तैत्तिरीयब्राह्मणे(३-१२-३-४) एवं श्रूयते - चर॑णं प॒वित्रं॒ वित॑तं पुरा॒णम् । येन॑ पू॒तस्तर॑ति दुष्कृ॒तानि॑ । तेन॑ प॒वित्रेण॑ शु॒द्धेन॑ पू॒ताः । अति॑ पा॒प्मान॒मरा॑तिं तरेम ।
चरत्यनेनेति पादेन्द्रियं चरणम् । शास्त्रीयाचरणं वा तेन उच्यते (धर्मो वा) । तच्च पवित्रं शुद्धिकारणम् । वित॑तं सर्वप्राणिविषयत्वेन विस्तीर्णम् । पुराणं सृष्ट्यादिमारभ्य प्रवृत्तत्वात् चिरन्तनम् । येन चरणेन देवेन पूतः शोधितः पुरुषो दुष्कृतानि तरति पापानि विनाशयति । पवित्रेण अन्यस्य शोधकेन स्वयमपि शुद्धेन तेन चरणदेवेन (धर्मेण) पूताः वयं पाप्मानमरातिं पापरूपं शत्रुम् अतितरेम अतिशयेन लङ्घयामः । पुण्यं स्थानं गच्छेम ॥
लो॒कस्य॒ द्वार॑मर्चि॒मत्प॒वित्र॑म् । ज्योति॑ष्म॒द्भ्राज॑मानं॒ मह॑स्वत् । अ॒मृत॑स्य॒ धारा॑ बहु॒धा दोह॑मानम् । चर॑णं नो लो॒के सुधि॑तां दधातु ।
यद् एतच्चरणाख्यं देवतास्वरूपं तदेतद् नः अस्माकं स्वर्गलोके सुधितां सुखयुक्तामवस्थितिं दधातु सम्पादयतु । कीदृशं चरणं, लोकस्य द्वारं स्वर्गस्य द्वारवत्प्रवेशसाधनम् । अर्चिमद् अर्चनायुक्तं सर्वैः पूज्यम् । पवित्रं शोधकम् । ज्योतिषमत्त्विषा प्रकाशनसामर्थ्योपेतं भ्राजमानं स्वयमपि दीप्यमानं महस्वन् माहात्म्ययुक्तम् । अमृतस्य पीयूषस्य धारा बहुधा दोहमानम् अनेकप्रकारेण संपादनशीलम् ॥
अस्मिन् प्रकरणे अग्निः अनुमतिः इति अनयोः मध्ये पञ्च देवताः स्मर्यन्ते - तपः - श्रद्धा - सत्यम् - मनः - चरणम् इति । तत्र "चरणाय चरु" इत्यस्य हविषः पुरोनुवाक्यामन्त्रः अयम् । अत्र "चरणं" देवतारूपेण स्तूयते ॥
हिन्दी भावार्थ- 👇
पुराने पवित्र और विस्तीर्ण चरणों के द्वारा जिस् चरण रूप देवता से शोधित पुरुष अपने पापों को नाश करता है । दूसरों को शुद्ध करनेवाले और स्वयं भी शुद्ध उस चरण देव से पवित्रित हम हमारे सभी पाप रूप शत्रु का उल्लङ्घन करते हैं अर्थात पापों से मुक्त हो जाते हैं ॥
यह जो चरण रूप देव है वह हमें स्वर्ग लोक में सुखमय स्थिति कल्पित करें । यह चरण स्वर्ग लोक के प्रवेश द्वार, सभी के द्वारा पूजनीय, पवित्र, स्वयं दीप्यमान, दूसरों को भी प्रकाशित करने वाला, महनीय और अमृत धारा को देनेवाला है ॥
इस प्रकरण में अग्नि और अनुमति नामक दो देवताओं के बीच अन्य पांच देवताओं का स्मरण है । वे हैं - तपः श्रद्धा सत्यं मनः चरणम् इति ॥
इसी कारण से हम भारतीय उम्र से बडों को, ज्ञान से बडों को, बन्धुता से बडों को, तपस्या आदि से बडों को प्रतीक के रूप में चरण स्पर्श करते हैं ॥
अन्य कई कारण है जैसे १) भगवान् के चरणों में १६ चिह्न है जिन के प्रणाम के लिए भगवान के चरण वन्दन करते हैं, २) भगवान् कृष्ण की वाम चरण से भक्ति और दक्षिण चरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ३) नमस्कारों में साष्टाङ्ग (आठ अङ्गों से दण्डवत् प्रणाम करना) नमस्कार उत्तम माना गया है - साष्टाङ्ग प्रणाम करते समय केवल प्रणम्य का चरण ही दिखाई देता है, अतः प्रतीक के रूप में चरण स्पर्श करते हैं आदि आदि ॥
यहां पर सायण भाष्य का ही अवलम्बन किया गया है ।
- लेख आचार्यजी श्रीरामानुज देवनाथन ।।
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