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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

निजीकरण : सफल या असफल

पहले दूध में केवल पानी मिलाया जाता था,फिर मलाई मारी जाने लगी और अब यूरिया और डिटर्जेंट वाला दूध मिलता है।थोड़ा बहुत अपवाद छोड़ दें तो आपके हमारे घर में भी यही दूध आता है और ये दूध सरकारी कर्मचारी नहीं बेचता।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से अरुणाचल तक ट्रेनों में यूरिया वाली जहरीली चाय कोई सरकारी कर्मचारी नहीं बेचता।
200 घन फ़ीट का दावा करके 150 घनफीट बालू आपके हमारे घर में कोई सरकारी कर्मचारी नहीं पहुंचाता।
सड़कें कोई सरकारी ठेकेदार नहीं बनाता,
पेट्रोल पंप पर मिलावटी तेल भी कोई सरकारी कर्मचारी नहीं बेचता।
पेट्रोल पंप पर मिलावट के विरुद्ध कार्यवाही करने वाले सरकारी अधिकारी मंजूनाथ षणमुगम को भी मारने वाला पेट्रोल पंप के मालिक सरकारी आदमी नहीं था।
बड़ी बड़ी पंचसितारा इमारतों में हर दिन पैसा सोखने वाले निजी स्कूलों का संचालन सरकारी लोग नहीं करते।
करोड़ों रुपये लेकर देश छोड़ कर भाग जाने वाले माल्या,नीरव मोदी या मेहुल चौकसी सरकारी अधिकारी नहीं थे।

बिना सोचे समझे निजीकरण के पैरोकार और सरकारी कर्मचारी को नकारा साबित करने वाले लोग क्या कभी इन लोगों से कोई प्रश्न कर पाएंगे? जब देश का पैसा लूटकर पूजिपति बने इन पूजिपतियो की आम जनता के प्रति की कोई जवाबदेही नही है तो निजीकरण कैसे सही होगा। नीजिकरण के बाद दिवालिया होकर भाग जाने वालो से जनता के पैसे कौन वापस दिलायेगा।

और निजीकरण इतना ही सफल है तो उस दौर में जब स्मार्टफोन की सबसे ज्यादा आवश्यकता महसूस की जा रही थी तब माइक्रोमैक्स और karbonn जैसी मोबाइल कंपनियां क्यों फ्लॉप हो गई?
जब लोग हवाई यात्रा लोगो मे लोकप्रिय हो चुकी है तब किंगफिशर व जेट एयरवेज जैसी कम्पनी दिवालिया कैसे हो गयी ?
सोचिए जब इन कम्पनियो का ये हश्र हो सकता है तो कल सरकारी उपक्रमो की जगह लेने वाली कम्पनी का भी तो हो सकता है। अंततः इसका दुष्परिणाम किसे भुगतना होगा?

बड़े गंभीर प्रश्न हैं और ऐसे प्रश्नों की फेहरिश्त काफी लंबी है, बीते समय की बात है गरीबी चरम पर थी लेकिन बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, इतने सारे सरकारी उद्यम खड़े किए गए,आज बताया जा रहा है कि हम 500 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं  पिछले साल HPCLक़ो बेचा गया वो तो गनीमत रही कि ONGC को दिया गया और अब BPCL को बेचने की बात चल रही है जबकि BPCLने पिछले वित्तीय वर्ष में 2600करोड़ का मुनाफा कमाया है, स्थिति समझ से परे है,,, कि सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को एक ही बार में खत्म कर देने मे समझदारी है या फिर प्रतिदिन सोने के अंडे प्राप्त करने में।
    निजीकरण के गंभीर दुष्परिणाम आम जनता को भुगतने के लिए छोड़ दे रही है।                         
         
आज के समय के सबसे गंभीर चिंतन वाले विषय हैं ये। आप विशिष्ट मित्रों से निवेदन है कि खाली समय में इसपर अपने विचार जरुर प्रेषित करें ।

            धन्यवाद!

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