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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

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कारक

कर्तृस्वतन्त्रे प्रथमातृतीये रामो जघानाभिहतो हि तेन।।
रामं भजे कर्मणि च द्वितीया दुह्याच्पचादौ तु विभाषया सा।।

कारक हमेशा क्रिया के जनक होते हैं। क्रिया सुनते ही कौन क्या किससे ऐसी सब आकाङ्क्षा होगी, उसमें क्रिया को पैदा करने वाले कारक जवाब रूपसे आएँगे। कर्ता यानि अपनी इच्छा से कुछ क्रिया पैदा करने वाला। देवदत्त पकाता है, यहाँ देवदत्त कर्ता है। बाकी सारे कारक कर्ता पे निर्भर हैं, अगर देवदत पकाए नहीं, तो पकोड़ा कर्म न होगा, कढ़ाई करण/tool न होगी और रसाई अधिकरण/location न होगी। जब कहो कि “इन्द्र को वेद सिखाता है" तो वेद कथित और इन्द्र अकथित कर्म है, इन्द्र में चतुर्थी लगनी थी अब वैकल्पिक/optional द्वितीया भी लगेगी। 

हेतौ तृतीया करणेपवग्रे सहे विकारे त्वितिलक्षणे च।
पुण्येन दृष्टः स खगेन चाहन् पित्रागतोना गत ईक्षणेन ।।

करण यानि स्वतन्त्र कर्ता जिसे इस्तेमाल करके क्रिया सिद्धि करता है, वो साधन या करण अर्थ में तृतीया हो। “खगेन अहन्” यानि बाण से मारा। कर्ता में भी तृतीया होती है वो जान चुके। अब हेतु देखो। “पुण्येन दृष्टः हरिः” हरि बड़े पुण्य से दिखे || यानि पुण्य हेतु है हरि के दर्शन में। करण कारक है अतः उसे क्रिया का जनक होना चाहिए, और व्यापार (motion) वाला होना चाहिए। लेकिन हेतु का व्यापार वाला होना या क्रियाजनक
होना जरूरी नहीं, वो निमित्त हो सकता है। दण्डेन घटः। यहाँ दण्ड घट में हेतु/निमित है। क्योंकि घट क्रिया नहीं। पुण्य से दर्शन (क्रिया) होती किन्तु पुण्य कोई दण्ड जैसी स्थूल वस्तु नहीं जिसमें व्यापार (motion) हो।
सह यानि साथ शब्द के योग में तृतीया। ये अलग type की है, यह कारक अर्थ में विभक्ति न होके एक शब्दविशेष के योग में हो रही है। अतः इसे उपपद विभक्ति (पास में पढ़ा हुआ पद - उपपद, उसी के योग में, नकि किसी अर्थविशेष में। अर्थ चाहे कुछ भी लगाओ। यह शब्द बाजू में दिख गय मतलब ये वाली विभक्ति लगाओ।) सह बाजू में दिखे तो तृतीया लगाओ = पुत्रेण सह आगतः (पुत्र के साथ आया)। इसका अर्थ साहचर्य/togetherness है।
अपवर्ग = अना गतः यानि एक दिन में सीख लिया। जब फल की प्राप्ति जल्दी होए तो तृतीया लगाओ, प्राप्ति न हो तो द्वितीया। "मासम् अधीतो नायातः” (एक महीना सीखा फिर भी नहीं
आया।) 

क्रमशः...

             कारक (२)

काणस्तपस्वी च जटाभिरेवम् दाने चतुर्थी रुचिप्रीयमाणे ।  
समर्पणे चाथ निवेदने च तादर्थ्यकेऽलनमआदियोगे ।। 
तुभ्यं ददे राम समर्पयामि ब्रवीमि पृच्छामि निवेदयामि ।
 त्वं राचसे मेऽघहरे नमस्ते श्वसामि खादामि जुहोमि तुभ्यम् ।।

अक्ष्णा काणः यानि आँख से काणा, पार्दन खञ्जः यानि पाँव से लूला है, ऐसे अङ्ग के विकार अर्थ में तृतीया। 
जटाभिः तापसः यानि उसकी जटा होगी तो जरूर तपस्वी होगा। ऐसे "स्वर्णेन श्रेष्ठी" यानि इतना सोना है तो जरूर कोई सेठ होगा।
चतुर्थी दान में करो- जो कर्म यानि जहाँ क्रियाफल बैठे, जैसे पकोड़े तलदो। यहाँ तलने का फल पकोड़े को मिलेगा, लेकिन जिसे कर्ता (पकाने वाला) कर्म से चाहे वो सम्प्रदान। विप्र को गाय देता है। इसमें गाय तो दी जारही है, वो कर्म है। कर्म से कौन अभिप्रेत (intended) है? विप्र, वोही सम्प्रदान। उसे दे दो। मैं जो बोलता हूँ वो मेरे शब्द हैं, शब्द ही कर्म है लेकिन यह जिसे intended हैं| वो मेरा शिष्य है जो सम्प्रदान है। शिष्याय शिक्षयामि, ब्राह्माणाय ददामि, गुरवे वदामि।

अब जिसमें रुचि/प्रीति हो, वो likable को जो like करे उसमें चतुर्थी लगाओ। प्रीयमाण (like करने वाला) गणेश है, likable (रुचि का विषय) मोदक। मोदकः रोचते गणेशाय = गणेश को मोदक पसन्द है। (अर्थात् गणेश के अन्दर मोदक रुचि को उपजाता है, अतः वो रुचि का कर्ता है। उसमें प्रथमा लगाई। रुचि जिसको हुई उसमें चतुर्थी, वो गणेश में उपजाता है, जिसमें रुचि पैदा होती उसमें चतुर्थी लगाओ)। 
कृष्णाय रोचते गोपी = कृष्ण को गोपी पसन्द है। ऐसे सर्वत्र जानो। जिसमें प्रीति उपजे उसमें चतुर्थी, जो उपजाए उसमें प्रथमा।

पञ्चम्यपादानदिगादियोगे वार्याभिप्रीते भयभूतिकृत्सु ।
पतेत्तरोः प्राङ् मथुरा ततो ऋते रामाद् बिभेत्याविरभूत् कुशस्ततः ।।

पञ्चमी अपादान में। वृक्षात् पतति = वृक्ष से गिरता है। अवधि यानि देश-काल का हिसाब बोलना तो पञ्चमी, चैत्रात् प्राक् फाल्गुनः (चैत्र से पहले फाल्गुन), मथुरा प्राक् वङ्गात् (मथुरा बङ्गाल से पूर्व है)। अवधि गुणों में भी हो सकती है, चैत्रः मैत्राद् बलवत्तरः (चैत्र मैत्रसे अधिक बलवान् है)। किसी प्यार के लिए हटाने में = यवेभ्यो गां वारयति (धान से गाय को हटाता है)। किसी से भय हो तो, रामाद् बिभेति (रामसे डरता है)। किसी सेउपज हो तो रामाद् उत्पन्नो लवः (रामसे पैदा हुआ लव)। ऋते के योग में - रामाद् ऋते न मोक्षःवराम बिना मोक्ष नहीं)।
इति !

आशा है कि संस्कृतसप्ताह के 7 दिनों में इन लेखों से आपकी संस्कृत भाषा की आधारशिला निश्चय ही मजबूत हुई होगी। 

धन्यवाद ! 
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विभक्ति।।

विभक्ति हमेशा लगाओ। रामः के अन्त का  ' : '  रामेण का एण, रामस्य का स्य ये सब विभक्ति हैं। विभक्ति लगाए बिना शब्दों का वाक्य में प्रयोग हो नहीं सकता संस्कृत में जो शब्द का original form होता है, उसे शब्द कहते हैं। राम शब्द है, "रामः" पद है।

वाक्य में प्रयोग करने के लिए शब्द यानि original form में कुछ परिवर्तन होते हैं, क्योंकि शब्द अकेला यह नहीं बता सकता उसका वचन क्या है, राम सुनने से कितने राम हैं? ये पता न चलेगा।
लेकिन "रामः" सुनने से 1 राम है ये पता चलेगा। दूसरी बात बिना विभक्ति के राम क्या है? ये भी पता चलेगा नहीं। राम कर्ता है, कर्म है सम्प्रदान है, या क्या है? लेकिन “रामस्य" कहने से "राम का" ऐसा बोध होगा, यानि राम किसीका सम्बन्धी है।

“रामः” सुनने से "राम कर्ता है", यानि स्वतन्त्र होके कोई काम करता है, ऐसा ज्ञान होगा। आगे उदाहरणों से स्पष्ट होगा। शब्द अकेला “क्या" और "कितना" का उत्तर देगा नहीं, विभक्ति से जुड़के दोनों सवालों का जवाब मिलेगा। इसलिए ऐसे “पद” का ही प्रयोग वाक्य में होता है।
जैसे “रामः उत्तम पुरुषः अस्ति” इसमें उत्तम में विभक्ति डाली नहीं। “उत्तमः पुरुषः" ये सही है। अत्र “गोविन्द गौः अस्ति" इसमें गोविन्द लटक गया न ? गोविन्द की गाय बोलना हो तो "गोविन्दस्य" गौः अस्ति। ऐसे कहना चाहिये। गर्गादि ऋषयः सन्ति (गर्गादि ऋषि हैं) । यहाँ फिर आदि में क्या वचन क्या कारक कुछ बोध हुआ नहीं, "गर्गादयः ऋषयः” बोलना चाहिये। ऐसे सभी जगह original form से कुछ न कुछ विभक्ति लगाके उसका वचन और कारक बताना पड़ता है। वरना अकेला शब्द लटक जाएगा। लेकिन सब जगह विभक्ति दिखे ऐसा जरूरी नहीं। कहीं गायब हो जाए तो अन्दाज लगा लेते हैं कि
पहले आई थी, अब कोई नियम से गायब हो गई। 
जरूरी नहीं के एक विभक्ति से fix एक ही अर्थ का बोध हो। जैसे सब स्कूल में सिखाते हैं “कर्ता ने कर्म को करण से" ऐसा भी न सोचो। यह कल और परसों कारक में समझेंगे। विभक्ति वो प्रत्यय हैं जो वचन बताते हैं और कभी कारक
बताते कभी कारक के अलावा दूसरे अर्थ भी बताते। “रामेण सह" means राम के साथ, यहाँ एण का अर्थ साहचर्य/togetherness है। रामाय नमः, कृष्णाय नमः वगेरह में "आय" का भी कारक-specific अर्थ नहीं। दुनिया के
जितने अर्थ हैं उनको सात ग्रुप में विभाजित कर दिया है, इसलिए एक "आय" से या “एन” से अनेक अर्थ बोले जाते हैं। कुछ कारक कुछ उससे भिन्न है।
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संस्कृत का इतिहास।।

संस्कृत अनादि भाषा है। वेद अनादि अनन्त हैं। वेदों का कोई कर्ता नहीं, ईश्वर भी नहीं बनाता इन्हें। नारायण के निःश्वास से वेद हर कल्प के आदि में स्वतः अनायास प्रकट होते हैं, पितामह ब्रह्मा उन वेदों का तपश्चर्या समय ग्रहण करते हैं। फिर अपने चार मुखों से वे वेदपाठ करते रहते हैं जिसे वे अन्य देवों को सिखाते हैं। भूमि पर ऋषि इन्हीं वेदों का दर्शन करते हैं अतः ऋषियों को “मन्त्रद्रष्टा” यानि के मन्त्र का साक्षात्कार करने वाला कहते हैं।  

वेदों से ही संस्कृत भाषा बनाई गई है। संस्कृत में ही कृत शब्द का प्रयोग होने से संसकृत अनादि होते हुए भी बनाई गयी है। यह बात कुछ समय में समझेंगे। पहले संस्कृत शब्द की व्युत्पत्ति समझ लेते हैं। 

सम् + कृत। इसमें सम् उपसर्ग है जिसका अर्थ सम्यक्, ठीक, सुन्दर, व्यवस्थित, ऐसा होता है। कृत का अर्थ है बना हुआ। अच्छे से बना हुआ, इस अर्थ में तो केवल संकृत बनना चाहिए। बीचमें स् कहां से आया?

“संपरिभ्यां करोतौ भूषणे” इस सूत्र से भूषण 

यानि सजाना, decorate करना इस अर्थ में बीच का “स्” आया है। यह मात्र बनी हुई भाषा नहीं, सुव्यवस्थित, सुभूषित, सुघटित सजी हुई, decorated भाषा है। अतः इसका अर्थ 

“well-decorated” या “well-organized” होना चाहिए।

इसका कारण है कि वैदिक भाषा अनादि होने से बोली नहीं जा सकती। वह सुव्यवस्थित या समान नियमों वाली नहीं। उसमें केवल अन्दाजें से हम समझते हैं कि यहाँ ये हिसाब लगाया होगा, अतः “छन्दसि बहुलम्” (irregular in vedas) यह सूत्र 15 बार से अधिक पढ़ा गया है। 

जैसे कोई पुस्तक कबाट में जमी हुई बढ़िया तरह से रखी हों तो उस व्यवस्था को देखकर अन्दाजा लगाया जा सकता है कि किसी मनुष्य ने बढ़िया सजाके इन्हें जमाया है, संस्कृत किया है। लेकिन यदि यह पुस्तकें बिखरी पड़ी हों और अव्यवस्थित हों तो हम समझ सकते हैं कि यह स्वतः बिखरी पड़ी है, लगता है ध्यान देने वाला कोई है नहीं। 

इसी तरह वेदों की संस्कृत को केवल मनुष्य हिसाब लगाके समझ सकता है। पाणिनि की मेधा genius थी कि उन्होंने irregularity को भी classify कर दिया। लेकिन रोबोट को वेद पढ़ाओ तो वो समझ न सकेगा। इतने सारे प्रयोग individually याद करना और कौनसी जगह कैसा अर्थ यह मनुष्य बुद्धि ही हिसाब लगाके समझ सकती है। किन्तु लौकिक संस्कृत इससे विपरीत है।  लौकिक संस्कृत computer के हिसाब की भाषा है। वह एकदम सुव्यवस्थित है और हिसाब में पक्की। मनुष्य लौकिक सीखले तो वैदिक का बुद्धि से बढ़िया हिसाब लगा लेगा, रोबोट यह न कर पाएगा लेकिन बिना किसी गलती के लौकिक संस्कृत लपालप बोलेगा। यही संस्कृत का इतिहास है, कि वेदों से यह निकलके एकदम सुव्यवस्थित हो गई है।

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अनुस्वार कहाँ? म् कहाँ?

अन्त में हमेशा म् लगाओ।
सुन्दरम्। पुष्पम्। √
सुन्दरं । पुष्पं । ×

आगे स्वर हो तो म् लगाओ।
सुन्दरम् अस्ति। पुष्पम् अस्ति। √
सुन्दरं अस्ति। पुष्पं अस्ति। ×

जब आगे व्यञ्जन हो तो ही अनुस्वार लगाएँ। (जैसे शं करोति)
उसमें भी अगर र् श् ष् स् ह् परे हो तो नित्य।
संरम्भ,संशय, संसकृत, संहार √
सम्रम्भ ×।

अगर दो शब्द की सन्धि हो के एक शब्द बनाओ, और क् से म् परे हो तो ऐच्छिक है अनुस्वार। 
अहं+कार =अहङ्कार/अहंकार।
सम्+चय = सञ्चय/संचय, संटीकते  संताप/सन्ताप, संपर्क/सम्पर्क आदि।।

यदि सन्धि न करो तो व्यञ्जन परे रहते अनुस्वार ही। 
अहं तत्र अस्मि। √
अहम् तत्र अस्मि। ×
अहन्तत्र अस्मि। √

अगर सन्धि से एक शब्द न बना हो, स्वाभाविक एक शब्द हो, तो अनुस्वार नहीं लगा सकते।
सुन्दरम् √
सुंदरम् ×
अन्तिमः √
अंतिमः ×
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वर्ण परिचय:

त्रिषष्टिश्चतुःषष्टिर्वा वर्णाः शम्भुमते मताः ।
प्राकृते संस्कृते चापि स्वयं प्रोक्ताः स्वयंभुवा ।। ३ ।।

63 या 64 वर्ण शिव के मत में मान्य हैं। प्राकृत और संस्कृत दोनों में ही यह स्वयम्भु ब्रह्मा के द्वारा उच्चारित हैं।

(आजका व्याकरण पाणिनि का माहेश्वरसूत्रों पे आधारित है अतः महेश्वर शिव के मतमें 63 या 64 वर्ण हैं।)

स्वरा विंशतिरेकश्च स्पर्शानां पञ्चविंशतिः ।
यादयश्च स्मृता ह्यष्टौ चत्वारश्च यमाः स्मृताः ।। ४ ।।
स्वर 21 हैं। और क् से म् तक स्पर्श वर्ण कहलाते हैं, वे 25 हैं। य् से ह् तक 8 वर्ण हैं। और यम 4 हैं।

स्वर 21 अ इ उ ऋ (प्रत्येक के ह्रस्व दीर्घ प्लुत 3 भेद) तो कुल बारह। ए ओ ऐ औ (प्रत्येक के दीर्घ और प्लुत भेद) = कुल  8। लृ 1 (लृ के दीर्घ और प्लुत नहीं)। 12+8+1=21। 
_
कु चु टु तु पु (प्रत्येक वर्ग में 5 वर्ण)  = क् से म् तक 25 स्पर्श वर्ण। 

यादि य् से ह् तक 8 वर्ण।

चार यम (अलग concept है)। 4
21+25+8+4= 58
_________________

अनुस्वारो विसर्गश्च „क „पौ चापि पराश्रितौ ।।
दुःस्पृष्टश्चेति विज्ञेयो ऌकारः प्लुत एव च ।। ५ ।।१ ।।

(अनुस्वार यानी ं विसर्ग यानी ः, जिह्वामूलीय और  उपध्मानीय ये 4 अयोगवाह। अनुस्वार विसर्ग पिछले पोस्ट में जाने हैं, बाकी के दो अर्धविसर्ग जैसे बोले जाते हैं।  दुःस्पृष्ट यानी ळ = 1 और प्लुतलृकार 1)। 4+1+1=6।
58+6=64।।

ये कुल चौसठ वर्ण संस्कृत में हैं।
लृकार का जो आचार्य प्लुत भेद नहीं मानते उनके मत में 63 वर्ण हैं।
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योगदर्शन में ईश्वर का स्वरूप।।

योगसूत्र = क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्ट:
                   पुरुषविशेष ईश्वरः ।। 24।।

पुरुष प्रकृति साहचर्यवश क्लेश, कर्म
      कर्म-फल, वासना से युक्त दिखलाता है।

किन्तु क्लेश, कर्म, कर्म-फल, वासनाविमुक्त
        पुरुष विशेष वही ईश्वर कहाता है।

तीनों काल में न दु:ख दोष का है लेश जहाँ
       सर्वशक्तिमान् एकरूप माना जाता है।

उसके बराबर या उससे बड़ा न कोई
        इच्छामात्र से ही मुक्ति-फल का प्रदाता है।।

सूत्रार्थ :   क्लेश, कर्म, कर्मों के फल और और वासनाओं से असम्बद्ध, अन्य पुरुषों से विशिष्ट (उत्कृष्ट) पुरुषोत्तम ईश्वर है।

     - डॉ देवीसहाय पाण्डेय
       (पातंजलयोगदर्शनम् से)
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संस्कृत के बारे में ये 20 तथ्य जान कर आपको भारतीय होने पर गर्व होगा।


आज हम आपको संस्कृत के बारे में कुछ 
ऐसे तथ्य बता रहे हैं,जो किसी भी भारतीय 
का सर गर्व से ऊंचा कर देंगे;;

.1. संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी 
माना जाता है।

2. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक 
भाषा है।

3. अरब लोगो की दखलंदाजी से पहले 
संस्कृत भारत की राष्ट्रीय भाषा थी।

4. NASA के मुताबिक, संस्कृत धरती 
पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है।

5. संस्कृत में दुनिया की किसी भी भाषा से 
ज्यादा शब्द है।
वर्तमान में संस्कृत के शब्दकोष में 102 
अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है।

6. संस्कृत किसी भी विषय के लिए एक 
अद्भुत खजाना है। 
जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में 100 से 
ज्यादा शब्द है।

7. NASA के पास संस्कृत में ताड़पत्रो 
पर लिखी 60,000 पांडुलिपियां है जिन 
पर नासा रिसर्च कर रहा है।

8. फ़ोबर्स मैगज़ीन ने जुलाई,1987 में 
संस्कृत को Computer Software 
के लिए सबसे बेहतर भाषा माना था।

9. किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत 
में सबसे कम शब्दो में वाक्य पूरा हो 
जाता है।

10. संस्कृत दुनिया की अकेली ऐसी 
भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी 
मांसपेशियो का इस्तेमाल होता है।

11. अमेरिकन हिंदु युनिवर्सिटी के अनुसार 
संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, 
मधुमेह,कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो 
जाएगा।
संस्कृत में बात करने से मानव शरीरका 
तंत्रिका तंत्र सदा सक्रिय रहता है जिससे 
कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश 
(PositiveCharges) के साथ सक्रिय 
हो जाता है।

12. संस्कृत स्पीच थेरेपी में भी मददगार 
है यह एकाग्रता को बढ़ाती है।

13. कर्नाटक के मुत्तुर गांव के लोग केवल 
संस्कृत में ही बात करते है।

14. सुधर्मा संस्कृत का पहला अखबार था, 
जो 1970 में शुरू हुआ था। 

आज भी इसका ऑनलाइन संस्करण 
उपलब्ध है।

15. जर्मनी में बड़ी संख्या में संस्कृतभाषियो 
की मांग है। 
जर्मनी की 14 यूनिवर्सिटीज़ में संस्कृत पढ़ाई 
जाती है।

16. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब 
वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे 
तोउनके वाक्य उलट हो जाते थे।
इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल 
जाता था।
उन्होंले कई भाषाओं का प्रयोग किया 
लेकिन हर बार यही समस्या आई।

आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज 
भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे 
हो जाने पर भी अपना अर्थ नही 
बदलते हैं।
जैसे
अहम् विद्यालयं गच्छामि। 
विद्यालयं  गच्छामि अहम्। 
गच्छामिअहम् विद्यालयं ।
उक्त तीनो के अर्थ में कोई अंतर नहीं है।

17. आपको जानकर हैरानी होगी कि
Computer द्वारा गणित के सवालो को 
हल करने वाली विधि यानि Algorithms 
संस्कृत में बने है ना कि अंग्रेजी में।

18. नासा के वैज्ञानिको द्वारा बनाए 
जा रहे 6th और 7th जेनरेशन Super 
Computers संस्कृतभाषा पर आधारित 
होंगे जो 2034 तक बनकर तैयार हो जाएंगे।

19. संस्कृत सीखने से दिमाग तेज हो जाता 
है और याद करने की शक्ति बढ़ जाती है। 
इसलिए London और Ireland के कई 
स्कूलो में संस्कृत को Compulsory 
Subject बना दिया है।

20. इस समय दुनिया के 17 से ज्यादा 
देशो की कम से कम एक University 
में तकनीकी शिक्षा के कोर्सेस में संस्कृत 
पढ़ाई जाती है।

संस्कृत के बारे में ये 20 तथ्य जान कर 
आपको भारतीय होने पर गर्व होगा।
      🔔जयतु संस्कृतं🔔

लेख को पढ़ने के उपरांत अन्य समूहों में साझा अवश्य करें...!!
           ⚜🕉⛳🕉

आज का शब्द -


             " यष्टिकन्दुकम् "
         yaSTikandukam


हिंदी अर्थ : हॉकी
English Meaning: Hockey


👉 संस्कृत प्रयोग- बालका: यष्टि-कन्दुकम् खेलन्ति।

हिंदी प्रयोग- बच्चे हॉकी खेलते है।
English Usage- Children Play Hockey.
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तोटक तथा उसके मात्रिक रूप।।

यह तालानुकूल प्रसिद्ध संस्कृत छन्द है जिसका प्रयोग प्रायः गीतों और स्तुतियों में किया जाता है।  इस छन्द की गणव्यवस्था है–फ़उलुन् फ़उलुन्फ़उलुन् फ़उलुन्
। । ऽ      । ।ऽ    । । ऽ       । । ऽ
सलगा    सलगा   सलगा  सलगा (सकारचतुष्टय)

        स्पष्ट है कि यह एक समवृत्त है। इसके हर मिसरे में चार गण, १२ मात्रायें तथा ३–३ पर चार यतियाँ होती हैं। जिसे संस्कृत के छन्दःशास्त्रियों ने ४ सगणों से युक्त "तोटक" नाम दिया है उसे फ़ारसी तथा उर्दू वालों ने  "मुतदारिक मुसम्मन मख़बून (متدارک مثمّن مخبون)" इस नाम से अभिहित किया है। ध्यातव्य है कि इस छन्द को उर्दू छन्दःशास्त्र में “बह्रे हिन्दी” अर्थात् “भारतीय छन्द” के नाम से जाना जाता है। इसका कारण है कि यह मूल रूप में फ़ारसी छन्दःशास्त्र में नहीं था। यह फ़ारसी या उर्दू छन्दःशास्त्र पर  स्पष्टतः भारतीय प्रभाव है।
उदाहरण–
१.    चू रुख़त न बुवद गुले बाग़े इरम
        चू क़दत न बुवद क़दे सर्वे चमन
२.    सनमा बे ̆नुमा रुख़ो जान् बे ̆रुबा 
       कि तो ̆रा बुवद् ईन् बे ̆ह् अज़् आन् कि मरा   (सलमान)

उपर्युक्त फ़ारसी शे,र प्रायः मसऊद सा,द सलमान (1046-1121 ई॰) का है जो लाहौर निवासी शुरुआती भारतीय फ़ारसी कवि थे। पुराने और पुरानी चलन के ईरानी फ़ारसी शाइरों में यह छन्द देखने में नहीं आया।
उर्दू में सामान्यतः इसका प्रयोग दुगुनी मात्राओं का प्रयोग करके किया जाता है। अर्थात् तब हर मिसरे में आठ गण तथा २४ मात्रायें हो जाती हैं–
उदाहरण–
१.न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम न इधर के रहे न उधर के रहे
   गये दोनों जहाँ से ख़ुदा की क़सम न इधर के रहे न उधर के रहे 
२.तेरे कुश्ता ए ग़म का है हाल बतर यही कहियो जो जाना हो तेरा उधर
  तुझे क़ासिदे मौजे नसीमे सहर मेरे हिज्र के शब की बुक़ा की क़सम (हवस)
३.    ये मुनादी है किश्वरे इश्क़ में अब कोई बुल्–हवस् उसमें रहा न करे
    जो रहे भी तो साहिबे दर्द रहे कोई दर्द की उसके दवा न करे

 संस्कृत का मूल तोटक छन्द एक वृत्त है। अर्थात् यह वर्णों के लघु एवं गुरु से भी नियन्त्रित होता है। जबकि इसे उर्दू में मात्रिक रूप में स्वीकार किया गया है। वस्तुतः संस्कृत इसका वृत्तीकरण होने से पहले और उसके बाद में भी लोक कण्ठ में इसकी धुन रही ही होगी। फ़ारसी में या उर्दू  में  यह छन्द लोक से ही लिया गया होगा। बहुत से लोक प्रसिद्ध गीतों की धुनों का अगर निरीक्षण करें तो उसमें इसी छन्द की आभा मिलेगी, जैसे “उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है”।
 माना जाता है कि सबसे पहले मीर तक़ी मीर या जा,फ़र ज़टल्ली ने इसके मात्रिक रूपों में शे,र लिखे इसलिए उर्दू वालों के बीच यह "बह्रे मीर" के नाम से भी प्रचलित है। उर्दू में मीर तक़ी मीर, नज़ीर अकबराबादी, इक़बाल, फ़ैज़,इंशा,फ़िराक़,मजरूह सुल्तानपुरी तथा इसके कुशल प्रयोक्ता हैं। ग़ालिब यद्यपि मीर के बाद मेंआते हैं लेकिन कहीं भी उन्होंने इस छन्द का प्रयोग नहीं किया। वे शिल्प की दृष्टि से बड़े ही शुद्धतावादी तथा फ़ारसी–पसन्द शाइर थे। 

इसके मात्रिक प्रयोगों के कुछ उदाहरण इस तरह हैं–

१.उलटी हो गई सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया (मीर)
२.पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमाराजाने है। (मीर)
३. सबठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा (नज़ीर अकबराबादी)
४. मस्जिद तो बना ली शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने 
    मन अपना पुराना पापी था बरसों में नमाजी बन न सका (इक़बाल)
५. मुझसे कहा जिब्रीले जुनूँ ने ये भी वह्ये इलाही है (मजरूह)
५. किस हर्फ़ पे तूने गोशा ए लब ऐ जाने जहाँ ग़म्माज़ किया (फ़ैज़)
६. कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या नज़ारा गुज़रे था
     रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था (फ़ैज़)

तोटक की वार्णिकता अगर हटा दी जाए तो यह दोधक से जा मिलता है। दोधक और तोटक में मात्राएँ तो समान होती हैं लेकिन दोनों में लघु गुरु का वितरण अलग होता है। उपर्युक्त उदाहरणों को दोधक का मात्रिक रूप भी माना जा सकता है। वस्तुतः इन छन्दों की लय एक जैसी होती है। वार्णिकता का आश्रय लेकर जब इनका वृत्तीकरण किया जाता है तब ही यह अन्तर स्पष्ट हो पाता है। संस्कृत में इसका लक्षण निम्नवत् दिया गया है–
वद तोटकमब्धिसकारयुतम्। 
प्रसिद्ध तोटकाष्टक – भव शङ्करदेशिक मे शरणम्, तथा बहुत से अन्य स्तोत्र इसी छन्द में निबद्ध है।

- पण्डित बलराम शुक्ल

#Gita1 (13)

ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोभवत्।।१३।।

tataḥ śhaṅkhāśhcha bheryaśhcha paṇavānaka-gomukhāḥ
sahasaivābhyahanyanta sa śhabdastumulo ’bhavat

Hindi 👇
इसके पश्चात् शङ्ख और नगारे तथा ढोल,मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ।

English 👇
1.13
Thereafter, conches, kettledrums, bugles, trumpets, and horns suddenly blared forth, and their combined sound was overwhelming.

शब्दार्था: 
tataḥ—thereafter, śhaṅkhāḥ—conches, cha—and, bheryaḥ—bugles, cha—and, paṇava-ānaka​—​drums and kettledrums, go-mukhāḥ​—​trumpets​, sahasā—suddenly, eva—indeed, abhyahanyanta​—​blared forth, saḥ—that, śhabdaḥ—sound, tumulaḥ​—​overwhelming, abhavat—was
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व्याकरण अध्ययन धातुगण।।

(Vyakaran- DhatuGana)

९. क्र्यादि = क्रीणाति, जानाति, प्रीणाति
(इनमें "श्ना" विकरण है। उसमें "ना" बचता है। 
क्री+ना+ति = क्रीणाति
जा+ना+ति = जानाति)

१०. चुरादि = चोरयति, स्पृहयति, गणयति। 
(इनमें धातु से णिच् लगता है, जिसमें "इ" बचता है, जो कुछ नियमों से "अय्" बन जाता है। 
चुर्+अय्+अति = चोरयति।
स्पृह्+अय्+अति = स्पृहयति।
गण्+अय्+अति = गणयति।)

👉 धातुगण अध्ययन समाप्त !
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संस्कृत के वस्तुनिष्ठ प्रश्न ।।

“अ” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम्?
१.    कण्ठ ✅
२.    तालु
३.    मूर्धा
४.    दन्तः


2.    “आ” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम्?
१.    तालु
२.    कण्ठ ✅
३.    मूर्धा
४.    दन्तः


3.    “क” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम्?
१.तालु
२. मूर्धा
३ कण्ठ ✅
४. दन्त


4. “ख” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम्?
१.कण्ठ ✅
२.तालु
३. मूर्धा
४. दन्तः

5 “ग ” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम् ?
१.  तालु
२.  कण्ठ ✅
३. मूर्धा
४.  दन्तः

6.  “घ” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम् ?
१.  तालु
२.  कण्ठ ✅
३.  मूर्धा
४. दन्तः

7. “ङ्” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम् ?
१. कण्ठ ✅
२. तालु
३. कण्ठ तालु
४.  कण्ठ नासिका

8. “ह” वर्णस्य उच्चारण स्थानं किम् ?
१.  तालु
२.  कण्ठ ✅
३.  मूर्धा
४. दन्तः

9.  विसर्गस्योच्चारण स्थानं किम् ?
१.  दन्तः
२.  ओष्ठ
३  तालु
४.  कण्ठ ✅

10.  कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं कण्ठ अस्ति?
१.   ट
२   ज
३   घ ✅
४.   स

11.कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं तालु विद्यते ?
१. श ✅
२. ष
३.  स
४.  ह

12..कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं मूर्धा विद्यते ?
१. य
२. व
३. र ✅
४. ल

13. ..कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं दन्तः विद्यते?
१. य
२. व
३. र
४. ल ✅

14.  कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं ओष्ठ विद्यते?

१. फ ✅
२. ग
३. लृ
४. छ

15.   कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं नासिक अस्ति?
१. ट
२  च
३ न ✅
४  र
16.   कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं नासिका नास्ति?
१ ण
२  म
३  क् ✅
४. ञ

17.  कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं कण्ठः नास्ति?
१. आ
२.  ह
३.  ग
४  ब ✅

18.  कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं तालु नास्ति?
१.  ई
२.  य
३. त  ✅
४.  ञ

19. कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं मूर्धानास्ति?
१.  ऋ
२.  ङ ✅
३.  ड
४.  ष


20. कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं तालु नास्ति?
१.  लृ ✅
२.  ई
३.  ज
४.  च


21.. कस्य वर्णस्य उच्चारणस्थानं औष्ठौ नास्ति?
१.  उ
२.  प
३.  ब
४.  क ✅

22. . “व” वर्णस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१.  दन्त नासिका
२.  दन्त मूर्धा
३.  दन्त तालु
४.  दन्त ओष्ठ ✅

23..  अनुस्वारस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१.  जिह्वा मूल
२.  नासिका ✅
३.   मूर्धा
४.  तालु

24. . “ऋ” वर्णस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१.  कण्ठः
२.  मूर्धा ✅
३.  दन्ताः
४. औष्ठौ

25. “क” वर्गस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१. तालु
२. कण्ठः ✅
३. औष्ठौ
४. दन्ताः

26. “च” वर्गस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१. तालु ✅
२. कण्ठः
३. औष्ठौ
४. दन्ता

27. “ट” वर्गस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१. मूर्धा ✅
२.कण्ठः
३. औष्ठौ
४. दन्ताः

28. “त” वर्गस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१. तालु
२. मूर्धा ✅
३. औष्ठौ
४. दन्ताः

29. “प” वर्गस्य उच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१. तालु
२. कण्ठः
३. औष्ठौ ✅
४. दन्ताः

30. कयो वर्णयोः उच्चारण स्थाने कण्ठ तालुस्तः?
१. ए ओ
२.  ए ई
३.  ए ऐ ✅
४.  ओ औ

31. “औ” इति वर्णस्योच्चारणस्थानं  किमस्ति?
१.  कण्ठ तालु
२.  दन्त ओष्ठ
३   कण्ठ नासिका
४   कण्ठ ओष्ठ ✅

32.  कस्य वर्णस्योच्चारणस्थानं  दन्तोष्ठं वर्तते?
१. ब
२. व ✅
३. ल
४. स

Did You Know ?

जानाति वा ? 🤷‍♂

नमो नमः ही क्यों बोला जाता है ? इसके पीछे क्या व्याकरण है? 

असल में "नमो नमः" मूल रूप से "नमः + नमः" है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार आगामी अक्षर  " न " (जो कि वर्ग का 5 वा अक्षर है) होने पर विसर्ग ( : ) "ओ " में परिवर्तित हो जाता है।  तो नमः नमः का अर्थ है, दो बार नमः या दूसरे शब्दो में "बार-बार नमः"।  जहाँ तक नमः का अर्थ है नमस्कार, इस कारण दो बार (नमस्कार, नमस्कार ), इसलिए नमो नम: का समग्र अर्थ है:- आपको  बार-बार  नमस्कार। 🙏🙏

चूंकि हम विसर्ग संधि पढ़ रहे है यह व्याकरण नियमों का बहुत ही अच्छा उदाहरण है 👌

विसर्गसन्धि-अभ्यास (प्रथम पाठ)

हरिः कुत्र अस्ति। 

हरिः तत्र अस्ति = हरिस्तत्र अस्ति। 

विष्णुः किं करोति।
विष्णुः खेलति।  
हरिः फलं चिनोति। 
गोपालः पुष्पम् इच्छति। 
(क, ख, प, फ के आगे पदान्त स् को विसर्ग होगा।)

लेकिन
हरिः तरति = हरिस्तरति (यहाँ पदान्त स् को विसर्ग हुआ, फिर यथानियम स् वापिस हो गया)
हरिःशरणम् = हरिश्शरणम्। (यहाँ स् को विसर्ग हुआ जिसे विकल्प से श् हुआ। ष् श् स् परे विकल्प है)
हरिः षष्ठः/हरिष्षष्ठः, हरिःस्मरति/हरिस्स्मरति। 

 च् छ् परे श् और ट् परे रहते ष्। 
रामश्चलति। 
रामष्टिपण्णीं लिखति। (पदान्त स् विसर्ग हुआ उसे फिर स् हुआ, फिर यथानियम स् को ष् श् आदि परिवर्तन हुआ।)

👉 प्रथम पाठ पर आधारित सवाल आयेंगे शीघ्र। 
अभ्यास करें ✍

विसर्गसन्धिः (सरलीकृत)-२

(निर्देश  = वैयाकरण कृपया समझें कि सरलीकृत करने के लिए यथासूत्र लेख नहीं है यह)

3) यदि स् (जो पहले ः था) के परे श् ष् स् हो, तो क्रमशः श् ष् स् के रूप लेगा विकल्प से।

हरिस् + शेते  = हरिश्शेते/हरिः शेते
रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः/रामः षष्ठः
बालास् + सन्ति = बालास्सन्ति/बालाः सन्ति।

4) अब अकारोत्तर ः  को ही देखेंगे। 

    (क) अकार + ः के आगे अ हो तो 
अः को 'ओ' करो। जैसे 
रामः + अस्ति (राम के म में अ छुपा हुआ है, ध्यान रखना। र्+आ+म्+अ ऐसा वर्णविच्छेद है।) 
रामः + अस्ति = रामो अस्ति = रामोSस्ति।
कृष्णः + अधिशेते वैकुण्ठम् = कृष्णो अधिशेते = कृष्णोSधिशेते वैकुण्ठम्। 
(ध्यान देना यह नियम सिर्फ अकारोत्तर विसर्ग के लिये है, हरिः+अधिशेते में ओ न करना)।

    (ख) अ+ः के आगे वर्ग के 3,4,5 अक्षर (जैसे ग्,घ्,ङ्, ज्,झ्,ञ्, आदि और हयवरल परे हो तो भी "अः" इस पूरे को "ओ" करो।) जैसे:-
रामः + गच्छति = रामो गच्छति। 
कृष्णः + हरति = कृष्णो हरति। 
      ______________
अपवाद:- 
उपर्युक्त नियम मात्र स् को आदिष्ट (replaced) विसर्ग के लिए हैं, न कि र् को आदिष्ट विसर्ग के लिए। जैसे:-
 रामस्+गच्छति = रामः+गच्छति। तब रामो गच्छति बना।।

लेकिन प्रातर् शब्द है, उसमे र् का ः होके प्रातः बनता है। अतः 
प्रातर् + गच्छति = प्रातर्गच्छति।  
प्रातर् + अत्र = प्रातरत्र । 

यहाँ पर र् का ः होगा ही नहीं, सीधा वर्णसंयोजन होगा। र् को विसर्ग मात्र क्,ख्,च्,छ् जैसे वर्ग के प्रारंभ के 1-2 अक्षर परे रहते और श्,ष्,स् परे रहते है फिर 1,2,3 नियम यथावत् लगेंगे। 

जैसे प्रातः तरति = प्रातस्तरति।
प्रातः चिनोति = प्रातश्चिनोति
प्रातः सृजति = प्रातस्सृजति/प्रातः सृजति।

वर्ग के 3,4,5, अक्षर परे रहते रकारान्त का विसर्ग होगा ही नहीं।
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उपसर्ग ( Prefix ) ।।

उपसर्ग को आंग्लभाषा में ",Prefix" कहते हैं ।  "Pre"  का अर्थ पहले और Fix का अर्थ जोडना होता है । इस प्रकार Prefix का अर्थ पहले जोडना हुआ ।

संस्कृत में "उपसर्ग" का अर्थ शब्द के निकट  । संस्कृत में कुल उपसर्ग २१ होते हैं 

जो धातु या शब्द से पहले जुडता हो , उसे उपसर्ग कहते हैं ।

संस्कृत में २१ उपसर्ग हैं :----प्र, परा, अप, सम्‌, अनु, अव, निस्‌, निर्‌, दुस्‌, दुर्‌, वि, आ (आङ्‌), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत् /उद्‌, अभि, प्रति, परि तथा उप ॥

उपसर्गों का महत्त्व :----
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 उपसर्गों के कारण ही धातु के विविध अर्थ होते हैं । एक ही धातु विभिन्न उपसर्गों से जुडकर अनेक अर्थों को प्रकट करती हैं । जैसे कृ धातु का सामान्य अर्थ करना होता है , किन्तु उपसर्गों से मिलकर अर्थ बदल जाते हैं जैसे :----
 प्रकार, विकार, आकार, संस्कार, प्रतीकार , उपकार, अपकार, अधिकार आदि ॥

"उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते ।
प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत् ॥"

 उपसर्गों के तीन काम
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"धात्वर्थं बाधते कश्चित् कश्चित् तमनुवर्तते ।
तमेव विशिनष्ट्यन्य उपसर्ग गतिस्त्रिधा ॥"

(१.) कभी धातु का अर्थ बिल्कुल उल्टा हो जाता है ।
(२.) कभी अर्थ  तो वही रहता है, किन्तु उसमें एक  विशेषता आ जाती है ।
(३.) कभी धातु का अर्थ ठीक वही बना रहता है जो पहले था ॥

उदाहरण :--- भू का होता है :--- होना ॥

अभि उपसर्ग लगाकर बना :--- अभिभू । इसका अर्थ है :--- हराना ।

प्र उपसर्ग से प्रभु बना, जिसका अर्थ है :--- समर्थ होना ।

 (१.) अति :---- अधिकता या उल्लंघन । (अतिलोभः, अतिक्रमः)

(२.) अधि :---- ऊपर   । (अध्यास्ते किसी चीज के ऊपर बैठता है ।)

(३.) अनु :--- दूर    । अनुगमन ।

(४.) अप :--- दूर । पापमपाकरोति --- पाप को दूर करता है ।

(५.) अपि :--- समीप । (अपिधानम् --- ढक्कन)

(६.) अभि :--- ओर । (अभिमानः )

(७.) अव :--- दूर, नीचे, कम । ( अवरोधः, अवतारः, अवस्करः 

(८.) आङ् आ :---- कम, तक, चारों ओर  ॥आच्छादयति ।

(९.) उद् :---ऊपर । उत्पतितः ।

(१०.) उप :---- समीप । उपसर्पति

(११.) दुर्  :---- कठिन, बुरा ॥ दुर्लभ ।

(१२.) दुस् :---- कठिन ॥। दुस्तरम् ।

(१३.) नि :---- नीचे ॥ निपातयति ॥

(१४.) निर्  :---- बाहर, बिना ।  निर्मूलम् ।

(१५.) निस्  ::---- बाहर , बिना ॥ निस्सहायम् ।

(१६.) परा :---- पीछे, उल्टा ।  पराजयः , परागतः

(१७.) परि :---- चारों ओर । परिपूर्णः ॥

(१८.) प्र :---- अधिक ।  प्रवेशः ।

(१९.) प्रति :---- ओर, विपरीत । प्रतिपादनम् ।

(२०.) वि :---- विना, पृथक् । वियोगः ।

(२१.) सम् :--- अच्छी तरह से । संयोगः ।

विसर्गसन्धिः (सरलीकृत) -१

(निर्देश  = वैयाकरण कृपया समझें कि सरलीकृत करने के लिए यथासूत्र लेख नहीं है यह)

विसर्ग क्या है? विसर्ग एक अयोगवाह है। अयोगवाह मतलब जो संस्कृत वर्णमाला में अनुल्लिखित है। 

स् और र् ही विसर्ग का रूप लेते हैं। विसर्ग स् और र् का एक आदिष्ट रूप है (acquired form है), अतः वर्णमाला में पृथक् ग्रहण न किया। 

1) पदान्त के स् को  ः करो,  यदि पर में अवसान (खाली जगह) हो अथवा  खफछठथचटतकप हो तो।   
रामसु + करोति (सु प्रथमा विभक्ति का प्रत्यय है)  
रामस् + करोति
रामः + करोति।
रामसु = रामस् = रामः (आगे खाली है)।

2) क) विसर्ग का भी स् होता है त थ परे रहते।  
विष्णुः+त्राता = विष्णुस्त्राता। 

    (ख) ट ठ परे हो तो ष्। 
रामः टीकते, = रामस्+टीकते, रामष्टीकते। (ध्यान रहे पहले तो स् ही होगा, फिर ष् हो।)

    (ग) च छ परे हो तो श्। 
रामः चिनोति = रामस् चिनोति = रामश्चिनोति। (पहले स्, फिर श्)।

- शेष नियम अगले चरण में।

🌻दैनिक उपयोग में लिए जाने वाले अव्यय संस्कृत शब्द- ४(Sanskrit Words which frequently used in day to day conversation - 4) 🌻

Sanskrit    Hindi              English
     👇           👇                 👇

१ च                और                  And
२ अपि             भी                   Also
३ वा           या (प्रश्नवाचक)          Or
४ किम्             क्या                What
५ प्रत्युत            बल्कि           Rather 
६ यतः              चूँकि              Since
७ यत्                कि                That
८ यदि              अगर                  If
९ तथापि          फिर भी            Still
१० हि             क्योंकि        Because
११ विना          बिना            Without
१२ इतः           यहाँ से          From Here
१३ ततः           वहाँ से          From There
१४ कुतः         कहाँ से             From Where
१५ कुतश्चित्   कहीं से       From Somewhere
१६ यतः          जहाँ से          From There (q)
१७ इतस्ततः     इधर-उधर       Here-There
१८ सर्वतः       सब ओर से      From All Sides
१९ उभयतः  दोनों ओर से    From Both Sides
२० अधः            नीचे             Below
२१ अग्रे             आगे              Ahead
२२ अन्त:           भीतर             Within
२३ अधुना          अब                 Now
२४ तदा / तदानीम्    तब             Then
१५ आम्               हाँ                 Yes 

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बेसिक संस्कृत।।


एषः = यह / This (masculine)

सः = वह / That (masculine)


१. एषः बालकः।
    सः बालकः।

२. एषः सिंहः।
    सः सिंहः।

३. एषः वानरः।
    सः वानरः।

#Basic  Sanskritm


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