1. मो सम कौन कुटिल खलकामी-सूरदास
2. माधव हम परिनाम निरासा-विद्यापति
3. भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो-सूरदास
4. खुल गए छंद के बंध-पंत
5. धुनि ग्रमे उत्पन्नो, दादू योगेंद्रा महामुनि-रज्जब
6. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी-रैदास
7. देखे मुख भावे अनदेखे कमल चंद
ताते मुख मुरझे कमला न चंद-केशवदास
8. केशव कहि न जाय का कहिए-तुलसीदास
9. पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो
जाको कछु लेना हो सो लेउ-विट्ठलनाथ
10. यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता-आचार्य शुक्ल
11. राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज
जगत
के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित पंत
12. निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिंदी में कोई नहीं है-हजारीप्रसाद द्विवेदी
13. छोड़ो मत यह सुख का कण है-जयशंकर प्रसाद
14. प्रयोगवाद बैठे-ठाले का धंधा है-नंददुलारे वाजपेयी
15. यदि इस्लाम न भी आया होता तो भी भक्ति साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा
आज-हजारीप्रसाद द्विवेदी
16. साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है-बालकृष्ण भट्ट
17. भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धेर्य लेकर आया
हो-हजारीप्रसाद द्विवेदी
18. मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं-प्रेमचंद
19. सूर अपनी आँखों से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए हैं-रामचंद्र शुक्ल
20. उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिंदी है-चंद्रधर शर्मा गुलेरी
21. यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पर धावनो है-बोधा
22. हरि हू राजनीति पढ़ि आए-सूरदास
23. इन मुसलमान जनन पर कोटिन हिंदू बारिह-भारतेंदु
24. तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है-हजारीप्रसाद द्विवेदी
25. काव्य आत्मा की संल्पनात्मक अनुभूति है-जयशंकर प्रसाद
26. सखा श्रीकृष्ण के गुलाम राधा रानी के–भारतेंदु
27. एक नार ने अचरज किया
साँप मार पिंजरे में दिया-खुसरो
28. देसिल बअना सब इन मिट्ठा
तै तैसन जपऔ अवहट्ठा-विद्यापति
29. जाहि मन पवन न संचरई
रवि ससि नहिं पवेस–सरहपा
30. अवधू रहिया हाटे वाटे रूप बिरष की छाया
तजिबा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया-गोरखनाथ
31. भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि म्हारा कंतु
लज्जेजं तु वयंसिअहू जइ मग्गा घरु संतु-हेमचंद्र
32. पुस्तक जल्हण हाथ दै चलि गज्जन नृप काज-चंदबरदाई
33. मनहु कला ससभान कला सोलह सो बन्निय-चंदबरदाई
34. बारह बरस लौं कूकर जिए, अरू तेरह लै जिए सियार
बरिस अठारह छबी जिए, आगे जीवन को धिक्कार-जगनिक
35. गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग-तुलसीदास (कवितावली से)
36. झिलमिल झगरा झूलते बाकी रही न काहु
गोरख अटके कालपुर कौन कहावै साहु-कबीर
37. दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना
राम नाम का मरम है आना-कबीर
38. अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम-मलूकदास
39. विक्रम धंसा प्रेम का बारा
सपनावती कहँ गयऊ पतारा-मंझन (मधुमालती से)
40. कब घर में बैठे रहैं, नाहिंन हाट बाजार
मधुमालती, मृगावती पोथी दोउ उचार-बनारसीदास जैन
41. बालचंद बिज्जावइ भाषा, नहिंन
दुहु नहिं लग्गई दुज्जन हासा-विद्यापति
42. यह सिर नवे न राम कू, नाहीं गिरियो टूट
आन देव नहिं परसिये, यह तन जायो छूट-चरनदास
43. मुझको क्या तू ढूँढ़े बंदे
मैं तो तेरे पास में कबीर
44. रुकमिनि पुनि वैसहि मरि गई
कुलवंती सत सो सति भई-कुतुबन
45. बलंदीप देखा अँगरेजा, तहाँ जाई जेहि कठिन करेजा-उसमान (चित्रावली से)
46. जानत है वह सिरजनहारा, जो किछु है मन मरम हमारा ।
हिंदू मग पर पाँव न राखेऊ, का जो बहुतै हिंदी भाखेऊ-नूरमुहम्मद
47. सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय
गोद लिए हुलसी फिरै तुलसी सो सुत होय-रहीम
48. मो मन गिरिधर छवि पै अटक्यो
ललित त्रिभंग चाल पै चलि के, चिबुक चारु गड़ि ठटक्यो–कृष्णदास
49. कहा करौ बैकुंठहिं जाय
जहाँ नहिं नंद, जहाँ न जसोदा, नहिं जहँ गोपी, ग्वाल न गाय-परमानंद दास
50. संतन को कहा सीकरी सों काम
आवत जात पनहियाँ टूटी बिसरि गयो हरि नाम–कुंभनदास
51. जाके प्रिय न राम वैदेही
सो नर तजिए कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही–तुलसीदास (विनयपत्रिका से)
52. बसो मेरे नैनन में नंदलाल
मोहनि मूरत, साँवरि सूरत,
नैना बने रसाल-मीराबाई
53. जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत
भूषण बिनु न विराजई कविता बनिता मित्त-केशवदास
54. लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल-होलराय
55. आँखिन पँदिबे के मिस आनि
अचानक पीठि उरोज लगावै-मतिराम
56. कुंदन को रंग फीको लगे–मतिराम
57. अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा लीन
अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन--देव
58. अमिय, हलाहल, मदभरे, सेत, स्याम, रतनार - रसलीन
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