हमने अपने मौलिक सपने देश की खातिर बेचे है
लहू सीच कर चमन खिलाया , प्राण हलक से खीचे है
हमने सत्ताधीशों के पैरों के नीचे से धरती छीनी है
कितने भागे खेत छोड़ कितनो ने लाशे बीनी है
नव प्रभात की नव रोशनी में एक दीपक जलाया हूॅ
शाम तलक कुछ फुंकारों से इसे लावा बनाया हूॅ
फफक उठे है दहक उठे है लाल फुलंगे सीने में
हमको प्यारे रास न आया ऐसे घुट घुट जीने में
कलम चली है कलम चलेगी हल्के में मत लेना जी
खुलके जब तलवार चलेगी फिर इल्जाम न देना जी
लहू सीच कर चमन खिलाया , प्राण हलक से खीचे है
हमने सत्ताधीशों के पैरों के नीचे से धरती छीनी है
कितने भागे खेत छोड़ कितनो ने लाशे बीनी है
नव प्रभात की नव रोशनी में एक दीपक जलाया हूॅ
शाम तलक कुछ फुंकारों से इसे लावा बनाया हूॅ
फफक उठे है दहक उठे है लाल फुलंगे सीने में
हमको प्यारे रास न आया ऐसे घुट घुट जीने में
कलम चली है कलम चलेगी हल्के में मत लेना जी
खुलके जब तलवार चलेगी फिर इल्जाम न देना जी
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