☑️(Tropical Montane Grasslands -TMG)✅
☑️चर्चा में क्यों?
✅हाल ही में एक अध्यनन में यह तथ्य सामने आया है कि पश्चिमी घाट के उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों (TMG) का तेजी से क्षरण हुआ है।
☑️इस्चिमी घाट के उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों के अध्यनन से जुड़े प्रमुख बिंदु
✅इस अध्यनन से पता चला है कि पश्चिमी घाट के शोला स्काई द्वीप( Shola Sky Islands) में उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों (Tropical Montane Grasslands -TMG) का विभिन्न कारणों से ह्रास हुआ है।
☑️उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के ह्रास के प्रमुख कारणों में इन घास के मैदानों में विदेशी प्रजातियों का अतिक्रमण है। ये विदेशी प्रजातियाँ हैं-कीकर(Acacias),पाइन्स(Pines) और यूकेलिप्टस।
✅पश्चिमी घाट के उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों के क्षरण से विभिन्न स्थानीय पौधों, पक्षियों, उभयचरों और स्तनधारियों को भी नुकसान हो रहा है।
✅शोधकर्ताओं का कहना है कि उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों के स्थलों की पहचान और उन्हे संरक्षित करने के लिए अदूनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। इसके लिए सैटेलाइट इमेजेस, रिमोट सेंसिंग आदि का उपयोग करना होगा।
☑️पश्चिमीबंधीय मोंटाने घास के मैदान (Tropical montane grasslands -TMG) के बारे में
✅पश्चिमी घाट के विशिष्ट वनस्पति समुदायों में से एक मोंटाने घास के मैदान और आस-पास के सदाबहार उष्णकटिबंधीय वन स्थानीय रूप से शोला घास के मैदान और शोला वन कहलाते है।
☑️मोंटाने घास के मैदान नीलगिरि के उच्च पठार, पलनी और अनामलाई पहाड़ी (1500 मीटर) पर स्थित हैं, एवं मोंटाने घास के मैदानों से इन पहाड़ों की की चोटियाँ ढंकी रहती हैं।
✅उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदान (Tropical montane grasslands -TMG) उच्च ऊंचाई वाले घास के मैदान(High Elevation Grasslands) हैं जो दुनिया के सभी घास के मैदानों का केवल 2% हैं।
☑️उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदान वैश्विक कार्बन चक्र(Global Carbon Cycle) को विनियमित करते हैं और डाउनस्ट्रीम समुदायों(Downstream Communities) को पानी के स्रोत के रूप में सेवा देते हैं।
✅पिछले 44 वर्षों की अवधि में पश्चिमी घाट में उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों का विदेशी वृक्षों के कारण लगभग 23% क्षरण हुआ है।
☑️भारत में, उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों को वन प्रबंधन योजनाओं(forest management plans) में बंजर भूमि(wastelands) के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि वे राजस्व उत्पन्न करने की संभावना नहीं रखते हैं। हालाँकि शोधकर्ताओं का कहना है कि सरकार को अपनी इस रणनीति को बदलना चाहिए।
✅उष्णकटिबंधीय मोंटाने घास के मैदानों को पश्चिमी घाट के नीलगिरी, पलानी हिल्स और अन्नामलाई आदि क्षेत्रों में काफी अधिक नुकसान हुआ है। जहां इनके संरक्षण की अति आवश्यकता है।
☑️पश्चिमी घाट (Western Ghats) के बारे में
☑️पश्चिमी घाट भारत के 6 राज्यों(यथा- तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात )में ताप्ती नदी से लेकर कन्याकुमारी तक फैला है।
✅पश्चिमी घाट में दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारी वर्षा होती है। इसलिए यह भारत के वर्षण प्रचुर क्षेत्रों में से एक है और यहाँ काफी अधिक जैव विविधता पायी जाती है।
☑️भारत के प्रायद्वीप की जलवायु को पश्चिमी घाट महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
✅प्रायद्वीपीय भारत का लगभग संपूर्ण अपवाह तंत्र पश्चिमी घाट से ही नियंत्रित होता है, क्योंकि यहाँ की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल पश्चिमी घाट ही है।
✅पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट की अपेक्षाकृत अधिक ऊंचे हैं। इसलिए ये मानसूनी हवाओं में अवरोध उत्पन्न कर वर्षा कराते हैं।
☑️पश्चिमी घाट के संरक्षण को लेकर गाडगिल और कस्तूरीरंगन समिति (Gadgil and Kasturirangan Committee) का गठन किया गया था। जिसने इसे तीन पर्यावरण संवेदनशील ज़ोन (Ecologically Sensitive Zones- ESZ) में बांटने का सुझाव दिया था।
☑️इसके अतिरिक्त समिति का अन्य प्रमुख सुझाव था कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पश्चिमी घाट पारिस्थिकी प्राधिकरण (Western Ghats Ecology Authority- WGEA) का गठन किया जाये।
✅भारत में पश्चिमी घाट, जैव विविधता का एक समृद्ध हॉटस्पॉट है। यहाँ कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्य अवस्थित हैं।
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