मैं शिक्षक हूँ, मैं शिक्षक हूँ

तिल-तिल जलता जाता हूँ।
तम को दूर भगाता हूँ ।
मैं सूरज का वंशज हूँ ।
कीचड़ में भी खिल जाता हूँ।

मिट्टी की प्रतिमाओं में अब,
जीवन भरता जाता हूँ।
पथरीले पथ को सरल बना
सबको रांह दिखता हूँ।
जीवन का घोर प्रशिक्षक हूँ।
मैं शिक्षक हूँ,मैं शिक्षक हूँ।।

0 comments:

Post a Comment

We love hearing from our Readers! Please keep comments respectful and on-topic.