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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

पुरुष सूक्त।।

पुरुष सूक्त--- पुरुषसूक्त ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त यानि मंत्र संग्रह (10.90) है, जिसमें एक विराट पुरुष की चर्चा हुई है और उसके अंगों का वर्णन है। इसको वैदिक ईश्वर का स्वरूप मानते हैं। विभिन्न अंगों में चारो वर्णों, मन, प्राण, नेत्र इत्यादि की बातें कहीं गई हैं। यही श्लोक यजुर्वेद (31वें अध्याय) और अथर्ववेद में भी आया है। क्योकि इस सूक्त में अनेक बार यज्ञ आया है और यज्ञ की ही चर्चा यजुर्वेद में हुई है।
पुरुष सूक्त के आरंभिक दो मंत्र और सायण कृत भाष्य, वेदों (और सांख्य शास्त्र में) में पुरुष शब्द का अर्थ जीवात्मा तथा परमात्मा आया है, पुरुष लिंग के लिए पुमान और पुंस जैसे मूलों का इस्तेमाल होता है। पुम् मूल से ही नपुंसकता जैसे शब्द बने हैं।
ऋग्वेद के दशम मंडल का 90 वां सूक्त पुरुष सूक्त कहलाता है। इस सूक्त का
 ऋषि नारायण है और देवता पुरुष है। सूक्तं 10.89ऋग्वेदः - मण्डल 10 सूक्तं
 10.90 नारायणः । सूक्तं 10 .91 →देवता पुरुषः 1 अनुष्टुप्, 16 त्रिष्टुप् I 
पुरुष वह है जो प्रकृति को प्रभावित कर सके । पुरुष सूक्त को समझने की कुंजी हमें स्कन्द पुराण 6.231 से प्राप्त होती है जहां पुरुष सूक्त का विनियोग विष्णु की मूर्ति की अर्चना के विभिन्न स्तरों पर किया गया है। सूर्य के समतुल्य तेजसम्पन्न, अहंकारहित वह विराट पुरुष है, जिसको जानने के बाद साधक या उपासक को मोक्ष की प्राप्ति होती है । मोक्षप्राप्ति का यही मार्ग है, इससे भिन्न और कोई मार्ग नहीं है I पुरुष सूक्तं, वैष्णव सम्प्रदाय के 5 सूक्तों में से एक है शेष चार सूक्त हैं नारायण सूक्तं, श्री सूक्तं , भू सूक्तं और नील सूक्तं I
पुरुष सूक्तं को हम सबसे पहले ऋग्वेद में देखते हैं , ऋग्वेद के दसवें मंडल का 90 वां सूक्त पुरुष सूक्त है , इसके बाद हम इसे सामवेद और अथर्ववेद में भी कुछ परिवर्तन के साथ देख सकते हैं पुरुष सूक्त के शीर्षक पुरुष पुरुषोत्तम , नारायण हैं, जो की विराट पुरुष के रूप में हैं उनसे ही सारी सृष्टि का निर्माण हुआ , इस सूक्त में बताया गया है कि उनके हज़ार सर, कई आंखें , कई टांगें हैं , वे हर जगह व्याप्त हैं, वे समझ से परे हैं, सारी सृष्टि उनका चौथा हिस्सा है केवल, और उनका बाकी का हिस्सा अव्यक्त है I वह पुरुष ब्रह्मा के रूप में मंद रहा, और अनिरुध नारायण जो कि नारायण के चार रूपों में से एक है , ने कहा कि ''तुम कुछ करते क्यों नहीं ?''ब्रह्मा ने उत्तर दिया , '' क्यूंकि मैं कुछ जानता नहीं '' , तब अनिरुध नारायण ने कहा , '' तुम यज्ञ करो , तुम्हारी इन्द्रियां जो कि देवता हैं ,ऋत्विक बनेंगी , तुम्हारा शरीर हविष्य बनेगा , तुम्हारा ह्रदय यज्ञ कि वेदी बनेगा , मैं उस हविष्य को ग्रहण करूँगा , तुम अपने शरीर का बलिदान दो उससे सभी शरीर बनेंगे , ऐसा ही करो जैसा कि तुम अन्य कल्पो में करते आये हो ''
        इस तरह से वह यज्ञ ''सर्वहूत '' यज्ञ हुआ { जिसमे सब कुछ की आहुति दी गयी हो } उत्पत्ति की संरचना इसप्रकार यज्ञ से हुयी इस यज्ञ में पुरुष को आहुति दी गयी , ब्रह्मा द्वारा , ऋत्विक ब्रह्मिन , देवता बने जो की ब्रह्मा की इन्द्रियां थे , यज्ञ प्रकृति रुपी वेदी पर किया गया , यज्ञ की अग्नि पुरुष का ह्रदय थी,, यज्ञ में आहुति किसकी दी गयी ? पुरुष की , जिसमे सारी सृष्टि समाहित थी I इस प्रकार पुरुष सूक्त , प्रेम का सन्देश देता है की पुरुष स्वयं को ही सृष्टि की अग्नि में ग्रहण करेगा , ताकि सृष्टि का सृजन हो सके , इस प्रकार आहुति , बलिदान से ही सारी सृष्टि का प्रारंभ हुया , यही पुरुष सूक्तं का सन्देश है 

- सुद्युम्न आचार्य 

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