आओ बैठो
इतना आसान नही होता
स्टडी टेबल के सामने बार बार उन्ही किताबो को लेकर बैठना
ऊबे हुए मन से एक बार फिर खोलना
बिना परीक्षा की तिथि के भी पढ़ना
सिर्फ भागते जाना भागते जाना
जहां मंजिल भी न दिख रही हो
बार बार गोल रोटी में भी
चितकबरी दुनिया देखना,
चाय के फीके रंग जैसा कैरियर
वही सरकारी रिजल्ट , फिर फार्म
फिर कोचिंग, कोचिंग और कोचिंग
एक इंतजार,,,,,,,
और फिर ..........
कुछ परीक्षाएं कभी खत्म नही होती,
हर एक चरण के बाद बढ़ता जाता है तनाव
कभी प्री, फिर मेंस और उसके बाद
एक लंबा इंतजार.................
और इस इंतजार के बीच मे
बहुत कुछ हाँथ से निकल चुका होता है,
पड़ोस के चाचा की शादी,
बड़े भैया की मैरिज एनिवर्सरी,
दोस्त की सगाई,
आस पड़ोस में बजती सहनाई,
मम्मी पापा की कमाई,
दीदी की दिखाई,
और मिलती है
बस तन्हाई,
एक प्यारा ताना ,
वापस बुलाने की धमकी,
शर्मा जी के बेटे से तुलना,
शक करती निगाहें,
मिटते हर सपना,
और इन परीक्षा के चरण
जिनपर डाक्टर आर्थो लगा होता है
जो कभी रुकते ही नही
कभी थकते नही
एक के बाद एक कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते हुए,
बस थकता है एक आम छात्र
टूटे हुए सपनो को लेकर लौटता है अपने गाँव,आपने शहर,
जज्बातों को फिर उन्ही बैग में रखकर,
अपने सपनो को कबाड़ी वाले के हांथो दस रुपये किलो
के भाव बेचकर,
उन्ही पैसों से शर्म का टिकट खरीदकर ,
चढ़ जाता है अपने परिवार का लटका मुँह देखने,
मम्मी की पथराई आंखों के सवालों का सामना करने,
पापा के अभिमान की छाती पर परचून की दुकान लगाने,
बहन के उपहारों को बेचकर उसका उपकार मानने,
भाई के सहयोग के नीचे खुद को न्योछावर करने,
और आस पड़ोस से आती आवाज सुनने........
फलाने का छोटका लड़का , बहुत पढ़ाई की,
बहुत अच्छा है, आज कल यही रहता है घर पर,
आओ बैठो और सुनो।।
फिर एक लंबा ठहाका...
हा हा हा हा हा.........
#currupt_up_bharti_aayog
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