 

(ब) उच्च शिक्षा से संबंधित।

पर कुछ ऐसी भी अभिकरण थे जो प्राथमिक तथा उच्च दोनों ही शिक्षाओं से संबंधित ये। इस तरह के प्रमुख शिक्षा अभिकरण निम्न प्रकार है-- 

1. मकतब 

'मकतब' की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द 'कुतुब' से हुई है, जिसका अभिप्राय है 'उसने लिखा' अगर उर्दु भाषा मे देखें तो इसके समकक्ष शब्द 'कुतुब', किताब के बहुवचन के रूप मे प्रयोग मे लाया जाता है। 

वास्तव में शाब्दिक अर्थ के आधार पर मकतब का अर्थ ऐसे स्थान के संदर्भ मे स्वीकार कर लिया जाता है, जहाँ पठन-पाठन का कार्य किया जाता है। इस तरह मकतब वे संस्थाएं थी जो कि प्राथमिक स्तर पर छात्रों को शिक्षा प्रदान करती थी। ये मकतब व्यक्तिगत स्तर पर अथवा नजदीक किसी मस्जिद के अंदर बुलाये जाते थे। ये मकतब मुसलमान एवं हिन्दू-दोनों ही बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए खोले गये थे। पर मकतब एक सार्वजनिक संस्था का स्वरूप नही ग्रहण कर पाये थे। इस कारण इनकी संख्या कम ही हुआ करती थी। 

डाॅ. युसुफ हुसैन ने मकतबों पर टिप्पणी करते हुए लिखा है," मकतब एक शिक्षक वाली व्यक्तिगत संस्थाएं थी जहाँ पर प्रातःकाल से सायंकाल तक शिक्षण कार्यक्रम अनवरत गति से चलता रहता था। ये संस्थाएं निःशुल्क थी। सिर्फ धनवान लोग ही इन संस्थाओं को उदार रूप से दान देते थे। इन मकतबों द्वारा प्रदान की गयी शिक्षा तात्कालिक शासन व्यवस्था से मुक्त थी।" 

2. खानक्वाहें 

'खानक्वाह' भी प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने वाले अभिकरण थे। ये भी व्यक्तिगत प्रयत्नों से संचालित किये जाते थे। सिर्फ मुस्लिम छात्र ही इन स्कूलों मे शिक्षा प्राप्त करने के हकदार थे। इनकी वित्त व्यवस्था उदार दान से की जाती थी। 

3. दरगाह 

'दरगाह' वास्तविक रूप से तो वे स्थान थे, जो किसी पीर, पैगंबर की समाधि अथवा सम्मान मे स्थापित किये गए थे। मुस्लिम काल में ज्यों ही शिक्षा का प्रादुर्भाव हुआ कुछ मौलवियों ने इन स्थानों पर धार्मिक शिक्षा प्रदान करना प्रारंभ कर दिया। इस तरह ये खानक्वाहों से मिलते थे एवं सिर्फ मुस्लिम छात्रों को अध्ययन के लिए प्रवेश प्रदान करते थे।

4. मदरसे 

'मदरसा' शब्द अरबी भाषा के मूल 'दरस' से प्राप्त हुआ है, जिसका अर्थ होता है 'भाषण'। इस तरह इसकी व्युत्पत्ति से जो अर्थ निकलता है वह है एक ऐसा स्थान जहाँ भाषणों का प्रयोग किया जाता है अर्थात् भाषणो द्वारा शिक्षा प्रदान करने वाला स्थान ही मदरसा कहा जाता है। एक तथ्य और भी इससे उजागर होता है कि मदससा, शिक्षा के उच्चतम केन्द्र थे, क्योंकि किशोर तथा युवकों को ही भाषण विधि द्वारा शिक्षा प्रदान की जा सकती है। 

मदरसा सामान्य रूप से किसी मस्जिद से संबद्ध रहते थे। इनके लिए बादशाह तथा संपन्न लोग जरूरी दान देते थे। मदसरे मे प्रदान की जाने वाली शिक्षा दीर्घकालिक होती थी एवं शिक्षा के पाठ्यक्रम भी व्यापक होते थे। इन सभी विषयों के योग्य शिक्षकों को मदरसे में शिक्षण के लिए नियुक्त किया जाता था। 

साधारणतया मदरसे आवासीय प्रकृति के होते थे। छात्रों हेतु छात्रवृत्ति एवं अन्य तरह की मदद का भी प्रावधान था। यह छात्र-शिक्षको के बीच लगातार अंतःक्रियाओं के लिए सुअवसर प्रदान करते थे। 

5. अरबी-फारसी के स्कूल 

मुस्लिम शिक्षा मे अरबी-फारसी का उत्कृष्ट स्थान प्रदान किया गया था। इन भाषाओं की वृद्धि तथा विकास के लिए व्यक्तिगत तथा शासकीय स्तर पर अनेकों प्रयत्न किये जाते रहे थे। इन प्रयासों की पूर्ति के लिए इन भाषिक स्कूलों की स्थापना की गयी थी। इसके अलावा फारसी मूलरूप से राज-काज की भाषा होने से शासन को भी सुयोग्य भाषाविदों को लगातार जरूरत बनी रहती थी। 

इन विद्यालयों मे दोनों भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य की शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ सुंदर लेकन शैलियों पर बहुत परिश्रम किया जाता था, क्योंकि जितने भी क्रिया-कलाप किये जाते थे वे सभी हस्तलिखित ही होते थे।

साथ ही छात्रों को 'कुरान' मे निष्णात किया जाता था। कुरान की आयतें कंठस्थ करायी तथा लिखायी जाती थी। इनमें से ही कुछ धर्मोंपचारक, धर्मोपदेशक एवं अन्य धार्मिक क्रियाओं को समाज मे रहते हुए संपन्न कराने योग्य बनाये थे। 

6. कुरान स्कूल 

हालांकि उपयुक्त विद्यालयों मे भी 'कुरान' को धर्मग्रंथ की तरह अध्ययन-अध्यापन कराया जाता था, पर कुछ मौलवीयों ने मस्जिदों के भीतर पृथक रूप से कुरान विद्यालयों की स्थापना की थी। इनका अंतिम लक्ष्य था कुरान के आदेशों का प्रचार-प्रसार करना।

 Unit 2:- मध्ययुगीन काल में शिक्षा
● मुख्य विशेषताएं। शिक्षा के उद्देश्य। शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष ।।

० मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली के गुण (muslim shiksha ke gun)
मुस्लिम शिक्षा के निम्नलिखित गुण थे-- 

1. शिक्षा को राज्य का संरक्षण 

निर्विवाद रूप से, संपूर्ण मुस्लिम काल मे शिक्षा को राज्य का संरक्षण प्राप्त हुआ। इसके साथ ही मुस्लिम शासकों ने मकतबों व मदरसों की स्थापना करके शिक्षा के प्रति अपने प्रेम व उदारता का परिचय दिया। 

2. निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा 

प्राचीन काल एवं बौद्ध काल के समान ही मध्यकाल मे भी छात्रों को निःशुल्क शिदा दी जा जाती थी। मकतब व मदरसों मे किसी प्रकार का कोई शुल्क नही लिया जाता था। मदरसों के छात्रावासों मे रहने वाले छात्रों के लिए आवास एवं भोजन की निःशुल्क व्यवस्था थी। प्रत्येक मुसलमान बालक के लिए शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य था, क्योंकि इस्लाम धर्म मे शिक्षा ग्रहण करना धार्मिक कार्य माना जाता था। यह सभी व्यय राज्य (शासक) और समाज (प्रजा विशेषतः धनिक व्यक्ति) दोनों मिलकर उठाते थे। उच्च कोटि के मदरसों के साथ तो बड़ी-बड़ी जागीरें लगी थीं। 

3. छात्रों को प्रोत्साहन 

मध्यकाल मे धर्म, दर्शन, साहित्य व कला-कौशल के क्षेत्र मे योग्यता रखने वाले छात्रों को प्रोत्साहन के लिए आर्थिक सहायता देने की शुरूआत की गई। आधुनिक समय मे भी ऐसे छात्रों को विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस व्यवस्था के विकास का श्रेय मध्यकाल की शिक्षा प्रणाली को जाता है। 

4. शिक्षक का उच्च स्थान 

मध्यकाल मे शिक्षकों का समाज मे ऊँचा स्थान था। शिक्षक के पद पर ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था जो चरित्रवान हों जिनको समाज के व्यक्तियों का विश्वास व सम्मान प्राप्त हो और जो अपने विषय मे विद्वान हो। इस काल मे शिक्षकों को बहुत सम्मान दिया जाता था। 

5. प्राथमिक व उच्च शिक्षा की पृथक-पृथक व्यवस्था 

मध्यकाल मे प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था मकतबों व उच्च शिक्षा की व्यवस्था मदरसों मे ही की जाती थी। यह भिन्न-भिन्न स्तर की शिक्षा के लिए भिन्न-भिन्न विद्यालयों की शुरुआत थी। यह सिद्धांत आज की शिक्षा प्रणाली मे भी चल रहा है। 

6. ज्ञान के विकास पर बल 

मुहम्मद साहब ज्ञान को अमृततुल्य मानते थे। यही कारण था कि मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में इस्लाम धर्म एवं संस्कृति के विकास के साथ-साथ ज्ञान के विकास पर भी बल दिया गया। आज भी भारत मे भौतिक ज्ञान के विकास और देश के आधुनिकीकरण पर विशेष बल दिया जा रहा है। यह मार्ग भी हमें मुस्लिम शिक्षा प्रणाली ने ही दिखाया था। 

7. ललित कलाओं एवं हस्त कलाओं की उन्नति 

मुस्लिम शासकों ने ललित कलाओं व हस्तकलाओं के विकास को अत्यंत प्रोत्साहन दिया। इनमें नृत्य, संगीत, चित्रकला, हाथी दाँत का काम, रेशम एवं जरी का काम, आभूषण व भवन निर्माण आदि प्रमुख है। इस काल मे वस्तुकला का भी अत्यधिक विकास हुआ, जिसके श्रेष्ठ उदाहरण-ताजमहल, आगरा का किला, लाल किला, जामा मस्जिद और फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा आदि है। 

8. नायकीय पद्धित का विकास 

मध्यकाल मे मुस्लिम मदरसों मे उच्च कक्षाओं के योग्य छात्र निम्न कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाते थे। इसे नायकीय पद्धित कहते थे। यद्यपि इस पद्धित का आरंभ प्राचीनकाल मे ही हो गया था, परन्तु मध्यकाल मे इसमें थोड़ा विकास किया गया। उन्हें यह कार्य सौंपे जाने से पहले उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया जाता था। 

9. इतिहास लेखन का विकास 

मुस्लिम शासक अपने द्वारा किये गए कार्यों की प्रशंसा सुनना पसंद करते थे। इसलिए उन्होंने अपने पूर्वजों के लिए गये कार्यों का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन कराया और इस प्रकार भारत मे क्रमबद्ध इतिहास लेखन का विकास प्रारंभ हुआ और इसके बाद काल-क्रमानुसार इतिहास लिखने की कला का विकास हुआ। 

10. शिक्षक-छात्र संबंध 

वैदिक काल और बौद्ध काल की तरह ही इस काल मे भी शिक्षक छात्रों का ध्यान रखते थे। उनकी योग्यता, कुशलता एवं प्रतिभा का विकास करने मे मदद करते थे। छात्रों की सभी जरूरतों का ध्यान रखते थे। गलती करने पर छात्रों को दण्ड की भी व्यवस्था थी क्योंकि प्रशंसा के साथ निन्दा से भी छात्रों मे अच्छी आदतों व अच्छे चरित्र का निर्माण होता है। शिक्षक छात्रों के प्रति स्नेह रखते थे और व्यक्तिगत रूप से उनका ध्यान रखते थे। 

11. साहित्य रचना का विकास

मुस्लिम शासकों ने साहित्य लिखने की कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। साहित्य लिखने वालों को आर्थिक सहायता प्रदान की तथा उन्हें उचित सम्मान दिया। 

12. सांस्कृतिक एकता की अभिवृद्धि 

प्रारंभ में मकतबों व मदरसों मे दी जाने वाली शिक्षा केवल मुसलमानों तक ही सीमित थी व उनमें हिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था। सिकन्दर लोदी के समय से यह प्रतिबंध हटा दिया गया था। फलस्वरूप सभी जातियों के हिन्दू-मकतबों व मदरसों मे प्रवेश करके मुसलमानों के साथ शिक्षा ग्रहण करने लगे, जिससे इन शिक्षा संस्थाओं मे सभी जातियों के हिन्दुओं व मुसलमानों में पारस्परिक संपर्क के सुन्दर परिणाम दिखायी दिये-जातीय बन्धनों की समाप्ति व सांस्कृतिक एकता की अभिवृद्धि।

Unit 2:- मध्ययुगीन काल में शिक्षा
● मुख्य विशेषताएं। शिक्षा के उद्देश्य। शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष ।।

० मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा के दोष (muslim shiksha ke dosh)
मुस्लिम शिक्षा के निम्नलिखित दोष थे- 

1. सांसारिक शिक्षा को प्रधानता 

मुस्लिम शिक्षा ने सर्वप्रथम सांसारिक शिक्षा को सभी शिक्षा का केंद्र-बिन्दु बनाया। इससे शिक्षक के आध्यात्मिक स्वरूप को अत्यधिक आघात पहुंचा तथा तात्कालिक समाज सरलतम सुखों की ओर अग्रसर होता चला गया। इसके कारण राष्ट्र मे विचित्र विघटनकारी शक्तियों ने जन्म लिया। 

2. स्त्री शिक्षा का ह्रास 

स्त्री शिक्षा का समाज से लगभग बहिष्कार किया जा चुका था, क्योंकि हिन्दु स्त्रियाँ आक्रमणकारी यवनों से अपनी सुरक्षा के लिये घरों मे रहना पसंद करती थी, केवल शाही घराने की सम्पन्न स्त्रियाँ ही शिक्षा ग्रहण कर पाती थी। 

3. क्षेत्रीय भाषाओं का पतन 

क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति अस्वस्थ दृष्टिकोण का प्रभाव यह हुआ कि जन-सामान्य औपचारिक शिक्षा से वंचित होने लगा, क्योंकि अरबी-फारसी की सामाजिक ग्राह्राता मे बहुत अधिक समय लगा। इससे समाज मे क्षेत्रीय भाषाओं का ही पतन नही हुआ, बल्कि अशिक्षा, अंधविश्वासों का प्रचार-प्रसार होने लगा। 

4. शिक्षा का कमजोर संगठनात्मक स्वरूप 

मुस्लिम काल मे शिक्षा प्रदान करने वाले अभिकरण शासकीय नियंत्रण से युक्त, व्यक्तिगत तथा दान आदि के द्वारा ही चलाये जाते थे। इसलिए इसका संगठनात्मक ढाँचा बहुत कमजोर तथा अस्पष्ट था। यही कारण था कि कुछ गिने-चुने मकतब-मदरसे ही इस दौड़ मे ठहर पाये। 

5. शिक्षा के लौकिक पक्ष पर बल 

मुस्लिम शिक्षा मे धर्म का मूर्धन्य स्थान था, किन्तु इस्लाम धर्म पारलौकिक जीवन की अपेक्षा इहलौकिक जीवन को महत्व देता है। अतः मुस्लिम युग मे शिक्षा के लौकिक पक्ष को प्रधानता दी गई और शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य यह स्वीकार किया गया-- 

छात्रों को ज्ञान से सम्पन्न करके समाज में सुयश और राज्य मे श्रेष्ठ पद प्राप्त करने की योग्यता प्रदान करना, ताकि वे सभी सांसारिक सुखों और ऐश्वर्यों का उपभोग कर सकें। छात्र भी अपने समक्ष इसी उद्देश्य को रखकर, कठोर परिश्रम द्वारा ज्ञान का अर्जन करते थे और अपनी योग्यता मे अधिक-से-अधिक वृद्धि करने के लिए प्रति-क्षण प्रयत्नशील रहते थे। 

6. शिक्षा मे स्थिरता का अभाव

इस्लाम धर्म में अडिग आस्था रखने के कारण मुसलमान माता-पिता अपने बच्चो के लिए शिक्षा को अनिवार्य मानते थे, परन्तु जैसा कि टी. एन. सिक्वेरा ने लिखा है," न तो माता-पिता ने और न शासकों ने अपने कर्तव्य का विधिपूर्वक पालन किया। एक शासक या राजकुमार, विद्यालयों की स्थापना करता था और दूसरा यदि उनको नष्ट नही करता था, तो बंद अवश्य कर देता था।" 

सिक्वेरा के कथन से सिद्ध हो जाता है कि मुस्लिम शासकों की शिक्षा-संबंधी नीति में स्थिरता औय क्रमबद्धता का नितान्त अभाव था। यही कारण था कि यदि एक शासक के समय मे शिक्षा पुष्पित होती थी, तो दूसरे शासक के समय मे कुम्हला जाती थी। शिक्षा के इस अस्थिर स्वरूप का कारण बताते हुए डाॅ. एफ. ई. केई ने लिखा है," शिक्षा का अस्थिर और अनिश्चित स्वरूप मुख्यतः निरंकुश शासन का परिणाम था।" 

7. दोषपूर्ण शिक्षण विधि 

शिक्षण पद्धित का दोषपूर्ण होना भी मध्यकालीन शिक्षा का एक अन्य दोष था, क्योंकि छात्रों के रटने पर अधिक बल दिया जाता था। इससे छात्रों की मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास नही हो पाता था और न ही उनमें चिन्तन, मनन एवं तर्क करने की क्षमता उत्पन्न हो पाती थी। 

8. नेतृत्व के गुणों का विकास करने मे असफल 

मध्यकालीन शिक्षा छात्रों मे नेतृत्व के गुणों का विकास करने मे असफल रही तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे नेतृत्व के लिए कुशल व्यक्तियों को उपलब्ध नही कर सकी। अतः यह भी मध्यकालीन शिक्षा का एक प्रमुख दोष था। 

9. कठोर दण्ड प्रणाली

मध्यकाल में छात्रों को छोटे-छोटे अपराधों पर कठोर शारीरिक दण्ड दिया जाता था। छात्र शिक्षकों से भयभीत रहते थे। वैदिक काल मे छात्र श्रद्धा से गुरू का आदर व सम्मान करते थे जबकि मध्यकाल मे छात्र डर के कारण गुरू का आदर करते थे और उनके आदेशों का पालन करते थे। मनौवैज्ञानिक शिक्षण पद्धितियों मे कठोर दण्ड को कभी भी शामिल नही किया जाता। 

10. धर्म परिवर्तन पर बल 

मुस्लिम शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य इस्लाम धर्म व संस्कृति का प्रचार करना था। मुस्लिम शासक हिन्दुओं को इस ओर आकर्षित करने मे लगे रहते थे जिससे कि हिन्दु इस ओर आकर्षित होकर इस्लाम धर्म की शिक्षा प्राप्त करने में रूचि लें। इसके लिए जो हिन्दू इस्लाम धर्म की शिक्षा प्राप्त कर लेते थे उन्हें शासन में ऊँचे-ऊँचे पदों पर नियुक्त किया जाता था। 

11. लेखन व पाठन की असमानता 

मुस्लिम शिक्षा अमनोवैज्ञानिक होने के कारण इसमें लिखना तथा पढ़ना साथ-साथ नही चलते थे। यहाँ बालकों को पहले अक्षरों को पढ़ना सिखाया जाता था। जब बालक पढ़ने का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त कर लेता था तो उसे लिखने का अभ्यास करना पड़ता था। इससे बालक का न केवल दोहरा समय ही नष्ट होता था, वरन् यह पद्धित अमनौवैज्ञानिक भी थी। 

12. जनशिक्षा की उपेक्षा 

मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली इस्लाम धर्म पर आधारित होती थी। इसका माध्यम विदेशी भाषा, अरबी और फारसी था। इस कारण हिन्दू वर्ग के लोग इस शिक्षा को प्राप्त करने मे कोई रूचि नही रखते थे। केवल शासन मे ऊँचे पदों पर नियुक्त होने के लिए कुछ ही लोग इस शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा प्राप्त करते थे। इसी प्रकार मध्यकाल मे भी यह शिक्षा जनशिक्षा नही बन सकी। 

13. आध्यात्मिक का अभाव 

मुस्लिम शासकों ने आते ही भारत की प्राचीन हिन्दू-शिक्षा पद्धित का मुखर विरोध कर अपनी शिक्षा पद्धित लादने का प्रयास किया। इसमे धर्म और दर्शन तथा आध्यात्मिक ज्ञान की बहुत हानि हुई, क्योंकि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रचार करना व छात्रों मे धार्मिक कट्टरता की भावना का समावेश करना था। फलस्वरूप आध्यात्मिकता की भावना का विकास न हो सका।

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 Unit 2:- मध्ययुगीन काल में शिक्षा
● मुख्य विशेषताएं। शिक्षा के उद्देश्य। शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष ।।

प्रश्न 1 मध्यकालीन शिक्षा किस धर्म से प्रभावित थी ?
(क) इस्लाम धर्म
(ख) पारसी धर्म
(ग) यहूदी धर्म
(घ) अरबी धर्म
उत्तर
(क) इस्लाम धर्म

प्रश्न 2
मध्यकालीन शिक्षा का माध्यम कौन-सी भाषा थी ?
(क) तुर्की
(ख) अरबी
(ग) फ़ारसी
(घ) उर्दू
उत्तर
(ग) फारसी

प्रश्न 3
मध्यकालीन शिक्षा का आरम्भ किस संस्कार से होता है ?
(क) प्रव्रज्या
(ख) उपसम्पदा
(ग) उपर्नयन
(घ) बिस्मिल्लाह
उत्तर
(घ) बिस्मिल्लाह

प्रश्न 4
मुस्लिम काल में बिस्मिल्लाह रस्म अदा की जाती थी जब बालक हो जाता था
(क) 3 वर्ष, 3 माह, 3 दिने का
(ख) 4 वर्ष, 4 माहे, 4 दिन का
(ग) 5 वर्ष, 5 माह, 5 दिन का
(घ) 6 वर्ष, 6 माह, 6 दिन का
उत्तर
(ख) 4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन का

प्रश्न 5
4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन की आयु पर कौन-सा शिक्षा संस्कार होता है?
(क) उपनयन
(ख) प्रव्रज्या
(ग) बिस्मिल्लाह
(घ) उपसम्पदा
उत्तर
(ग) बिस्मिल्लाह

प्रश्न 6
मध्यकाल में प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र थे ?
(क) मदरसा
(ख) मकतब
(ग) खानकाह
(घ) दरगाह
उतर
(ख) मकतब

प्रश्न 7
मध्यकालीन भारत में उच्च मुस्लिम शिक्षा के केन्द्रों को कहा जाता था?
(क) मकतब
(ख) मदरसा
(ग) खानकाह
(घ) दरगाह
उत्तर
(ख) मदरसा

प्रश्न 8
मध्यकाल में शिक्षा का प्रबन्ध व संरक्षण का दायित्व किस पर था?
(क) राज्य पर ,
(ख) मन्त्रिपरिषद् पुर
(ग) सुल्तान पर,
(घ) स्थानीय लोगों पर
उत्तर
(क) राज्य पर

प्रश्न 9
मध्यकाल में शिक्षा की प्रगति किस बादशाह के काल में सर्वाधिक हुई?
(क) फिरोज तुगलक
(ख) हुमायूं
(ग) शेरशाह
(घ) अकबर
उत्तर
(घ) अकबर

प्रश्न 10
मध्य युग में साहित्य में निष्णात छात्र को कहा जाता था
(क) आलिम
(ख) फाजिल
(ग) कामिल
(घ) स्नातक
उत्तर
(ग) कामिल

प्रश्न 11
तर्क और दर्शनशास्त्र में प्रबुद्ध छात्रों को क्या उपाधि दी जाती थी ?
(क) फाजिले
(ख) आलिम
(ग) मनसबदार
(घ) कामिल
उत्तर
(क) फाजिल

प्रश्न 12
“मुस्लिम शिक्षा एक विदेशी प्रणाली थी, जिसका भारत में प्रतिरोपण किया गया और जो ब्राह्मणीय शिक्षा से अति अल्प सम्बन्ध रखकर, अपनी नवीन भूमि में विकसित हुई।” यह कथन किसका है?
(क) डॉ० केई का
(ख) डॉ० जाकिर हुसैन का
(ग) डॉ० यूसुफ हुसैन का
(घ) इनमें से किसी को नहीं
उत्तर
(क) डॉ० केई का

प्रश्न 13
‘बिस्मिल्लाह संस्कार का सम्बन्ध है-
(क) वैदिक काल से
(ख) बौद्ध काल से
(ग) मुस्लिम काल से
(घ) ब्रिटिश काल से
उत्तर
(ग) मुस्लिम काल से

प्रश्न 14
मध्यकालीन (मुगलकालीन) शिक्षा के समय में महिला इतिहासकार कौन थीं?
(क) नूरजहाँ
(ख) रजिया बेगम
(ग) अब्बासी
(घ) गुलबदन बेगम
उत्तर
(घ) गुलबदन बेगम

प्रश्न 15
निम्नलिखित में से मध्यकालीन समय में कौन-सा शिक्षा का केन्द्र नहीं था ?
(क) आगरा
(ख) जौनपुर
(ग) मालवा
(घ) तक्षशिला
उत्तर
(घ) तक्षशिला

अधिकारी — भू-राजस्व प्रणाली

✍️- थॉमस लॉ (1756-1834) — कार्नवालिस द्वारा लागू की गयी स्थायी बंदोबस्त में महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्थायी बंदोबस्त ब्रिटिश भारत के 19% भू-भागों पर लागू की गयी। 

✍️ अलेक्जेण्डर रीड — रैय्यतवाड़ी बंदोबस्त के प्रणेता टामस मुनरो तथा अलेक्जेण्डर रीड थे। यह व्यवस्था ब्रिटिश भारत के 51% भू-भाग पर लागू की गयी।

✍️ एच.ई.गोल्डस्मिथ — बॉम्बे योजना 

✍️ हॉल्ट मैकेन्जी — महालवाड़ी बंदोबस्त का प्रस्ताव सर्वप्रथम वर्ष 1819 में हॉल्ट मैकेन्जी ने प्रस्तुत किया था। यह व्यवस्था ब्रिटिश भारत के 30% भू-भागों पर लागू की गयी थी।

Officer — Land Revenue System

✍️ Thomas Law (1756-1834) — Played an important role in the Permanent Settlement implemented by Cornwallis. Permanent Settlement was implemented on 19% of the territories of British India.

✍️ Alexander reed — The pioneers of the Ryotwari settlement were Thomas Munro and Alexander Reid. This system was implemented on 51% of the territory of British India.

✍️ H.E. Goldsmith — Bombay Scheme.

✍️ Halt mackenzie — The proposal of Mahalwari settlement was first presented by Halt Mackenzie in the year 1819. This system was implemented on 30% of the territories of British India.

संस्था और संस्थापक — स्थापना वर्ष — उद्देश्य

✍️ माताजी महारानी तपस्विनी का कलकत्ता का महाकाली पाठशाला — 1893 ई. — इन्होंने हिन्दू धार्मिक और नैतिक कानून के अनुकूल महिला शिक्षा प्रदान करने के लिए ‘महाकाली पाठशाला’ की स्थापना की। 

✍️ केशव कर्वे का ‘अनाथ बालिका आश्रम’ — 1900 ई. — इन्होंने अनाथ बालिकाओं की देख-रेख तथा शिक्षा के लिए एक ‘अनाथ बालिका आश्रम’ की स्थापना की थी।

✍️ रमाबाई रानाडे का पूना में ‘सेवा सदन’ — 1909 ई. — इसका उद्देश्य महिलाओं एवं बच्चों का कल्याण तथा विधवाओं को आत्मनिर्भर बनाना था। 

Organization and founder — Year of establishment — Objective 

✍️ Mahakali Pathshala of Calcutta of Mataji Maharani Tapaswini — 1893 AD — She established 'Mahakali Pathshala' to provide women education in accordance with Hindu religious and moral law.

✍️ Keshav Karve's 'Orphan Girl's Ashram' — 1900 AD — He had established an 'Anath Balika Ashram' for the care and education of orphan girls.

✍️ Ramabai Ranade's 'Seva Sadan' in Poona — 1909 AD — Its objective was the welfare of women and children and to make widows self-reliant.

प्राचीन इतिहास - महत्वपूर्ण उत्खनन एवं वर्ष

🪴 1921 — माधो स्वरूप वत्स द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ 

🪴 1925 — मोहनजोदड़ों में उत्खननों का प्रारंभ 

🪴 1946 — आर.ईएम, व्हीलर द्वारा हड़प्पा में उत्खनन 

🪴 1955 — एस.आर.राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरंभ 

🪴 1960 — बी.बी. लाल तथा बी.के. थापर के नेतृत्व में कालीबंगन में उत्खननों का आरंभ 

🪴 1974 — एम.आर.मुगल द्वारा बहावलपुर में अन्वेषणों का आरंभ। 

🪴 1980 — जर्मन- इतावली संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ों में सतह-अन्वेषणों का आरंभ 

🪴 1986 — अमरीकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ 

🪴 1990 — आर.एस.बिष्ट द्वारा धौलावीरा में उत्खननों का आरंभ 


🪴 1921 — M.S. Vats begins excavations at Harappa

🪴 1925 — Excavations begin at Mohenjodaro

🪴 1946 — R.E.M. Wheeler excavates at Harappa 

🪴 1955 — S.R. Rao begins excavations at Lothal

🪴 1960 — B.B. Lal and B.K. Thapar begin excavations at Kalibangan

🪴 1974 — M.R. Mughal begins explorations in Bahawalpur

🪴 1980 — A team of German and Italian archaeologists begins surface explorations at Mohenjodaro

🪴 1986 — American team begins excavations at Harappa

🪴 1990 — R.S. Bisht begins excavations at Dholavira

 #History

प्राचीन इमारतों और मूर्तियों की खोज और संरक्षण के महत्वपूर्ण चरण (उन्नीसवीं सदी)

✍ 1814 — इंडियन म्यूजियम, कलकत्ता की स्थापना 

✍ 1834 — रामराजा लिखित एसेज ऑन द आर्किटेक्चरऑफ द हिंदूज का प्रकाशन: कनिंघम ने सारनाथ के स्तूप की छानबीन को 

✍ 1835-1842 — जेम्स फर्गुरान ने महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों का सर्वेक्षण किया 

✍ 1851 — गवर्नमेंट म्यूजि़यम, मद्रास की स्थापना 

✍ 1854 — अजेक्जैंडर कनिंघम ने भिलसा टोप्स लिखी जो सॉंची पर लिखी गई सबसे प्रारंभिक पुस्तकों में से एक है 

✍ 1878 — राजेंद्र लाल मित्र की पुस्तक, बुद्ध गया: द हेरिटेज़ ऑफ़ शाक्य मुनि का प्रकाशन।

✍ 1880 — एच.एच. कोल को प्राचीन इमारतों का संग्रहाध्यक्ष बनाया गया 

✍ 1888 — ट्रेजर-ट्रोव एक्ट का बनाया जाना। इसके अनुसार सरकार पुरातात्विक महत्तव की किसी भी चीजें को हस्तगत कर सकती थी। 

Landmarks in the Discovery and Preservation of Early Monuments and Sculpture (Nineteenth century)

✍ 1814 — Founding of the Indian Museum, Calcutta

✍ 1834 — Publication of Essay on the Architecture of the Hindus, by Ram Raja; Cunningham explores the stupa at Sarnath

✍ 1835-1842 — James Fergusson surveys major archaeological sites

✍ 1851 — Establishment of the Government Museum, Madras

✍ 1854 — Alexander Cunningham publishes Bhilsa Topes, one of the earliest works on Sanchi

✍ 1878 — Rajendra Lala Mitra publishes Buddha Gaya: The Heritage of Sakya Muni

✍ 1880 — H.H. Cole appointed Curator of Ancient Monuments

✍ 1888 — Passing of the Treasure Trove Act, giving the government the right to acquire all objects of archaeological interest

 #History

मध्यकालीन इतिहास – फिरोज तुगलक से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य ।।

✍️ फिरोज तुगलक ने सार्वजनिक निर्माण विभाग (शोहरत-ए-आम) की भी स्थापना किया। 

✍️ फिरोज ने अपने भाई जौना खाँ की याद में 1359 -60 ई0 में गोमती नदी के किनारे जौनपुर की स्थापना की । 

✍️ फिरोज तुगलक के पास सर्वाधिक गुलाम थे जिनकी कुल संख्या 1,80,000 थी । 

✍️ सर्वप्रथम फिरोज ने ही रोजगार विभाग की स्थापना की थी। 

✍️ फिरोज तुगलक दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने वृद्धावस्था पेंशन हेतु दीवान-ए-इश्तिहाक (पेन्शन विभाग), शोहरत-ए-आम (सार्वजनिक निर्माण विभाग) दीवान-ए-खैरात, दीवान-ए-बंदगान(दास विभाग) एवं बेरोजगारों के लिए रोजगार ब्यूरो की स्थापना किया। 

✍️ फिरोज तुगलक के शासन काल में प्रचलित कुल करों की संख्या 5 थी( 4 इस्लामिक कर तथा जजिया कर)। 

✍️ फिरोज ने लोक शिकायतों के निवारण के लिए एक अलग विभाग दीवान –ए- रिसालत का गठन किया।

✍️ फिक-ए-फिरोजशाही के नाम से फिरोज तुगलक ने फारसी भाषा में इस्लामी कानूनों का संग्रह तैयार करवाया वहीं औरंगजेब ने अरबी भाषा में फतहा-ए-आलमगिरी जो कि इस्लामी कानूनों का संग्रह भी तैयार करवाया। 

✍️ फिरोजशाह तुगलक ने अनेक मंदिरों को तोड़ा एवं मरम्मत पर पाबन्दी लगा दी थी। 

✍️ Feroze Tughlaq also established the Public Works Department (Shorat-e-Aam).

✍️ Firoz founded Jaunpur on the banks of the Gomti River in 1359 -60 AD in memory of his brother Jauna Khan.

✍️ Feroze Tughlaq had the highest number of slaves with once the total number reached 1,80,000. 

✍️ It was Feroz who first established the employment department.

✍️ Firoz Tughlaq was the first Sultan of Delhi Sultanate to give old age pension under Diwan-i-Ishtihaq (Pension Department), Shohrat-e-Aam (Department of Public Works) Diwan-i-Khairat, Diwan-e-Bandagan (Slave Department) .

✍️ Total number of taxes prevalent during the rule of Feroze Tughlaq was 5 (4 Islamic taxes + Jaziya).

✍️ Feroze set up a separate department, Diwan-i-Risalat, for redressal of public grievances.

✍️ Firoz Tughlaq issued collection of Islamic laws in Persian language in the name of Fik-e-Firozshahi while Aurangzeb got Fataha-e-Alamgiri published in Arabic language which also got the collection of Islamic laws.

✍️ FirozshahTughlaq had demolished many temples and also imposed a ban on their repair works.

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के अभिलेख ।।


✍️ मथुरा स्तम्भ लेख — यह चन्द्रगुप्त द्वितीय का पहला अभिलेख है। 

✍️ उदयगिरी गुहालेख — यह उदयगिरी का पहला गुहालेख है। इसे कनिंघम ने खोजा था।

✍️ साँची लेख — यह चन्द्रगुप्त द्वितीय के सेनापति आम्रकार्द्धव का है जोकि बौद्ध था और सुकुली क्षेत्र के निवासी उनदान का पुत्र था।

✍️ मेहरौली लौह स्तम्भलेख — सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने इस लेख को प्रकाशित किया था। वर्तमान में यह दिल्ली के मेहरौली में कुतुबमीनार के पास है। 

✍️ गढ़वा लेख — गुप्त संवत में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने निर्गत किया था। इसमें चन्द्रगुप्त का नाम तो नहीं दिया गया है परन्तु उसकी उपाधियाँ परमभागवत एवं महाराजधिराज दी गयी हैं।

Inscriptions of Chandragupta Vikramaditya

✍️ Mathura Pillar Inscription — This is the first inscription of Chandragupta II.

✍️ Udaigiri cave inscriptions — This is the first inscription of Udaigiri. It was discovered by Cunningham.

✍️ Sanchi Inscription — It belongs to Amrakardhava, the commander of Chandragupta II, who was a Buddhist and was the son of Undan, a resident of the Sukuli region.

✍️ Mehrauli Iron Pillar — This inscription was first published by James Prinsep. Presently it is near Qutub Minar in Mehrauli, Delhi.

✍️ Garhwa Inscription — Chandragupta II issued in the Gupta era. In this, the name of Chandragupta is not given, but his titles have been given as Param Bhagwat and Maharajadhiraj.

#History

मुगलकालीन बिहार /Bihar during Mughal Period

✍️ भारत में मुगल राजवंश की स्थापना का श्रेय तैमूर लंग तथा चंगेज खान के वंशज जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर को जाता है। यह 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को पराजित कर भारत के बड़े भू-भाग का शासक बना।

✍️ बिहार में सुल्तान मुहम्मद शाह नूहानी एवं फार्मूली कबीलों के सरदारों ने चुनौती दी। अपने सैनिक अभियान के दौरान बाबर ने अप्रैल, 1529 में बिहार के बक्सर नामक स्थान पर फार्मूला सरदारों को आत्मसमर्पण करने पर विवश किया था 

✍️ मुर्शीद इराकी को बंगाल का दीवान नियुक्त किया। 27 अप्रैल, 1529 को उसने मुनेर सरदारों को पराजित किया। बाबर की सेना में शेरशाह ने भी कार्य किया था। 

✍️ 1555-56 ई. में हुमायूँ द्वारा भारत में मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना की गई। वास्तव में भारत में मुगल प्रशासन का संस्थापक अकबर को माना जाता है। उसने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। अकबर के शासक बनने के प्रारंभिक काल में अफगान अफगानों ने बिहार पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा। 

✍️ 1564 ई. में एक अमीर सुलेमान कर्रानी ने बिहार में अपने स्वतंत्र शासन की घोषणा की। उसकी मृत्यु के बाद 1572 ई. में दाऊद खान शासक बना। 

✍️ दाऊद खान ने पटना के दुर्ग को नष्ट कर दिया। अकबर ने दाऊद खान की बढ़ती शक्ति को कुचलने के लिए मुनीम खान को बिहार भेजा। दाऊद खान इस समय हाजीपुर में तथा उसका मंत्री लोदी सरदार रोहतास में था। 

✍️ मुनीम खान को दाऊद खान के ऊपर सफलता नहीं मिलने के पश्चात् स्वयं सम्राट् अकबर को पटना आना पड़ा। उसने हाजीपुर के दुर्ग पर आक्रमण किया और किलेदार फतह खान बरहा के साथ अन्य अफगानों को बुरी तरह पराजित किया। इस प्रकार अकबर ने हाजीपुर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

✍️ अकबर ने अपने सेनापति शाहबाज खान को छोटा नागपुर के राजा बैरीशाल के खिलाफ भेजा। शाहबाज खान द्वारा बैरीशाल को पराजित किया गया था उसे सम्राट् अकबर की अधीनता स्वीकार करने पर मजबूर किया गया। 

✍️ 1579 ई. में राजा मानसिंह ने पलामू के चेरो राज्य पर आक्रमण किया, जिसने उन्हें मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर लगान देने के लिए मजबूर किया।

✍️ The credit for the establishment of the Mughal dynasty in India goes to Zahiruddin Muhammad Babur, a descendant of Timur Lang and Genghis Khan. He defeated Ibrahim Lodi, the ruler of Delhi, in the First Battle of Panipat in 1526 AD and became the ruler of a large part of India.

✍️ In Bihar, Sultan Muhammad Shah Nuhani and the chieftains of the Formuli tribes challenged. During his military campaign, Babur forced the Sutra Sardars to surrender at a place called Buxar in Bihar in April, 1529.

✍️ Appointed Murshid Iraqi as Diwan of Bengal. He defeated the Muner chieftains on 27 April 1529. Sher Shah also served in Babur's army.

✍️ The Mughal Empire was restored in India by Humayun in 1555-56 AD. In fact, Akbar is considered to be the founder of the Mughal administration in India. Showing his foresight, he established a huge empire. The Afghans maintained their dominion over Bihar during the initial period of Akbar becoming the ruler.

✍️ In 1564 AD, a wealthy Suleiman Karrani declared his independent rule in Bihar. After his death, Dawood Khan became the ruler in 1572 AD.

✍️ Dawood Khan destroyed the fort of Patna. Akbar sent Munim Khan to Bihar to crush the growing power of Dawood Khan. Dawood Khan was at that time in Hajipur and his minister Lodi Sardar was in Rohtas.

✍️ After Munim Khan did not get success over Dawood Khan, Emperor Akbar himself had to come to Patna. He attacked the fort of Hajipur and badly defeated the other Afghans along with the fortified Fatah Khan Barha. Thus Akbar captured the fort of Hajipur.

✍️ Akbar sent his general Shahbaz Khan against Raja Bairishal of Chota Nagpur. Bairshal was defeated by Shahbaz Khan and he was forced to accept the suzerainty of Emperor Akbar.

✍️ In 1579 AD, Raja Mansingh invaded the Chero kingdom of Palamu, which forced him to accept the suzerainty of the Mughal Empire.

शिलालेख – लघु शिलालेख में अशोक के व्यक्तिगत जीवन की जानकारी मिलती है

लघु शिलालेख —  स्थान

🪴 रुपनाथ — मध्य प्रदेश के जबलपुर जिला

🪴 गुर्जरा — म.प्र. के दतियां जिले में

🪴 सहसाराम — बिहार के शाहाबाद जिले में

🪴 भाब्रू या बैराट — जयपुर जिले में (राजस्थान)

🪴 मास्की — कर्नाटक के रायचूर जिले में

🪴 ब्रह्मगिरी — मैसूर के चित्रदुर्ग जिले में

🪴 सिध्दपुर — कर्नाटक में

🪴 जटिंगरामेश्वर — कर्नाटक में

🪴 एर्रगुडी — आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में

🪴 गोविमठ — मैसूर के कोपबल में

🪴 पालकिगुण्डु — कर्नाटक 

🪴 राजुलमण्डगिरी — आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में

🪴 अहरौरा — उ.प्र. के मिर्जापुर जिले में

🪴 सारोमारो — शहडौल, मध्य प्रदेश

🪴 नेत्तूर — मैसूर

🪴 उडेगोलन — बेल्लारी, कर्नाटक

🪴 पनगुडरिया — सिहोर, मध्य प्रदेश

🪴 सन्नाती — गुलबर्गा, कर्नाटक

Inscriptions - Minor Rock edicts provide information about Ashoka's personal life.

 Minor Rock Edict —  Location

🪴 Rupnatha — Jabalpur district of Madhya Pradesh

🪴 Gurjara — Datiya Districto of M.P.

🪴 Sahasram — In shahabad district of Bihar

🪴 Bhabru or bairat — In Jaipur district (Rajasthan)

🪴 Maski — In Raichur district of Karnataka

🪴 Brahmagiri — In Chitraduraga districto of Mysore

🪴 Siddhpur — Karnataka

🪴 Jatingrameshwar — Karnataka

🪴 Erragudi — Kurnool district of Andhra Pradesh

🪴 Govimatha — Kopbal in Mysore

🪴 Palkigundu — Karnataka 

🪴 Rajulmandagiri — Kurnool district of Andhra Pradesh

🪴 Ahraura — Mirzapur district of U.P. scsgyan

🪴 Saromaro — Shahdol,M.P.

🪴 Nettur — Mysore

🪴 Udegolan — Bellary, Karnataka

🪴 Pangudaria — Sihor, Madhya Pradesh

🪴 Sannati — Gulbarga, Karnataka

 #History

प्राचीन कालीन यज्ञ एवं उनका संबंध ।।

🪴 यज्ञ              💁🏻‍♀ संबंध

✍ ब्रह्म-यज्ञ — वेदों को पढ़ना व पढ़ाना

✍ दैव-यज्ञ — अग्नि को आहुति

✍ भूत-यज्ञ — सभी प्राणियों को आहुति

✍ मनुष्य-यज्ञ — अतिधियों को सम्मान


🪴 Yagya            💁🏻‍♀ Relations

✍ Brahma Yagya — reading and teaching the Vedas

✍ Daiva-yagya — offering to fire

✍ Bhoot-yagya — offering to all beings

✍ Man-Yagya — Honor to the guests


📚 वेद         —       ✍ शाखाएँ 

🌴 ऋग्वेद — शाकल 

🌴 सामवेद — राणायनीय 

🌴 यजुर्वेद — कण्व

🌴 अथर्ववेद — पिप्पलाद, शौनक


📚 Veda  —     ✍ Branches

✍ Rigveda            —  Shakala

✍ Samaveda       — Ranayaniya

✍ Yajurveda         — Kanva

✍ Atharvaveda    — Pippalada, Saunaka

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत भारत 1773-1853

● रेगुलेटिंग एक्ट 👉 1773             
●पिट्स इंडिया एक्ट 👉 1784
●चार्टर एक्ट 👉 1793
●चार्टर एक्ट 👉 1813
●चार्टर एक्ट 👉 1833
●चार्टर एक्ट 👉 1853

  ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ 

      ब्रिटिश क्रॉउन के अंतर्गत भारत(1858-1947)
  ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬   
●गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1858
●इंडियन काउंसिल एक्ट-1861
●भारत परिषद अधिनियम-1892
●भारत सरकार अधिनियम1909
●भारत सरकार अधिनियम-1919
●अगस्त प्रस्ताव-1940
●क्रिप्स प्रस्ताव-1942
●कैबिनेट मिशन-1946
●माउंटबेटन योजना-1947

मध्यकालीन इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य -

✍️ दीवान-ए- मुस्तखराज की स्थापना का उद्देश्य बकाया लगान की वसूली का था।

✍️ बक्शी - सल्तनत काल में प्रान्त का सैन्य एवं प्रशासनिक अधिकारी था।

✍️ जैनुल आबिदीन को बड़शाह भी कहा जाता था।

✍️ अलाउद्दीन खिलजी का विजयक्रम - गुजरात - रणथम्भौर - चित्तौड़ - तेलंगाना

✍️ नसीरुद्दीन खुसरो शाह - दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठने वाला अकेला भारतीय सुल्तान था।

✍️ तुगलक साम्राज्य - 23 मुक्तकों प्रांतों में विभक्त था।

✍️ फिरोजशाह तुगलक ने सेना में विरासत का सिद्धांत शुरु किया।

✍️ अधिराज्य में विश्वास रखने वाला सुल्तान इल्तुतमिश था।

✍️ इक्तादारों की आय का आकलन करने के लिए "ख्वाजा" (साहिबे दिवान) की नियुक्ति बलबन ने की थी

📌 Important Facts Related to Medieval History -

✍ The purpose of the establishment of Diwan-i-Mustakhraj was to recover and collect arrears of rent.

✍️ Bakshi performed the military and administrative functions in a province during the Sultanate period

✍️ Zainul Abidin was also known as Budshah.

✍️ Conquest of Alauddin Khilji in chronological order - Gujarat - Ranthambore - Chittoor - Telangana

✍️ Nasiruddin Khusro Shah - the only Indian Sultan to sit on the throne of Delhi Sultanate

✍️ Tughlaq Empire - was divided into 23 Muktas (provinces)

✍️ The system of hereditaryship in the Army was introduced by Firoz Shah Tughlaq. In other words Iqtadari system was made hereditary in Firoz Shah Tughlaq's period.

✍️ Sultan who believed in divine-right theory of Kingship - Iltutmish. However, the first ruler who had propounded the divine-right theory of Kingship was Balban.

✍️ "Khwaja" (Sahib-e-Diwan) was appointed by Balban to assess the income of Iqtadars.

प्राचीन इतिहास - यजुर्वेद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य ।।

• यजुर्वेद का उद्भव वायु से माना जाता है। से गति या कर्म का वेद भी कहते हैं।

• यजुर्वेद के दो भाग हैं – शुक्ल यजुर्वेद एवं कृष्ण यजुर्वेद।

• इसमें यज्ञ की विधियों / कर्मकाण्डों पर बल दिया गया है।

• इसका पाठ करने वाला अध्वर्यु कहलाता है।

• इसमें 40 मण्डल और 2000 मंत्र हैं।

• इसमें यज्ञ एवं यज्ञ बलि की विधियों का प्रतिपादन किया गया है।

• यजुर्वेद में हाथियों के पालने का उल्लेख है।

• यजुर्वेद में सर्वप्रथम राजसूय तथा वाजपेय यज्ञ का उल्लेख मिलता है। 

Ancient History - Important Facts related to YAJURVEDA

• Yajurveda is believed to originate from Vayu. It is also called the Veda of speed or karma.

• Yajurveda has two parts - Shukla Yajurveda and Krishna Yajurveda.

• It emphasizes the rituals and various activities of Yajna.

• One who recites it is called ‘Adhvaryu’

• It has 40 mandalas and 2000 verses

• In this, the methods of yajnas and yajna sacrifices have been mentioned

• The cradle of elephants is mentioned in the Yajurveda.

• The first mention of Rajasuya and Vajpeya Yagya has been found in Yajurveda.

प्राचीन इतिहास - सामवेद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य ।।

✍️ सामवेद को भारतीय संगीत का मूल ग्रंथ माना जाता है।

✍️ सामवेद के प्रथम दृष्टा या आद्य आचार्य जैमिनीय थे वहीं सुकर्मा ने कालान्तर में सामवेद का विस्तार किया।

✍️ इसमें कुल मंत्रों की संख्या 1869' है, लेकिन कुछ मन्त्र एकाधिक बार आये हैं यदि इन्हें निकाल दे तो अब कुल मंत्रों की संख्या 1549 होगी। इनमें से भी 1474 मंत्र ऋग्वेद से लिये गये हैं। इसी कारण सामवेद को ऋग्वेद से अभिन्न माना जाता है।

✍️ यह भारतीय संगीत शास्त्र पर प्राचीनतम ग्रन्थ है।

✍️ इसका पाठ करने वाला पुरोहित उदगातृ कहलाता है।

✍️ सामवेद के प्रथम दृष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।

✍️ सामवेद से सर्वप्रथम 7 स्वरों ( सा, रे , गा, मा.....) की जानकारी प्राप्त होती है।

✍️ सामवेद का उपवेद ‘गन्धर्ववेद’कहलाता है। 

Ancient History - Important Facts related to SAMVEDA

✍️ Samaveda is considered to be the basic text of Indian music.

✍️ Samveda's prima facie or Adya Acharya was Gemini, while Sukarma expanded the Samaveda over a period of time.

✍️ The total number of mantras in it is 1869 ', but some mantras have come multiple times, if removed, then the total number of mantras will be 1549. Of these, 1474 mantras have been taken from the Rigveda. That is why the Samaveda is considered integral to the Rigveda.

✍️ It is the oldest text on Indian musicology.

✍️ The priest who recites it is called ‘Udgatra’.

✍️ Jaimini, a disciple of the Vedavyasa, is considered the prima facie compiler of the Samaveda, 

✍️ First information about 7 tones (Sa, Re, Ga, Ma .....) has been obtained from Samaveda.

✍️ The Upveda of Samaveda is called 'Gandharveda'.

प्राचीन इतिहास - ऋग्वेद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य ।।

✍️ सर्वप्रथम फ्रीड्रिश रोजेन ने 1838 ई. में लेटिन में ऋग्वेद का संपादन प्रारम्भ किया था।

✍️ मैक्समूलर ने सर्वप्रथम सायण भाष्य सहित ऋग्वेद का संपादन किया, परन्तु सर्वप्रथम प्रकाशित सम्पूर्ण ऋग्वेद का अंग्रेजी में अनुवाद विल्सन का था।

✍️ इसमें विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है।

✍️ इसका संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन ( वेदव्यास) ने किया है।

✍️ इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त एवं 10552 मंत्र हैं।

✍️ दूसरा एवं सातवां मण्डल सबसे पुराना है। इन्हें वंशमण्डल, कुल मण्डल या ऋषि मण्डल कहते हैं।

✍️ दसवां मण्डल सबसे नवीन है। 

✍️ ऋग्वेद का पाठ करने वाला पुरोहित ‘होतृ (होता) ‘कहलाता है।

✍️ नौवां मण्डल सोम देवता को समर्पित है।

✍️ दसवें मण्डल के पुरूष सूक्त में शुद्रों का उल्लेख मिलता है।

✍️ ऋग्वेद एवं ईरानी ग्रन्थ जेन्द अवेस्ता में समानता पायी जाती है।

✍️ ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी इसे नदीतमा कहा गया है।

✍️ ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख 3 बार एवं गंगा का उल्लेख 1 बार (10वें मण्डल) में मिलता है।

✍️ ऋग्वेद में पुरूष देवताओं की प्रधानता है। इन्द्र का वर्णन सर्वाधिक (250 बार) है।

✍️ ‘असतो मा सदगमय’ वृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है।

✍️ वर्ण शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में है।

Ancient History - Important Facts related to RIGVEDA 

✍️ First Freedrish Rosen started editing the Rigveda in Latin in 1838 AD.

✍️ Max Müller first edited the Rigveda with Sayan Bhashya, but Wilson's first translation of the entire Rigveda published in English.

✍️ It has a collection of mantras sung in praise of various deities.

✍️ It is compiled by Maharishi Krishna Dvaipayana (Vedavyasa).

✍️ It has a total of 10 mandalas, 1028 hymns and 10462 verses

✍️ Second and seventh mandala is the oldest. These are called vanshmandala.

✍️ The tenth mandala is the most recent.

✍️ The priest who recites the Rig Veda is called 'Hotras'.

✍️ The ninth mandala is dedicated to Som.

✍️ Shudras are mentioned in the ninetieth Hymn (Purushasukta) of the tenth mandala.

✍️ Many similarities have been found in Rigveda and Iranian text Zenda Avesta.

✍️ Saraswati was the most sacred river of the Rig Veda, it has been called ‘Nadiatama’.

✍️ The word ‘Yamuna’ is mentioned in the Rig Veda 3 times and the word ‘Ganga’ 1 time (10th Mandala).

✍️ In Rigveda, there is a predominance of male deities. Indra's description is the most (250 times)

✍️ ‘Asato Ma Sadgamaya is taken from Brihadaranyaka Upanishad.

✍️ The Term Varna is first mentioned in the Rigveda.

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिन्ह ।।

क्र.सं.  — तीर्थंकरों के नाम  — प्रतीक

1  — आदिनाथ या ऋषभनाथ — वृषभ

2  — अजितनाथ — गज

3  — संभवनाथ — अश्व

4  — अभिनन्दन — बन्दर

5  — सुमतिनाथ — क्रौंच

6  — पद्मप्रभु — पद्म

7  — सुपार्श्वनाथ — स्वास्तिक

8  — चन्द्रप्रभु — अर्धचन्द्रमा

9  — पुष्पदन्त — मकर

10  — शीतलनाथ — श्रीवत्स

11  —श्रेयांसनाथ  —खड्ग

12  —वासुपूज्य  —भैंस

13  — विमलनाथ — वाराह

14  — अनन्तनाथ — स्येन

15  — धर्मनाथ — वज्र

16  — शान्तिनाथ — हरिण

17  — कंथुनाथ — छाग (बकरा)

18  — अरनाथ — मत्स्य

19  — मल्लिनाथ — कलश

20  — मुनि सुव्रतनाथ — कूर्म

21  — नेमिनाथ — नीलोत्पल

22  — अरिष्टनेमि — शंख

23  — पार्श्वनाथ — सर्प

24  — महावीर — सिंह

24 Tirthankara of Jain Religion and their Symbol

S.No.      Tirthankars     Symbol

1.  — Adinatha or Rishabhnatha  — Bull

2.  — Ajitnatha — Elephant

3.  — Sambhavnatha — Horse

4.  — Abhinandana — Monkey

5.  — Sumatinatha — Koka Bird

6.  — Padmaprabha — Red Lotus

7.  — Suparshvanatha — Swastika

8.  — Chandraprabhu — Crescent

9.  — Puspadanta — Crocodile

10.  — Sheetalnatha — Shrivatsa (Swastik)

11.  — Shreyansanatha — Rhinoceros

12.  — Vasupujya — Buffalo

13.  — Vimalnatha — Boar

14.  — Anantnatha — Falcon

15.  — Dharmanatha — Vajra

16.  — Shantinatha — Antelope

17.  — Kunthunatha — Goat

18.  — Aranatha — Nandyvarta

19.  — Mallinatha — Water-jar

20.  — Munisuvrata — tortoise

21.  — Naminatha — Blue-Lotus

22.  — Arishtnami — Conch

23.  — Parshwanatha — Serpent

24.  — Mahavira — Lion

ऋग्वेद के मंडल एवं उसके रचयिता

मंडल ~ रचयिता

🪴 प्रथम -मधुच्छन्दा, दीर्घतमा आदि

🪴 द्वितीय - गृत्समद

🪴 तृतीय - विश्वामित्र

🪴 चतुर्थ - वामदेव

🪴 पंचम - अत्रि

🪴 षष्ठम - भारद्वाज

🪴 सप्तम् - वशिष्ठ

🪴 अष्ट्म - कण्व एवं आंगिरस

🪴 नवम् - आंगिरस, काश्यप आदि

🪴 दशम् - त्रित, इंद्राणी, शची, श्रद्धा आदि

Rigvedic Mandals and their writers

Mandala ~ Writer

🪴 First - Madhutchanda, Dirghatama etc.

🪴 Second - Gritsamad

🪴 Third - Vishwamitra

🪴 Fourth - Vamdeva

🪴 Fifth - Atri

🪴 Sixth - Bhardwaj

🪴 Seventh - Vashishtha

🪴 Eighth - Kanva & Angiras

🪴 Ninth - Aangiras, Kashyap etc.

🪴 Tenth - Trit, Indrani, Shachi, Shradha etc