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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

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Topic ► अघोष व घोष ।।

कम्पन के आधार पर हिंदी वर्णमाला के दो भेद होते हैं : 

(1) अघोष
(2) घोष

1. अघोष व्यंजन
जिन वर्णों के उच्चारण में नाद की जगह केवल श्वाँस का उपयोग होता हैं, उन्हे अघोष वर्ण कहते हैं। इनकी संख्या 13 होती है। जो इस प्रकार है :
क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स

2. घोष व्यंजन
जिन वर्णों के उच्चारण में केवल नाद का उपयोग होता है, उन्हे घोष वर्ण कहते हैं। इनकी संख्या 31 होती है। जो इस प्रकार है :

इसमें सभी स्वर अ से ओ तक और
ग, घ, ङ
ज, झ, ञ
ड, ढ, ण
द, ध, न
ब, भ, म
य, र, ल, व, ह

कामायनी महाकाव्य के बारे में महत्तवपूर्ण कथन ।।

▪कामायनी महाकाव्य -जय शंकर प्रसाद
▪सर्ग – 15
▪मुख्य छंद – तोटक
▪कामायनी पर प्रसाद को मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार मिला है
▪काम गोत्र में जन्म लेने के कारण श्रद्धा को कामायनी कहा गया है।

▪प्रसाद ने कामायनी में आदि मानव मनु की कथा के साथ साथ युगीन समस्याओं पर प्रकाश डाला है।
▪कामायनी का अंगीरस शांत रस है।
▪कामायनी दर्शन समरसता – आनन्दवाद है।
▪कामायनी की कथा का आधार ऋग्वेद,छांदोग्य उपनिषद् ,शतपथ ब्राहमण तथा श्री मद्भागवत हैं।
▪घटनाओं का चयन शतपथ ब्राह्मण से किया गया है।

▪कामायनी की पूर्व पीठिका प्रेमपथिक है।
▪कामायनी की श्रद्धा का पूर्व संस्करण उर्वशी है।
▪कामायनी का हृदय लज्जा सर्ग है।

*कामायनी के विषय में कथन:-*
1. कामायनी मानव चेतना का महाकाव्य है।यह आर्ष ग्रन्थ है।
-डॉ.नगेन्द्र
2.कामायनी फैंटेसी है।~मुक्तिबोध
3.कामायनी एक असफल कृति है।-इन्द्रनाथ मदान
4. कामायनी नये युग का प्रतिनिधि काव्य है।-नन्द दुलारे वाजपेयी
5.कामायनी ताजमहल के समान है-सुमित्रानन्दन पंत

6.कामायनी एक रूपक है-नगेन्द्र
7.कामायनी विश्व साहित्य का आठवाँ महाकाव्य है~श्याम नारायण
8. कामायनी दोष रहित दोषण सहित रचना ~रामधारी सिंह दिनकर
9. कामायनी समग्रतः में समासोक्ति का विधान लक्षित करती है~डॉ नगेन्द्र
10. कामायनी आधुनिक सभ्यता का प्रतिनिधि महाकाव्य है~नामवर सिंह

11. कामायनी आधुनिक हिन्दी साहित्य का सर्वोत्तम महाकाव्य है-हरदेव बाहरी
12.कामायनी मधुरस से सिक्त महाकाव्य है-रामरतन भटनाकर
13. कामायनी विराट सांमजस्य की सनातन गाथा है -विशवंभर मानव
14.कामायनी का कवि दूसरी श्रेणी का कवि है -हजारी प्रसाद द्विवेदी
15. कामायनी वर्तमान हिन्दी कविता में दुर्लभ कृति है- हजारी प्रसाद द्विवेदी

16. कामायनी में प्रसाद ने मानवता का रागात्मक इतिहास प्रस्तुत किया है जिस प्रकार निराला ने तुलसीदास के मानस विकास का बड़ा दिव्य और विशाल रंगीन चित्र खिंचा है~रामचन्द्र शुक्ल
17. कामायनी छायावाद का उपनिषद है-शांति प्रिय द्विवेदी
18.कामायनी को कंपोजिशन की संज्ञा देने वाले-रामस्वरूप चतुर्वेदी

19.मुक्तिबोध का कामायनी संबंधि अध्ययन फूहड़ मारक्स वाद का नमूना है-बच्चन सिंह
20.कामायी जीवन की पूनर्रचना है -मुक्तिबोध
21.कामायनी मनोविज्ञान की ट्रीटाइज है -नगेन्द्र
22.कामायनी आधुनिक समीक्षक और रचनाकार दोनों के लिए परीक्षा स्थल है ~रामस्वरूप चतुर्वेदी
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कबीर के विषय में प्रसिद्ध कथन ।।

❣ वन लाइनर प्रश्नोतर ❣

० वे (कबीर) भगवान् के नृसिंहावतार की मानो प्रतिमूर्ति थे - हजारी प्रसाद जी

० कबीर में काव्य - कम काव्यानुभूति अधिक है - लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय

० कबीर रहस्यवादी संत और धर्मगुरू होने के साथ साथ वे भावप्रवण कवि भी थे - डॉ बच्चन सिंह

० ये महात्मा बड़ी स्वतंत्र प्रकृति के थे । ये रुढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे - बाबू गुलाब राय

० कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, उन्हें सुनी सुनाई बातों का ज्ञान था, वे मूलतः समाज सुधारक थे - ऐसी उक्तियाँ कबीर के विवेचन और मूल्यांकन में अप्रासंगिक बिंदु है - रामस्वरूप चतुर्वेदी

० "कबीर के समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है ।"-डॉ बच्चन सिंह

० कबीर में, कई तरह के रंग है, भाषा के भी और संवेदना के भी । हिंदी की बहुरूपी प्रकृति उनमें खूब खुली है । -रामस्वरूप चतुर्वेदी‘‘

० कबीर सच्चे समाज सुधारक थे जिन्होंने दोनो धर्मों हिन्दू - मुस्लिम की भलाई बुराई देखी एवं परखी और केवल कटु आलोचना ही नहीं की अपितु दोनों धर्मावलम्बियों को मार्ग दिखलाया। जिस पर चलकर मानव मात्र ही नहीं समस्त प्राणी जगत का कल्याण हो सकता है।-द्वारिका प्रसाद सक्सेना

० वे साधना के क्षेत्र में युग - गुरु थे और साहित्य के क्षेत्र में भविष्य के सृष्टा - हजारी प्रसाद द्विवेदी

० "लोकप्रियता में उनके (कबीर) समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है । तुलसी बड़े कवि हैं, उनका सौंदर्यबोध पारम्परिक और आदर्शवादी है । कबीर का सौंदर्यबोध अपारंपरिक और यथार्थवादी है ।"- डॉ बच्चन सिंह

० कबीर ही हिंदी के सर्वप्रथम रहस्यवादी कवि हुए - श्याम सुंदर दास

० " आज तक हिंदी में ऐसा जबर्दस्त व्यंग्य लेखक नहीं हुआ " - हजारीप्रसाद द्विवेदी

० कबीर अपने युग के सबसे बड़े क्रांतदर्शी थे - हजारी प्रसाद

० "समूचे भक्तिकाल में कबीर की तरह का जाति - पाँति विरोधी आक्रामक और मूर्तिभंजक तेवर किसी का न था। जनता पर तुलसी के बाद सबसे अधिक प्रभाव कबीर का था। "- बच्चन सिंह

० कबीर पहुँचे हुए ज्ञानी थे। उनका ज्ञान पोथियों की नकल नहीं था और न वह सुनी सुनाई बातों का बेमेल भंडार ही था -श्याम सुंदर दास
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हिंदी पद्य की कुछ प्रमुख पंक्तियाँ ।।

1. मो सम कौन कुटिल खलकामी-सूरदास
2. माधव हम परिनाम निरासा-विद्यापति
3. भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो-सूरदास
4. खुल गए छंद के बंध-पंत
5. धुनि ग्रमे उत्पन्नो, दादू योगेंद्रा महामुनि-रज्जब
6. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी-रैदास
7. देखे मुख भावे अनदेखे कमल चंद
ताते मुख मुरझे कमला न चंद-केशवदास
8. केशव कहि न जाय का कहिए-तुलसीदास
9. पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो
जाको कछु लेना हो सो लेउ-विट्ठलनाथ
10. यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता-आचार्य शुक्ल
11. राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज
जगत
के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित पंत
12. निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिंदी में कोई नहीं है-हजारीप्रसाद द्विवेदी
13. छोड़ो मत यह सुख का कण है-जयशंकर प्रसाद
14. प्रयोगवाद बैठे-ठाले का धंधा है-नंददुलारे वाजपेयी
15. यदि इस्लाम न भी आया होता तो भी भक्ति साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा
आज-हजारीप्रसाद द्विवेदी
16. साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है-बालकृष्ण भट्ट
17. भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धेर्य लेकर आया
हो-हजारीप्रसाद द्विवेदी
18. मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं-प्रेमचंद
19. सूर अपनी आँखों से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए हैं-रामचंद्र शुक्ल
20. उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिंदी है-चंद्रधर शर्मा गुलेरी
21. यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पर धावनो है-बोधा
22. हरि हू राजनीति पढ़ि आए-सूरदास
23. इन मुसलमान जनन पर कोटिन हिंदू बारिह-भारतेंदु
24. तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है-हजारीप्रसाद द्विवेदी
25. काव्य आत्मा की संल्पनात्मक अनुभूति है-जयशंकर प्रसाद
26. सखा श्रीकृष्ण के गुलाम राधा रानी के–भारतेंदु
27. एक नार ने अचरज किया
साँप मार पिंजरे में दिया-खुसरो
28. देसिल बअना सब इन मिट्ठा
तै तैसन जपऔ अवहट्ठा-विद्यापति
29. जाहि मन पवन न संचरई
रवि ससि नहिं पवेस–सरहपा
30. अवधू रहिया हाटे वाटे रूप बिरष की छाया
तजिबा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया-गोरखनाथ
31. भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि म्हारा कंतु
लज्जेजं तु वयंसिअहू जइ मग्गा घरु संतु-हेमचंद्र
32. पुस्तक जल्हण हाथ दै चलि गज्जन नृप काज-चंदबरदाई
33. मनहु कला ससभान कला सोलह सो बन्निय-चंदबरदाई
34. बारह बरस लौं कूकर जिए, अरू तेरह लै जिए सियार
बरिस अठारह छबी जिए, आगे जीवन को धिक्कार-जगनिक
35. गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग-तुलसीदास (कवितावली से)
36. झिलमिल झगरा झूलते बाकी रही न काहु
गोरख अटके कालपुर कौन कहावै साहु-कबीर
37. दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना
राम नाम का मरम है आना-कबीर
38. अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम-मलूकदास
39. विक्रम धंसा प्रेम का बारा
सपनावती कहँ गयऊ पतारा-मंझन (मधुमालती से)
40. कब घर में बैठे रहैं, नाहिंन हाट बाजार
मधुमालती, मृगावती पोथी दोउ उचार-बनारसीदास जैन
41. बालचंद बिज्जावइ भाषा, नहिंन
दुहु नहिं लग्गई दुज्जन हासा-विद्यापति
42. यह सिर नवे न राम कू, नाहीं गिरियो टूट
आन देव नहिं परसिये, यह तन जायो छूट-चरनदास
43. मुझको क्या तू ढूँढ़े बंदे
मैं तो तेरे पास में कबीर
44. रुकमिनि पुनि वैसहि मरि गई
कुलवंती सत सो सति भई-कुतुबन
45. बलंदीप देखा अँगरेजा, तहाँ जाई जेहि कठिन करेजा-उसमान (चित्रावली से)
46. जानत है वह सिरजनहारा, जो किछु है मन मरम हमारा ।
हिंदू मग पर पाँव न राखेऊ, का जो बहुतै हिंदी भाखेऊ-नूरमुहम्मद
47. सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय
गोद लिए हुलसी फिरै तुलसी सो सुत होय-रहीम
48. मो मन गिरिधर छवि पै अटक्यो
ललित त्रिभंग चाल पै चलि के, चिबुक चारु गड़ि ठटक्यो–कृष्णदास
49. कहा करौ बैकुंठहिं जाय
जहाँ नहिं नंद, जहाँ न जसोदा, नहिं जहँ गोपी, ग्वाल न गाय-परमानंद दास
50. संतन को कहा सीकरी सों काम
आवत जात पनहियाँ टूटी बिसरि गयो हरि नाम–कुंभनदास
51. जाके प्रिय न राम वैदेही
सो नर तजिए कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही–तुलसीदास (विनयपत्रिका से)
52. बसो मेरे नैनन में नंदलाल
मोहनि मूरत, साँवरि सूरत,
नैना बने रसाल-मीराबाई
53. जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत
भूषण बिनु न विराजई कविता बनिता मित्त-केशवदास
54. लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल-होलराय
55. आँखिन पँदिबे के मिस आनि
अचानक पीठि उरोज लगावै-मतिराम
56. कुंदन को रंग फीको लगे–मतिराम
57. अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा लीन
अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन--देव
58. अमिय, हलाहल, मदभरे, सेत, स्याम, रतनार - रसलीन

हिंदी व्याकरण - कारक (Case)

हिंदी व्याकरण - कारक (Case) प्रश्नोत्तर ।।

1) 'जिसे देखता हूँ, वही स्वार्थी निकलता है',कौनसा कारक है ?
अ) कर्ता           ब) करण
स)अपादान       द)संबंध

द)संबंध✓
2) गरीबों के निमित धन इकट्ठा करो में कौनसा कारक है ?
अ)करण           ब)अपादान
स)सम्प्रदान        द)कर्ता 

स)सम्प्रदान✓
3)'मोहन ,कहाँ जा रहे हो |'वाक्य में कारक है -
अ)अपादान             ब)सम्बन्ध
स)अधिकरण           द)सम्बोधन

द)सम्बोधन✓
4)मुझे इस कार्यालय ..................सभी जानकारियाँ चाहिए |उपयुक्त विभक्ति चिह्न से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए |
अ) पर    (ब)की    (स)में  (द)द्वारा

ब)की✓
5) उत्तम पुरूष,बहुवचन,संबंध कारक है -
अ)तुम्हारा
ब)उसका
स)मेरा
द)हमारा

द)हमारा✓
6) "पूजा को "नौकरी नहीं करनी है |इस वाक्य में उद्धरण चिह्न में बंद अंश में कौनसा कारक है ?
अ)कर्म कारक
ब)कर्ता कारक
स)कर्म और कर्ता 
द)सम्प्रदान

अ)कर्म कारक✓
7 )विकास अपने गुरू ................... श्रद्धा रखता है |रिक्त स्थान भरे |
अ)पर   (ब)में   (स)को    (द)से

अ)पर✓
8)बच्चा साँप को देखकर डर गया |वाक्य में कारक है -
अ)करण 
ब)सम्प्रदान
स)अपादान
द)सम्बन्ध

स)अपादान✓
9)राम मोहन से अधिक चतुर है ,वाक्य में कारक ?
अ)करण
ब) अपादान
स)सम्बन्ध
द)सम्प्रदान

ब)अपादान✓
10)निम्न में से कौनसे कारक चिह्न तत्पुरुष समास में नहीं आते हैं ?
अ )कर्ता ,करण
ब)कर्ता, संबोधन
स)अपादान,संबंध
द)कर्ता, अधिकरण

ब)कर्ता, संबोधन✓
11) क्रिया के साथ कौन अथवा किसने शब्द लगाकर प्रश्न पूछने पर जो उत्तर आता है ,उसे क्या कहते है ?
अ)कर्म  (ब)कर्ता   (स)क्रिया   (द)कारक

ब)कर्ता✓
प्रश्न 12. कारक का संबंध होता है?
अ. संज्ञा           
ब. सर्वनाम                                                               
स. विशेषण     
द.  क्रिया

द.  क्रिया✓
प्रश्न 13. किस विकल्प में करण कारक है?
अ. हस्तलिखित
ब.  द्वार द्वार
स. हवन सामग्री        
द. विद्यालय

अ. हस्तलिखित✓
प्रश्न 14 किस विकल्प मैं अपादान कारक नहीं है?
अ. भयमुक्त     
ब. पथभ्रष्ट
स. रेखांकित
द. रोग विहीन

स. रेखांकित✓
प्रश्न 15. "वहाँ एक सभा हो रही थी" इस वाक्य में कौन सा कारक है?
अ. कर्म        
ब. अधिकरण
स. संबंध        
द. करण

ब. अधिकरण✓
16.राजा *सेवक को* कंबल देता है , गहरा काला शब्द के लिए कारक का सही क्रमांक है-
A. कर्म कारक
B. संबंध कारक
C. संप्रदान कारक 
D. कर्ता कारक

C. संप्रदान कारक ✓
17. 'झगड़ा  मेरे और उसके मध्य में था' में कौन सा कारक है 
A.संबंध कारक
B. अधिकरण कारक 
C. करण कारक 
D. कर्म कारक

B. अधिकरण कारक ✓
18. 'देवेंद्र मैदान में खेल रहा है' वाक्य में कौन सा कारक है-
A. कर्म कारक 
B. संबंध कारक 
C. अपादान कारक
D. अधिकरण कारक

D. अधिकरण कारक✓
19. 'मैं साँप से डरता हूँ' वाक्य मे कारक है-
A. करण कारक
B. अपादान कारक 
C. कर्ता कारक
D. संबंध कारक 

B. अपादान कारक ✓
20. 'मैंने गुरुजी से हिन्दी व्याकरण सीखा' ,वाक्य मे कौनसा कारक है-
A. करण कारक
B. अपादान कारक
C. सम्प्रदान कारक
D. संबंध कारक

B. अपादान कारक✓
21-निम्नलिखित मेँ से अपादान कारक है|
(a)राधिका चाकू से फल काटती  है । 
(b)वह गेंद से खेल रहा है 
(c)राम खिलौनों को  फेंक रहा है। 
(d)हाथ से गिलास छूट गया

(d)हाथ से गिलास छूट गया✓
22-'वह निर्धंन के लिये धन देता है ।'वाक्य मेँ किस कारक का प्रयाग हुआ है ? 
(a)सम्प्रदान कारक 
(b)करन कारक 
(c)अपादान कारक 
(d)कर्म कारक 

(a)सम्प्रदान कारक ✓
23-'पेड़ से फल गिरते है ।' वाक्य मेँ निहित कारक है ? 
(a)अधिकरण 
(b) अपादान कारक
(c)सम्बंध कारक 
(d)सम्बोधन कारक 

(b) अपादान कारक✓
24-मुख्यत कारक है ।
(a)छः     (b)सात    (c)आठ    (d)पाँच

(a)छः ✓
25-' चारपाई पर भाईसाहब बैठे है । ' वाक्य मेँ चारपाई शब्द किस कारक मेँ है ? 
(a)अधिकरण     (b)सम्प्रदान
(c)करन            (d)सम्बंध 

(a)अधिकरण✓
26-इन फूलों का रंग सुहावना है । वाक्य मेँ ' का' किस कारक का चिन्ह है ?
(a)कर्म                  (b)सम्बन्ध
(c)अधिकरण         (d)अपादान

(b)सम्बन्ध✓
27-वह घर से बाहर गया ।' इस वाक्य मेँ कौनसा कारक है ?
(a)कर्म                (b)कर्ता 
(c)करन                (d)अपादान 

(d)अपादान ✓
28-'वह अगले साल आयेगा।'वाक्य मेँ कौनसा कारक है ? 
(a)सम्बोधन              (b)कर्म 
(c)अधिकरण            (d)सम्बंध

(c)अधिकरण✓
29-'सीता ने गीता को अपनी कलम दे दी।'वाक्य मेँ 'को'  किस कारक का चिन्ह है ? 
(a)कर्म                   (b)करन 
(c)संम्प्रदान             (d) सम्बन्ध 

(c)संम्प्रदान✓
30-' निशा विकास की बहन है। ' वाक्य मेँ 'की' किस कारक का चिन्ह है ? 
(a)करन            (b)सम्प्रदान 
(c)कर्ता             (d)सम्बंध
(d)सम्बंध✓


Hindi Question and Answers about KARAK ( Case ) , Hindi karak case prashnottar 

माखनलाल चतुर्वेदी ।।

➡️हिन्दी साहित्य को जोशो-ख़रोश से भरी आसान भाषा में कवितायें देने वाले माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में चार अप्रैल 1889 को हुआ था। 

➡️वो कवि होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे| उन्होंने ‘प्रभा, कर्मवीर और प्रताप का सफल संपादन किया। 

➡️1943 में उन्हें उनकी रचना ‘हिम किरीटिनी’ के लिए उस समय का हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘देव पुरस्कार’ दिया गया था। 

➡️हिम तरंगिनी के लिए उन्हें 1954 में पहले साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाज़ा गया। 

➡️राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में पद्मभूषण की उपाधि लौटाने वाले कवि ने 30 जनवरी 1968 को आख़िरी सांस ली।

➡️पुष्प की अभिलाषा...

चाह नहीं, मैं सुरबाला के 
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।।

मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का स्थिति काल रहा है→500 ई.पू. से 1000 ई.पू.

✒ ‘प्राचीन देशभाषा’ (पूर्व अपभ्रंश) को ‘अपभ्रंश’ तथा परवर्ती अर्थात् अग्रसरीभूत अपभ्रंश को ‘अवहट्ठ’ किस भाषा वैज्ञानिक ने कहा है→सुनीतिकुमार चटर्जी एवं सुकुमार सेन
✒ अर्द्धमागधी अपभ्रंश से इनमें से किस बोली का विकास हुआ है→बंगाली

✒ कामताप्रसाद गुरु का हिन्दी व्याकरण विषयक ग्रंथ, जो नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित हुआ था, उसका नाम था→हिन्दी व्याकरण
✒ देवनागरी लिपि है→अक्षरात्मक
✒ विद्यापति की उस प्रमुख रचना का नाम बताइए, जिसमें ‘अवहट्ठ’ भाषा का बहुतायत प्रयोग हुआ है→कीर्तिलता\

✒ जॉर्ज ग्रियर्सन ने पश्चिमोत्तर समुदाय की भाषा को आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की किस उपशाखा में रखा है→बाहरी उपशाखा
✒ उर्दू किस भाषा का मूल शब्द है→तुर्की भाषा
✒ ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’ ग्रंथ के लेखक का नाम है→डॉ. नलिन विलोचन शर्मा

✒ जहाँ शब्दों, शब्दांशों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो, किंतु उनके अर्थ भिन्न हों, वहाँ निम्न में से कौन-साअलंकार है→यमक
✒ गिला’ कहानी के लेखक का नाम है→प्रेमचन्द्र
✒ ‘गंगावतरण’ काव्य के रचयिता हैं→जगन्नाथदास रत्नाकर

✒ छायावादी कवियों ने जब आध्यात्मिक प्रेम को अपनी कविताओं में व्यक्त किया तो ऐसी कविताओं को किस वाद के अंतर्गत रखा गया है→रहस्यवाद
✒ गोवा की स्वीकृत राजभाषा है→कोंकणी
✒ ‘ध्रुव स्वामिनी’ नाटक के रचयिता हैं→जयशंकर प्रसाद

✒ ‘परिवर्तन’ नामक कविता सर्वप्रथम सुमित्रानन्दन पंत के किस कविता संग्रह में संगृहीत हुई है→पल्लव
✒ भिखारीदास की रचना का नाम है→काव्य निर्णय
✒ उन्नीसवीं सदी की साहित्य- सर्जना का मूल हेतु है→पराधीनता का बोध

✒ ‘यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पै धावनो है’, नामक पंक्ति किस कवि द्वारा सृजित है→बोधा
✒ आचार्य केशवदास को ‘कठिन काव्य का प्रेत’ किस आलोचक ने कहा है→आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

✒ भक्तिकाल का एक कवि अवतारवाद और मूर्तिपूजा का विरोधी है. इसके बावज़ूद वह हिन्दुओं के जन्म-मृत्यु सम्बन्धी सिद्धांत को मानता है, ऐसा रचनाकार है→कबीर
✒ प्रथम सूफ़ी प्रेमाख्यानक काव्य के रचयिता हैं→मुल्ला दाऊद
✒ भक्तिकालीन कवियों में एक ऐसा ख्यातिलब्ध रचनाकार है जो अपने काव्य में लोकव्यापी प्रभाव वाले कर्म और लोकव्यापिनी दशाओं के वर्णन में माहिर है। ऐसे रचनाकार का नाम है→तुलसीदास

✒ ‘जायसी -ग्रंथावली’ के सम्पादक का नाम है→रामचन्द्र शुक्ल
✒ दोहा छन्द में श्रृंगारी रचना प्रस्तुत करने वालों में हिन्दी के सर्वाधिक ख्यातिलब्ध कवि हैं→बिहारी
✒ ‘कंचन तन धन बरन बर रहयौ रंग मिलि रंग। जानी जाति सुबास ही केसरि लाई अंग॥’ उपर्युक्त पंक्तियाँ किसकी हैं?→ बिहारी

✒ जलप्लावन भारतीय इतिहास की ऐसी प्राचीन घटना है जिसको आधार बनाकर छायावादी युग में एक महाकाव्य लिखा गया है। उसका नाम है→कामायनी
✒ शब्दार्थों सहित काव्यम् यह उक्ति किसकी है→भामह

✒ ढ़ाई आखर प्रेम के, पढ़ै सो पंडित होय॥ प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता हैं→कबीर दास
✒ चौपाई के प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं→16
✒ ‘संदेश रासक’ के रचयिता हैं→अब्दुल रहमान
✒ ‘साखी’ के रचयिता हैं→कबीरदास
✒ लोगहिं लागि कवित्त बनावत, मोहिं तौ मेरे कवित्त बनावत॥ प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता हैं→घनानन्द

✒ बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है, यह कथन किसका है→रामचन्द्र शुक्ल
✒ रामभक्त कवि नहीं हैं→नरोत्तमदास
✒ जीवन में हास्य का महत्त्व इसलिए है कि, वह जीवन को→सरस बनाता है
✒ श्रृंगार रस का स्थायी भाव है→रति
✒ रहीम द्वारा लिखित इन पंक्तियों में ‘बड़े’ शब्द का प्रयोग जिस रूप में हुआ है, वह है-

✒ बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोलें बोल।
✒ रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥→ संज्ञा
✒ किस रस का संचारी भाव उग्रता, गर्व, हर्ष आदि है→वीर
✒ कबीरदास की भाषा थी→सधुक्कड़ी
✒ “रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून” में कौन-सा अलंकार है→श्लेष
✒ ‘कितने पाकिस्तान’ नामक उपन्यास के लेखक हैं→कमलेश्वर

✒ राजेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘आलोचना का विवेक’ किस विधा से संबंधित है→आलोचना
✒ ‘भ्रमरगीत’ के रचयिता हैं→सूरदास
✒ ‘ईदगाह’ कहानी के रचनाकार हैं→प्रेमचंद
✒ कवि कालिदास की ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ का हिन्दी अनुवाद किसने किया→राजा लक्ष्मण सिंह
✒ ‘यह काम मैं आप कर लूँगा’, पंक्तियों में ‘आप’ है→निजवाचक सर्वनाम

✒ निम्नलिखित में से कौन-सा स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होता है→ऋतु
✒ ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ में कौन-सा अलंकार है→अनुप्रास अलंकार
✒ उपर्युक्त पंक्तियों में रस है-
✒ ‘राग है कि, रूप है कि
✒ रस है कि, जस है कि

✒ तन है कि, मन है कि
✒ प्राण है कि, प्यारी है’→अद्भुत
✒ मुग़ल काल में किस भाषा को रेख्यां कहा गया है→उर्दू
✒ मुग़ल काल की राजकीय भाषा थी→उर्दू

देवनागरी लिपि ।।

० देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है। 'हिन्दी' और 'संस्कृत' देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। 'देवनागरी' लिपि का विकास 'ब्राही लिपि' से हुआ, जिसका सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात नरेश जयभट्ट के एक शिलालेख में मिलता है। 8वीं एवं 9वीं सदी में क्रमशः राष्ट्रकूट नरेशों तथा बड़ौदा के ध्रुवराज ने अपने देशों में इसका प्रयोग किया था। महाराष्ट्र में इसे 'बालबोध' के नाम से संबोधित किया गया।  
विद्वानों का मानना है कि ब्राह्मी लिपि से देवनागरी का विकास सीधे-सीधे नहीं हुआ है, बल्कि यह उत्तर शैली की कुटिल, शारदा और प्राचीन देवनागरी के रूप में होता हुआ वर्तमान देवनागरी लिपि तक पहुँचा है। प्राचीन नागरी के दो रूप विकसित हुए- पश्चिमी तथा पूर्वी।  
इन दोनों रूपों से विभिन्न लिपियों का विकास इस प्रकार हुआ- 
 

० प्राचीन देवनागरी लिपि:-

▪️पश्चिमी प्राचीन देवनागरी- गुजराती, महाजनी, राजस्थानी, महाराष्ट्री, नागरी 
 
▪️पूर्वी प्राचीन देवनागरी- कैथी, मैथिली, नेवारी, उड़िया, बँगला, असमिया 
 
संक्षेप में ब्राह्मी लिपि से वर्तमान देवनागरी लिपि तक के विकासक्रम को निम्नलिखित आरेख से समझा जा सकता है- 
 
० ब्राह्मी:
 
▪️उत्तरी शैली- गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा लिपि, प्राचीन नागरी लिपि 
 
० प्राचीन नागरी लिपि:

▪️पूर्वी नागरी- मैथली, कैथी, नेवारी, बँगला, असमिया आदि।  
▪️पश्चिमी नागरी- गुजराती, राजस्थानी, महाराष्ट्री, महाजनी, नागरी या देवनागरी।  
 
० दक्षिणी शैली- 
देवनागरी लिपि पर तीन भाषाओं का बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।  

(i) फारसी प्रभाव : पहले देवनागरी लिपि में जिह्वामूलीय ध्वनियों को अंकित करने के चिह्न नहीं थे, जो बाद में फारसी से प्रभावित होकर विकसित हुए- क. ख. ग. ज. फ।  

(ii) बांग्ला-प्रभाव : गोल-गोल लिखने की परम्परा बांग्ला लिपि के प्रभाव के कारण शुरू हुई। 
 
(iii) रोमन-प्रभाव : इससे प्रभावित हो विभिन्न विराम-चिह्नों, जैसे- अल्प विराम, अर्द्ध विराम, प्रश्नसूचक चिह्न, विस्मयसूचक चिह्न, उद्धरण चिह्न एवं पूर्ण विराम में 'खड़ी पाई' की जगह 'बिन्दु' (Point) का प्रयोग होने लगा।

हिंदी के कुछ नए और उपयोगी तथ्य ।।

० जीवनीपरक आलोचना 'महाप्राण निराला' एवम 'महीयसी महादेवी' किसने लिखी - गंगाप्रसाद पांडेय

० 'छायावाद के आधार स्तंभ' नामक पुस्तक किसकी है - गंगा प्रसाद पांडेय

० जवाहर लाल : एक मध्य बिंदु, नेहरू जी : विचार और व्यक्तित्व, नेहरू की काव्यानुभूतियाँ नामक निबन्ध किसने लिखे - शांतिप्रिय द्विवेदी

० छायावाद को "करुणा की छाया में सौंदर्य के माध्यम से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद" किसने कहा - महादेवी वर्मा

० अरविंद दर्शन एवम अंतश्चेतनावाद का प्रभावी विश्लेषण पन्त के किस भूमिका में प्रकट होती है - उत्तरा की

० किस छायावादी कवि ने कविकर्म को आध्यात्मिक कर्म बताया है - जयशंकर प्रसाद

० "नयी कविता यदि अनुभूति को आधार मानकर चलती है तो रस से उसकी मुक्ति नहीं है" किस आलोचक का कथन है - डॉ नागेंद्र

० "उर्मिला के विरह में मानवता की पुकार है - यह अधिक स्वाभविक है। साथ ही गरिमा की न्यूनता नहीं है, वह विश्वव्यापी है" कथन किसका है - डॉ नगेन्द्र

० समित्रानंदन पंत आलोचना के क्षेत्र में किसकी पहली पुस्तक है - डॉ नगेन्द्र

० "सूरदास की राधा केवल विलासिनी नहीं है। श्री कृष्ण के साथ उनका केवल युवा काल का सम्बंध नहीं है, वे परकीया नायिका भी नहीं है" कथन किस आलोचक का है - हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

० "साहित्य समीक्षा अंततः विचार जगत की वस्तु है" - नन्द दुलारे वाजपेयी

० प्रसाद जी के किस नाटक में जयचन्द काल का चित्रण हुआ है - प्रायश्चित ।

० "शिवशम्भू के चिट्ठा" किस पत्रिका में प्रकाशित हुआ - भारत मित्र ।

० मुसलमानों की राष्ट्रीय भावना को चित्रित करने वाला नाटक है- शेरशाह ।

० कहानी कला किसका निबन्ध है- मुंशी प्रेमचन्द ।

० उपेन्द्रनाथ अश्क जी की सर्वाधिक प्रौढ नाट्य कृति है- अंजो दीदी ।

० नागरी प्रचारिणी सभा, काशी (1893) संस्थापक : श्यामसुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्रा, शिव कुमार सिंह।

० 14 अक्टूबर 1899 को 'नागरी प्रचारिणी सभा' में सरस्वती के संपादक मंडल का नाम घोषित किया।

० सरस्वती के आरंभिक संपादक मंडल : जगन्नाथदास रत्नाकर, श्यामसुंदर दास, किशोरी लाल गोस्वामी, राधा कृष्णदास, कार्तिक प्रसाद खत्री।

० सरस्वती पत्रिका के संस्थापक : 'चिंतामणि घोष'

० सरस्वती पत्रिका के संपादक : महावीर प्रसाद द्विवेदी (1903-1920) तक रहें

० वर्तमान में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन--  17 अक्टूबर 2020 (हिंदुस्तान एकेडमी, प्रयागराज)

आधुनिक काल महत्वपूर्ण संग्रह ।।

हिन्दी आधुनिक काल महत्वपूर्ण संग्रह ।।

1. ‘धाराधर धावन’ शीर्षक से कालिदास कृत ‘मेघदूत’ का पद्यबद्ध अनुवाद किया
⇒ रायदेवी प्रसाद’पूर्ण’
2.साहित्य को ‘ज्ञान राशि का संचित कोश’ किसने कहा?
⇒महावीर प्रसाद द्विवेदी
3.’हम कौन थे,क्या हो गए है और क्या होंगे अभी
आओ, विचारे आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।’ पंक्ति है
⇒मैथिलीशरण गुप्त(भारत-भारती )
4.रामनरेश त्रिपाठी की स्फुट कविताओं का संग्रह है
⇒ मानसी
5.किस कवि को ‘एक भारतीय आत्मा’ कहा जाता है?
⇒ माखनलाल चतुर्वेदी
6 .नरेंद्र शर्मा का सर्वाधिक लोकप्रिय काव्यसंग्रह है
⇒ प्रवासी के गीत
7.’अपलक’ और ‘क्वासी’ काव्यकृति किसकी है?
⇒बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
8.’राम की शक्ति पूजा’ की रचना निराला ने कब की?
⇒1936 ईस्वी
9.’मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है’ -कथन है
⇒ निराला(‘परिमल’ की भूमिका में)
10. ‘ले चल मुझे भुलावा देकर
मेरे नाविक धीरे-धीरे।’ पंक्ति है-
⇒प्रसाद

11-किस कवि ने दादा भाई नौरोजी को विलायत में काला कहे जाने पर अपनी कविता में क्षोभपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की?
⇒बद्री नारायण चौधरी प्रेमघन
12-वियोगी हरि को किस कृति पर प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से 1200 रुपये का मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार मिला था?
⇒वीर सतसई
13- भारतेंदु ने अपनी किस कविता में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रेरणा दी है?
⇒प्रबोधिनी
14- जयति राज राजेश्वरी जय-जय परमेश- पंक्ति किसकी है?
⇒राधा कृष्ण दास
15- कौन कवि भारतेंदु का फुफेरा भाई था?
⇒ राधा कृष्ण दास
16- हिंदी हिंदू हिंदुस्तान का नारा किसने दिया?
⇒ प्रताप नारायण मिश्र
17- बद्री नारायण चौधरी प्रेमघन ने उर्दू में गज़ल आदि की रचना किस उपनाम से की?
⇒अब्र
18- अंग्रेजी काव्य कृतियों के भाषांतरण का आरंभ किसी युग में हुआ?
⇒भारतेंदु युग
19- खुसरो जैसी पहेलियां और मुकरियां किसने लिखी?
⇒भारतेंदु
20- समस्या पूर्ति किस युग की लोकप्रिय काव्य पद्धति थी?
⇒भारतेंदु युग

21-हिंदी साहित्य में आधुनिकता के प्रवर्तक कौन माने जाते हैं?
⇒भारतेंदु
22-हिंदी की हिमायत किसकी कविता है?
⇒प्रताप नारायण मिश्र
23- हमारो उत्तम भारत देस किसकी पंक्ति है?
⇒राधाचरण गोस्वामी
24-आधुनिक काल के प्रारंभिक काल को क्या कहा जाता है?
⇒पुनर्जागरण काल(भारतेंदु युग)
25-आधुनिक काल को गद्य काल किसने कहा?
⇒आचार्य रामचंद्र शुक्ल
26-भारतेंदु युग को पुनर्जागरण काल की संज्ञा किसने दी?
⇒डॉ नगेंद्र
27-भारतेंदु युग के प्रमुख अलंकारवादी कवि कौन है?
⇒लछिराम (ब्रह्मभट्ट)
28-नवरात्र के पद शीर्षक कविता किसकी है?
⇒प्रताप नारायण मिश्र
29-सूर्य स्त्रोत नामक भक्तिपरक कविता किसकी है?
⇒बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन
30-भारतेंदु के विद्या गुरु कौन थे?
⇒राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद

31-फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना कब हुई थी?
⇒10 जुुलाई,1800 ई को लार्ड वेेलेेजली द्वारा
32-आधुनिक खड़ी बोली के प्रारंभिक लेखक महानुभाव है-
⇒लल्लूलाल, सदल मिश्र,सदासुखलाल,इंशा अल्लाहख़ा।
33-‘नियाज़’ के नाम से कौन विख्यात हुए?
⇒ मुंशी सदासुखलाल

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कुछ नए और उपयोगी तथ्य जो परीक्षा में आ सकते हैं -

 हिंदी के कुछ नए और उपयोगी तथ्य जो परीक्षा में आ सकते हैं -

✦ "जहां बहुत कला होगी, परिवर्तन नहीं होगा" कथन किसका है - रघुवीर सहाय

✦ "सूरदास सुधारक नहीं थे, ज्ञानमार्गी भी नहीं थे, किसी को कुछ सिखाने का मान उन्होंने भी किया ही नहीं...वे केवल श्रद्धालु और विश्वासी भक्त थे"। कथन किसका है - हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

✦ "समूचा साहित्य जन्म लेते ही प्रतिष्ठान की विकराल दाढ़ों में समाने लगता है" पंक्ति किस निबन्ध से है - साहित्य क्यों

✦ "जो नर दुःख में दुःख नहिं माने..." पंक्ति किसकी है - गुरु नानक

✦ "पांव रखते ही, बांस का पुल चरमराता डोलता है/कहीं नीचे बहुत गहरे, अतल खाई है"...पंक्ति किसकी है - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

✦ जादुई यथार्थवाद शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया था - फ्रेंज रोह ने

✦ "वस्तुतः हमारी खोज पद्मावती की नहीं, पद्मावत की होनी चाहिए"...उत्कृष्ट कथन किस विद्वान का है - विजयदेवनारायण साही

✦ "अपनी मूल प्रकृति में पद्मावत एक त्रासदी है...शायद हिंदुस्तान या सम्भवतः एशिया की धरती पर लिखा हुआ एकमात्र ग्रन्थ है जो यूनानियों की ट्रेजडी के काफी निकट है"...किसका कथन है - विजयदेव नारायण साही

✦ "जायसी का प्रस्थान-बिंदु न ईश्वर है, न कोई अध्यात्म है । उनकी चिंता का मुख्य ध्येय मनुष्य है - मनुष्य"...किस विद्वान का कथन है - विजयदेव नारायण साही

✦ "शमशेर की मूल मनोवृत्ति एक इम्प्रेशनिस्टिक चित्रकार की है" कथन किसका है - मुक्तिबोध

✦ "प्रत्येक शब्द का प्रत्येक समर्थ उपयोक्ता उसे नया संस्कार देता है" कथन किसका है - अज्ञेय जी

✦ "मुझ पर चढ़ने से रहा, राम!दूसरा रंग"...पंक्ति किसकी और कहां से ली गई है - मैथिली शरण गुप्त/द्वापर

✦ शमशेर बहादुर सिंह ने जिस नई कविता को अपनाया, उनमें उन्होंने नई कविता के लेखन सन्दर्भ में किन 5 बातों को रेखांकित किया -
1. सच्चाई का अपना खास रूप।
2. ललित कलाएं काफ़ी हद तक एक दूसरे में समोई हुई हैं।
3. कवि की जाती दिलचस्पी।
4. दूसरी भाषाओं का ज्ञान
5. भाषा एवम कला के रूपों का कोई पार नहीं है।

✦ "कान्ह के बोल पे कान न दीन्हीं, सुगेह को देहरि पै धरि आई"...पंक्ति मतिराम की है।

मुंशी प्रेमचंद की कहानियां स्पेशल

मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानियां ।।

➠ सौत - मुंशी प्रेमचंद
➠ सद्गति - मुंशी प्रेमचंद 
➠ कफ़न - मुंशी प्रेमचंद
➠ परीक्षा - मुंशी प्रेमचंद 
➠ गुप्तधन - मुंशी प्रेमचंद 
➠ जुरमाना - मुंशी प्रेमचंद 
➠ बूढ़ी काकी - मुंशी प्रेमचंद 
➠ पूस की रात - मुंशी प्रेमचंद 
➠ पंच परमेश्वर - मुंशी प्रेमचंद 
➠ ठाकुर का कुआँ - मुंशी प्रेमचंद 
➠ बाबाजी का भोग- मुंशी प्रेमचंद 
➠ नमक का दारोगा - मुंशी प्रेमचंद 
➠ सज्जनता का दंड - मुंशी प्रेमचंद

गजानन माधव मुक्तिबोध ।।

मुक्तिबोध जनवादी कवि👇👇

👉 साहित्य जगत में वह तार सप्तक से प्रविष्ठ हुए।

👉 काव्य संग्रह “चांद का मुंह टेढ़ा है “:-1964 ई. मे उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित संग्रह है इसमें 28 कविताएं संग्रहित है श्रीकांत वर्मा के सहयोग से यह काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ।

👉 रामस्वरूप चतुर्वेदी ने चाँद का मुँह टेढ़ा है को “बड़े कलाकार की स्केच बुक कहा है।”

👉 ”भूरी भूरी खाक धूल “:-1980 ई. में प्रकाशित इन का काव्य संग्रह जिसमें 47 कविताएं संग्रहित है इस संग्रह में मार्क्सवाद का प्रभाव है।

👉  इनकी कविताएं अक्सर लंबी है’ ब्रह्म राक्षस’, ‘ अंधेरे में’, ‘चंबल की घाटी ‘, ‘जिंदगी का रास्ता ‘सभी कविताएं इनकी लंबी कविताएं है।

👉 अँधेरे मे 1957 ई. मे लिखी गई लम्बी कविता है जो 1964 ई. कल्पना मे प्रकाशित हुई।

👉 ’अँधेरे मे ‘कविता का पहले नाम “आशंका के द्वीप” था।

यह “चाँद का मुँह टेढ़ा है” काव्य संग्रह मे प्रकाशित है।

   ●पदवी

  👉 “मुक्तिबोध स्वाधीनता भारत का इस्पाती ढांचा है “:-शमशेर बहादुर सिंह
तीव्र इन्द्रिय बोध का कवि,
भयानक खबरों का कवि,
फैंटेंसी का कवि।

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सर्वनाम की परिभाषा ।।

संज्ञा के स्थान पर काम आने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं । उदहारण के लिए मैं,तुम,वह,वे,कौन,क्या आदि शब्द ।

हिन्दी में सर्वनाम के 6 भेद किये गए हैं - 
1. पुरुषवाचक सर्वनाम  
2. निश्चयवाचक सर्वनाम  
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम  
4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम  
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम  
6. निजवाचक सर्वनाम
 
📚पुरुषवाचक सर्वनाम
वे सर्वनाम शब्द जो बोलने वाले,सुनने वाले तथा अन्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होते हैं, पुरुष वाचक सर्वनाम कहलाते हैं ।  
पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद किये गये हैं - 
 
(क) उत्तम पुरुष: 
बोलने वाला या बात को कहने वाला वक्ता उत्तम पुरुष होता है ,वह अपने लिए मैं,हम आदि शब्दों का प्रयोग करता है ।  
 
(ख) मध्यम पुरुष: 
सुनने वाला मध्यम पुरुष होता है ।  
तुम मेरे अच्छे दोस्त हो  
यहाँ पर उत्तम पुरुष अपने दोस्त (सुनने वाले के लिए ) के लिए तुम शब्द का प्रयोग कर रहा है ,इसलिए तुम मध्यम पुरुष है ।  
 
(ग) अन्य पुरुष: 
जब बोलने वाला सुनने वाले के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के लिए सर्वनाम शब्दों का प्रयोग करता है , वे अन्य पुरुष कहलाते हैं । जैसे - वह ,वे आदि शब्द ।
 
📚निश्चयवाचक सर्वनाम
सर्वनाम के जिस रूप से हमे किसी बात या वस्तु का निश्चत रूप से बोध होता है, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते है।  
दूसरे शब्दों में- जिस सर्वनाम से वक्ता के पास या दूर की किसी वस्तु के निश्र्चय का बोध होता है, उसे 'निश्र्चयवाचक सर्वनाम' कहते हैं।  
सरल शब्दों में- जो सर्वनाम निश्चयपूर्वक किसी वस्तु या व्यक्ति का बोध कराएँ, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।  
जैसे- यह, वह, ये, वे आदि।  
वाक्यों में इनका प्रयोग देखिए- 
तनुज का छोटा भाई आया है। यह बहुत समझदार है।  
किशोर बाजार गया था, वह लौट आया है।  
उपर्युक्त वाक्यों में 'यह' और 'वह' किसी व्यक्ति का निश्चयपूर्वक बोध कराते हैं, अतः ये निश्चयवाचक सर्वनाम हैं।
 
📚अनिश्चयवाचक सर्वनाम
जिस सर्वनाम शब्द से किसी निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध न हो, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते है।  
दूसरे शब्दों में- जो सर्वनाम किसी वस्तु या व्यक्ति की ओर ऐसे संकेत करें कि उनकी स्थिति अनिश्चित या अस्पष्ट रहे, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते है।  
जैसे- कोई, कुछ, किसी आदि।  
वाक्यों में इनका प्रयोग देखिए- 
मोहन! आज कोई तुमसे मिलने आया था।  
पानी में कुछ गिर गया है।  
यहाँ 'कोई' और 'कुछ' व्यक्ति और वस्तु का अनिश्चित बोध कराने वाले अनिश्चयवाचक सर्वनाम हैं। ।
 
📚सम्बन्धवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम शब्दों का दूसरे सर्वनाम शब्दों से संबंध ज्ञात हो तथा जो शब्द दो वाक्यों को जोड़ते है, उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते है।  
दूसरे शब्दों में- जो सर्वनाम वाक्य में प्रयुक्त किसी अन्य सर्वनाम से सम्बंधित हों, उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते है।  
जैसे- जो, जिसकी, सो, जिसने, जैसा, वैसा आदि।  
वाक्यों में इनका प्रयोग देखिए- 
जैसा करोगे, वैसा भरोगे।  
जिसकी लाठी, उसकी भैंस।  
उपर्युक्त वाक्यों में 'वैसा' का सम्बंध 'जैसा' के साथ तथा 'उसकी' का सम्बन्ध 'जिसकी' के साथ सदैव रहता है। अतः ये संबंधवाचक सर्वनाम है।
 
📚प्रश्नवाचक सर्वनाम
जो सर्वनाम शब्द सवाल पूछने के लिए प्रयुक्त होते है, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते है।  
सरल शब्दों में- प्रश्र करने के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है, उन्हें 'प्रश्रवाचक सर्वनाम' कहते है।  
जैसे- कौन, क्या, किसने आदि।  
वाक्यों में इनका प्रयोग देखिए- 
टोकरी में क्या रखा है।  
बाहर कौन खड़ा है।  
तुम क्या खा रहे हो? 
उपर्युक्त वाक्यों में 'क्या' और 'कौन' का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए हुआ है। अतः ये प्रश्नवाचक सर्वनाम है।
 
📚निजवाचक सर्वनाम
निज' का अर्थ होता है- अपना और 'वाचक' का अर्थ होता है- बोध (ज्ञान) कराने वाला अर्थात 'निजवाचक' का अर्थ हुआ- अपनेपन का बोध कराना।  
इस प्रकार, 
जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग कर्ता के साथ अपनेपन का ज्ञान कराने के लिए किया जाए, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते है।  
जैसे- अपने आप, निजी, खुद आदि।  
'आप' शब्द का प्रयोग पुरुषवाचक तथा निजवाचक सर्वनाम-दोनों में होता है।  
उदाहरण- 
आप कल दफ्तर नहीं गए थे। (मध्यम पुरुष- आदरसूचक)  
आप मेरे पिता श्री बसंत सिंह हैं। (अन्य पुरुष-आदरसूचक-परिचय देते समय)  
ईश्वर भी उन्हीं का साथ देता है, जो अपनी मदद आप करता है। (निजवाचक सर्वनाम)

मुहावरे

▪️अंकुश देना- (दबाव डालना)  

▪️अंग में अंग चुराना- (शरमाना)  

▪️अंग-अंग फूले न समाना- (आनंदविभोर होना)  

▪️अंगार बनना- (लाल होना, क्रोध करना)  

▪️अंडे का शाहजादा- (अनुभवहीन)  

▪️अठखेलियाँ सूझना- (दिल्लगी करना)  

▪️अँधेरे मुँह- (प्रातः काल, तड़के)  

▪️अड़ियल टट्टू- (रूक-रूक कर काम करना)  

▪️अपना घर समझना- (बिना संकोच व्यवहार)  

▪️अड़चन डालना- (बाधा उपस्थित करना)  

▪️अरमान निकालना- (इच्छाएँ पूरी करना)  

▪️अरण्य-चन्द्रिका- (निष्प्रयोजन पदार्थ)

▪️आँख भर आना (आँसू आना) - बेटी की विदाई पर माँ की आखें भर आयी।  

▪️आँखों में बसना (हृदय में समाना) - वह इतना सुंदर है की उसका रूप मेरी आखों में बस गया है।  

▪️आँखे खुलना (सचेत होना) - ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखे खुलती है।  

▪️आँख का तारा - (बहुत प्यारा) - आज्ञाकारी बच्चा माँ-बाप की आँखों का तारा होता है।  

▪️आँखे दिखाना (बहुत क्रोध करना) - राम से मैंने सच बातें कह दी, तो वह मुझे आँख दिखाने लगा।  

▪️आसमान से बातें करना (बहुत ऊँचा होना) - आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है, जो आसमान से बातें करती है।  

▪️आँच न आने देना (जरा भी कष्ट या दोष न आने देना) - तुम निश्र्चिन्त रहो। तुमपर आँच न आने दूँगा।  

▪️आठ-आठ आँसू रोना (बुरी तरह पछताना) - इस उमर में न पढ़ा, तो आठ-आठ आँसू न रोओ तो कहना।  

▪️आसन डोलना (लुब्ध या विचलित होना) - धन के आगे ईमान का भी आसन डोल जाया करता है।  

▪️आस्तीन का साँप (कपटी मित्र) - उससे सावधान रहो। आस्तीन का साँप है वह।  

▪️आसमान टूट पड़ना (गजब का संकट पड़ना) - पाँच लोगों को खिलाने-पिलाने में ऐसा क्या आसमान टूट पड़ा कि तुम सारा घर सिर पर उठाये हो ? 

▪️आकाश छूना (बहुत तरक्की करना) - राखी एक दिन अवश्य आकाश चूमेगी 

▪️आकाश-पाताल एक करना (अत्यधिक उद्योग/परिश्रम करना) - सूरज ने इंजीनियर पास करने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया।  

▪️आकाश-पाताल का अंतर होना (बहुत अधिक अंतर होना) - कहाँ मैं और कहाँ वह मूर्ख, हम दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है।  

▪️आँच आना (हानि या कष्ट पहुँचना) - जब माँ साथ हैं तो बच्चे को भला कैसे आँच आएगी।  

▪️आँचल पसारना (प्रार्थना करना या किसी से कुछ माँगना) - मैं ईश्वर से आँचल पसारकर यही माँगता हूँ कि तुम कक्षा में उत्तीर्ण हो जाओ।

▪️ख़ाक छानना (भटकना) - नौकरी की खोज में वह खाक छानता रहा।  

▪️खून-पसीना एक करना (अधिक परिश्रम करना) - खून पसीना एक करके विद्यार्थी अपने जीवन में सफल होते है।  

▪️खरी-खोटी सुनाना (भला-बुरा कहना) - कितनी खरी-खोटी सुना चुका हुँ, मगर बेकहा माने तब तो ? 

▪️खून खौलना (क्रोधित होना) - झूठ बातें सुनते ही मेरा खून खौलने लगता है।  

▪️खून का प्यासा (जानी दुश्मन होना) - उसकी क्या बात कर रहे हो, वह तो मेरे खून का प्यासा हो गया है।  

▪️खेत रहना या आना (वीरगति पाना) - पानीपत की तीसरी लड़ाई में इतने मराठे आये कि मराठा-भूमि जवानों से खाली हो गयी।  

▪️खटाई में पड़ना (झमेले में पड़ना, रुक जाना) - बात तय थी, लेकिन ऐन मौके पर उसके मुकर जाने से सारा काम खटाई में पड़ गया।  

▪️खेल खेलाना (परेशान करना) - खेल खेलाना छोड़ो और साफ-साफ कहो कि तुम्हारा इरादा क्या है।  

▪️खटाई में डालना (किसी काम को लटकाना) - उसनेतो मेरा काम खटाई में डाल दिया। अब किसी और से कराना पड़ेगा।  

▪️खबर लेना (सजा देना या किसी के विरुद्ध कार्यवाई करना) - उसने मेरा काम करने से इनकार किया हैं, मुझे उसकी खबर लेनी पड़ेगी।  

▪️खाई से निकलकर खंदक में कूदना (एक परेशानी या मुसीबत से निकलकर दूसरी में जाना) - मुझे ज्ञात नहीं था कि मैं खाई से निकलकर खंदक में कूदने जा रहा हूँ।  

▪️खाक फाँकना (मारा-मारा फिरना) - पहले तो उसने नौकरी छोड़ दी, अब नौकरी की तलाश में खाक फाँक रहा हैं।  

▪️खाक में मिलना (सब कुछ नष्ट हो जाना) - बाढ़ आने पर उसका सब कुछ खाक में मिल गया।

इलाचंद्र जोशी के उपन्यासों के बारे में और महत्वपूर्ण उपन्यासों की विषय वस्तु के बारे में जानकारी ❣

1. लज्जा (1929)

इसमें पूर्व में ‘घृणामयी’ शीर्षक से प्रकाशित लज्जा’ में लज्जा नामक आधुनिका, शिक्षित नारी की काम भावना का वर्णन किया गया है ।

2.सन्यासी(1941)

इस उपन्यास में नायक नंदकिशोर के अहम भाव एवं कालांतर में अहम भाव का उन्नयन दिखाया गया है ।


3.पर्दे की रानी(1941)

इस उपन्यास में खूनी पिता और वेश्या पुत्री नायिका निरंजना की समाज के प्रति घृणा और प्रतिहिंसा भाव की अभिव्यक्ति गई है ।

4.प्रेत और छाया(1946)

इसमें नायक पारसनाथ की हीन भावना एवं स्त्री जाति के प्रति घृणा का भाव दिखाया गया है ।

5.निर्वासित(1948)

इस उपन्यास में महीप नामक प्रेमी की भावुकता निराशावादिता का एवं दुखद अंत को कहानी के माध्यम से चित्रण किया गया है

6. मुक्तिपथ(1950)

इसमें कथानायक राजीव और विधवा सुनंदा की प्रेमकथा सामाजिक कटाक्ष के कारण शरणार्थी बस्ती में जाना ,राजीव का सामाजिक कार्य में व्यस्तता और सुनंदा की उपेक्षा के फलस्वरुप सुनंदा की वापसी को दिखाया गया है

7.जिप्सी(1952)

इस उपन्यास में जिप्सी बालिका मनिया की कुंठा और अंत में कुंठा का उदात्तीकरण दर्शाया गया है

8. सुबह के भूले(1952)

गुलबिया नामक एक साधारण किसान पुत्र की अभिनेत्री बनने एवं वहां के कृत्रिम जीवन से उठकर पुनः ग्रामीण परिवेश में लौटने की कथा का वर्णन किया गया है

9. जहाज का पंछी(1955)

इस उपन्यास में कथानायक शिक्षित नवयुवक का कोलकाता में नगर रूपी जहाज में ज्योतिषी, ट्यूटर ,धोबी के मुनीम ,रसोइए ,चकले ,लीला के सेवक इत्यादि के रूप में विविध जीवन स्थितियों एवं संघर्षों का वर्णन किया गया है

10.ऋतुचक्र(1969)

इसमें आधुनिक दबावों के फल स्वरुप परंपरागत मूल्यों, मान्यताओं ,आदर्शों के तेजी से ढहने एवं उनके स्थान पर नए मूल्यों आदर्शों के निर्माण न होने की कथा का वर्णन किया गया है उपन्यास में खूनी पिता और वेश्या पुत्री नायिका निरंजना की समाज के प्रति घृणा और प्रतिहिंसा भाव की अभिव्यक्ति गई है।

11. भूत का भविष्य (1973)

12. कवि की प्रेयसी (1976)

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प्रेमचंद ।।

👤परिचय

मूल नाम : धनपत राय

👣जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

🗣भाषा : हिंदी, उर्दू

📚विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य

◾️मुख्य कृतियाँ

🌻उपन्यास : गोदान, गबन, सेवा सदन, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, निर्मला, प्रेमा, कायाकल्प, रंगभूमि, कर्मभूमि, मनोरमा, वरदान, मंगलसूत्र (असमाप्त)

🌼कहानी : सोज़े वतन, मानसरोवर (आठ खंड), प्रेमचंद की असंकलित कहानियाँ, प्रेमचंद की शेष रचनाएँ

🌸नाटक : संग्राम- 1923 ई., कर्बला- 1924 ई., प्रेम की वेदी- 1933 ई.

💁‍♂बाल साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी

🙇‍♂विचार : प्रेमचंद : विविध प्रसंग, प्रेमचंद के विचार (तीन खंडों में)

📇अनुवाद : आजाद-कथा (उर्दू से, रतननाथ सरशार), पिता के पत्र पुत्री के नाम (अंग्रेजी से, जवाहरलाल नेहरू)

🖨संपादन : मर्यादा, माधुरी, हंस, जागरण

◾️निधन

8 अक्टूबर 1936

◾️विशेष

प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना सम्मेलन (1936) के अध्यक्ष। इनकी अनेक कृतियों पर फिल्में बन चुकी हैं। विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद। अमृत राय (प्रेमचंद के पुत्र) ने ‘कलम का सिपाही’ और मदन गोपाल ने ‘कलम का मजदूर’ शीर्षक से उनकी जीवनी लिखी हैं ।

प्रेमचंद से संबंधित कृतियां -

1. प्रेमचंद घर में - शिवरानी देवी

2. कलम का मजदूर - मदन गोपाल ( अंग्रेजी में)

3. कलम का सिपाही - अमृत राय

4. प्रेमचंद: सामंतों के मुंशी - धर्मवीर

5. प्रेमचंद: साहित्यिक विवेचना - नंददुलारे वाजपेयी

6. प्रेमचंद: एक विवेचना - इन्द्रनाथ मदान

7. प्रेमचंद: जीवन और कृतित्व - हंसराज रहबर

8. प्रेमचंद: चिंतन और कला - इंद्रनाथ मदान

9. प्रेमचंद: विश्व कोश - कमलकिशोर गोयनका

10. प्रेमचंद और उनका साहित्य - मन्मथ नाथ गुप्त

11. प्रेमचंद और गांधीवाद - रामदीन गुप्त

12. प्रेमचंद अध्ययन की नई दिशांए - क.कि.गोयनका

13. प्रेमचंद के उपन्यसों का शिल्पविधान -

क.कि.गोयनका

14. प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन

- क.कि. गोयनका

15. प्रेमचंद की उपन्यास यात्रा: नव मुल्यांकन - शैलेश

जेदी

16. प्रेमचंद और उनका युग - रामविलास शर्मा

हिन्दी साहित्य के मुख्य इतिहासकार और उनके ग्रन्थ निम्नानुसार हैं -

ग्रन्थ संपादित करे ~

1. गार्सा द तासी : इस्तवार द ला लितेरात्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी (फ्रेंच भाषा में; फ्रेंच विद्वान, हिन्दी साहित्य के पहले इतिहासकार),(1839)

2. मौलवी करीमुद्दीन : तजकिरा-ऐ-शुअराई, (1848)

3. शिवसिंह सेंगर : शिव सिंह सरोज,(1883)

4. जार्ज ग्रियर्सन : द मॉडर्न वर्नेक्यूलर लिट्रैचर ऑफ हिंदोस्तान, (1888)

5. मिश्र बंधु : मिश्र बंधु विनोद (चार भागों में) भाग 1,2 और 3-(1913 में) भाग 4 (1934 में)

6. एडविन ग्रीव्स : ए स्कैच ऑफ हिंदी लिटरेचर,(1917)

7. एफ. ई. के. महोदय : ए हिस्ट्री ऑफ हिंदी लिटरेचर (1920)

8. रामचंद्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929)

9. हजारी प्रसाद द्विवेदी : हिन्दी साहित्य की भूमिका(1940); हिन्दी साहित्य का आदिकाल(1952); हिन्दी साहित्य :उद्भव और विकास(1955)

10. रामकुमार वर्मा : हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास(1938)

11. डॉ० धीरेन्द्र वर्मा : हिन्दी साहित्य (तीन खण्डों में)

12. हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास (सोलह खण्डों में) - 1957 से 1984 ई० तक।

13. डॉ० नगेन्द्र : हिन्दी साहित्य का इतिहास (1973); हिन्दी वाङ्मय 20वीं शती

14. रामस्वरूप चतुर्वेदी : हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1986

15. बच्चन सिंह : हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली(1996)

16. डा० मोहन अवस्थी : हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास

17. बाबू गुलाब राय : हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास


हिंदी के प्रमुख इतिहासकार, हिन्दी के इतिहासकार, हिंदी साहित्य के मुख्य साहित्यकार, हिन्दी साहित्य के प्रमुख इतिहासकार


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हिन्दी वन लाइनर स्पेशल ।।

● इस्त्वार द ला लितरेत्युर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी - गार्सा द तासी
● शिवसिंह सरोज - शिवसिंह सेंगर

● द मॉर्डन वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान - जॉर्ज ग्रियर्सन
● मिश्रबन्धु विनोद - मिश्रबन्धु

● हिन्दी साहित्य का इतिहास - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
● हिन्दी साहित्य का इतिहास - डॉ. नगेन्द्र व डॉ. हरदयाल (संपादित)

● हिन्दी साहित्य का आदिकाल - हजारी प्रसाद द्विवेदी
● हिन्दी साहित्य की भूमिका - हजारी प्रसाद द्विवेदी

● हिन्दी साहित्य : उदभव व विकास - हजारी प्रसाद द्विवेदी 
● हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास - डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त

● हिन्दी साहित्य - डॉ. धीरेन्द्र वर्मा (संपादित) 
● हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास - डॉ. भगीरथ मिश्र

● रीतिकाव्य की भूमिका - डॉ. नगेन्द्र
● हिन्दी साहित्य का अतीत - विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

● उत्तरी भारत की संत परम्परा - परशुराम चतुर्वेदी
● राजस्थानी भाषा और साहित्य - डॉ. मोतीलाल मेनारिया

● राजस्थानी पिंगल साहित्य - डॉ. मोतीलाल मेनारिया
● हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन - डॉ. नलिन विलोचन शर्मा

● हिन्दी काव्य संग्रह - पं महेशदत्त शुक्ल
● कविता कौमुदी - पं रामनरेश त्रिपाठी

● हिन्दी भाषा एवं साहित्य - बाबू श्यामसुंदर दास
● हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास - सूर्यकांत शास्त्री

● हिन्दी साहित्य का इतिहास -आचार्य चतुरसेन शास्त्री
● इतिहास एवं साहित्य दृष्टि - मैनेजर पाण्डेय

● आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास - डॉ. बच्चन सिंह
● हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास - डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी

● हिन्दी वीर काव्य - डॉ. टीकम सिंह तोमर
● चैतन्य सम्प्रदाय और उसका साहित्य - प्रभुदयाल मित्तल

● खड़ी बोली हिन्दी साहित्य का इतिहास - ब्रजरत्न दास
● आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास - डॉ. श्रीकृष्ण लाल

● आधुनिक हिन्दी साहित्य - डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय 
● राजस्थानी साहित्य की रूपरेखा - मोतीलाल मेनारिया

कौटिल्य द्वारा रचित पुस्तक अर्थशास्त्र में निम्नलिखित पदों का वर्णन किया गया है -

 पद ~ अर्थ

👉 मंत्री — प्रधानमंत्री 

👉 पुरोहित — धर्म एवं दान –विभाग का प्रधान

👉 सेनापति — सैन्य विभाग का प्रधान 

👉 युवराज — राजपुत्र

👉 दौवारिक — राजकीय द्वार-रक्षक

👉 अन्तर्वेदिक — अन्त:पुर का अध्यक्ष

👉 समाहर्ता — आय का संग्रहकर्त्ता 

👉 सन्निधाता — राजकीय कोषाध्यक्ष 

👉 प्रशास्ता — कारागार का अध्यक्ष 

👉 प्रदेष्ट्रि — कमिश्नर 

👉 व्यवहारिक — प्रमुख न्यायाधीश 

👉 नायक — नगर-रक्षा का अध्यक्ष

👉 कर्मान्तिक — उद्योगों एवं कारखानों का अध्यक्ष 

👉 मंत्रिपरिषद् — अध्यक्ष

👉 दण्डपाल — सेना का सामान एकत्र करने वाला 

👉 दुर्गपाल — दुर्ग-रक्षक

👉 अंतपाल — सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक

👉 कर्णक — लेखाकर/Modern Day Registrar 

👉 पौर — नगर का कोतवाल

The following Arthashastra is described in the book Arthashastra composed by Kautilya -

 Post ~ Meaning

👉 Minister — Prime minister

👉 Priest — Head of religion and charity

👉 Commander — Head of the military department 

👉 Prince — Descendent of royal family

👉 Dauvarika — State gate guard 

👉 Antarvaidika — Palace attendent

👉 Chief Collector — Collector of revenue 

👉 Sannidhata — State treasurer 

👉 Prashasta — Prison president 

👉 Pradeshtri — Commissioner 

👉 Vyaharika — Chief Justice 

👉 Nayaka — Head of city defense 

👉 Karmantik — President of industries and factories 

👉 Council of Ministers — Chair Person

👉 Dandpala — Military collector

👉 Durgpala — protector of Fortress

👉 Antpala — Guard of border fortifications

👉 Karnika — Modern Day Registrar (Mentioned in yerragudi inscription)

👉 Paur — Enforcement Officer of moral Conduct in City