मालव राज्य की राजकुमारी विद्योत्तमा अत्यंत विदुषी और रूपवती थी। उसने यह प्रण लिया था कि वह उसी युवक से विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा।
विद्योत्तमा से विवाह की इच्छा अपने मन में लिए अनेक विद्वान् दूर-दूर से आये लेकिन कोई भी उसे शास्त्रार्थ में हरा न सका। उनमें से कुछ ने अपमान और ग्लानि के वशीभूत होकर राजकुमारी से बदला लेने के लिए एक चाल चली। उन्होंने एक मूर्ख युवक की खोज प्रारंभ की। एक जंगल में उन्होंने एक युवक को देखा जो उसी डाल को काट रहा था जिसपर वह बैठा हुआ था।
विद्वानों को अपनी हार का बदला लेने के लिए आदर्श युवक मिल गया। उन्होंने उससे कहा - यदि तुम मौन रह सकोगे तो तुम्हारा विवाह एक राजकुमारी से हो जायेगा।
उन्होंने युवक को सुन्दर वस्त्र पहनाये और उसे शास्त्रार्थ के लिए विद्योत्तमा के पास ले गए। विद्योत्तमा से कहा गया कि युवक मौन साधना में रत होने के कारण संकेतों में शास्त्रार्थ करेगा।
शास्त्रार्थ आरम्भ हुआ। विद्योत्तमा ने एक उंगली दिखाई - ब्रह्म एकमात्र सत्य है। निरक्षर कालिदास ने समझा वह उनकी एक आँख फोड़ने की धमकी दे रही है। उन्होंने दो उंगलियाँ उठा दीं- दोनों आँख फोड़ देंगे। पंडितों ने सिद्ध कर दिया कि महान विद्वान कह रहे हैं कि नहीं, ब्रह्म और माया, पुरुष और प्रकृति दोनों उतने ही सत्य हैं।
फिर विद्योत्तमा ने पाँचों उँगलियों को उठाकर पंजा दिखाया- मनुष्य पाँच ज्ञानेन्द्रियों के वशीभूत है। कालिदास ने समझा वह तमाचा मारने की धमकी दे रही है। उन्होंने उंगलियों को मोड़कर मुट्ठी कस ली और उसे ऊपर उठाया- घूँसा लगाउँगा। पंडितों ने व्याख्या की- नहीं, मन के नियंत्रण में एकजुट होकर ही ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञानेन्द्रियाँ बनती हैं, अन्यथा तो वे जड़ और निरर्थक हैं।
विद्योत्तमा ने हार मान ली। विवाह सम्पन्न हुआ। कुछ दिनों तक युवक मौन साधना का ढोंग करता रहा लेकिन एक दिन वह ऊँट को देखकर उष्ट्र के बजाए उट्र-उट्र का गलत उच्चारण कर बैठा। विद्योत्तमा को सच्चाई का पता चल गया कि उसका पति मूर्ख है।
उसने अपने पति को घर से निकाल दिया। उस जड़बुद्धि युवक को ये बात भीतर तक साल गयी। आगे की कहानी ये है कि बाद में उस युवक ने काली की साधना की और घर लौटा, पत्नी विद्योत्तमा ने उसे शिक्षित किया और वो संस्कृत का बहुत बड़ा विद्वान बन गया और कालिदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम्, कुमारसंभवम्, रघुवंशम्, मेघदूतम्, ऋतुसंहारम् कालिदास की प्रमुख रचनाएं हैं।
पुरुष प्रधान समाज ने विद्योत्तमा को भुला दिया। सम्भवतः विद्योत्तमा ही इन ग्रन्थों की रचनाकार रही हो जिन्हें कालिदास का नाम दे दिया गया हो ? ये बात आसानी से गले तो नही उतरती कि, जिस विद्योत्तमा ने कालिदास को शिक्षा दी वो स्वयं कुछ न लिख सकी ?
विद्वान लोग जब चाहें किसी मूर्ख को प्रकाण्ड पण्डित सिद्ध सकते हैं। ऐसा हर युग मे संभव है ।
स्रोत- सोशलमीडिया
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