आशा ही सफलता की जननी

आशा-निराशा समाज ही नहीं बल्कि व्यक्ति के अंदर भी हिलोरे मारती है. ध्यान रहे कि पोषण सिर्फ आशा का करना है...अगर आप निराशा में डूबे तो उबरना आपको स्वयं होगा और उबरना ही होगा, तो फिर उसके चक्कर में क्यों पडें? निराशा के जन्म का प्रमुख कारण इच्छा व कर्मठता में अंतर है. कर्मठता की कमी को सामान्यतः क्षमता में कमी से जोड़ दिया जाता है जो कि अनुचित है. क्षमता तो मानव जन्म लेते ही मिल गयी थी परन्तु आप कर्मयोगी न बन पाए. और कर्मठता का महत्व पता चल भी जाए तो व्यक्ति भटकाव-ग्रस्त होकर खाई को यथावत रखे रहता है जो दुर्भाग्यपूर्ण है. आपकी एक सीख व एक गलती मिलकर आपको वापस शून्य पर ले आएगी और मंजिल सदैव दूर रहेगी. संक्षेप में सबक को जीवनपर्यन्त उपयोग में लाते रहना ही चाभी है.

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