मैं ही वैष्णव , मैं ही हूं सौर ,
मैं शैव, शाक्त ,गाणपत्य और ।
मुझमें हैं बसते सभी पंथ
मैं हूं स्मार्त्त , निर्भय , निर्द्वन्द्व।।
जलने दो जिनको जलते हैं ,
गजराज पंथ निज चलते हैं ।
हम ऋषियों के हैं अमर वंश ,
स्मृति मानस के राजहंस ।।
स्मृतियॉ हैं गौरव अपना ,
मनुवाद हमारा है सपना ।
सपना अपना साकार करें
हम हैं स्मार्त्त , हुंकार भरें । ।
हमको निज पथ से भटका दे,
जग में इतनी औकात नहीं ।
हम अपना गौरव बिसरा दें ,
ऐसी तो अपनी जात नहीं ।।
है बात हमारी सत्य और,
शिव सुन्दरता से दीप्तमान् ।
ऋषि संस्कृति अपनी ध्वजा और ,
उनकी स्मृतियॉ हैं स्वाभिमान।।
अभिमान हमारा झुठला दे ,
जग की इतनी औकात नहीं ।
हम अपना गौरव बिसरा दें ,
ऐसी तो अपनी जात नहीं ।।
मैं शैव, शाक्त ,गाणपत्य और ।
मुझमें हैं बसते सभी पंथ
मैं हूं स्मार्त्त , निर्भय , निर्द्वन्द्व।।
जलने दो जिनको जलते हैं ,
गजराज पंथ निज चलते हैं ।
हम ऋषियों के हैं अमर वंश ,
स्मृति मानस के राजहंस ।।
स्मृतियॉ हैं गौरव अपना ,
मनुवाद हमारा है सपना ।
सपना अपना साकार करें
हम हैं स्मार्त्त , हुंकार भरें । ।
हमको निज पथ से भटका दे,
जग में इतनी औकात नहीं ।
हम अपना गौरव बिसरा दें ,
ऐसी तो अपनी जात नहीं ।।
है बात हमारी सत्य और,
शिव सुन्दरता से दीप्तमान् ।
ऋषि संस्कृति अपनी ध्वजा और ,
उनकी स्मृतियॉ हैं स्वाभिमान।।
अभिमान हमारा झुठला दे ,
जग की इतनी औकात नहीं ।
हम अपना गौरव बिसरा दें ,
ऐसी तो अपनी जात नहीं ।।
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