सभी स्कूल जाने वाले बच्चों के पेरेंट्स के लिए।।।।
आपके एक या दो बच्चे हैं और कभी कभार आप उनकी शरारतों पर झल्ला कर उन पर हाथ उठा देते है तो ज़रा सोचिएगा कि एक शिक्षक इतने सारे बच्चों को कैसे संभालता है...
आप खुद tv या mobile में व्यस्त हैं। आपका बच्चा आपके पास आता है। आप उस अधखिले फूल को झिड़क देते है-- "जाओ भागो पढ़ाई करो।" ज़रा मन को शांत करके विचारियेगा कि एक टीचर किस तरह अलग-अलग बुद्धि वाले और अलग अलग अभिरुचि वाले बच्चों को 45 मिनट तक एक सूत्र में बाँध के रखता है।
आपका बच्चा दिनभर गेम खेलता है, घर पर पढ़ता नही है। इसकी भी शिकायत आप टीचर से करते हैं--- "क्या करें, हमारा मुन्ना तो हमारी बात ही नही सुनता। ज़रा डराइये इसे।"
(अरे भाई बच्चे को डराना है तो उसे किसी बाघ के सामने ले जाओ।)
आप "गुरु ब्रह्मा" टाइप की बातें रटते है पर कुछ पेरेंट्स भगवान तो छोड़िए, टीचर को इंसान तक नही मानते। वे ये मानने को तैयार ही नही कि टीचर का व्यक्तिगत जीवन भी है, उसकी भावनाएं भी है, उसकी लिमिटेशंस भी हैं।
आप कहते है कि बच्चे को डांट-डपट के रखिये। सरकार कहती है कि किसी बच्चे को मारना तो दूर, अगर गधा-उल्लू-पाज़ी भी कहा तो मास्टरजी की मास्टरी भुलवा दी जाएगी।
अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह शिक्षक सिर्फ एक वेतन-भोगी नही होता। इसमें सिर्फ सेवा का आदान प्रदान नही होता छात्र-शिक्षक के बीच तमाम मानवीय मूल्यों का भी लेन-देन होता है।
आप अपने छोटे-मोटे काम कराने के लिए सरकारी कर्मचारियों के आगे हाथ जोड़ते है, पैर पकड़ते है। लेकिन टीचर जो कि आपकी सन्तान को शिक्षा दे रहा है, उसकी एक गलती आपसे बर्दाश्त नही होती।
आप का बच्चा, वो बच्चा जिसके लिए आपने मंदिरों और अस्पतालों के जाने कितने चक्कर काटे होंगे, अगर एक ही चीज़ 3-4 बार पूछ लें तो आपके शरीर का तापमान बढ़ जाता है। अब जरा सोचिये कि टीचर किस धैर्य के साथ बताता है कि 3+1 और 1+3 दोनों बराबर होते है भले ही ये एक दूसरे के विपरीत नज़र आते हैं।
अगर वास्तव में बात समझ में आ गयी हो तो आप से हाथ जोड़ कर विनती है कि हर टीचर को भगवान ना सही कम से कम इंसान समझ कर उतना सम्मान अवश्य दें जो एक इंसान को मिलना चाहिए।।
सभी शिक्षक बंधुओ को समर्पित एवं सभी सम्मानित अविभावकों को चिंतन करने हेतु प्रेषित।
आपके एक या दो बच्चे हैं और कभी कभार आप उनकी शरारतों पर झल्ला कर उन पर हाथ उठा देते है तो ज़रा सोचिएगा कि एक शिक्षक इतने सारे बच्चों को कैसे संभालता है...
आप खुद tv या mobile में व्यस्त हैं। आपका बच्चा आपके पास आता है। आप उस अधखिले फूल को झिड़क देते है-- "जाओ भागो पढ़ाई करो।" ज़रा मन को शांत करके विचारियेगा कि एक टीचर किस तरह अलग-अलग बुद्धि वाले और अलग अलग अभिरुचि वाले बच्चों को 45 मिनट तक एक सूत्र में बाँध के रखता है।
आपका बच्चा दिनभर गेम खेलता है, घर पर पढ़ता नही है। इसकी भी शिकायत आप टीचर से करते हैं--- "क्या करें, हमारा मुन्ना तो हमारी बात ही नही सुनता। ज़रा डराइये इसे।"
(अरे भाई बच्चे को डराना है तो उसे किसी बाघ के सामने ले जाओ।)
आप "गुरु ब्रह्मा" टाइप की बातें रटते है पर कुछ पेरेंट्स भगवान तो छोड़िए, टीचर को इंसान तक नही मानते। वे ये मानने को तैयार ही नही कि टीचर का व्यक्तिगत जीवन भी है, उसकी भावनाएं भी है, उसकी लिमिटेशंस भी हैं।
आप कहते है कि बच्चे को डांट-डपट के रखिये। सरकार कहती है कि किसी बच्चे को मारना तो दूर, अगर गधा-उल्लू-पाज़ी भी कहा तो मास्टरजी की मास्टरी भुलवा दी जाएगी।
अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह शिक्षक सिर्फ एक वेतन-भोगी नही होता। इसमें सिर्फ सेवा का आदान प्रदान नही होता छात्र-शिक्षक के बीच तमाम मानवीय मूल्यों का भी लेन-देन होता है।
आप अपने छोटे-मोटे काम कराने के लिए सरकारी कर्मचारियों के आगे हाथ जोड़ते है, पैर पकड़ते है। लेकिन टीचर जो कि आपकी सन्तान को शिक्षा दे रहा है, उसकी एक गलती आपसे बर्दाश्त नही होती।
आप का बच्चा, वो बच्चा जिसके लिए आपने मंदिरों और अस्पतालों के जाने कितने चक्कर काटे होंगे, अगर एक ही चीज़ 3-4 बार पूछ लें तो आपके शरीर का तापमान बढ़ जाता है। अब जरा सोचिये कि टीचर किस धैर्य के साथ बताता है कि 3+1 और 1+3 दोनों बराबर होते है भले ही ये एक दूसरे के विपरीत नज़र आते हैं।
अगर वास्तव में बात समझ में आ गयी हो तो आप से हाथ जोड़ कर विनती है कि हर टीचर को भगवान ना सही कम से कम इंसान समझ कर उतना सम्मान अवश्य दें जो एक इंसान को मिलना चाहिए।।
सभी शिक्षक बंधुओ को समर्पित एवं सभी सम्मानित अविभावकों को चिंतन करने हेतु प्रेषित।
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