Curative Petition शब्द की उत्पति Cure शब्द से हुई है। इसका मतलब होता है उपचार करना।
क्यूरेटिव पिटीशन तब दाखिल किया जाता है जब किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाती है। ऐसे में क्यूरेटिव पिटीशन अंतिम मौका होता है। जिसके ज़रिए वह अपने लिए चीफ जस्टिस या राष्ट्रपति के पास गुहार लगा सकता है।
क्यूरेटिव पिटीशन किसी भी मामले में अभियोग की अंतिम कड़ी होता है, इसमें फैसला आने के बाद अपील करने वाले व्यक्ति के लिए आगे के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं।
किस मामले से आया क्यूरेटिव पिटीशन -
क्यूरेटिव पिटीशन का कांसेप्ट 2002 में रुपा अशोक हुरा मामले की सुनवाई के दौरान हुआ था। जब ये पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद भी क्या किसी आरोपी को राहत मिल सकती है?
नियम के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति रिव्यू पिटीशन डाल सकता है लेकिन सवाल ये पूछा गया कि अगर रिव्यू पिटीशन भी खारिज कर दिया जाता है तो क्या किया जाए?
तब सुप्रीम कोर्ट अपने ही द्वारा दिए गए न्याय के आदेश को गलत क्रियान्वन से बचाने के लिए या फिर उसे दुरुस्त करने लिए क्यूरेटिव पिटीशन की धारणा लेकर सामने आई। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसलों पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो गई।
क्यूरेटिव पिटीशन के नियम -
याचिकाकर्ता को अपने क्यूरेटिव पिटीशन में ये बताना होता है कि आख़िर वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती कर रहा है। क्यूरेटिव पिटीशन किसी सीनियर वकील द्वारा सर्टिफाइड होना ज़रूरी होता है।
जिसके बाद इस पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर मोस्ट जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया था उसके पास भी भेजा जाना जरूरी होता है। अगर इस बेंच के ज़्यादातर जज इस बात से इत्तिफाक़ रखते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन को वापिस उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है।
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