संघ किरण घर घर देने को अगणित नंदादीप जले

संघ किरण घर घर देने को संघ किरण घर घर देने को अगणित नंदादीप जले मौन तपस्वी साधक बन कर हिमगिरि सा चुपचाप गले ॥धृ॥ नई चेतना का स्वर दे कर जनमानस को नया मोड दे साहस शौर्य हृदय मे भर कर नयी शक्ति का नया छोर दे संघशक्ति के महा घोष से असुरो का संसार दले ॥१॥ परहित का आदर्श धार कर परपीडा को ह्रिदय हार दे निश्चल निर्मल मन से सब को ममता का अक्षय दुलार दे निशा निराशा के सागर मे बन आशा के कमल खिले ॥२॥ जन मन भावुक भाव भक्ति है परंपरा का मान यहा भारत माँ के पदकमलो का गाते गौरव गान यहा सब के सुख दुख मे समरस हो संघ मन्त्र के भाव पले ॥३॥

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