1. बनारसी परम्परा (Varanasi school of Law)
2. मिथिला परम्परा (Mithila School of Law)
3. गौड़ीय परम्परा (Bengal School of Law)
इनमें दूसरे और तीसरे में बहुत समानता है।
मिथिला तथा बंगाल की परम्परा नैबन्धिक है। यहाँ हमारे प्राचीन धर्मशास्त्री श्रीदत्त, चण्डेश्वर, वाचस्पति, रुद्रधर, महेश ठाकुर, अमृतनाथ आदि जो निर्देश दे गये है, वही मान्य है।
बंगाल में भी रघुनन्दन प्रमाण के रूप में स्वीकृत हैं।
बनारस-परम्परा में निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु, स्मृतिकौस्तुभ, स्मृतिचन्द्रिका मान्य ग्रन्थ हैं।
कृत्यकल्पतरु, चतुर्वर्गचिन्तामणि एवं वीरमित्रोदय ये तीनों सन्दर्भ-ग्रन्थों के रूप में सर्वत्र मान्य हैं।
आज आवश्यकता है कि हम अपनी परम्परा को पहचानें उसका पालन करें तथा दूसरी परम्परा का आदर करें।
अपनी परम्परा दूसरे के ऊपर थोपने का कार्य तो कतई न करें।
जब लोग अपनी परम्परा का समर्थन करें तो उसे "वैमनस्य" का नाम न दें।
मिथिला छोटी है, पर इसकी शास्त्र-परम्परा बहुत बड़ी है!!
~Bhavanath Jha
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