अगर खिलाफ हैं होने दो, चांद थोड़ी हैं
ये सब धुंआ है, कोई असमान थोड़ी हैं।।
लगेगी आग तो, आएंगे घर कई जद में
साहब यहां पे सिर्फ हमारा ही मकान थोड़ी है।।
हमारे मुंह से निकले, वही सनाकत् है
हमारे मुंह में तुम्हारी जबान थोड़ी है।।
मैं जानता हूं, दुश्मन भी कम नहीं
लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है।।
और जो आज साहिबे मसनद हैं, कल नही होंगे
किरायेदार हैं जातीय मकान थोड़ी हैं।।
सभी का खून है शामिल, यहां की मिट्टी में
 किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है।।

- राहत इंदौरी ।।

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