केंद्रीय कैबिनेट ने 29 जनवरी 2020 को संशोधित गर्भपात विधेयक (Medical Termination of Pregnancy Amendment Bill-2020) को मंजूरी दे दी. इस मंजूरी के साथ ही मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन का रास्ता साफ हो गया है. अब इस बिल को संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा, जो 01 फरवरी 2020 से शुरू होगा.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. इस बिल का मुख्य उद्देश्य हेतु गर्भपात अधिनियम (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट) 1971 में संशोधन किया जायेगा. हालांकि अभी इस विधेयक को कानून बनने हेतु लंबा रास्ता तय करना होगा.
महिलाओं के लिए उपचारात्मक, मानवीय या सामाजिक आधार पर सुरक्षित तथा वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने के लिए गर्भपात (संशोधन) विधेयक, 2020 लाया जा रहा है. केंद्र सरकार का कहना है कि यह महिलाओं की सुरक्षा और सेहत की दिशा में उठाया गया ठोस कदम है तथा इससे बहुत महिलाओं को लाभ मिलेगा.
इस विधेयक से संबंधित मुख्य तथ्य
• इस विधेयक के तहत गर्भपात की अधिकतम सीमा 20 हफ्ते से बढ़कर 24 हफ्ते कर दी गई है. इस विधेयक के तहत अब महिलायें प्रेगनेंसी के 24वें हफ्ते में भी गर्भपात करा सकेंगी. इसके लिए दो डॉक्टरों की अनुमति लेनी होगी. इसमें एक डॉक्टर सरकारी होगा.
• विशेष तरह की महिलाओं के गर्भपात (अबॉर्शन) के लिए गर्भावस्था की सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने का प्रस्ताव है. ऐसी महिलाओं को गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति (एमटीपी) नियमों में संशोधन के जरिए परिभाषित किया जाएगा. इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित तथा अन्य महिलाएं (दिव्यांग महिलाएं, नाबालिग) भी शामिल होंगी.
• संशोधन विधेयक के तहत, मेडिकल बोर्ड की जांच में मिली भ्रूण संबंधी विषमताओं के मामले में गर्भावस्था की ऊपरी सीमा लागू नहीं होगी. मेडिकल बोर्ड के संगठक, कार्य और अन्य विवरण कानून के नियमों के अंतर्गत निर्धारित किए जाएंगे.
• इस संशोधन में कहा गया है कि जिस महिला का गर्भपात कराया जाना है उनका नाम और अन्य जानकारियां उस समय कानून के तहत निर्धारित किसी खास व्यक्ति के अतिरिक्त किसी और को नहीं दी जाएंगी.
पृष्ठभूमि
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएं उपलब्ध कराने और चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास को ध्यान में रखते हुए विभिन्न हितधारकों और मंत्रालयों के साथ वृहद विचार-विमर्श के बाद गर्भपात कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया है.
हाल के दिनों में न्यायालयों में कई याचिकाएं दी गईं जिनमें भ्रूण संबंधी विषमताओं या महिलाओं के साथ यौन हिंसा के कारणसे गर्भधारण के आधार पर मौजूदा स्वीकृत सीमा से अधिक गर्भावस्था की अवधि पर गर्भपात कराने की अनुमति मांगी गई.
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