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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

जो "सर्वं खलु इदं ब्रह्म" में मानते हैं वे ही ब्रह्मवादी हैं।

 यह सर्व जगत् निश्चित् ही ब्रह्म है। जैसे मटके को देखकर कहा जाता है कि तत्त्व से यह मिट्टी है वैसे ही जगत् को देखकर कहा जाता है यह तत्त्व से ब्रह्म ही है।

जगत् ब्रह्म का रूप होने से ही सत्य है। अगर जगत् मिथ्या हो, तो जो वस्तु है ही नहीं उसके साथ हमेशा रहने वाले ब्रह्म का ऐक्य कैसे हो सकता है? 

क्या आप मिथ्या साँप को देखकर कहते हैं कि यह साँप रस्सी ही है? या रस्सी को देखकर कहते हैं कि यह रस्सी ही साँप है? रस्सी सच्ची है और साँप झूठा, जो है ही नहीं वह हमेशा रहने वाले से एक न हो सकता। ब्रह्म सत्य और जगत् मिथ्या, इसलिए जगत् ब्रह्म का रूप न होकर माया का रूप मानना होगा। इससे ब्रह्मवाद की हानि होगी।

जगत् के मिथ्या होने पर आपको यह कहना चाहिए कि जगत् ब्रह्म नहीं है। जैसे कोई भ्रान्त व्यक्ति साँप देखने बाद कहता है कि यह तो रस्सी है साँप नहीं, वो कभी साँप और रस्सी में एकता नहीं देखता। साँप अलग है रस्सी अलग। तत्त्व से साँप और रस्सी का कोई मेल नहीं, कोई नहीं बोलता साँप तत्त्व से रस्सी है। 

लेकिन मटके को देखकर कहा जाता है कि यह पृथिवी तत्त्व है, बर्फ को देखकर यह जल तत्त्व है। वैसे ही इदं ऐसा निर्देश करके कहा गया है यह जगत् जो है वह ब्रह्म तत्त्व है।

ब्रह्मवाद में ब्रह्म जगत् बनता है। दूसरे जगह माया जगत् बनती है ब्रह्म में सिर्फ उसका भास होता है। ब्रह्मवाद में ब्रह्म जगत् बनता है, जगत् रूपमें रहता है और फिर जगत् में ही लीन होता है, मिथ्यावाद में ब्रह्म जगत् नहीं बनता, जगत् का अस्तित्व ही नहीं है बस भान है, और जगत् का लय भी न होकर समूल नाश है (माया सहित जैसे साँप गायब होता है, रस्सी में मिलटा नहीं वैसे ही) जगत् बस अपने मूल अविद्या सहित गायब हो जाता है) ।

सर्वं खलु इदं ब्रह्म को सीधा सीधा अर्थ में मानने वाले मात्र जगद्गुरु वल्लभाचार्य हैं। अन्य सभी वाद वेदों के करीब हैं लेकिन सटीक ब्रह्मवाद का स्वरूप यही है।

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