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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

केंद्र सरकार ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की विशेष जांच दल की सिफारिशें स्वीकार की ।।

केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों की जांच हेतु बने विशेष जांच दल (एसआईटी) की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं. केंद्र सरकार ने 15 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी दी.

दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में बनी एसआईटी ने 186 मामलों की जांच की है. उसके आधार पर लापरवाही के दोषी पुलिसवालों पर कार्रवाई की जाएगी. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को बताया कि हमने न्यायामूर्ति ढींगरा के नेतृत्व वाली एसआईटी की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है.

मुख्य बिंदु

• सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि मामले से जुड़े सभी रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के पास हैं. उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड सीबीआइ को वापस किये जाएं ताकि आगे की कार्रवाई हो सके.

• सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने एसआइटी को आदेश दिया है कि वे मामले से जुड़ा सारा रिकॉर्ड गृह मंत्रालय को वापस करे.

• सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ को याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता आर एस सूरी ने सूचित किया कि विशेष जांच दल की रिपोर्ट में पुलिस अधिकारियों की भूमिका की निंदा की है.

• याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर एस सूरी ने शीर्ष अदालत की पीठ को सूचित किया कि वे जल्द ही उन सभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आवेदन दाखिल करेंगे, जो कथित रूप से सिख विरोधी दंगों में शामिल थे. सूरी ने कहा कि मामले में शामिल पुलिस अधिकारी दोष ​​मुक्त नहीं हो सकते.

दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी के सदस्य गुरलाद सिंह कहलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 1984 के सिख विरोधी दंगों के बंद कर दिए गए मामलों की पुन: जांच की मांग की है.

सुप्रीम कोर्ट ने इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए 11 जनवरी 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसएन धींगरा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एसआईटी गठित की थी. एसआइटी में जस्टिस धींगरा के अतिरिक्त आइपीएस अधिकारी राजदीप सिंह और आइपीएस अधिकारी अभिषेक दुलार भी सदस्य थे. इस समय इस जांच दल में मात्र दो सदस्य हैं क्योंकि राजदीप सिंह ने व्यक्तिगत कारणों से इसका हिस्सा बनने से इंकार कर दिया था. एसआइटी ने जांच करके अपनी फाइनल रिपोर्ट दे दी है.

1984 सिख विरोधी दंगे

1984 के सिख-विरोधी दंगे भारतीय सिखों के विरुद्ध बहुत बड़े दंगे थे. यह दंगे इंदिरा गाँधी के हत्या के बाद हुए थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को उनके दो सुरक्षा कर्मियों द्वारा गोली मार कर हत्या किये जाने के बाद दिल्ली सहित देश के अनेक हिस्सों में बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे हुए थे. इन्दिरा गांधी की हत्या उन्हीं के अंगरक्षकों ने कर दी थी जो कि सिख थे.

रिपोर्ट के अनुसार इन दंगों में 3000 से ज़्यादा मौतें हुई थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के दंगों की सुनवाई करते हुए 17 दिसम्बर 2018 को फ़ैसला सुनाया है. इस फैसला में सज्जन कुमार (प्रमुख आरोपी) को उम्रक़ैद तथा अन्य आरोपियों को 10-10 साल की सज़ा सुनाई गयी है.


प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर सिखों के गुस्से की कारण यह थी कि 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान उन्होंने भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर पर कब्जा करने का आदेश दिया था. मंदिर में घुसे सभी विद्रोहियों को इस दौरान मार दिया गया था. जो कि ज्यादातर सिख ही थे. इन सभी हथियारों से लैस विद्रोहियों ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था. इन विद्रोहियों की मांग थी कि ये ‘खालिस्तान’ नाम का अगल देश चाहते थे.

इस दौरान हुए आप्रेशन को ‘आप्रेशन ब्लू स्टार’ कहा जाता है. इन खालिस्तानियों का नेतृत्व सिख धर्म गुरु सरदार जरनैल सिंह भिंडरावाले ने किया था. इंदिरा सरकार ने खालिस्तानियों की बढ़ती तादात को देखते हुए तोपों के साथ चढ़ाई करने का आदेश दिया था. इसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके सहयोगियों की मौत हो गई थी. सरदार जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत के बाद इंदिरा सरकार के विरुद्ध सिखों का गुस्सा फूट गया. इसका बदला लेने हेतु इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों ने जो कि सिख ही थे, उन्होंने इंदिरा गांधी को जान से मार दिया.

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