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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

कश्मीरी पण्डितों का 19 जनवरी 1990 की भयानक नरसंहार की इतिहास ।।

☞"कश्मीर घाटी के निवासी हिन्दुओं को उनके ऊपर हुए अत्याचार एवम् नरसंहार के पश्चात राजनीतिक लाभ लेने के लिए नेताओ द्वारा जातिवाद को बढ़ावा दिया गया और 'काश्मीरी हिन्दू पण्डित' या काश्मीरी ब्राह्मण कहआ गया हैं। सदियों से कश्मीर में रह रहे कश्मीरी हिन्दू पंडितों को 1990 में मुसलमानों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की कारण से घाटी छोड़नी पड़ी या उन्हें जबरन निकाल दिया गया। पनुन कश्मीर काश्मीरी पंडितों का संगठन है।

☞"कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित मुसलमानों ने शुरू किया था। कश्मीरी हिंदू पडित की दुकानें, कारखाने, मंदिर और घर जला दिए गए हिंदुओं के दरवाजों पर धमकी भरे पोस्टरों को पोस्ट किया गया और उन्हें तुरंत कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया। कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए। 30000 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या - घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। 

☞"19 जनवरी 1990 की घटना कश्मीर की इतिहास का सबसे दुखद अध्याय है। 19 जनवरी 1990 को नामुराद कट्टरपंथियों ने ऐलान कर दिया कि कश्मीरी पंडित काफिर है। इस ऐलान के साथ कट्टरपंथियों ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने और इस्लाम कबूल करने के लिए जोर-ज़बरजस्ती करने लगे। 

☞"कट्टरपंथियों का आतंक कश्मीर मे़ बढता जा रहा था। नतीजतन मार्च 1990 तक लगभग 1 लाख 6 सहस्त्र कश्मीरी पंडितो को अपना घरबार छोड़कर कश्मीर से भागना पड़ा। मार्च 1990 तक कश्मीर में हिंदू समुदाय के हर वर्ग की बड़े पैमाने पर हत्याए हुई। जिसमें हिंदू अधिकारी बुद्धिजीवी से लेकर कारोबारी एवं अन्य लोग भी शामिल थे। कश्मीरी पंडित इस दुनिया की सबसे सहनशील समुदाय है इतने बड़े विस्थापन और अत्याचार के बाद एक भी कश्मीरी पंडित ने ना तो हथियार उठाये और ना ही किसी हिंसक आंदोलन किया। ऐसा उदाहरण विश्व इतिहास में दूसरा नही है।

☞"यह बात विश्व चर्चित है की पाकिस्तान जैसे मुस्लिम दे में aअल्पसंख्यक वर्ग पर अत्याचार होता है परन्तु भारत जैसे महान देश में बहुसंख्यक समुदाय पर इतना बड़ा अत्याचार हुआ और उस बात को 40 साल होने को आए कीजिए ने सुध नहीं ली

☞"यह इस देश का दुर्भाग्य ही है कि यह के पूज्य लोग अपने ही देश में सरानर्था जीवन जी रहे है

✅️"कश्मीरी पंडितों का पलायन....✍️

☞"भारत के विभाजन के तुरंत बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया और बेरहमी से कई दिनों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए गए, क्योंकि पंडित नेहरू ने सेना को आदेश देने में बहुत देर कर दी थी। इस देरी के कारण जहां पकिस्तान ने कश्मीर के एक तिहाई भू-भाग पर कब्जा कर लिया, वहीं उसने कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर उसे पंडित विहीन कर दिया।

☞"24 अक्टूबर 1947 की बात है, पाकिस्तान ने पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। नेशनल कांफ्रेंस [नेकां], जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था व उसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे, ने भी भारत से रक्षा की अपील की। पहले अलगाववादी संगठन ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, लेकिन जब पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो उनका संहार किया जाने लगा। 4 जनवरी 1990 को कश्मीर का यह मंजर देखकर कश्मीर से 1.5 लाख हिंदू पलायन कर गए।

☞" दरअसल 1989 तक कश्मीर घाटी के हालात पूरी तरह बिगड़ चुके थे। पाकिस्तान परस्त दर्जनों आतंकी संगठनों घाटी में समानांतर सरकार चलाना शुरू कर चुके थे। इन संगठनों ने जम्मू कश्मीर
 लिबरेशन फ्रंट मुख्य था। 

☞"केंद्र में राजीव गांधी की सरकार के दौरान ही जेकेएलएफ के आतंकियों ने कश्मीरी हिंदूओं पर हमले शुरू कर दिये थे। जगमोहन की तैनाती राज्यपाल के तौर पर 19 जनवरी 1990 को हुई। लेकिन इससे पहले और जगमोहन के शुरूआती दिनों में हालात काबू से बाहर आ चुके थे।

☞"⦁ 14 सितंबर 1989- पंडित टीकालाल टपलू की हत्या, टीकालाल कश्मीर घाटी के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे। लेकिन आतंकियों ने सबसे पहले उन्हें निशाना बनाकर अपने इरादे साफ कर दिये।

☞"⦁ 4 नवंबर 1989, टपलू की हत्या के मात्र सात सप्ताह बाद जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गयी। सन 1989 तक पं० नीलकंठ गंजू- जिन्होंने मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी- हाई कोर्ट के जज बन चुके थे।

☞"वे 4 नवंबर 1989 को दिल्ली से लौटे थे और उसी दिन श्रीनगर के हरि सिंह हाई स्ट्रीट मार्केट के समीप स्थित उच्च न्यायालय के पास ही आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी थी। इस वारदात से डर कर आसपास के दूकानदार और पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए और खून से लथपथ जस्टिस गंजू के पास दो घंटे तक कोई नहीं आया।

☞" 4 जनवरी सन 1990 को स्थानीय उर्दू अखबार में हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने बड़े बड़े अक्षरों में प्रेस विज्ञप्ति दी कि - "या तो इस्लाम क़ुबूल करो या फिर घर छोड़कर चले जाओ."

☞" 5 जनवरी सन 1990 की सुबह गिरिजा पण्डित और उनके परिवार के लिए एक काली सुबह बनकर आयी। गिरजा की 60 वर्षीय माँ का शव जंगल में मिला उनके साथ बलात्कार किया गया था, उनकी आंखों को फोड़ दिया गया था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके साथ गैंगरेप के बाद हत्या की बात सामने आई. उसके अगली सुबह गिरजा की बेटी गायब हो गयी जिसका आजतक कुछ पता नहीं चला।

☞" 7 जनवरी सन 1990 को गिरजा पण्डित ने सपरिवार घर छोड़ दिया और कहीं चले गये, ये था घाटी से किसी पण्डित का पहला पलायन, घाटी में पाकिस्तान के पाँव जमना, घाटी में हिज्बुल मुजाहिद्दीन का राज और भारत सरकार की असफलता और जिन्ना प्रेम ने कश्मीर को एक ऐसे गृहयुद्ध में धकेल दिया था, जिसका अंजाम बर्बादी और केवल बर्बादी थी।

☞" 19 जनवरी सन 1990 को सभी कश्मीरी पण्डितों के घर के सामने नोट लिखकर चिपका दिया गया - "कश्मीर छोड़ो या अंजाम भुगतो या इस्लाम अपनाओ."

☞"19 जनवरी सन1990,इन सब बढ़ते हुए विवादों के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारुख अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और प्रदेश में राज्यपाल शासन लग गया. तत्कालीन राज्यपाल गिरीश चन्द्र सक्सेना ने केंद्र सरकार से सेना भेजने की संस्तुति भेजी. लेकिन तब तक लाखों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर आ गये, बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तान से रेडियो के माध्यम से भड़काना शुरू कर दिया, स्थानीय नागरिकों को पाकिस्तान की घड़ी से समय मिलाने को कहा गया, सभी महिलाओं और पुरुषों को शरियत के हिसाब से पहनावा और रहना अनिवार्य कर दिया गया. बलात्कार और लूटपाट के कारण जन्नत-ए-हिन्द, जहन्नुम-ए-हिन्द बनता जा रहा था. सैकड़ों कश्मीरी हिंदुओं की बहन बेटियों के साथ सरेआम बलात्कार किया गया फिर उनके नग्न बदन को पेड़ों से लटका दिया गया.

☞"19 और 20 जनवरी 1990 की कश्मीर घाटी की सर्द रातों में मस्जिदों से एलान किये गए कि सभी कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ कर चले जायें, अपनी पत्नी और बेटियों को भी यहीं छोड़े । हम अपने छह माह पहले अपने खून पसीने से बनाये मकान, दुकान और खेत ,बगीचे छोड़कर मुश्किल से जान बचाकर भागे , 1500 मन्दिर नष्ट कर दिए गए लगभग 5000 कश्मीरी हिन्दुओ की हत्या की गई । ठंडे स्थान पर रहने के कारण कई कश्मीरी हिन्दू दिल्ली की मई जून की गर्मी सहन नही कर सके और मारे गए । केम्पों में सांप बिच्छु के काटने से कई लोग मारे गए 

☞"23 जनवरी 1990 को 235 से भी ज्यादा कश्मीरी पण्डितों की अधजली हुई लाश घाटी की सड़कों पर मिली, छोटे छोटे बच्चों के शव कश्मीर के सड़कों मिलने शुरू हो गये, बच्चों के गले तार से घोंटे गये और कुल्हाड़ी से काट दिया गया महिलाओं को बंधक बना कर उनके परिवार के सामने ही सामूहिक बलात्कार किया गया, आँखों में राड घुसेड़ दिया गया, स्तन काट कर फेंक दिया, हाथ पैर काट कर उनके टुकड़े कर कर फेंके गये, मन्दिरों को पुजारियों की हत्या करके उनके खून से रंग दिया इष्ट देवताओं और भगवान के मूर्तियों को तोड़ दिया गया.

☞"24 जनवरी सन 1990 को तत्कालीन राज्यपाल ने कश्मीर बिगड़ते हालात देखकर फिर से केंद्र सरकार को रिमाइंडर भेजा लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई जवाब नहीं आया उसके बाद राज्यपाल ने विपक्ष के नेता राजीव गाँधी को एक पत्र लिखा जिसमें कश्मीर की बढ़ती समस्याओं का जिक्र था, उस पत्र के जवाब में भी कुछ नहीं आया.

☞" 26 जनवरी सन 1990 को भारत अपना 38 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा था उस समय कश्मीर के मूलनिवासी कश्मीरी पण्डित अपने खून एवम् मेहनत से सींचा हुआ कश्मीर छोड़ने को विवश हो गये थे, वो कश्मीर जहाँ की मिट्टी में पले बढ़े थे उस मिट्टी में दफन होने का ख्वाब उनकी आँखों से टूटता जा रहा था. 26 जनवरी की रात कम से कम 3,50000 हजार कश्मीरी पण्डित, ये सिर्फ एक रात का पलायन है इससे पहले 9 जनवरी, 16 जनवरी, 19 जनवरी को हज़ारों लोग अपना घर बार धंधा पानी छोड़कर कश्मीर छोड़कर जा चुके थे, पलायन करने को विवश हो गये. 29 जनवरी तक घाटी एकदम से कश्मीरी पण्डितों से विहीन हो चुकी थी लेकिन लाशों के मिलने का सिलसिला रुक नहीं रहा था. 2 फरवरी सन 1990 को राज्यपाल ने साफ साफ शब्दों में लिखा -

"अगर केंद्र ने अब कोई कदम ना उठाये तो हम कश्मीर गवाँ देंगे."

इस पत्र को सारे राज्यों के मुख्यमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता राजीव गांधी के साथ साथ बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी भेजा गया, पत्र मिलते ही बीजेपी का खेमा चौकन्ना हो गया और हज़ारों कार्यकर्ता प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँच कर आमरण अनशन पर बैठ गये, राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री से दरख्वास्त की जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कोई कार्यवाही की जाये.

☞" 6 फरवरी सन 1990 को केंद्रीय सुरक्षा बल के दो दस्ते अशांत घाटी में जा पहुँचे लेकिन उद्रवियों ने उनके ऊपर पत्थर और हथियारों से हमला कर दिया. सीआरपीएफ ने कश्मीर के पूरे हालात की समीक्षा करते हुए एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी. तत्कालीन प्रधानमंत्री एवम् गृहमंत्री चन्द्रशेखर ने इस रिपोर्ट पर गौर करते हुए राष्ट्रपति को भेजते हुए अफ्स्पा लगाने का निवेदन किया. तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन ने तुरन्त कार्रवाई करते हुए AFSPA लगाने का निर्देश दे दिया।

✅️"19 जनवरी – 1990 में आज ही कश्मीर से भगा दिए गए थे लाखों हिन्दू जिनके पास सिर्फ 2 रास्ते थे. धर्म का त्याग या फिर मौत....✍️

☞"आज खामोश हैं स्वघोषित सेकुलर व तथाकथित बुद्धिजीवी..उनके लिए फिदेल कास्त्रो, चे ग्वेरा के इतिहास को जानना व उनका महिमामंडन करना जरूरी होता है जिनका भारत भूमि से दूर दूर तक कोई रिश्ता नही है..जबकि उनकी संस्कृति भी भारत से कहीं से भी मेल नही खाती है..फिर भी उनके लिए लेनिन की मूर्ति कश्मीरी अर्थात उनके ही देश के लाखों हिंदुओं के प्राण, मान व स्वाभिमान से ज्यादा जरूरी लगती है..इसीलिए वो कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार व उनके पलायन पर एक भी शब्द नही बोलते हैं जबकि लेनिन की मूर्ति पर उंगली उठती है तो तड़प जाते हैं..फिर भी इनकी जिद होती है कि उनको जबरन या किसी भी रूप में सब देशभक्त कहें और इस देश की बागडोर उनके हाथों में दें..

 ☞"उनके हालात की कल्पना कीजिये जब उनके घरों में सामान बिखरा पड़ा था. गैस स्टोव पर देग़चियां और रसोई में बर्तन इधर-उधर फेंके हुए थे. घरों के दरवाज़े खुले थे. हर घर में ऐसा ही समां था. ऐसा लगता था कि कोई बहुत बड़ा भूकंप के कारण घर वाले अचानक अपने घरों से भाग खड़े हुए हों..कश्मीरी पंडित हिंसा, आतंकी हमले और हत्याओं के माहौल में जी रहे थे. सुरक्षाकर्मी थे लेकिन उन्हें किस ने  मना किया था चुप रह कर सब देखते रहने के लिये ये आज तक रहस्य है ..शुरू में उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं. “जम्मू में पहले हम सस्ते होटल में रहे, छोटी-छोटी जगहों पर रहे. बाद में एक धर्मशाला में रहे.. इतना  ही नही, उनके पेट भीख माग कर भी  पले..

☞"देश की आजादी के बाद धरती के जन्नत कश्मीर में जहन्नुम का मौहाल बन चुका था। 19 जनवरी 1990 की काली रात को करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों को अपना आशियाना छोड़कर पलायन को मजबूर होना पड़ा था। अलगावादियों ने हिन्दुओ के घर पर एक नोटिस चस्पा की गई। जिसपर लिखा था कि ‘या तो मुस्लिम बन जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ…या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ’. हिन्दुओ की बहू, बेटियों के साथ उन्मादी नारो के बीच बलात्कार और लूट-पाट की वारदात को अंजाम दिया गया. हर तरफ कत्लेआम हो रहा था। जन्नत में हर ओर मौत और दहशत का मंजर था। कश्मीर में हथियारबंद आंदोलन शुरु होने के बाद उसी रात तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडित अपने परिवार के साथ अपना घर, अपनी जन्मभूमि छोड़ने पर मजबूर हो गए.

☞"सुप्रीम कोर्ट में 27 साल पहले हुए पंडितों पर नरसंहार की जांच करने से इनकार कर दिया। रुट्स ऑफ कश्मीर संगठन ने कोर्ट से 1990 में कश्मीरी पंडितों की हत्या की 215 घटनाओं जांच की मांग की थी। जिसमें 700 लोगों की मौत हुई थी। संस्था ने कहा कि दोषी उस समय कश्मीर से भाग गए थे इसलीए जांच नहीं हो सकी। इसपर चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि इतने साल से आप कहां थे, अब 27 साल बाद इन मामलों में सबूत कैसे मिलेंगे?  कुल मिला कर अब वो सभी हिन्दू कम से कम भारत के तंत्र से न्याय से सदा वंचित ही रहेंगे जबकि अदालत ने ही लगभग 30 साल पुराने मेरठ के हाशिमपुरा दंगो में मारे गए मुस्लिमों के केस में कई PAC के जवानों को सज़ा दी..

कश्मीरी पंडितों के पलायन के 30 साल: मस्जिदों से हो रहे थे एलान, हमसे बाहर आने के लिए कहा गया, फिर...

 ☞"घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए 19 जनवरी प्रलय का दिन माना जाता है, क्योंकि वर्ष 1990 में हालात बिगड़ने के कारण इसी तारीख को कश्मीरी पंडित समुदाय ने कश्मीर घाटी से पलायन करना शुरू कर दिया था। आज इस तारीख को तीस साल पूरे हो गए हैं। आज के दिन को कश्मीरी पंडित ‘होलोकॉस्ट/एक्सोडस डे’ (प्रलय/बड़ी संख्या में पलायन की तारीख) के तौर पर मनाते हैं।

 ☞"मई 1990 तक करीब पांच लाख कश्मीरी पंडित जान बचाने के लिए अपनी मातृभूमि को छोड़ कश्मीर से पलायन कर चुके थे, जो स्वतंत्रता के बाद भारत का सबसे बड़ा पलायन माना जाता है।

 ☞"इसी के चलते हर वर्ष 19 जनवरी को जहां कहीं भी कश्मीरी पंडित रहते हैं, वहां वह इस तारीख को ‘होलोकॉस्ट/एक्सोडस डे’ (प्रलय/बड़ी संख्या में पलायन की तारीख) के तौर पर मनाते हैं।

 ☞"इस तारीख को जो भी कश्मीरी पंडित याद करता है, उसे वह यादें सिहरा कर रख देती हैं। उनके मुंह से सिर्फ यही शब्द निकलते हैं कि ऐसा दिन किसी की भी जिंदगी में कभी भी न आए। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय तिकू ने अमर उजाला से विशेष बातचीत में अपना अनुभव साझा किया।

 ☞"उनके अनुसार वर्ष 1990 में आतंकवाद के शुरू होते ही कश्मीरी समुदाय के लोग जो उनके साथ रहते थे, उनका व्यवहार भी बदल गया। उसके पीछे दो कारण हो सकते हैं या तो वह आतंकवाद से प्रभावित हो चुके थे या तो वह जानते थे कि कश्मीरी पंडित भाइयों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।

 ☞"इसलिए ऐसा व्यवहार कर उन्हें यहां से सुरक्षित निकाला जा सकता है। तिकू के अनुसार पलायन के पीछे एक और बड़ा कारण था कि कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया गया। समुदाय की बहन बेटियों के साथ दुष्कर्म किया गया। इसलिए अपनी सुरक्षा को देखते हुए लोगों ने पलायन का रास्ता चुना।

 ☞"वर्ष 1990 की उस तारीख को याद करते हुए संजय तिकू ने कहा कि सर्दियों के दिन थे। उन्हें याद है, दूरदर्शन पर फिल्म चल रही थी, जिसे वह देख रहे थे। इसी दौरान अचानक लाउड स्पीकरों पर आवाजें आने लगीं। मैने भी खिड़की से सुनने की कोशिश की, लेकिन समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है।

☞"बाद में हर मस्जिद में ऐलान किया गया कि सब लोग आजादी के लिए बाहर निकल आओ। कश्मीरी पंडितों से भी बाहर आने को कहा गया। उन्होंने ने कहा कि उन्हें याद है कि एक-दो दिन पूर्व सीआरपीएफ ने कंट्रोल अपने हाथों में लेना शुरू किया था।

☞"तिकू के अनुसार उसी रात जब ‘यहां क्या चलेगा निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘ए जालिमों ए काफिरों कश्मीर हमारा छोड़ दो’ जैसे नारे बुलंद किए गए, तो कश्मीरी पंडितों में एक भय सा पैदा हो गया कि आखिर अब क्या होगा। वो रात कभी नहीं भूलती, क्योंकि वह रात मानो तारे गिनते हुए काटी हो। जब सुबह हुई तो माहौल खौफनाक था।

☞"समुदाय के लोग परेशान थे। चर्चा का विषय था कि आखिर कहां जाएंगे और अब क्या होगा। उस मंजर के 30 वर्ष पूरे हो चुके हैं। लेकिन आज भी यह कड़वी याद हर उस कश्मीरी पंडित के दिल में ताजा है, जो पलायन कर कश्मीर छोड़कर गया था।

☞"भारत के वि‍भाजन के तुरंत बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया और बेरहमी से कई दिनों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए गए, क्योंकि पंडित नेहरू ने सेना को आदेश देने में बहुत देर कर दी थी। 

☞"इस देरी के कारण जहां पकिस्तान ने कश्मीर के एक तिहाई भू-भाग पर कब्जा कर लिया, वहीं उसने कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर उसे पंडित विहीन कर दिया। 

☞"अब जो भाग रह गया वह अब भारत के जम्मू और कश्मीर प्रांत का एक खंड है और जो पाकिस्तान के कब्जे वाला है, उसे पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) कहते हैं जहां से कश्मीरी युवकों को धर्म के नाम पर भारत के खिलाफ भड़काकर कश्मीर में आतंकवाद फैलाया जाता है। 
☞"इस आतंकवाद के चलते जो कश्मीरी पंडित पाक अधिकृत कश्मीर से भागकर इधर के कश्मीर में आए थे उन्हें इधर के कश्मीर से भी भागना पड़ा और आज वे जम्मू या दिल्ली में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। 

☞"947 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी पंडित जम्मू में रहते हैं। उन्हें जम्मू में रहते हुए आज तक कोई भारतीय नागरिकता नहीं मिली है।

✅️"कश्मीरी पंडित : कहां है पंडितों का कश्मीर..?

पनुन कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं का संगठन है। इसकी स्थापना सन् 1990 के दिसम्बर माह में की गई थी। इस संगठन की मांग है कि कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कश्मीर घाटी में अलग राज्य का निर्माण किया जाए।

☞"पनुन कश्मीर का अर्थ है हमारे खुद का कश्मीर। वह कश्मीर जिसे हमने खो दिया है उसे फिर से हासिल करने के लिए संघर्ष करना। पन्नुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे। 

☞"पनुन कश्मीरी यूथ संगठन एक अलगाववादी संगठन है, जो सात लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों के हक के लिए लड़ाई लड़ रहा है। 

☞"एक जानकारी के मुताबिक सदियों से कश्मीर घाटी में रह रहे कश्मीरी मूल के कश्मीरी हिन्दू पंडितों को 1990 में इस्लामिक आतंकवादियों ने आतंकवाद और हिंसा के जरिए घाटी से निकाल दिया था। 

☞"कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बेरहमी से सताया गया, उनकी हत्या की गई, उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार किया गया और उनकी लड़कियों से जबरन निकाह कर पुरुषों को मार दिया गया। 

☞"जेहाद’ और ‘निजामे-मुस्तफा’ के नाम पर बेघर किए गए लाखों कश्मीरी पंडितों के वापस लौटने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। ऐसे में जातिसंहार और निष्कासन के शिकार कश्मीरी पंडित घाटी में अपने लिए ‘होम लैंड’ की मांग कर रहे हैं।

☞"ऐसे शुरू हुआ कश्मीरी पंडितों का नरसंहार :- 24 अक्टूबर, 1947 की बात है, पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को पाकिस्तान ने उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। 

☞"नेशनल कांफ्रेंस, जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था व उसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे, ने भी भारत से रक्षा की अपील की। 

☞"पहले अलगाववादी संगठन ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, लेकिन जब पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो उनका संहार किया जाने लगा। 

☞"कश्मीरी पंडितों का पलायन : 4 जनवरी 1990 को कश्मीर के प्रत्येक हिन्दू घर पर एक नोट चिपकाया गया, जिस पर लिखा था- कश्मीर छोड़ के नहीं गए तो मारे जाओगे। 

☞"सबसे पहले हिन्दू नेता एवं उच्च अधिकारी मारे गए। फिर हिन्दुओं की स्त्रियों को उनके परिवार के सामने सामूहिक बलात्कार कर जिंदा जला दिया गया या नग्नावस्था में पेड़ से टांग दिया गया। बालकों को पीट-पीट कर मार डाला। यह मंजर देखकर कश्मीर से 3.5 लाख हिंदू पलायन कर गए। 

☞"संसद, सरकार, नेता, अधिकारी, लेखक, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और पूरा देश सभी चुप थे। कश्मीरी पंडितों पर जुल्म होते रहे और समूचा राष्‍ट्र और हमारी राष्ट्रीय सेना देखती रही। आज इस बात को 22 साल गुजर गए।

☞"1989 के पहले कभी कश्मीरी पंडित बहुसंख्यक हुआ करते थे, लेकिन आज ज्यादातर मुसलमान कश्मीरी पंडित हैं और जो नहीं है वह शरणार्थी शिविर में नारकीय जीवन काट रहे हैं। 

☞"आज कश्मीर के पंडित एक ऐसा समुदाय हो गए हैं, जो बिना किसी गलती के ही अपने घर से बेघर हो गए हैं। उन्हें शायद अपनी शांतिप्रियता के कारण ही यह दिन देखने पड़ रहे हैं कि सब कुछ होते हुए भी वे और उनके बच्चे सड़क पर हैं। 

☞"भारत की आजादी ने उनसे उनका सब कुछ छीन लिया। 1989 के पहले भारतीय कश्मीर के पंडितों के पास अपनी जमीनें, घर, बगीचे, नावें आदि सभी कुछ था। 

☞"ऐसा नहीं है कि कश्मीरी मुसलमानों को कुछ मिला हो। कश्मीरी मुसलमान भी उतना ही बदतर जीवन जी रहा है, जितना कि कश्मीरी पंडित। कश्मीरी पंडितों की जमीन और मकानों पर कब्जा करने वाले कौन हैं? स्थानीय मुसलमान या राज्य सरकार? 

☞"घाटी से पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के अन्य इलाकों में विभिन्न शिविरों में रहते हैं। 22 साल से वे वहां जीने को विवश है ं| कश्मीरी पंडितों की संख्या 4 लाख से 7 लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए। एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गई। 

☞"1947 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी पंडित जम्मू में रहते हैं। इसके बाद भारत अधिकृत कश्मीर से भगाए गए पंडित भी जम्मू में रहते हैं लेकिन वहां भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा हुआ है। कौन सुध लेगा इन पंडितों की।

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