श्रद्धांजलि_पर्रिकर_सर
"पिछले साल इसी मार्च में एक मार्मिक पत्र वाइरल हुआ था, दावा किया गया था कि वह पत्र पैंक्रिएटिक कैंसर से जूझ रहे मनोहर पर्रिकर जी ने हॉस्पिटल से लिखा था। बाद में ये भी दावा किया गया कि ऐक्चुअली वो पत्र पैंक्रिएटिक कैंसर ही जूझ रहे स्टीव जाब्स ने कभी लिखा था।सच्चाई कुछ भी रही हो, उस पत्र के एक-एक शब्द में जीवन की बहुत बड़ी सच्चाई छुपी हुई थी। आज पर्रिकर जी के निधन से वह पत्र पुन: एक बार आँखों के आगे नाच रहा है और पर्रिकर साहब को अपने हर शब्द से श्रद्धांजलि दे रहा है: (शेयर कर रहा हूँ)
"मैंने राजनैतिक क्षेत्र में सफलता के अनेक शिखरों को छुआ।
दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे। फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ। आखिर क्यो?
तो जिस राजनीतिक अवस्था में जिसमें मैं आदतन रम रहा था, आदी हो गया था। वही मेरे जीवन की हक़ीक़त बन कर रह गई है। इस समय जब मैं बीमारी के कारण बिस्तर पर सिमटा हुआ हूं, मेरा अतीत मेरे स्मृतिपटल पर तैर रहा है। जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा, आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है। साथ ही उसकी निरर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूँ।
आज जब मृत्यु पल पल मेरे निकट आ रही है, मेरे आस पास चारों तरफ हरे प्रकाश से टिमटिमाते जीवन ज्योति बढ़ाने वाले अनेक मेडिकल उपकरण देख रहा हूँ । उन यंत्रों से निकलती ध्वनियां भी सुन रहा हूं । इसके साथ साथ अपने आगोश में लपेटने के लिए निकट आ रही मृत्यु की पदचाप भी स्पष्ट सुनाई दे रही है ।
अब ध्यान में आ रहा है कि भविष्य के लिए आवश्यक पूंजी जमा होने के पश्चात दौलत संपत्ति से जो अधिक महत्वपूर्ण है वो करना चाहिए। वो शायद रिश्ते नाते संभालना सहेजना या समाजसेवा करना भी हो सकता है।
निरंतर केवल राजनीति के पीछे भागते रहने से व्यक्ति अंदर से सिर्फ और सिर्फ पिसता जाता है । खोखला बनता जाता है । बिल्कुल मेरी तरह।
उम्र भर मैंने जो संपत्ति और राजनैतिक मान सम्मान कमाया वो मैं कदापि साथ नहीं ले जा सकूंगा ।
दुनिया का सबसे महंगा बिछौना कौन सा है, पता है ? “बीमारी का बिछौना” ।
गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर रख सकते हैं । पैसे कमा कर देने वाले मैनेजर रखे जा सकते हैं परंतु अपनी बीमारी को सहने के लिए हम दूसरे किसी अन्य को कभी नियुक्त नहीं कर सकते हैं।
खोई हुई वस्तु मिल सकती है । मगर एक ही चीज ऐसी है जो एक बार हाथ से छूटने के बाद किसी भी उपाय से वापस नहीं मिल सकती है। वो है अपना “आयुष्य” ,”काल”,”समय”।
ऑपरेशन टेबल पर लेटे व्यक्ति को एक बात जरूर ध्यान में आती है कि उससे केवल एक ही पुस्तक पढ़नी शेष रह गई थी और वो पुस्तक है “निरोगी जीवन जीने की पुस्तक” ।
फिलहाल आप जीवन की किसी भी स्थिति या उम्र के किसी भी दौर से गुजर रहे हों तो भी एक न एक दिन काल आपको भी एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगा कि सामने जीवन के इस नाटक का अंतिम भाग स्पष्ट दिखाई देने लगेगा।
स्वयं की उपेक्षा मत कीजिए । स्वयं ही स्वयं का आदर कीजिए । दूसरों के साथ भी प्रेमपूर्ण बर्ताव कीजिए :ल।
लोग मनुष्यों को इस्तेमाल ( use ) करना सीखते हैं और पैसा संभालना सीखते हैं। वास्तव में पैसा इस्तेमाल करना सीखना चाहिए व मनुष्यों को संभालना सीखना चाहिए ।अपने जीवन की शुरुआत हमारे रोने से होती है और जीवन का समापन दूसरो के रोने से होता है।इन दोनों के बीच में जीवन का जो भाग है वह भरपूर हंस कर बिताएं और उसके लिए सदैव आनंदित रहिए व औरों को भी आनंदित रखिए ”
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