सबसे पहले अवकाश तालिका की छुट्टियों में कटौती करके उस को छोटी किया गया, तब अध्यापकों ने कोई प्रतिक्रिया नही दी फिर सर्दियों की छुट्टियों को खत्म किया गया तब भी अध्यापकों ने कुछ न कहा।
अब गर्मियो की छुट्टियां भी खत्म कर दी।
अब भी इनको जवाब न दिया तो वो दिन दूर नही कि अवकाश तालिका की छुट्टियां *शून्य* करके *प्रत्येक रविवार* को भी स्कूल में बिठाएंगे।
अभी भी समय है शिक्षक साथियों सब लोग एक हो जाओ।
ये सभी शिक्षक संगठनों के आपसी फूट का ही परिणाम है कि हमारीे बात उतनी गम्भीरता से नहीं सुनी जा रही जितनी गम्भीरता से सुनी जानी चाहिए
हर संगठन अपने आप को असली साबित करने में लगा है अपने आप को शिक्षकों का सच्चा हितैषी साबित करने में लगा है।
लेकिन वास्तविकता यही है कि हम शिक्षक इतनी अधिक संख्या में होने के बावजूद सबसे ज्यादा शोषित और पीड़ित है ।
कोई भी संगठन किसी शिक्षक हित की बात उठाता है तो दूसरा उसको गलत साबित करने में लग जाता है ।
क्या इससे भला होगा शिक्षकों का??
इसी तरह से शिक्षकों का गला दबाने वाले शासनादेश आते रहेंगे यदि हम समय रहते नहीं सुधरे ???
क्या सभी विभागों के लोग इतनी कर्मठता से काम करते हैं जितना एक शिक्षक कार्य करता है।
तो फिर ये शिक्षकों के साथ इतना सौतेला व्यवहार क्यों???
सबसे पहले हमें सरकार के ऊपर उंगली उठाने से पहले अपने प्रतिनिधियों से पूछना होगा कि आप लोग क्या एक मंच पर शिक्षक हित में नहीं आ सकते हैं
यदि नहीं आ सकते तो फिर आम शिक्षक अपनी लड़ाई स्वयं लडे । अन्यथा की स्थिति में आने वाले समय में स्थिति और गम्भीर होगी
और हम लोग केवल सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज कराकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेंगे।
और होगा कुछ नहीं ????
*वैचारिक मतभेदों के बावजूद भी खुद के हितों की खातिर एक मंच पर आ जाने की कला हमे राजनेताओ से सीख लेनी चाहिये जो कट्टर विरोधी होने के बाद भी एक हो जाते है....!
अब गर्मियो की छुट्टियां भी खत्म कर दी।
अब भी इनको जवाब न दिया तो वो दिन दूर नही कि अवकाश तालिका की छुट्टियां *शून्य* करके *प्रत्येक रविवार* को भी स्कूल में बिठाएंगे।
अभी भी समय है शिक्षक साथियों सब लोग एक हो जाओ।
ये सभी शिक्षक संगठनों के आपसी फूट का ही परिणाम है कि हमारीे बात उतनी गम्भीरता से नहीं सुनी जा रही जितनी गम्भीरता से सुनी जानी चाहिए
हर संगठन अपने आप को असली साबित करने में लगा है अपने आप को शिक्षकों का सच्चा हितैषी साबित करने में लगा है।
लेकिन वास्तविकता यही है कि हम शिक्षक इतनी अधिक संख्या में होने के बावजूद सबसे ज्यादा शोषित और पीड़ित है ।
कोई भी संगठन किसी शिक्षक हित की बात उठाता है तो दूसरा उसको गलत साबित करने में लग जाता है ।
क्या इससे भला होगा शिक्षकों का??
इसी तरह से शिक्षकों का गला दबाने वाले शासनादेश आते रहेंगे यदि हम समय रहते नहीं सुधरे ???
क्या सभी विभागों के लोग इतनी कर्मठता से काम करते हैं जितना एक शिक्षक कार्य करता है।
तो फिर ये शिक्षकों के साथ इतना सौतेला व्यवहार क्यों???
सबसे पहले हमें सरकार के ऊपर उंगली उठाने से पहले अपने प्रतिनिधियों से पूछना होगा कि आप लोग क्या एक मंच पर शिक्षक हित में नहीं आ सकते हैं
यदि नहीं आ सकते तो फिर आम शिक्षक अपनी लड़ाई स्वयं लडे । अन्यथा की स्थिति में आने वाले समय में स्थिति और गम्भीर होगी
और हम लोग केवल सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज कराकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेंगे।
और होगा कुछ नहीं ????
*वैचारिक मतभेदों के बावजूद भी खुद के हितों की खातिर एक मंच पर आ जाने की कला हमे राजनेताओ से सीख लेनी चाहिये जो कट्टर विरोधी होने के बाद भी एक हो जाते है....!
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