कृतियों में बसा है गांव- मैत्रेयी पुष्पा
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मैत्रेयी पुष्पा अकेली ऐसी महिला साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी में ग्रामीण भारत को साकार किया। अलीगढ़ जिले के सिर्कुरा गांव में 1944 में पैदा हुईं मैत्रेयी जी के लेखन में ब्रज और बुंदेल दोनों संस्कृतियों की झलक दिखाई देती है। अब तक उनके नौ उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। 'चाक', 'अल्मा कबूतरी', 'कस्तूरी कुंडली बसैं', 'इदन्नमम', 'स्मृति दंश', 'कहैं इशुरी फाग', 'झूला नट' और 'बेतवा बहती रही' उनकी प्रमुख औपन्यासिक कृतियां हैं। इसके अलावा उनके तीन कहानी संग्रह भी है जिनमें 'चिन्हार' और 'ललमनियां' प्रमुख है। 'लकीरें' शीर्षक से उनकी एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुकी है। मैत्रेयी जी को अब तक कई सम्मान हासिल हो चुके हैं जिनमें सुधा स्मृति सम्मान, कथा पुरस्कार, साहित्य कृति सम्मान, प्रेमचंद सम्मान, वीरसिंह जू देव पुरस्कार, कथाक्रम सम्मान, हिंदी अकादमी का साहित्य सम्मान, सरोजिनी नायडू पुरस्कार और सार्क लिटरेरी अवार्ड प्रमुख हैं। मैत्रेयी पुष्पा जी को रांगेय राघव और फणीश्वर नाथ 'रेणु' की श्रेणी की रचनाकार माना जाता है।
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