संस्कृत व्याकरण को माहेश्वर शास्त्र कहा जाता है।
माहेश्वर का अर्थ है-- शिव जी
माहेश्वर का अर्थ है-- शिव जी
माहेश्वर सूत्र की संख्या --- 14
संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के होते है---
1= स्वर
2= व्यञ्जन।
1= स्वर
2= व्यञ्जन।
संस्कृत में स्वर--: (अच्) तीन प्रकार के होते है-----:
1=■ ह्रस्व स्वर ( पाँच)--- इसमें एक मात्रा का समय लगता है। अ , इ , उ , ऋ , लृ
1=■ ह्रस्व स्वर ( पाँच)--- इसमें एक मात्रा का समय लगता है। अ , इ , उ , ऋ , लृ
2=■ दीर्घ स्वर (आठ)---: इसमें दो मात्रा ईआ समय लगता है। आ , ई , ऊ , ऋ , ए ,ऐ ,ओ , औ
3= ■ प्लुत स्वर --: इसमे तीन मात्रा का समय लगता है।
जैसे--- हे राम३, ओ३म।
जैसे--- हे राम३, ओ३म।
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सस्कृत में व्यञ्जन (हल् ) ----:
व्यञ्जन चार प्रकार के होते है----
1= स्पर्श व्यञ्जन --: क से म तक = 25 वर्ण
2= अन्तःस्थ व्यञ्जन ---: य , र , ल , व= 4 वर्ण
3= ऊष्म व्यञ्जन --: श , ष , स , ह = 4 वर्ण
4= संयुक्त व्यञ्जन --: क्ष , त्र , ज्ञ = 3 वर्ण
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
व्यञ्जन चार प्रकार के होते है----
1= स्पर्श व्यञ्जन --: क से म तक = 25 वर्ण
2= अन्तःस्थ व्यञ्जन ---: य , र , ल , व= 4 वर्ण
3= ऊष्म व्यञ्जन --: श , ष , स , ह = 4 वर्ण
4= संयुक्त व्यञ्जन --: क्ष , त्र , ज्ञ = 3 वर्ण
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
प्रत्याहारों की संख्या = 42
● अक् प्रत्याहार---: अ इ उ ऋ लृ ।
● अच् प्रत्याहार ---:अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● अट् प्रत्याहार ---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ।
● अण् प्रत्याहार---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल् ।
● इक् प्रत्याहार----: इ उ ऋ लृ ।
● इच् प्रत्याहार ----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● इण् प्रत्याहार-----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल् ।
● उक् प्रत्याहार ----: उ ऋ लृ ।
● एड़् प्रत्याहार ----: ए ओ ।
● एच् प्रत्याहार ----- : ए ओ ऐ औ ।
● ऐच् प्रत्याहार ----- ऐ औ ।
● जश् प्रत्याहार --- : ज् ब् ग् ड् द् ।
● यण् प्रत्याहार ---': य् व् र् ल् ।
● शर् प्रत्याहार -----: श् ष् स् ।
● शल् प्रत्याहार ---- : श् ष् स् ह् ।
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
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● अक् प्रत्याहार---: अ इ उ ऋ लृ ।
● अच् प्रत्याहार ---:अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● अट् प्रत्याहार ---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ।
● अण् प्रत्याहार---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल् ।
● इक् प्रत्याहार----: इ उ ऋ लृ ।
● इच् प्रत्याहार ----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● इण् प्रत्याहार-----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल् ।
● उक् प्रत्याहार ----: उ ऋ लृ ।
● एड़् प्रत्याहार ----: ए ओ ।
● एच् प्रत्याहार ----- : ए ओ ऐ औ ।
● ऐच् प्रत्याहार ----- ऐ औ ।
● जश् प्रत्याहार --- : ज् ब् ग् ड् द् ।
● यण् प्रत्याहार ---': य् व् र् ल् ।
● शर् प्रत्याहार -----: श् ष् स् ।
● शल् प्रत्याहार ---- : श् ष् स् ह् ।
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प्रयत्न---:
" वर्णों के उच्चारण करने की चेष्टा को ' प्रयत्न ' कहते है।
प्रयत्न दो प्रकार के होते है---:
1= आभ्यान्तर प्रयत्न
2= बाह्य प्रयत्न
■ आभ्यान्तर प्रयत्न----:
आभ्यान्तर प्रयत्न पाँच प्रकार के होते है----:
☆ 1= स्पृष्ट ( स्पर्श )-----: क से म तक के वर्ण ।
☆ 2= ईषत् -- स्पृष्ट -----: य ,र , ल , व ।
☆ 3= ईषत् -- विवृत ------: श , ष , स , ह ।
☆ 4= विवृत ----: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
☆ 5= संवृत----: " इसमें वायु का मार्ग बन्द रहता है । प्रयोग करने में ह्रस्व " अ " का प्रयत्न संवृत होता है किन्तु शास्त्रीय प्रक्रिया में " अ " का प्रयत्न विवृत होता है।
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
" वर्णों के उच्चारण करने की चेष्टा को ' प्रयत्न ' कहते है।
प्रयत्न दो प्रकार के होते है---:
1= आभ्यान्तर प्रयत्न
2= बाह्य प्रयत्न
■ आभ्यान्तर प्रयत्न----:
आभ्यान्तर प्रयत्न पाँच प्रकार के होते है----:
☆ 1= स्पृष्ट ( स्पर्श )-----: क से म तक के वर्ण ।
☆ 2= ईषत् -- स्पृष्ट -----: य ,र , ल , व ।
☆ 3= ईषत् -- विवृत ------: श , ष , स , ह ।
☆ 4= विवृत ----: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
☆ 5= संवृत----: " इसमें वायु का मार्ग बन्द रहता है । प्रयोग करने में ह्रस्व " अ " का प्रयत्न संवृत होता है किन्तु शास्त्रीय प्रक्रिया में " अ " का प्रयत्न विवृत होता है।
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
बाह्य प्रयत्न ------:
उच्चारण की उस चेष्टा को " बाह्य प्रयत्न " कहते है ; जो मुख से वर्ण निकलते समय होती है।
बाह्य प्रयत्न -- 11 प्रकार के होते है।
(1=विवार 2= संवार 3= श्वास 4= नाद 5= घोष 6=:अघोष 7= अल्पप्राण 8= महाप्राण 9= उदात्त 10= अनुदात्त 11= त्वरित )
विषय --- संस्कृत
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
उच्चारण की उस चेष्टा को " बाह्य प्रयत्न " कहते है ; जो मुख से वर्ण निकलते समय होती है।
बाह्य प्रयत्न -- 11 प्रकार के होते है।
(1=विवार 2= संवार 3= श्वास 4= नाद 5= घोष 6=:अघोष 7= अल्पप्राण 8= महाप्राण 9= उदात्त 10= अनुदात्त 11= त्वरित )
विषय --- संस्कृत
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
सन्धि --:
सन्धि का अर्थ है -- जोड़ अथवा मेल । दो शब्दों के मिलने से जो वर्ण संबन्धी परिवर्तन होता है, उसे सन्धि कहते है।
सन्धि के प्रकार ----:
सन्धि तीन प्रकार के होते है---
1= स्वर सन्धि
2= व्यञ्जन सन्धि
3= विसर्ग सन्धि
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
सन्धि के प्रकार ----:
सन्धि तीन प्रकार के होते है---
1= स्वर सन्धि
2= व्यञ्जन सन्धि
3= विसर्ग सन्धि
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
स्वर सन्धि-----:
" जब पहले शब्द का अन्तिम स्वर दूसरे शब्द के आदि ( पहले) स्वर से मिलता है , तो इसे *स्वर सन्धि* कहते है।
जैसे--- विद्या + आलय = विद्यालय
(आ + आ = आ)
स्वर सन्धि के पाँच भेद है----
1= दीर्घ सन्धि ( अकः सवर्णे दीर्घः )
2= गुण सन्धि ( आदगुणः )
3= वृद्धि सन्धि ( वृद्धिरेचि )
4= यण् सन्धि ( इकोयणचि )
5= अयादि सन्धि ( एचोयवायावः )
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
" जब पहले शब्द का अन्तिम स्वर दूसरे शब्द के आदि ( पहले) स्वर से मिलता है , तो इसे *स्वर सन्धि* कहते है।
जैसे--- विद्या + आलय = विद्यालय
(आ + आ = आ)
स्वर सन्धि के पाँच भेद है----
1= दीर्घ सन्धि ( अकः सवर्णे दीर्घः )
2= गुण सन्धि ( आदगुणः )
3= वृद्धि सन्धि ( वृद्धिरेचि )
4= यण् सन्धि ( इकोयणचि )
5= अयादि सन्धि ( एचोयवायावः )
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
१= दीर्घ सन्धि --( अकः सवर्णे दीर्घः)
*पहचान* ---: ☆ इस सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है।
☆ दोनो के योग से आ , ई , ऊ , ऋ की मात्रा बीच में बनती है तो दीर्घ सन्धि होता है
*उदाहरण*---:
● विद्या + आलयः = विद्यालयः
आ + आ = 'आ '
●कवि + ईशः = कवीशः
इ + ई = ' ई '
● लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः
उ + ऊ = ' ऊ '
● पितृ + ऋणम् = पितृणम्
ऋ + ऋ = ' ऋ '
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
*पहचान* ---: ☆ इस सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है।
☆ दोनो के योग से आ , ई , ऊ , ऋ की मात्रा बीच में बनती है तो दीर्घ सन्धि होता है
*उदाहरण*---:
● विद्या + आलयः = विद्यालयः
आ + आ = 'आ '
●कवि + ईशः = कवीशः
इ + ई = ' ई '
● लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः
उ + ऊ = ' ऊ '
● पितृ + ऋणम् = पितृणम्
ऋ + ऋ = ' ऋ '
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
२= गुण सन्धि ( आदगुणः )
पहचान -----:☆ इस सन्धि में विच्छेद करने पर पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है।
☆ दोनों के योग से ए ओ अर् की मात्रा बीच मे बनती है जिससे गुण सन्धि होता है।
उदाहरण---
● देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
अ + इ = ए
● गंगा + ऊर्मिः = गंगोर्मिः
आ +ऊ = ओ
● महा +ऋषिः = महर्षिः
आ + ऋ= अर्
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पहचान -----:☆ इस सन्धि में विच्छेद करने पर पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है।
☆ दोनों के योग से ए ओ अर् की मात्रा बीच मे बनती है जिससे गुण सन्धि होता है।
उदाहरण---
● देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
अ + इ = ए
● गंगा + ऊर्मिः = गंगोर्मिः
आ +ऊ = ओ
● महा +ऋषिः = महर्षिः
आ + ऋ= अर्
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३= वृद्धि सन्धि ( वृद्धिरेचि )---:
☆ पहचान --- : इस सन्धि में विच्छेद करने पर सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है ।
☆ दोनों के योग से *ऐ तथा औ* की मात्रा बीच में बनती है जिससे वृद्धि सन्धि होता है।
उदाहरण---:
■ मत+ ऐक्य = मतैक्य
अ + ऐ = ऐ
■ सदा+ एव = सदैव
आ + ए= ऐ
■ जल+ओघः = जलौघः
अ+ओ =औ
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
☆ पहचान --- : इस सन्धि में विच्छेद करने पर सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है ।
☆ दोनों के योग से *ऐ तथा औ* की मात्रा बीच में बनती है जिससे वृद्धि सन्धि होता है।
उदाहरण---:
■ मत+ ऐक्य = मतैक्य
अ + ऐ = ऐ
■ सदा+ एव = सदैव
आ + ए= ऐ
■ जल+ओघः = जलौघः
अ+ओ =औ
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४= यण सन्धि ( इकोयणचि )
पहचान ----:
☆ इस सन्धि में विच्छेद करने पर सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनों ही स्वर होते है।
☆ दोनों के योग से य , या , यृ , यु , तथा व , वा , वृ , एवं र् , रा , रृ आदि की मात्रा बीच में बनती है जिससे यण सन्धि होता है।
उदाहरण---:
■ अति + आचारः = अत्याचारः
इ + आ = या
■ अति + उक्ति= अत्युक्ति
इ + उ =यु
■ सु + आगतम् = स्वागतम्
उ + आ = वा
■ मधु + ऋते = मध्वृते
उ + ऋ = वृ
■ मातृ+ आनंदः = मात्रानंदः
ऋ+आ = रा
■ लृ+ आकृतिः = लाकृतिः
ऋ+ आ = ऋ
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
पहचान ----:
☆ इस सन्धि में विच्छेद करने पर सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनों ही स्वर होते है।
☆ दोनों के योग से य , या , यृ , यु , तथा व , वा , वृ , एवं र् , रा , रृ आदि की मात्रा बीच में बनती है जिससे यण सन्धि होता है।
उदाहरण---:
■ अति + आचारः = अत्याचारः
इ + आ = या
■ अति + उक्ति= अत्युक्ति
इ + उ =यु
■ सु + आगतम् = स्वागतम्
उ + आ = वा
■ मधु + ऋते = मध्वृते
उ + ऋ = वृ
■ मातृ+ आनंदः = मात्रानंदः
ऋ+आ = रा
■ लृ+ आकृतिः = लाकृतिः
ऋ+ आ = ऋ
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५= अयादि सन्धि (एचोअयवायावः)----:
पहचान---:
☆ इस सन्धि में विच्छेद करने पर सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनों ही स्वर होता है।
☆ दोनों के योग से सन्धि के बीच में अय् , आय् , आयु,अव् ,अवा, अवे , आव् , अवि , आवु मात्रा बनती है जिससे अयादि सन्धि होती है।
उदाहरण ----:
● ने+ अनम् = नयनम्
ए+अ =अय्
● नै+ अकः = नायकः
ऐ+अ =आय्
● विनै +अकः= विनायकः
ऐ+अ =आय्
● पो+ अन्= पवन्
ओ+अ =अव्
● पौ+ अकः= पावकः
औ+ अ = आव्
● नौ+इकः= नाविकः
औ+ इ= आवि
● सखे+ आगच्छः= सखयागच्छः
ए+ आ = अया
● स्व+ईरिणी= स्वैरिणी
अ+ इ = अवै
● बिम्ब + ओष्ठ: = बिम्बौष्ठ:
अ+ ओ = अवौ
● गो+ इन्द्रः = गवेन्द्रः
ओ+ इ = अवे
● गो+ अक्षः = गवाक्षः
ओ+ अ = अवा
पहचान---:
☆ इस सन्धि में विच्छेद करने पर सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनों ही स्वर होता है।
☆ दोनों के योग से सन्धि के बीच में अय् , आय् , आयु,अव् ,अवा, अवे , आव् , अवि , आवु मात्रा बनती है जिससे अयादि सन्धि होती है।
उदाहरण ----:
● ने+ अनम् = नयनम्
ए+अ =अय्
● नै+ अकः = नायकः
ऐ+अ =आय्
● विनै +अकः= विनायकः
ऐ+अ =आय्
● पो+ अन्= पवन्
ओ+अ =अव्
● पौ+ अकः= पावकः
औ+ अ = आव्
● नौ+इकः= नाविकः
औ+ इ= आवि
● सखे+ आगच्छः= सखयागच्छः
ए+ आ = अया
● स्व+ईरिणी= स्वैरिणी
अ+ इ = अवै
● बिम्ब + ओष्ठ: = बिम्बौष्ठ:
अ+ ओ = अवौ
● गो+ इन्द्रः = गवेन्द्रः
ओ+ इ = अवे
● गो+ अक्षः = गवाक्षः
ओ+ अ = अवा
2= व्यञ्जन सन्धि ( हल् सन्धि)*--- :
" व्यञ्जन सन्धि में पहले पद का अन्तिम अक्षर स्वर तथा दूसरे पद का पहला अक्षर व्यञ्जन एवं पहले पद का अन्तिम अक्षर व्यञ्जन तथा दूसरे पद का पहला अक्षर स्वर का योग होने से व्यञ्जन सन्धि होता है।"
१--: स्तोः श्चुनाश्चुः ---- :
पहले पद का अन्तिम व्यञ्जन अक्षर त् थ् द् ध् न् का क्रमशः सन्धि योग होने पर च् छ् ज् झ् ञ् हो जाता है।
उदाहरण--
■ भवत् + चरणम् = भवच्चरणम्
( त् + च् = च्च )
उपरोक्त सूत्रों के अनुसारयहाँ त् का क्रमशः च् योग होगा।
■ उत् + ज्वलः = उज्ज्वलः
त् + ज् = ज्ज्
■ उद्यन् + झंकारः = उद्यञ्झंकारः
न् + झ्= ञ्
■ तद् + शरीरम् = तच्छरीरम्
द् +श्= छ्
■ महान्+ शब्दः= महाञ्शब्दः
न्+ श् = ञ्
■ तत् + हितम् = तद्धि तम्
पहले पद के अन्तिम अक्षर त् का तीसरा अक्षर द् हो जाता है ।
■ यज् + नः = यज्ञः
पहले पद के अन्तिम अक्षर ज् का तीसरा अक्षर ञ् हो जाता है।
■ राज् + नी = राज्ञी
ज् + नी = ज्ञी
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
२---: स्तोः ष्टुनाष्टुः --- :
उपरोक्त सन्धि में त् का ट्ट , न् का ण् हो जाता है।
☆ उदाहरण---- :
■ तत् + टीका = तट्टीका
त् + ट्= ट्ट
■ उत् + डीनः = उड्डीनः ( ट का तीसरा अक्षर ड)
त् +ड् = ड्ड ( ट का तीसरा अक्षर ड)
■ महान् + डामरः = महाण्डामरः
न् + ड् = ण् ( ट का पंचम अक्षर)
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
३-- : तथौ टठौ षकारात् ----- :
उदाहरण ---
■ आकृष् + तः = आकृष्टः ( *त से ट हो जाता है।*)
ष् + तः = ष्टः
■ षष् + थः = षष्ठः ( *थ का ठ हो जाता है।*)
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
४---: ले लस्त वर्गस्य --- :
उदाहरण--:
■ उत् + लेखः = उल्लेखः ( *यहँ त् का ल् हो जाता है।*)
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
५---: न् के योग से न्न् होना --- :
उदाहरण---:
■ हसन् + आगतः = हसनागतः
■ महान् + छेदः = महांश्छेदः
■ उद्यन् + टंकार = उद्यंष्टकारः
■ महान् + तडागः = महांस्तडागः
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
६--- : म् के योग से अं की मात्रा होना----- :
उदाहरण--- :
■ सम् + कल्पः = संकल्पः
■ सम् + सारः = संसारः
■ सम् +चारः = संचारः
■ किम् + करोषि = किंकरोषि
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
७--- : *अन्य उदाहरण*---:
■ वाक् + ईशः = वागीशः ( *क् का तीसरा अक्षर ग् हो जाता है*)
■ दिक् + गजः = दिग्गजः ( क् का तीसरा अक्षर ग् हो जाता हो )
■ जगत् + ईशः = जगदीशः ( त् का तीसरा अक्षर द् हो जाता है )
■ *दिक् + नागः = दिड़्नागः*
(क् का पंचम वर्ण ड़् हो जाता है। )
■ *जगत् + नाथः = जगन्नाथः*
( त् का पंचम वर्ण न् हो जाता है। )
■ *अच् + मात्रम् = अञ्चमात्रम्*
( यहाँ च् का अन्तिम वर्ण ञ् हो जाता है )
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
" व्यञ्जन सन्धि में पहले पद का अन्तिम अक्षर स्वर तथा दूसरे पद का पहला अक्षर व्यञ्जन एवं पहले पद का अन्तिम अक्षर व्यञ्जन तथा दूसरे पद का पहला अक्षर स्वर का योग होने से व्यञ्जन सन्धि होता है।"
१--: स्तोः श्चुनाश्चुः ---- :
पहले पद का अन्तिम व्यञ्जन अक्षर त् थ् द् ध् न् का क्रमशः सन्धि योग होने पर च् छ् ज् झ् ञ् हो जाता है।
उदाहरण--
■ भवत् + चरणम् = भवच्चरणम्
( त् + च् = च्च )
उपरोक्त सूत्रों के अनुसारयहाँ त् का क्रमशः च् योग होगा।
■ उत् + ज्वलः = उज्ज्वलः
त् + ज् = ज्ज्
■ उद्यन् + झंकारः = उद्यञ्झंकारः
न् + झ्= ञ्
■ तद् + शरीरम् = तच्छरीरम्
द् +श्= छ्
■ महान्+ शब्दः= महाञ्शब्दः
न्+ श् = ञ्
■ तत् + हितम् = तद्धि तम्
पहले पद के अन्तिम अक्षर त् का तीसरा अक्षर द् हो जाता है ।
■ यज् + नः = यज्ञः
पहले पद के अन्तिम अक्षर ज् का तीसरा अक्षर ञ् हो जाता है।
■ राज् + नी = राज्ञी
ज् + नी = ज्ञी
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२---: स्तोः ष्टुनाष्टुः --- :
उपरोक्त सन्धि में त् का ट्ट , न् का ण् हो जाता है।
☆ उदाहरण---- :
■ तत् + टीका = तट्टीका
त् + ट्= ट्ट
■ उत् + डीनः = उड्डीनः ( ट का तीसरा अक्षर ड)
त् +ड् = ड्ड ( ट का तीसरा अक्षर ड)
■ महान् + डामरः = महाण्डामरः
न् + ड् = ण् ( ट का पंचम अक्षर)
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३-- : तथौ टठौ षकारात् ----- :
उदाहरण ---
■ आकृष् + तः = आकृष्टः ( *त से ट हो जाता है।*)
ष् + तः = ष्टः
■ षष् + थः = षष्ठः ( *थ का ठ हो जाता है।*)
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४---: ले लस्त वर्गस्य --- :
उदाहरण--:
■ उत् + लेखः = उल्लेखः ( *यहँ त् का ल् हो जाता है।*)
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५---: न् के योग से न्न् होना --- :
उदाहरण---:
■ हसन् + आगतः = हसनागतः
■ महान् + छेदः = महांश्छेदः
■ उद्यन् + टंकार = उद्यंष्टकारः
■ महान् + तडागः = महांस्तडागः
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६--- : म् के योग से अं की मात्रा होना----- :
उदाहरण--- :
■ सम् + कल्पः = संकल्पः
■ सम् + सारः = संसारः
■ सम् +चारः = संचारः
■ किम् + करोषि = किंकरोषि
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७--- : *अन्य उदाहरण*---:
■ वाक् + ईशः = वागीशः ( *क् का तीसरा अक्षर ग् हो जाता है*)
■ दिक् + गजः = दिग्गजः ( क् का तीसरा अक्षर ग् हो जाता हो )
■ जगत् + ईशः = जगदीशः ( त् का तीसरा अक्षर द् हो जाता है )
■ *दिक् + नागः = दिड़्नागः*
(क् का पंचम वर्ण ड़् हो जाता है। )
■ *जगत् + नाथः = जगन्नाथः*
( त् का पंचम वर्ण न् हो जाता है। )
■ *अच् + मात्रम् = अञ्चमात्रम्*
( यहाँ च् का अन्तिम वर्ण ञ् हो जाता है )
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3= विसर्ग सन्धि --- :
" विसर्ग के साथ किसी स्वर या व्यञ्जन के मिलने से परिवर्तन होता है , उसे *विसर्ग सन्धि* कहते है ।"
जैसे-- रामः + चलति =:रामश्चलति
( श्तो:श्चुनाश्चु: सूत्र )
अः और च् के योग से श् का होना ।
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" विसर्ग के साथ किसी स्वर या व्यञ्जन के मिलने से परिवर्तन होता है , उसे *विसर्ग सन्धि* कहते है ।"
जैसे-- रामः + चलति =:रामश्चलति
( श्तो:श्चुनाश्चु: सूत्र )
अः और च् के योग से श् का होना ।
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१--- : खरवसानयोर्विसर्जनीयस्य:--- ---:
( र् के विसर्जन से * *अः* की मात्रा का होना )
उदाहरण--:
■ पुनर् + खादति = पुनः खादति
२--: ससजुषोः रुः ---
( अः के योग से *र* का होना )
☆उदाहरण--- :
■ पुनः + आगतः = पुनरागतः
३--- : विसर्जनीयस्यः सः --:
( *अः* की मात्रा के विसर्जन से *स्* का होना )
☆उदाहरण--:
■ *भाः + करः = भास्करः*
४---: श्तोःश्चुनाश्चुः ----
( अः के योग से श् का होना )
☆ उदाहरण--- :
■ रामः + शेते = रामश्शेते
५---: ष्टुनाष्टुः -----
( अः के योग से ष् का होना )
☆ उदाहरण--- :
■ धनुः + टंकारः = धनुष्टंकारः
६---: अतोरोरप्लुतादप्लुते -- :
( अः के मात्रा के योग से "प्लुत३" का होना )
☆उदाहरण-- :
■ रामः + अपि = रमोअपि
७--- : सर्पः + सर्पति = सर्पस्सर्पति
( *अः की मात्रा के योग से "स् " का होना*)
८--: अः की मात्रा के योग से ओ की मात्रा का होना
■ नरः + अयम् = नरोअयम्
■ सद्यः + जातः = सद्योजातः
■ कृतः + लोभः = कृतोलोभः
■ मनः +रथः = मनोरथः
९--: अः की मात्रा के योग से ई की मात्रा का होना -
■ निः + रसः = नीरसः
■ निः + रोगः = नीरोगः
१०---- : अः की मात्रा के योग से ष् का होना --:
■ निः + कुलम् = निष्कुलम्
■ दुः + करम् = दुष्करम्
■ बहिः + कृतः = बहिष्कृतः
■ आविः + कृतः = आविष्कृतः
११-- : अः की मात्रा के योग से स् का होना --- :
■ नमः + कारः = नमस्कारः
■ पुरः + कारः = पुरस्कारः
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( र् के विसर्जन से * *अः* की मात्रा का होना )
उदाहरण--:
■ पुनर् + खादति = पुनः खादति
२--: ससजुषोः रुः ---
( अः के योग से *र* का होना )
☆उदाहरण--- :
■ पुनः + आगतः = पुनरागतः
३--- : विसर्जनीयस्यः सः --:
( *अः* की मात्रा के विसर्जन से *स्* का होना )
☆उदाहरण--:
■ *भाः + करः = भास्करः*
४---: श्तोःश्चुनाश्चुः ----
( अः के योग से श् का होना )
☆ उदाहरण--- :
■ रामः + शेते = रामश्शेते
५---: ष्टुनाष्टुः -----
( अः के योग से ष् का होना )
☆ उदाहरण--- :
■ धनुः + टंकारः = धनुष्टंकारः
६---: अतोरोरप्लुतादप्लुते -- :
( अः के मात्रा के योग से "प्लुत३" का होना )
☆उदाहरण-- :
■ रामः + अपि = रमोअपि
७--- : सर्पः + सर्पति = सर्पस्सर्पति
( *अः की मात्रा के योग से "स् " का होना*)
८--: अः की मात्रा के योग से ओ की मात्रा का होना
■ नरः + अयम् = नरोअयम्
■ सद्यः + जातः = सद्योजातः
■ कृतः + लोभः = कृतोलोभः
■ मनः +रथः = मनोरथः
९--: अः की मात्रा के योग से ई की मात्रा का होना -
■ निः + रसः = नीरसः
■ निः + रोगः = नीरोगः
१०---- : अः की मात्रा के योग से ष् का होना --:
■ निः + कुलम् = निष्कुलम्
■ दुः + करम् = दुष्करम्
■ बहिः + कृतः = बहिष्कृतः
■ आविः + कृतः = आविष्कृतः
११-- : अः की मात्रा के योग से स् का होना --- :
■ नमः + कारः = नमस्कारः
■ पुरः + कारः = पुरस्कारः
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