पञ्चाङ्ग (पंचांग) की उपयोगिता ।।
भारतीय पञ्चाङ्ग का आधार विक्रम संवत् है। जिसका सम्बन्ध राजा विक्रमादित्य के शासन काल से है। ये कैलेंडर विक्रमादित्य के शासनकाल में जारी हुआ था। इसी कारण इसे विक्रम संवत् के नाम से जाना जाता है।
पञ्चाङ्ग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं।
०१) तिथि (Tithi)
०२) वार (Day)
०३) नक्षत्र (Nakshatra)
०४) योग (Yog)
०५) करण (Karan)
०१) तिथि (Tithi)
०२) वार (Day)
०३) नक्षत्र (Nakshatra)
०४) योग (Yog)
०५) करण (Karan)
पञ्चाङ्ग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पञ्चाङ्ग का श्रवण करते थे ।
० शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
० वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
० नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
० योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
० करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति के लिए नित्य पञ्चाङ्ग को देखना और बोल कर पढ़ना चाहिए।
चन्द्रमा की एक कला को एक तिथि माना जाता है जो उन्नीस घंटे से 24 घंटे तक की होती है । अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियों को शुक्लपक्ष और पूर्णिमा से अमावस्या तक की तिथियों को कृष्ण पक्ष कहते हैं।
तिथियाँ इस प्रकार होती है।
**********************०१. प्रतिपदा,
०२. द्वितीय,
०३. तृतीया,
०४. चतुर्थी,
०५. पँचमी,
०६. षष्टी,
०७. सप्तमी,
०८. अष्टमी,
०९. नवमी,
१०. दशमी,
११. एकादशी,
१२. द्वादशी,
१३. त्रियोदशी,
१४. चतुर्दशी,
१५. पूर्णिमा एवं
३०. अमावस्या
तिथियों के प्रकार।
*************
०१ - ०६ - ११ ~~ नंदा,
०२ - ०७ - १२ ~~ भद्रा,
०३ - ०८ - १३ ~~ जया,
०४ - ०९ - १४ ~~ रिक्ता और
०५ - १० - १५ ~~ पूर्णा तथा
०४ - ०६ - ०८ - ०९ - १२ -१४ तिथियाँ पक्षरंध्र संज्ञक हैं ।
०१ - ०६ - ११ ~~ नंदा,
०२ - ०७ - १२ ~~ भद्रा,
०३ - ०८ - १३ ~~ जया,
०४ - ०९ - १४ ~~ रिक्ता और
०५ - १० - १५ ~~ पूर्णा तथा
०४ - ०६ - ०८ - ०९ - १२ -१४ तिथियाँ पक्षरंध्र संज्ञक हैं ।
मुख्य रूप से तिथियाँ ५ प्रकार की होती है ।
१. नन्दा तिथियाँ –
दोनों पक्षों की १, ६ और ११ तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी तिथियाँ नन्दा तिथि कहलाती हैं । इन तिथियों में अंतिम प्रथम घटी या अंतिम २४ मिनट को छोड़कर सभी मंगल कार्यों को करना शुभ माना जाता है ।
२. भद्रा तिथियाँ –
दोनों पक्षों की २, ७ और १२ तिथि अर्थात द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियाँ भद्रा तिथि कहलाती है । इन में कोई भी शुभ, मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है लेकिन यह तिथियाँ मुक़दमे, चुनाव, शल्य चिकित्सा सम्बन्धी कार्यो के लिए अच्छी मानी जाती है और व्रत, जाप, पूजा अर्चना एवं दान-पुण्य जैसे धार्मिक कार्यों के लिए यह शुभ मानी गयी हैं ।
३. जया तिथि –
दोनों पक्षों की ३, ८ और १३ तिथि अर्थात तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी तिथियाँ जया तिथि कहलाती है । यह तिथियाँ विद्या, कला जैसे गायन, वादन नृत्य आदि कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है ।
४. रिक्ता तिथि –
दोनों पक्षों की ४, ९ और १४ तिथि अर्थात चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथियाँ रिक्त तिथियाँ कहलाती है । तिथियों में कोई भी मांगलिक कार्य, नया व्यापार, गृह प्रवेश, नहीं करने चाहिए परन्तु मेले, तीर्थ यात्राओं आदि के लिए यह ठीक होती हैं ।
५. पूर्णा तिथियाँ –
दोनों पक्षों की ५, १०, १५ तिथि अर्थात पंचमी, दशमी और पूर्णिमा और अमावस। पूर्णा तिथि कहलाती हैं । इनमें अमवस्या को छोड़कर बाकि दिनों में अंतिम १ घटी या २४ मिनट पूर्व तक सभी प्रकार के लिए मंगलिक कार्यों के लिए ये तिथियाँ शुभ मानी जाती हैं ।
वार
****० एक सप्ताह में ७ दिन या ७ वार होते है । सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार । इन सभी वारो के अलग अलग देवता और ग्रह होते है जिनका इन वारो पर स्पष्ट रूप से प्रभाव होता है ।
नक्षत्र
**० हमारे आकाश के तारामंडल में अलग अलग रूप में दिखाई देने वाले आकार नक्षत्र कहलाते है ।
नक्षत्र २७ प्रकार के माने जाते है । ज्योतिषियों में अभिजीत नक्षत्र को २८ वां नक्षत्र माना है ।
नक्षत्रों को उनके स्वभाव के आधार पर ७ श्रेणियों ध्रुव, चंचल, उग्र, मिश्र, क्षिप्रा, मृदु और तीक्ष्ण में बाँटा गया है । चन्द्रमा इन सभी नक्षत्रो में भ्रमण करता रहता है ।
नक्षत्रों के नाम
**********०अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी,
मॄगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य,
अश्लेशा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी,
हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा,
अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा,
उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा,
पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती।
नक्षत्रों का स्वभाव
*************० नक्षत्रों की शुभाशुभ फल के आधार पर तीन श्रेणी होती हैं । शुभ, मध्यम एवं अशुभ ।
० शुभ फलदायी – १, ४, ८, १२, १३, १४, १७, २१, २२, २३, २४, २६, २७ ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह १३ नक्षत्र शुभ फलदायी माने जाते हैं ।
० मध्यम फलदायी – ५, ७, १०, १६ ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह चार नक्षत्र मध्यम फल अर्थात थोड़ा फल देते हैं।
० अशुभ फलदायी – २, ३, ६, ९, ११, १५, १८, १९, २०, २५ शास्त्रों के अनुसार या दस नक्षत्र अशुभ फल देते हैं अत: इन नक्षत्रों में शुभ कार्यो को करने से बचना चाहिए ।
योग
****० ज्योतिष शास्त्र के अनुसार २७ योग कहे गए है ।
सूर्य और चन्द्रमा की विशेष दूरियों की स्थितियों से योग बनते है ।
जब सूर्य और चन्द्रमा की गति में १३º-२०' का अन्तर पड्ता है तो एक योग बनता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले योगों के नाम निम्नलिखित है,
०१. विष्कुम्भ (Biswakumva),
०२. प्रीति (Priti),
०३. आयुष्मान(Ayushsman),
०४. सौभाग्य (Soubhagya),
०५. शोभन (Shobhan),
०६. अतिगंड (Atigad),
०७. सुकर्मा (Sukarma),
०८. घृति (Ghruti),
०९. शूल (Shula),
१०. गंड (Ganda),
११. वृद्धि (Bridhi),
१२. ध्रुव (Dhrub),
१३. व्याघात (Byaghat),
१४. हर्षण (Harshan),
१५. वज्र (Bajra),
१६. सिद्धि (Sidhhi),
१७. व्यतीपात (Biytpat),
१८. वरीयान (Bariyan),
१९. परिध (paridhi),
२०. शिव (Shiba),
२१. सिद्ध (Sidhha),
२२. साध्य (Sadhya),
२३. शुभ (Shuva),
२४. शुक्ल (Shukla),
२५. ब्रह्म (Brahma),
२६. ऎन्द्र (Indra),
२७. वैधृति (Baidhruti)
०२. प्रीति (Priti),
०३. आयुष्मान(Ayushsman),
०४. सौभाग्य (Soubhagya),
०५. शोभन (Shobhan),
०६. अतिगंड (Atigad),
०७. सुकर्मा (Sukarma),
०८. घृति (Ghruti),
०९. शूल (Shula),
१०. गंड (Ganda),
११. वृद्धि (Bridhi),
१२. ध्रुव (Dhrub),
१३. व्याघात (Byaghat),
१४. हर्षण (Harshan),
१५. वज्र (Bajra),
१६. सिद्धि (Sidhhi),
१७. व्यतीपात (Biytpat),
१८. वरीयान (Bariyan),
१९. परिध (paridhi),
२०. शिव (Shiba),
२१. सिद्ध (Sidhha),
२२. साध्य (Sadhya),
२३. शुभ (Shuva),
२४. शुक्ल (Shukla),
२५. ब्रह्म (Brahma),
२६. ऎन्द्र (Indra),
२७. वैधृति (Baidhruti)
इन २७ योगों में से ९ योगों को अशुभ माना जाता है इसीलिए इनमें सभी प्रकार के शुभ कार्यों से बचने को कहा गया है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।
करण
**० एक तिथि में दो करण होते हैं-
एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में।
कुल 11 करण होते हैं-
बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किंस्तुघ्न।
इसमें विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
महीनों के नाम
**********० भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में १२ माह होते है जिनके नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से १२ नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।
चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल)
विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई)
ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून)
आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई)
श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)
भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर)
अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्तूबर)
कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्तूबर-नवम्बर)
मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर)
पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी)
मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा
फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
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